नयी दिल्ली, 20 फरवरी (भाषा) दिल्ली उच्च न्यायालय ने 1984 के सिख विरोधी दंगों के मामले में कांग्रेस के पूर्व सांसद सज्जन कुमार को मिली जमानत के खिलाफ दायर एक याचिका का बृहस्पतिवार को निस्तारण कर दिया।
इससे पहले, अदालत को बताया गया कि मामले में उन्हें दोषी करार दिया गया है।
न्यायमूर्ति विकास महाजन ने याचिका को निरर्थक बताते हुए इसका निस्तारण कर दिया।
अदालत ने कहा, ‘‘याचिकाकर्ता (एसआईटी) की ओर से केंद्र सरकार के वकील ने दलील दी है कि याचिका के लंबित रहने के दौरान, प्रतिवादी (कुमार) को मामले में दोषी करार दिया गया और औपचारिक रूप से हिरासत में ले लिया गया। इसलिए यह याचिका निरर्थक हो गई है।’’
दंगों के दौरान दिल्ली के सरस्वती विहार में दो व्यक्तियों की हत्या से संबंधित मामले में 12 फरवरी को निचली अदालत ने कुमार को दोषी करार दिया था।
निचली अदालत ने सजा की अवधि पर अभी आदेश पारित नहीं किया है।
पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या के बाद हुए दंगों से संबंधित हत्या के एक अन्य मामले में कुमार आजीवन कारावास की सजा काट रहे हैं।
विशेष जांच दल (एसआईटी) ने मामले में कुमार को मिली राहत को चुनौती देते हुए निचली अदालत के 27 अप्रैल 2022 के जमानत आदेश को खारिज करने का अनुरोध किया था।
उच्च न्यायालय ने 4 जुलाई 2022 को उक्त आदेश पर रोक लगा दी और कुमार को नोटिस जारी कर उनसे जवाब मांगा।
मामला राज नगर निवासी जसवंत सिंह और उनके बेटे तरुण दीप सिंह की हत्या से जुड़ा है।
एसआईटी ने बताया कि घटना में चार अन्य लोग घायल हुए थे।
एसआईटी की याचिका में कहा गया है कि न्यायमूर्ति रंगनाथ मिश्रा जांच आयोग के समक्ष सितंबर 1985 में एक महिला द्वारा दाखिल हलफनामे के आधार पर 1991 में सरस्वती विहार पुलिस थाने में, दंगा और हत्या का मामला दर्ज किया गया था।
याचिका में कहा गया है कि महिला ने अपने हलफनामे में, 1 नवंबर 1984 को अपने पति और बेटे की हत्या और उन्हें जलाए जाने की घटना का जिक्र किया है। उसने ‘‘भीड़ को उकसाने वाले व्यक्ति के रूप में आरोपी सज्जन कुमार का नाम स्पष्ट रूप से उल्लेख किया है।’’
एसआईटी ने कहा कि महिला का बयान पंजाबी बाग पुलिस थाने में एक अन्य प्राथमिकी में दर्ज किया गया था, हालांकि, उस प्राथमिकी के न्यायिक रिकॉर्ड को हटा दिया गया।
कुमार को 1-2 नवंबर 1984 को दक्षिण-पश्चिम दिल्ली के पालम कॉलोनी में राज नगर पार्ट-एक में पांच सिखों की हत्या और राज नगर पार्ट-2 में एक गुरुद्वारे को आग के हवाले करने के मामले में भी दोषी करार दिया गया था और आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई थी।
सजा को चुनौती देने वाली उनकी अपील उच्चतम न्यायालय में लंबित है।
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