महाराष्ट्र के उपमुख्यमंत्री के रूप में देवेंद्र फडणवीस का कार्यकाल बहुत ही दुखदायी रहा होगा. उन्हें तत्कालीन मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे द्वारा लिए गए कई फैसले स्पष्ट रूप से पसंद नहीं आए. अब जबकि वे सीएम हैं, फडणवीस ने शिंदे के नेतृत्व वाली सरकार द्वारा लिए गए कई फैसलों की जांच के आदेश दिए हैं — किराए पर बसें देने की योजना से लेकर एंबुलेंस और मेडिकल सामान की खरीद, स्कूल यूनिफॉर्म की खरीद और हाल ही में जालना में एक हाउसिंग प्रोजेक्ट तक.
महाराष्ट्र के सत्तारूढ़ दल के हलकों में चर्चा है कि सरकार शिंदे के करीबी एक रियल एस्टेट डेवलपर के लेन-देन की भी जांच कर रही है. यह उस वक्त हो रहा है जब फडणवीस ने सीएम नियुक्त किए जाने के अपने दूसरे कार्यकाल के 12 हफ्ते भी पूरे नहीं किए हैं. कोई सिर्फ सोच सकता है कि शिंदे के डिप्टी रहते हुए वे कितने दुखी रहे होंगे. अब सिक्का बदल गया है और शिंदे को परेशानी महसूस हो रही है.
ऐसा शायद ही कोई दिन हो जब सीएम शिंदे को यह न बताएं कि अब बॉस कौन है — चाहे वह संरक्षक मंत्रियों की नियुक्ति के माध्यम से हो, शिंदे के नेतृत्व वाली सरकार द्वारा शुरू की गई या समर्थित योजनाओं की प्रस्तावित समीक्षा के माध्यम से हो, या शिवसेना विधायकों को दिए गए सुरक्षा कवर को कम करने के माध्यम से हो, इत्यादि.
शुक्रवार को नागपुर में शिंदे ने दोहराया कि लोगों को उन्हें “हल्के में” नहीं लेना चाहिए.
यह अनुमान लगाना मुश्किल नहीं है कि यह संदेश किसके लिए था. फडणवीस के शिंदे पर दबाव बनाने के स्पष्ट कारण हैं — सिर्फ इसलिए कि वे ऐसा कर सकते हैं. भाजपा के पास बहुमत के लिए सिर्फ 13 विधायक कम हैं, जबकि शिंदे की शिवसेना के पास 57 और अजित पवार की राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के पास 41 विधायक हैं. शिंदे वैचारिक रूप से एक स्वाभाविक सहयोगी हो सकते हैं, लेकिन वे महत्वाकांक्षी हैं और किसी भी तरह से आसानी से मानने वाले नहीं हैं. अजित पवार भाजपा का संरक्षण खोने का जोखिम नहीं उठा सकते, खासकर तब जब चाचा शरद पवार अभी भी अपने वक्त का इंतज़ार कर रहे हैं. बाल ठाकरे की राजनीतिक विरासत पर शिंदे के दावों को विधानसभा चुनाव के नतीजों ने सही साबित कर दिया है, इसलिए वे सेना का प्रभाव और बढ़ाने की कोशिश कर रहे हैं. एक मजबूत शिवसेना भाजपा को राजनीतिक रूप से सूट नहीं करेगी.
लेकिन फडणवीस की शिंदे के साथ नाराज़गी अधिक व्यक्तिगत हो सकती है, जिसकी शुरुआत पिछली सरकार में उन्हें उपमुख्यमंत्री बनाकर डिमोट करने से हुई. फडणवीस को अपनी पार्टी के भीतर सब कुछ नियंत्रण करने के लिए जाना जाता है. उन्होंने हर संभावित प्रतिद्वंद्वी को हाशिए पर रखा है—एकनाथ खडसे से लेकर विनोद तावड़े, पूनम महाजन, पंकजा मुंडे और अन्य तक. फिर, वे एकनाथ शिंदे जैसे संभावित दुर्जेय खतरे के साथ कैसे सामंजस्य बिठा सकते हैं, जिनका बुनियादी ढांचे के विकास और कल्याणकारी योजनाओं—जैसे कि लाडकि बहिण योजना पर जोर था, ने महायुति के लिए चुनाव जीतना आसान किया?
- फडणवीस ने शिंदे के नेतृत्व वाली सरकार के प्रमुख फैसलों की जांच शुरू की है, जिसमें किराए पर बसें से लेकर आवास परियोजनाओं तक की योजनाएं शामिल हैं.
- यह दरार भाजपा के भीतर एक व्यापक संघर्ष को उजागर करती है, जो अमित शाह की कमान और नियंत्रण प्रणाली की प्रभावशीलता पर सवाल उठाती है.
- महाराष्ट्र में राजनीतिक गतिशीलता बदल रही है, पार्टी के आंतरिक संघर्ष तेज़ हो रहे हैं और प्रमुख नेता एक-दूसरे से असहमत हैं.
- यह स्थिति फडणवीस और शिंदे के बीच विकसित हो रहे सत्ता संघर्ष को रेखांकित करती है, जिसका क्षेत्रीय और राष्ट्रीय भाजपा नेतृत्व पर व्यापक प्रभाव पड़ता है.
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अमित शाह की कमान
दरअसल, फडणवीस-शिंदे के बीच मतभेद भारतीय जनता पार्टी के बारे में एक बड़ी कहानी की ओर ले जाता है — केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह की कमान और नियंत्रण प्रणाली की खराबी. यह कोई रहस्य नहीं है कि शिंदे को शाह का संरक्षण है. भाजपा के कुछ अंदरूनी लोगों का कहना है कि महायुति की जीत के बाद आलाकमान शुरू में शिंदे को एक साल के लिए सीएम बनाना चाहता था, लेकिन फडणवीस ने ऐसा होने नहीं दिया. अब सीएम ने शिंदे पर दबाव बनाया है, जानबूझकर अपने संरक्षकों की अनदेखी की है. गुरुवार को शाह ने फडणवीस और शिंदे के साथ दिल्ली में उनके बीच सुलह कराने के लिए बैठक की. ज़ाहिर है यह काम नहीं आया, क्योंकि अगले ही दिन शिंदे हल्के में लिए जाने पर भड़क गए.
शाह की कमान और नियंत्रण प्रणाली मुंबई में काम क्यों नहीं कर रही है? यह पहले से ही योगी आदित्यनाथ के क्षेत्र लखनऊ में टूट चुकी है — इसका ताज़ा सबूत यह है कि केंद्र (यानि शाह) ने पुलिस महानिदेशक की नियुक्ति में अपना रोल लगभग खो दिया है. आदित्यनाथ सरकार ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से नई दिल्ली में मुलाकात के एक दिन बाद नियुक्ति प्रक्रिया बदल दी, ताकि ज़ाहिर तौर पर उन्हें पीएम से अनुमति मिल गई थी.
यह सिर्फ लखनऊ और मुंबई तक सीमित नहीं है. शाह की कमान और नियंत्रण प्रणाली कई अन्य राज्यों में भी क्षतिग्रस्त होने के संकेत देती है. मणिपुर में, भाजपा विधायकों के एक वर्ग ने शाह समर्थित सीएम बीरेन सिंह को इस्तीफा देने के लिए मजबूर किया. ज़रा सोचिए कि शाह ने अपने आश्रित को इस डर से छोड़ दिया कि अगर विपक्ष अविश्वास प्रस्ताव लाता है तो विधायक उसके पक्ष में मतदान करेंगे. मणिपुर अब राष्ट्रपति शासन के अधीन है क्योंकि भाजपा हाईकमान, जो अपनी मर्ज़ी से सीएम बदलता है, विधायकों को उम्मीदवार पर सहमत नहीं करा पा रहा है.
कर्नाटक में भाजपा विधायक बसंगौड़ा पाटिल यतनाल और कई अन्य भाजपा नेताओं ने राज्य इकाई के प्रमुख बीवाई विजयेंद्र के खिलाफ युद्ध छेड़ दिया है — पूर्व सीएम बीएस येदियुरप्पा के बेटे, जिन्हें अमित शाह का समर्थन प्राप्त है. पार्टी ने पिछले दिसंबर में यतनाल को कारण बताओ नोटिस दिया था. उनके करीबी सहयोगियों ने इस रिपोर्टर को बताया कि विधायक का जवाब इतना अक्रामक था कि दिल्ली से पार्टी के एक वरिष्ठ पदाधिकारी को उनसे इसे सार्वजनिक न करने और हल्का जवाब भेजने की विनती करनी पड़ी. हालांकि, यतनाल ने हल्का जवाब भेजा, लेकिन उन्होंने विजयेंद्र पर हमला करना बंद नहीं किया.
10 फरवरी को पार्टी ने यतनाल को दूसरा नोटिस भेजा गया. इसी दिन दो अन्य नेताओं को भी इसी तरह के नोटिस भेजे गए: हरियाणा के मंत्री अनिल विज, जो अक्सर सीएम नायब सिंह सैनी और राज्य भाजपा प्रमुख मोहन लाल बडोली पर कटाक्ष करते रहते हैं और राजस्थान के मंत्री किरोड़ीलाल मीणा, जिन्होंने अपनी ही सरकार के खिलाफ फोन टैपिंग के आरोप लगाए. मीणा का मंत्रिमंडल से इस्तीफा पिछले जून से लंबित है.
दिल्ली चुनाव के नतीजों के तुरंत बाद भाजपा ने यतनाल, विज और मीना को कारण बताओ नोटिस भेजा. सबसे बड़ा सवाल यह है कि बागी पार्टी नेताओं पर नकेल कसने के लिए भाजपा आलाकमान ने चुनावी सफलताओं से नैतिक अधिकार कब हासिल करना शुरू कर दिया? इन नोटिसों के समय ने भाजपा के केंद्रीय नेतृत्व की ओर से संशय और दृढ़ विश्वास की कमी को उजागर किया.
भाजपा नेताओं, विधायकों और सांसदों द्वारा अपनी ही सरकारों पर हमला करने के कई अन्य उदाहरण मौजूद हैं. उदाहरण के लिए मध्य प्रदेश में विधायक और पूर्व विधायक सुर्खियां बटोर रहे हैं — एक शराब माफिया से संरक्षण लेने के लिए पुलिस अधिकारी के सामने दंडवत प्रणाम कर रहा है, दूसरा साथी विधायक और पार्टी सहयोगी का समर्थन कर रहा है और मोहन यादव के नेतृत्व वाली सरकार पर माफिया के सामने झुकने का आरोप लगा रहा है और एक पूर्व विधायक केंद्रीय मंत्री वीरेंद्र कुमार खटीक पर आपराधिक पृष्ठभूमि वाले लोगों को विभागों में अपने प्रतिनिधि के रूप में नियुक्त करने का आरोप लगा रहा है.
तो, बीजेपी में क्या हो रहा है?
केंद्र में तीसरी बार सत्ता में आने और हरियाणा, महाराष्ट्र और दिल्ली में ऐतिहासिक जीत से पार्टी हाईकमान को और मजबूत होना चाहिए था, लेकिन, इसके ठीक उलटा हुआ. इससे हम फिर उसी सवाल पर आते हैं: अमित शाह की कमान और नियंत्रण प्रणाली क्यों खराब हो रही है? ऐसा क्यों है कि बेंगलुरु से लेकर मुंबई, लखनऊ, जयपुर, भोपाल और अन्य जगहों पर भाजपा नेता ईश्वर का भय नहीं दिखा रहे हैं? शाह की पकड़ ढीली पड़ रही है, क्योंकि क्षेत्रीय क्षत्रप उनमुक्त हो रहे हैं.
इसके कई कारण हो सकते हैं. सबसे पहले, शनिवार को दूसरे प्रमुख सचिव शक्तिकांत दास की नियुक्ति करके पीएम मोदी ने अपनी तीसरी पारी में नए सिरे से मोर्चा संभाला हो सकता है, लेकिन इससे उत्तराधिकार की संभावित लड़ाई के लिए विभिन्न राज्यों की राजधानियों में तैयारियां बंद नहीं होंगी.
दूसरा, नड्डा के उत्तराधिकारी के रूप में अपने पसंदीदा उम्मीदवार के नामांकन को सुरक्षित करने में शाह की स्पष्ट अक्षमता एक कमजोर हाईकमान की धारणा बनाती है. राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ एक बार फिर से निर्णायक रोल में वापस आ चुका है. इन कारकों ने नेताओं को, खास तौर पर फडणवीस, आदित्यनाथ और यतनाल जैसे बड़े नेताओं को सत्ता और अधिकार के केंद्रीकरण के खिलाफ आवाज़ उठाने के लिए हिम्मत दी है.
तीसरा, जब व्यक्तिगत निष्ठा और लचीलापन पदोन्नति के लिए सबसे महत्वपूर्ण मानदंड बन जाता है, तो हाईकमान अपने अधिकार का प्रयोग करने का नैतिक अधिकार खो देता है. कारणों की लिस्ट और भी लंबी है.
चाहे जो भी कारण हों, तथ्य यह है कि चुनावी जीत इन दरारों को केवल अस्थायी रूप से ही भर सकती है. वे अंतर्निहित मुद्दों को हमेशा के लिए नहीं बदल सकते. शाह को अपनी कमान और नियंत्रण प्रणाली को दुरुस्त करने के लिए यह सुनिश्चित करना होगा कि कोई वफादार अगला भाजपा अध्यक्ष बने. आज मुंबई और लखनऊ में उनके अधिकार क्षेत्र को चुनौती मिल सकती है, लेकिन अन्य जगहों पर, चीज़ें ऐसी स्थिति में नहीं पहुंची हैं जहां से वापसी संभव नहीं है.
(डीके सिंह दिप्रिंट के पॉलिटिकल एडिटर हैं. उनका एक्स हैंडल @dksingh73 है. व्यक्त किए गए विचार निजी हैं)
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