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Wednesday, 16 July, 2025
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आरोप पत्र दाखिल नहीं हुआ तो व्यक्ति को समन जारी होने से पहले सुनवाई का अधिकार नहीं: न्यायालय

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नयी दिल्ली, छह मार्च (भाषा) उच्चतम न्यायालय ने बृहस्पतिवार को कहा कि आरोप-पत्र में आरोपी के रूप में नामित न किये गये व्यक्ति को आपराधिक मुकदमे का सामना करने के लिए बुलाए जाने से पहले निचली अदालत में सुनवाई का अधिकार नहीं है।

न्यायमूर्ति जे बी पारदीवाला और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा की पीठ ने हालांकि कहा कि यदि उच्च न्यायालय किसी व्यक्ति को आपराधिक मामले में आरोपी के रूप में समन भेजने के मुद्दे पर विचार करता है, जबकि निचली अदालत ने ऐसी याचिका खारिज कर दी है, तो प्रस्तावित अभियुक्त को सुनवाई का अधिकार है।

पीठ दंड प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) की धारा 319 पर एक कानूनी प्रश्न पर विचार कर रही थी।

सीआरपीसी की धारा 319 न्यायालय को अपराध के दोषी प्रतीत होने वाले अन्य व्यक्तियों के विरुद्ध कार्रवाई करने का अधिकार देती है, यदि जांच या सुनवाई के दौरान यह प्रकाश में आता है कि जिस व्यक्ति का नाम आरोपी के रूप में नहीं है, उसने अपराध किया है।

पीठ ने कहा, ‘‘धारा 319 में यह प्रावधान नहीं है कि समन किए गए व्यक्ति को मुकदमे का सामना करने के लिए अभियुक्त के रूप में शामिल किए जाने से पहले सुनवाई का अवसर दिया जाना चाहिए। सुनवाई का अधिकार केवल उस व्यक्ति को प्राप्त होगा जो मुकदमा शुरू होने से पहले ही उसी कार्यवाही में दोषमुक्त हो चुका हो।’’

न्यायमूर्ति पारदीवाला ने कहा, ‘‘यह इस तथ्य से अलग है कि जिस व्यक्ति को धारा 319 सीआरपीसी के तहत तलब किया गया है, उसे अन्य आरोपियों के साथ मुकदमा चलाने के लिए आरोपी के रूप में शामिल किए जाने से पहले नैसर्गिक न्याय के सिद्धांतों के अनुसार सुनवाई का अधिकार है। धारा 319 के तहत हालांकि आवेदन खारिज होने के बाद, प्रस्तावित अभियुक्त के पक्ष में अधिकार लागू हो जाता है।’’

यह फैसला 2009 में हत्या के एक मामले के संबंध में आया है जिसमें दो व्यक्तियों, जिनका नाम आरोप-पत्र में आरोपी के रूप में नहीं था, को अंततः निचली अदालत और इलाहाबाद उच्च न्यायालय में कई मुकदमों के बाद सुनवाई में शामिल होने के लिए तलब किया गया था।

उच्चतम न्यायालय ने हत्या के मामले में दो व्यक्तियों, जैमिन और अकील को आरोपी के रूप में समन जारी करने को बरकरार रखा।

वर्ष 2009 में उत्तर प्रदेश के हरदोई में पांच लोगों इरशाद, इरफान, अब्दुल, जैमिन और अकील के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज की गई थी।

पुलिस ने इरशाद और इरफान के खिलाफ आरोप-पत्र दाखिल किया, जबकि अब्दुल, जैमिन और अकील के खिलाफ जांच जारी रखी, जिन्हें मुकदमे का सामना करने के लिए नहीं बुलाया गया था।

निचली अदालत ने 2009 में इरशाद और इरफान के खिलाफ आरोप तय किये और बाद में उन्हें दोषी ठहराया गया तथा 2011 में आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई।

मुकदमे के दौरान, शिकायतकर्ता द्वारा सीआरपीसी की धारा 319 के तहत एक आवेदन दायर किया गया था जिसमें शेष तीन आरोपियों को तलब करने का अनुरोध किया गया।

निचली अदालत ने 2010 में यह कहते हुए आवेदन खारिज कर दिया कि उनके खिलाफ कोई ठोस सबूत नहीं है।

हालांकि, उच्च न्यायालय ने प्रमुख गवाहों की गवाही के बाद निचली अदालत को आवेदन पर पुनर्विचार करने का निर्देश दिया।

लंबी कानूनी लड़ाई के बाद, 2021 में उच्च न्यायालय ने निचली अदालत के पहले के खारिज किए गए फैसले को रद्द कर दिया और उसे धारा 319 के तहत आवेदन का पुनर्मूल्यांकन करने का निर्देश दिया।

इसके परिणामस्वरूप, फरवरी 2024 में, हरदोई की एक अदालत ने आवेदन को स्वीकार कर लिया और जैमिन और अकील को मुकदमे के लिए बुलाया, क्योंकि अन्य आरोपियों में से एक अब्दुल की मौत हो गई थी।

मुकदमे के दूसरे दौर में उच्च न्यायालय ने आरोपियों को समन जारी करने और मुकदमे के खिलाफ उनकी याचिकाओं को खारिज कर दिया और परिणामस्वरूप मामला शीर्ष अदालत में पहुंचा।

उच्चतम न्यायालय ने याचिका खारिज कर दी और कहा कि अब जैमिन और अकील को 2009 में हुई हत्या के मामले में उनकी कथित भूमिका के लिए मुकदमे का सामना करना पड़ेगा।

भाषा

देवेंद्र माधव

माधव

यह खबर ‘भाषा’ न्यूज़ एजेंसी से ‘ऑटो-फीड’ द्वारा ली गई है. इसके कंटेंट के लिए दिप्रिंट जिम्मेदार नहीं है.

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