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Friday, 22 November, 2024
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जम्मू-कश्मीर पुर्नगठन बिल, एक ऐतिहासिक गलती को ठीक करना है

धारा 370 की छुट्टी कर प्रधानमंत्री ने अपनी पार्टी के पितृपुरुष डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी को सच्ची श्रद्धांजलि दी है.

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कश्मीर पुनर्गठन बिल सही मायने में एक ऐतिहासिक कदम है. 35A की छुट्टी, 370 का खात्मा, लद्दाख को अलग केंद्र शासित प्रदेश बनाना और जम्मू-कश्मीर को अर्द्ध राज्य का दर्जा देना, ये सब कुछ इतनी तेजी से हुआ कि आंखों देखी पर विश्वास करना कठिन है. इस एक फैसले ने गृहमंत्री अमित शाह, राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल, रक्षामंत्री राजनाथ सिंह और सबसे अधिक प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को राजनीतिक अमरता दे दी है. कश्मीर पर प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू की एक गलती की जो कीमत भारत ने पिछले 70 सालों में चुकाई है उसका हिसाब तो इतिहास में होगा ही लेकिन उस गलती को ठीक करने के लिए जिस साहस और सूझ-बूझ का परिचय मोदी सरकार ने दिया है, वह भी स्वर्णाक्षरों में अंकित होगा.

आज भाजपा-जनसंघ की उस यात्रा को भी याद करने आवश्यकता है जिससे धारा 370 के विरोध को अलग करके देखा ही नहीं जा सकता. जनसंघ के संस्थापक डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने धारा 370 के विरोध में सर्वोच्च बलिदान दिया. उनके देहावसान के बाद जनसंघ में क्या ही बच गया था. जनसंघ के सामने थे नेहरू जैसा करिश्माई नेता और देश को स्वतंत्र कराने वाली कांग्रेस पार्टी. सत्ता पर तो जनसंघ का कोई दावा ही नहीं था लेकिन विपक्ष में भी कहां जगह थी. जेपी, लोहिया और कृपलानी जैसे समाजवादी और चक्रवर्ती राजगोपालाचारी जैसे मुक्त अर्थव्यवस्था समर्थक विपक्ष की शोभा थे. सत्ता से विपक्ष तक में समाजवाद की नदी बह रही थी.

इस मुकाबले के लिए जनसंघ में क्या था. नेता राष्ट्र के लिये शहीद हो चुका था, बचे थे तो राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से भेजे गए स्वयंसेवक और प्रचारक. लेकिन इन्होंने तो अभी राजनीति का ककहरा तक नहीं सीखा था. जनसंघ नेता विहीन तो हो गया था लेकिन नीति विहीन नही हुआ. धारा 370 और समान नागरिक संहिता जैसे मुद्दों पर पार्टी टिकी रही.


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1996 और फिर 1998 से 2004 तक भाजपा को केंद्र में गठबंधन सरकार को नेतृत्व देने का अवसर मिला लेकिन अपने मूलभूत मुद्दों पर काम करने का मौका नही मिला. 2014 में लोकसभा में तो पूर्ण बहुमत मिला लेकिन राज्यसभा में हालत खस्ता रही. आज जब दोनों सदनों में पार्टी के पास महत्वपूर्ण बिल पास करने की शक्ति है तो धारा 370 की छुट्टी कर प्रधानमंत्री ने अपनी पार्टी के पितृपुरुष डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी को सच्ची श्रद्धांजलि दी है. इसके साथ ही पार्टी ने अपने वैचारिक समर्थकों को यह भरोसा भी दिलाया है कि पार्टी के मूलभूत मुद्दे आज भी संज्ञान में हैं और उचित अवसर पाकर वे संकल्प पूरे किए जाएंगे.

विरोधी कह रहे हैं कि जम्मू-कश्मीर राज्य का पुनर्गठन और 370 को अप्रभावी करना अलोकतांत्रिक कदम है. लेकिन तथ्य तो यही है भाजपा-जनसंघ ने अपने प्रत्येक घोषणापत्र में 370 हटाने का वादा किया है. चुनावों में किये गए वादे को पूरा करना कब से अलोकतांत्रिक हो गया? उल्टे यदि भाजपा 370 हटाने का प्रयास नहीं करती तो वह अलोकतांत्रिक और जनादेश का अपमान करने वाली बात होती. जम्मू-कश्मीर राज्य में लोकसभा की 6 सीटें हैं. उनमें से 3 भारतीय जनता पार्टी के पास है. राज्य में तीन अलग अलग क्षेत्र हैं. उनमें से 2 क्षेत्रों जम्मू और लद्दाख में 370 के खात्मे को पूरा समर्थन है. जम्मू-कश्मीर राज्य पिछले 70 वर्षों से कश्मीर के चंद साम्प्रदायिक और पाकिस्तानपरस्त लोगों के हाथ का खिलौना बना हुआ था जहां जम्मू और लद्दाख की भावनाओं का कोई मूल्य न था. यह पहली बार है जबकि जम्मू और लद्दाख की भावनाओं को सम्मान मिला है.

महबूबा मुफ्ती कह रही हैं कि भाजपाई प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने कश्मीरियत, जम्हूरियत और इंसानियत का नारा दिया था और मोदी को भी उसी रास्ते चलना चाहिए. लेकिन वाजपेयी के इस नारे का कश्मीर ने क्या उत्तर दिया, याद किया जाना चाहिए. यह भी देखा जाना चाहिए कि जब इतिहास की एक भारी भूल में सुधार किया जा रहा था, तब कौन कहां खड़ा था.


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कभी लोहिया ने कहा था कि धारा 370 के खात्मे के बिना भारत की अखंडता अधूरी है. लेकिन जब सदन कश्मीर के पुनर्गठन और 370 पर वोटिंग कर रहा था, तब लोहिया की उत्तराधिकारी होने का दावा करने वाली आधा दर्जन पार्टियों में से मात्र एक लोक जनशक्ति पार्टी ही एक ऐसी थी जिसने इस विधेयक के समर्थन में मतदान किया. कांग्रेस ने इस विधेयक पर जो रास्ता अपनाया, वह आत्महत्या का रास्ता है. नेहरू ने कभी कहा था कि 370 घिसते घिसते घिस जाएगा. ऐसे में कांग्रेस कह ही सकती थी कि यह अब घिस गया है. लेकिन कांग्रेस समझदारी की बात करने लगे तो लोगों को लगेगा कि अब राहुल गांधी का कांग्रेस की नीतियों पर प्रभाव नहीं रहा.

राहुल गांधी का कहना है कि राष्ट्र मात्र भूमि से नहीं बनता. ठीक बात है, राष्ट्र भूमि का टुकड़ा मात्र तो नहीं है. किंतु क्या भूमि के बिना राष्ट्र सम्भव है? सम्भव भी हो तो क्या वह आदर्श राष्ट्र होगा? राहुल गांधी को स्कन्दगुप्त की जीवनी पढ़नी चाहिए. गुप्तवंश के इस महान शासक ने भारत की रक्षा के लिए पश्चिमी सीमा पर कितनी ही रातें युद्धभूमि में खुले आकाश के नीचे सो कर गुजार दी. अपने पूर्वजों की भूमि, उसका इतिहास, उस पर खड़ी निशानियां और उनकी रक्षा के लिए सर्वस्व त्याग देने की भावना, यही तो राष्ट्रवाद है. इसी राष्ट्रवाद के लिए तो बंगभूमि में जन्में डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने अपना जीवन बलिदान कर दिया. लेकिन दुर्भाग्य है कि कौल दत्तात्रेय गोत्र के तथाकथित कश्मीरी पंडित राहुल गांधी यह समझने में नाकामयाब रहे. कांग्रेस के वे नेता निश्चित ही बधाई के पात्र हैं जिन्होंने राहुल गांधी को आंख दिखाते हुए इस मुद्दे पर सरकार का साथ दिया है.

(लेखक एक कंपनी के वित्त विभाग में कार्यरत हैं और www.lopak.in में स्तंभकार हैं.)

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