अहमदाबाद, छह फरवरी (भाषा) गुजरात उच्च न्यायालय ने इस बात पर जोर दिया है कि नियमों के अनुसार, ‘लाइव स्ट्रीम’ की गई अदालती कार्यवाही से प्राप्त प्रतिलेखों को साक्ष्य के रूप में इस्तेमाल नहीं किया जा सकता है, तथा सिफारिश की है कि ऐसी रिकॉर्डिंग के वीडियो को एक निश्चित अवधि के बाद यूट्यूब से हटा दिया जाना चाहिए।
‘लाइव स्ट्रीम’ में इंटरनेट के माध्यम से वीडियो का सीधा प्रसारण किया जाता है।
न्यायमूर्ति ए.एस. सुपेहिया और न्यायमूर्ति गीता गोपी की खंडपीठ ने इस्पात क्षेत्र की दिग्गज कंपनी आर्सेलर मित्तल निप्पॉन स्टील इंडिया लिमिटेड (एएम/एनएस इंडिया) से जुड़े अदालत की अवमानना के एक मामले में चार फरवरी को पारित अपने आदेश में ये टिप्पणियां कीं।
पीठ ने गुजरात ऑपरेशनल क्रेडिटर्स एसोसिएशन (जीओसीए) द्वारा दायर अवमानना याचिका को खारिज कर दिया, जिसमें कंपनी, उसके पदाधिकारियों और अतीत में इस्पात फर्म का प्रतिनिधित्व करने वाले वकीलों के खिलाफ कार्रवाई की मांग की गई थी, और याचिकाकर्ता पर 2 लाख रुपये का जुर्माना लगाया।
इसने अवमानना याचिका को “बिल्कुल गलत तरीके से तैयार किया गया और अनुचित मंशा से दायर किया गया” बताया।
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