मुंबई: 2014 से 2019 के बीच, जब महाराष्ट्र में भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) और अविभाजित शिवसेना की सरकार थी, तब इन दोनों पार्टियों का निचले सदन में बहुमत था. उस दौरान विपक्ष का ध्यान और आक्रामक रुख ज्यादातर ऊपरी सदन पर था, जहां संख्या बल उसके पक्ष में था.
हर दिन विपक्ष की ओर से सरकार पर हमले की अगुवाई धनंजय मुंडे करते थे, जो उस समय ऊपरी सदन में नेता प्रतिपक्ष थे. वे अपनी टीम द्वारा जुटाए गए सरकारी दस्तावेजों का पुलिंदा लेकर आते और हर दिन भ्रष्टाचार का एक नया आरोप लगाते.
इसके बाद, महाराष्ट्र की राजनीति में मुंडे की स्थिति तेजी से मजबूत होती गई, लेकिन 2021 से उन पर लगे कई विवादों के चलते यह धीरे-धीरे कमजोर होने लगी.
मंगलवार को उनकी राजनीतिक स्थिति को बड़ा झटका लगा जब देवेंद्र फडणवीस के नेतृत्व वाली राज्य सरकार में मंत्री पद पर रहते हुए उन्होंने इस्तीफा दे दिया. विपक्ष ने उनके खिलाफ कार्रवाई की मांग तेज कर दी थी क्योंकि उनके करीबी सहयोगी वाल्मिक कराड के खिलाफ मुंडे के गृह जिले बीड में एक भाजपा सरपंच की हत्या के मामले में चार्जशीट दाखिल की गई थी. बीड जिले के मसाज़ोग गांव के सरपंच संतोष देशमुख की कथित रूप से 9 दिसंबर को हत्या कर दी गई थी.
49 वर्षीय मुंडे, जो अजित पवार के नेतृत्व वाली राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) के विधायक हैं और खाद्य, नागरिक आपूर्ति एवं उपभोक्ता संरक्षण विभाग के मंत्री थे, ने अपने इस्तीफे का कारण अपनी खराब सेहत बताया. उन्होंने यह भी कहा कि सरपंच संतोष देशमुख की कथित हत्या की कुछ ग्राफिक तस्वीरें, जो सोमवार को सोशल मीडिया पर वायरल हुईं, ने उन्हें मानसिक रूप से गहरा आघात पहुंचाया.
अब तक मुंडे का बचाव कर रहे उपमुख्यमंत्री अजित पवार, जो पहले कह रहे थे कि जब तक उनकी हत्या में संलिप्तता का कोई सबूत न मिले, तब तक उन्हें इस्तीफा देने की जरूरत नहीं है. लेकिन मंगलवार को उन्होंने कहा कि मुंडे ने “नैतिकता के आधार पर” कैबिनेट से इस्तीफा दे दिया.
अजित पवार के करीबी एक एनसीपी नेता ने पिछले महीने दिप्रिंट को बताया था कि मसायजोग हत्याकांड के बाद से लगातार मुंडे के इस्तीफे की मांग ने पार्टी को मुश्किल में डाल दिया था.
“लेकिन अंत में यह संख्याओं का खेल है. अजित दादा, धनंजय मुंडे को इसलिए बचा रहे थे क्योंकि वह महायुति पार्टियों के बीच सत्ता संतुलन बनाए रखने के लिए हमारे पार्टी को कैबिनेट में एक नेता कम नहीं करना चाहते थे. हमें ज्यादा से ज्यादा प्रभावशाली नेताओं को अपने साथ बनाए रखना जरूरी था,” नेता ने कहा.
दिवंगत बीजेपी नेता गोपीनाथ मुंडे के भतीजे धनंजय मुंडे ने मराठवाड़ा के बीड जिले में एनसीपी के लिए एक मजबूत पकड़ बनाई, जिससे पार्टी को वहां अपनी स्थिति मजबूत करने में मदद मिली. इसके अलावा, वह अजित पवार के नेतृत्व वाली राकांपा के कुछ अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) नेताओं में से एक थे.
हालांकि उन्होंने कई बार विवाद खड़े किए, लेकिन पार्टी के नेता अक्सर उनके अस्थिर राजनीतिक जीवन को नजरअंदाज कर देते थे, क्योंकि वह अपने प्रभाव क्षेत्र से राजनीतिक फायदा पहुंचा सकते थे.
लेकिन इस बार, देशमुख हत्या और इस मामले में मुंडे के करीबी वाल्मिक कराड की गिरफ्तारी ने उनके प्रभाव क्षेत्र को ही झकझोर दिया, जिससे बीड जिले में उनके खिलाफ विरोध प्रदर्शन शुरू हो गए.
मुंडे के इस्तीफे के बाद, अजित पवार के नेतृत्व वाली एनसीपी ने एक दो पन्नों का बयान जारी किया, जिसमें पार्टी ने देशमुख की हत्या की निंदा की, लेकिन यह भी स्पष्ट किया कि अब तक मुंडे के खिलाफ कोई सबूत सामने नहीं आया है.
बयान में कहा गया, “धनंजय मुंडे ने एक जिम्मेदार राजनीतिक नेता के रूप में नैतिकता के आधार पर इस्तीफा देने का फैसला किया.”
इसमें यह भी जोड़ा गया कि अजित पवार ने पहले भी “नैतिकता के आधार पर” इस्तीफा देने की मिसाल कायम की थी.
2012 में, सिंचाई परियोजनाओं से जुड़े भ्रष्टाचार के आरोपों का सामना कर रहे पवार ने उपमुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दिया था.
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भतीजे का उत्थान
महाराष्ट्र की राजनीति चाचा-भतीजे की सियासी टकरावों के लिए मशहूर है, और धनंजय मुंडे भी इसी परंपरा का हिस्सा रहे हैं.
धनंजय मुंडे ने 2013 में बीजेपी छोड़ दी थी, जब यह स्पष्ट हो गया कि उनके चाचा, गोपीनाथ मुंडे, अपनी राजनीतिक विरासत अपनी बेटियों, प्रीतम और पंकजा, को सौंपना चाहते हैं. इसके बाद, धनंजय ने उस समय की एकजुट एनसीपी जॉइन कर ली और बाद में अजित पवार का समर्थन किया. अजित पवार भी अपने चाचा शरद पवार के खिलाफ एक बड़े सियासी संघर्ष का हिस्सा थे.
धनंजय मुंडे 2019 और 2023 में अजित पवार के नेतृत्व में हुई बगावत का हिस्सा थे, जब कुछ विधायक महायुति सरकार में शामिल हुए. हालांकि, उनकी राजनीतिक स्थिति इससे पहले ही मजबूत हो चुकी थी. उन्होंने गोपीनाथ मुंडे के प्रभाव क्षेत्र बीड जिले में एनसीपी को मजबूती दी, जहां गोपीनाथ मुंडे ने बीजेपी के लिए जनाधार तैयार किया था.
2014 में, धनंजय मुंडे महाराष्ट्र विधान परिषद में नेता प्रतिपक्ष बने. उन्होंने अपनी चचेरी बहन पंकजा मुंडे को जोरदार तरीके से घेरा, जो उस समय फडणवीस सरकार में मंत्री थीं. खासकर तब, जब उन पर आंगनवाड़ियों में सप्लाई के लिए 206 करोड़ रुपये के ठेकों में गड़बड़ी के आरोप लगे थे.
विधानसभा में विरोध प्रदर्शन के दौरान, विपक्ष ने ‘पंकू चिक्की’ नाम से डिब्बे छपवाकर बांटे, जिससे बीजेपी पर हमला बोला गया और पंकजा के इस्तीफे की मांग की गई. पंकजा ने तब प्रतिक्रिया देते हुए कहा था कि उनके भाई ने उनके घर के नाम (पंकू) का राजनीतिक मंच पर मजाक उड़ाकर उन्हें आहत किया.
2019 में, धनंजय मुंडे ने बीड जिले की परली सीट से अपने चाचा के पारंपरिक निर्वाचन क्षेत्र में पंकजा को हरा दिया. 2024 में भी उन्होंने इस सीट को बरकरार रखा.
पिछले दो वर्षों में, जब अजित पवार के नेतृत्व वाली राकांपा महायुति में शामिल हो गई, तो दोनों मुंडे भाई-बहन एक ही राजनीतिक खेमे में आ गए. इसके बाद उनके बीच रिश्ते सुधारने के संकेत भी मिले.
मंगलवार को, फडणवीस सरकार में मंत्री बनीं पंकजा मुंडे ने अपने भाई के इस्तीफे का स्वागत करते हुए कहा कि यह पहले ही आ जाना चाहिए था. हालांकि, उन्होंने हत्या मामले में उनके खिलाफ लगे आरोपों पर टिप्पणी करने से इनकार किया और कहा कि केवल जांच एजेंसियां ही सच जानती हैं.
बीजेपी एमएलसी पंकजा मुंडे ने कहा, “उन्हें (धनंजय मुंडे) बहुत पहले ही इस्तीफा दे देना चाहिए था, और जो लोग इस्तीफे की मांग कर रहे थे, उन्हें भी पहले ही यह मांग करनी चाहिए थी. दरअसल, उन्हें मंत्री पद की शपथ ही नहीं लेनी चाहिए थी.”
फडणवीस ने इस साल 15 दिसंबर को अपने कैबिनेट का विस्तार किया था, जिसमें धनंजय मुंडे को भी मंत्री बनाया गया, जबकि इससे छह दिन पहले ही मसायजोग के सरपंच संतोष देशमुख की हत्या हुई थी.
पंकजा ने आगे कहा, “कोई भी बहन, मां या परिवार का सदस्य नहीं चाहता कि उनके अपने इस तरह के दर्द से गुजरें. लेकिन जब हम सरकार में होते हैं, तो हमें सभी के साथ समान व्यवहार करना पड़ता है. संतोष देशमुख के परिवार ने जो तकलीफ झेली है, उसे देखते हुए यह कोई बड़ा फैसला नहीं है. धनंजय मुंडे का इस्तीफा देना सही कदम है और मैं इसका स्वागत करती हूं.”
बीजेपी विधायक सुरेश ढस, जो बीड जिले की आष्टी सीट से विधायक हैं, भी मुंडे के इस्तीफे की मांग को लेकर विरोध प्रदर्शन में सबसे आगे थे. ढस कभी गोपीनाथ मुंडे के करीबी थे, लेकिन 2009 में उन्होंने एनसीपी जॉइन कर ली और कांग्रेस-एनसीपी सरकार में राजस्व राज्य मंत्री बने. 2017 में, उन्हें एनसीपी से निष्कासित कर दिया गया, क्योंकि वह जिला परिषद चुनाव में कथित रूप से बीजेपी का समर्थन कर रहे थे. कहा जाता है कि वह धनंजय मुंडे के बढ़ते राजनीतिक दबदबे से नाराज थे.
धनंजय मुंडे 2019 में पहली बार राज्य सरकार में कैबिनेट मंत्री बने, जब कांग्रेस, शिवसेना और एनसीपी की महा विकास आघाड़ी (MVA) सरकार बनी थी. अजित पवार के करीबी समर्थक रहे मुंडे बाद में एकनाथ शिंदे के नेतृत्व वाली महायुति सरकार में भी मंत्री बने. दिसंबर 2024 में, फडणवीस कैबिनेट में उन्हें तीसरी बार मंत्री पद की शपथ दिलाई गई.
व्यक्तिगत और राजनीतिक विवाद
इस बार धनंजय मुंडे को मुश्किल में डालने वाला विवाद संतोष देशमुख हत्याकांड में मुख्य साजिशकर्ता बताए जा रहे वाल्मिक कराड से उनके संबंधों को लेकर है.
कराड, जिन्हें धनंजय मुंडे का “सबसे भरोसेमंद सहयोगी” माना जाता है, ने पिछले साल हुए राज्य चुनावों में उनकी पूरी चुनावी रणनीति को संभाला था.
कराड की गिरफ्तारी के बाद, विपक्षी नेताओं ने पंकजा मुंडे के एक भाषण का वीडियो क्लिप जोर-शोर से साझा किया, जिसमें वह कहती नजर आ रही हैं, “वाल्मिक कराड कहां हैं, जिनके बिना धनंजय मुंडे काम ही नहीं कर सकते?”
जनवरी में, एक अनाम एनसीपी नेता ने दिप्रिंट को बताया था कि कराड पहले गोपीनाथ मुंडे के घर में घरेलू सहायक (हाउस हेल्प) थे और धीरे-धीरे उनका विश्वास जीत लिया. इसके बाद, वह गोपीनाथ मुंडे के भाई और धनंजय मुंडे के पिता, पंडित अण्णा मुंडे के भी करीबी हो गए.
जब धनंजय मुंडे ने 2013 में बीजेपी छोड़कर एनसीपी का दामन थामा, तो कराड भी उनके साथ चले गए.
समय के साथ, कराड का प्रभाव, जिसे मुंडे परिवार का समर्थन प्राप्त था, बीड जिले में बढ़ता गया. 2001 में वह पहली बार पार्षद बने, फिर परली नगर परिषद के उपाध्यक्ष और बाद में अध्यक्ष के पद तक पहुंचे.
यह पहली बार नहीं है जब धनंजय मुंडे मंत्री रहते हुए विवादों में फंसे हैं.
ठाकरे के नेतृत्व वाली महा विकास आघाड़ी (एमवीए) सरकार में मंत्री रहते हुए, उन पर यौन उत्पीड़न के आरोप लगे थे. हालांकि, बाद में शिकायतकर्ता ने अपनी शिकायत वापस ले ली. मुंडे ने आरोपों से इनकार किया, लेकिन इस पूरे विवाद ने उनके एक निजी रिश्ते को सार्वजनिक कर दिया. उन्होंने स्वीकार किया कि वह शिकायतकर्ता की बहन के साथ सहमति से रिश्ते में थे और उनसे उनके दो बच्चे भी हैं.
मुंडे ने कहा कि उनके परिवार, पत्नी और दोस्तों को इस रिश्ते की जानकारी थी और उन्होंने उनके बच्चों को स्वीकार किया, जो मुंडे परिवार का नाम भी रखते हैं.
महायुति सरकार में, जब वह कृषि मंत्री थे, तब उनका अपने विभाग के एक सिविल अधिकारी से टकराव हो गया था. अधिकारी ने उनके कुछ प्रस्तावों को लागू करने से इनकार कर दिया था, जिसके बाद उनका तबादला कर दिया गया.
इस बार, जब धनंजय मुंडे पर इस्तीफे का दबाव बढ़ा, तो वह, जो कभी विपक्ष के नेता के रूप में दूसरों के इस्तीफे की मांग करते थे, असामान्य रूप से चुप हो गए। उन्होंने कैबिनेट बैठकों और सार्वजनिक कार्यक्रमों से दूरी बना ली.
पिछले महीने फेसबुक पर एक पोस्ट में, उन्होंने बताया कि उनकी गैरमौजूदगी की वजह ‘बेल्स पाल्सी’ नाम की एक बीमारी है. उन्होंने कहा कि इस बीमारी के कारण उनके चेहरे की मांसपेशियां कमजोर हो गई हैं और उनकी बोलने की क्षमता प्रभावित हुई है.
मंगलवार को जब उन्होंने इस्तीफा दिया, तो उन्होंने सीधे तौर पर कुछ नहीं कहा. केवल एक्स (ट्विटर) पर एक पोस्ट की, जिसमें उन्होंने अपने इस्तीफे का कारण अपनी सेहत बताया. इस दौरान, उनके दो सहयोगियों ने उनका इस्तीफा मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस को सौंप दिया.
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