(क्रिस किर्कलैंड, जियोक्रोनोलॉजी प्रोफेसर, कर्टिन यूनिवर्सिटी)
पर्थ, 26 फरवरी (द कन्वरसेशन) कल्पना कीजिए कि आप अंतरिक्ष में तैर रहे हैं और एक जमा हुआ सफेद गोला आपको दिखाई दे रहा है। यह एक गेंद जैसा दिखाई देता है, अकेला और चमकदार।
दरअसल यह बर्फ की मोटी परत से ढका हुआ एक क्षेत्र है। आप 70 करोड़ वर्ष पहले ‘क्रायोजेनियन’ काल के समय की पृथ्वी को देख रहे हैं। क्रायोजेनियन काल के दौरान, जब विशाल हिमखंड पृथ्वी पर प्रवाहित हुए, तो हमारा ग्रह गहरी बर्फ में डूब गया।
‘जियोलॉजी’ में प्रकाशित नए शोध में, हमने दिखाया है कि बर्फ की ये विनाशकारी नदियां, जो कभी-कभी कई किलोमीटर गहरी होती हैं, ग्रह की चट्टानी सतह को विशाल बुलडोजरों की तरह चूर-चूर कर देती हैं। जब बर्फ अंततः पिघली, तो जमीन में मौजूद खनिज बहकर महासागरों में चले गए, जिसकी वजह से चुनौतीपूर्ण और जटिल जीवन की संभवत: नींव पड़ी होगी।
‘स्नोबॉल अर्थ’ परिकल्पना के अनुसार, क्रायोजेनियन काल में पृथ्वी पर कम से कम दो विशाल वैश्विक हिमनदियां बहीं। इन घटनाओं के निशान विश्व भर में हिमयुगीन परिस्थितियों में निर्मित चट्टानों में देखे जा सकते हैं, जो इस बात का स्पष्ट संकेत देते हैं कि बर्फ ध्रुवों से फैलकर भूमध्यरेखीय क्षेत्र तक पहुंची।
कोई भी निश्चित रूप से नहीं जानता कि इन घटनाओं का कारण क्या था, हालांकि वैज्ञानिकों ने कई संभावनाएं व्यक्त की हैं। एक मुख्य कारण वायुमंडलीय ग्रीनहाउस गैसों, विशेष रूप से कार्बन डाइऑक्साइड (सीओ2) में उल्लेखनीय गिरावट हो सकती है।
वायुमंडल में सीओ2 का स्तर संभवतः उस समय मौजूद एक बड़े उष्णकटिबंधीय महाद्वीप पर स्थित चट्टानों के बढ़ते विघटन के कारण गिरा होगा। जब महाद्वीप उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में स्थित होते हैं, तो गर्म, नम परिस्थितियां रासायनिक विघटन को तेज करती हैं, सीओ2 को वायुमंडल से बाहर खींचती हैं, इसे कार्बोनेट खनिजों में बंद कर देती हैं।
इस अवधि के दौरान महाद्वीपों के टूटने के दौरान हुई टेक्टोनिक गतिविधि ने भी इसमें भूमिका निभाई होगी। इसने उथले समुद्र जैसी परिस्थितियां पैदा की होंगी, जिससे ज्यादा मात्रा में हवा से सीओ2 अलग हुआ होगा।
जैसे-जैसे बर्फ की चादरें उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों की ओर बढ़ती गईं, उन्होंने अंतरिक्ष में अधिक सूर्य की रोशनी को परावर्तित किया, जिससे और अधिक ठंडक पैदा हुई। इन प्रक्रियाओं के कारण बर्फ तेजी से फैलती गई होगी और ग्रह लगभग पूरी तरह से जम गया होगा।
ज्वालामुखीय गतिविधि ने इन हिमयुगों को समाप्त करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई होगी। जैसे-जैसे हिमखंड ग्रह पर फैले होंगे, पृथ्वी की परत, महासागरों और वायुमंडल के बीच का संपर्क धीरे-धीरे कम होता चला गया होगा। नतीजतन, जब ज्वालामुखी विस्फोटों ने वायुमंडल में सीओ2 की मात्रा बढ़ाई, तो इसे फिर से अवशोषित नहीं किया गया, बल्कि यह लाखों वर्षों में जमता चला गया।
सीओ2 के इन उच्च स्तरों ने एक अनियंत्रित ग्रीनहाउस प्रभाव पैदा किया, जिससे ग्रह गर्म हो गया और अंततः बर्फ पिघल गई। परिणामस्वरूप बर्फ पिघलने से समुद्र का स्तर तेजी से बढ़ा और महासागरों में पोषक तत्वों का प्रवाह हुआ।
इस अचानक जलवायु परिवर्तन के दौरान विशिष्ट चट्टानी संरचनाएं निर्मित हुईं। पोषक तत्वों की वृद्धि ने जैविक परिवर्तनों में योगदान दिया होगा, जिसने संभवतः जटिल जीवन के उदय के लिए मंच तैयार किया।
कई वैज्ञानिकों ने इस विचार पर गौर किया है कि ‘स्नोबॉल अर्थ’ के पिघलने पर वायुमंडलीय परिस्थितियों में बदलाव के कारण महासागरीय रसायन विज्ञान में बदलाव हुए। हमारे नए शोध में, हमने पाया कि पिघलने के दौरान महाद्वीपों से निकलने वाली सामग्री ने भी इसमें भूमिका निभाई होगी।
हमने चट्टानों के पुराने से लेकर नए हिस्सों का अध्ययन किया। ऐसा करके, हमने एक तस्वीर बनाई कि ग्लेशियर और उसके बाद की नदी प्रणालियां हमारे ग्रह की सतह पर क्या कर रही थीं।
हमने चट्टानों के इन अनुक्रमों पर खनिजों की खोज की और पाया कि जब स्नोबॉल घटनाएं शुरू हुईं और जब हिमखंड पिघलने शुरू हुए तो, उस समयावधि के दौरान लगातार विशिष्ट परिवर्तन हुए।
जब ग्लेशियर पिघलते समय पीछे हटते हैं, तो पिघले हुए पानी के बड़े पैमाने पर बहाव से खनिज कण बाहर निकल आते हैं जो बर्फ के नीचे फंस गए थे और स्थिर हो गए थे। पानी के संपर्क में आने पर, खनिज घुल जाते हैं और रसायन छोड़ते हैं।
इस प्रक्रिया ने – वायुमंडल में होने वाले परिवर्तनों की तरह – महासागरों के रसायन विज्ञान को बदल दिया होगा। हिमनदों के पीछे हटने से समुद्री पारिस्थितिकी तंत्र के लिए महत्वपूर्ण तत्वों के वितरण को आकार देने में मदद मिली।
पृथ्वी पर मनुष्यों ने जलवायु परिवर्तन, अकाल, युद्ध और यहां तक कि क्षुद्रग्रहों के प्रभाव जैसे अस्तित्व संबंधी खतरों को कम करने के लिए उपकरण और प्रणालियां विकसित की हैं, फिर भी इन क्षमताओं का प्रभावी उपयोग हमारे हाथों में है। अतीत यह बताता है कि हमारे ग्रह पर रासायनिक चक्र कैसे संचालित होते हैं। क्या हम इस जानकारी का उपयोग करने के लिए पर्याप्त बुद्धिमत्ता दिखा पाएंगे, यह अभी देखा जाना बाकी है।
(द कन्वरसेशन) जोहेब मनीषा
मनीषा
यह खबर ‘भाषा’ न्यूज़ एजेंसी से ‘ऑटो-फीड’ द्वारा ली गई है. इसके कंटेंट के लिए दिप्रिंट जिम्मेदार नहीं है.