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Tuesday, 4 February, 2025
होमएजुकेशन‘हमारी गलती क्या है?’ — राजस्थान में स्कूलों को विलय करने के फैसले का क्यों हो रहा है विरोध

‘हमारी गलती क्या है?’ — राजस्थान में स्कूलों को विलय करने के फैसले का क्यों हो रहा है विरोध

राजस्थान में भजन लाल शर्मा के नेतृत्व वाली भाजपा सरकार ने 449 स्कूलों को उनके आसपास के बड़े, बेहतर प्रदर्शन करने वाले स्कूलों के साथ विलय करने की प्रक्रिया शुरू कर दी है.

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जोधपुर/अजमेर/जयपुर: सानिया, मानसी, मोनिका और बुशरा, जो सभी पहली पीढ़ी की छात्राएं हैं, उनके लिए यह स्कूल उनके उज्जवल भविष्य की वह चाबी है, जो अब कही खो गई है.

जनवरी में तीन आदेशों के साथ, राजस्थान में भजन लाल शर्मा के नेतृत्व वाली भारतीय जनता पार्टी की सरकार ने 449 स्कूलों को उनके आस-पास के बड़े, बेहतर प्रदर्शन करने वाले स्कूलों के साथ विलय करने की प्रक्रिया शुरू कर दी है. सरकार ने इस कदम के पीछे कम दाखिले (राजस्थान सरकार की नीति के तहत 15 से कम छात्र), एक ही परिसर में अलग-अलग स्कूल और एक-दूसरे के करीब स्थित स्कूलों को कारण बताया.

इस कदम ने पूरे राज्य में विरोध प्रदर्शन को बढ़ावा दिया है, जिसमें पैरेंट्स भी इसके खिलाफ हैं क्योंकि इससे बच्चों, खासकर लड़कियों और वंचित पृष्ठभूमि से आने वाले बच्चों को स्कूल छोड़ने के लिए मजबूर होना पड़ रहा है.

जोधपुर और बीकानेर में पिछले हफ्ते हुए बड़े विरोध प्रदर्शनों में सबसे बड़ा मुद्दा लड़कियों के स्कूलों को को-एड इंस्टीट्यूट्स में विलय करना है. कई पैरेंट्स को डर है कि इस बदलाव से उनकी बेटियों की सुरक्षा और शैक्षिक माहौल को नुकसान पहुंच सकता है.

जोधपुर के सिवांची गेट स्थित ऑल-गर्ल्स स्कूल की छात्राएं | फोटो: फरीहा इफ्तिखार/दिप्रिंट
जोधपुर के सिवांची गेट स्थित ऑल-गर्ल्स स्कूल की छात्राएं | फोटो: फरीहा इफ्तिखार/दिप्रिंट

अन्य चिंताओं में कई छात्राओं के लिए घर से स्कूल की दूरी बढ़ना और स्कूल के मीडियम और सांस्कृतिक वातावरण में बदलाव शामिल हैं.

माता-पिता ही नहीं, पूर्व सीएम अशोक गहलोत ने भी इसकी आलोचना की है. बीकानेर पश्चिम से भाजपा विधायक जेठानंद व्यास ने शिक्षा मंत्री मदन दिलावर को पत्र लिखकर अपने निर्वाचन क्षेत्र में लड़कियों के स्कूल के लिए छूट देने का अनुरोध किया है.

सानिया, मानसी, मोनिका और बुशरा सरकारी स्कूलों में पढ़ती हैं, जिनका अब विलय होने वाला है. जोधपुर के सिवांची गेट इलाके में मानसी के सरकारी गर्ल्स सीनियर सेकेंडरी स्कूल का उसी कैंपस में सुबह की शिफ्ट में चलने वाले को-एड स्कूल के साथ विलय होने वाला है. विलय के बाद, 20 कक्षाओं में 1,400 से अधिक स्टूडेंट्स एक साथ बैठेंगे.

लड़कियों को डर है कि अगर विलय हो गया तो उनके माता-पिता उन्हें पढ़ाई जारी रखने से रोक देंगे, जिससे उनके सपने बिखर जाएंगे.

मानसी (16) ने दिप्रिंट को बताया, “मैं अपनी दो छोटी बहनों के लिए ज़्यादा डरी हुई हूं, जो यहां पढ़ती हैं. मेरे माता-पिता ने हमें स्कूल जाने दिया क्योंकि यह घर के नज़दीक केवल लड़कियों का स्कूल था. वह हमें सामाजिक मानदंडों के कारण लड़कों के साथ पढ़ने नहीं देंगे. आस-पास कोई दूसरा लड़कियों वाला सरकारी स्कूल नहीं है. मुझे नहीं पता कि मैं अपनी पढ़ाई पूरी कर पाऊंगी या नहीं. मैं बस इतना चाहती हूं कि पढ़ूं और एक दिन कॉलेज जाऊं.”

अजमेर में स्थिति काफी अलग है. अंदरकोट में जहां मुसलमानों की अच्छी-खासी आबादी है, 12-वर्षीय नेहा चिंता में हैं क्योंकि उनका 83 साल पुराना उर्दू-मीडियम स्कूल उसी परिसर में स्थित हिंदी-मीडियम स्कूल में विलय होने वाला है.

उन्होंने दिप्रिंट से कहा, “हम पहली क्लास से उर्दू में पढ़ रहे हैं. यहां तक कि मेरे माता-पिता भी इसी स्कूल में गए थे — उन्हें कोई और मीडियम मालूम नहीं. वह भी चाहते हैं कि हम सिर्फ उर्दू में ही पढ़ाई करें. हम अचानक आए इस बदलाव का सामना कैसे करेंगे? मुझे नहीं पता कि मैं अपनी पढ़ाई जारी रख पाऊंगी या नहीं.”

जिला शिक्षा विभाग के अधिकारी चिंता में डूबे हैं, लेकिन उन्होंने आश्वासन दिया कि “कोई भी स्कूल बंद नहीं किया जा रहा है, उन्हें बस बेहतर प्रदर्शन करने वाले स्कूलों में विलय किया जा रहा है”.

जयपुर के स्कूल शिक्षा विभाग के एक वरिष्ठ अधिकारी ने नाम न बताने की शर्त पर दिप्रिंट को बताया, “हमने सभी शिकायतों को समीक्षा के लिए बीकानेर स्थित अपने मुख्यालय को भेज दिया है. हमें अपने छात्रों के लिए सकारात्मक परिणाम की उम्मीद है.”

राजस्थान में माध्यमिक शिक्षा के निदेशक आईएएस आशीष मोदी ने कहा कि जुलाई 2025 में अगले शैक्षणिक सत्र से विलय को लागू किया जाएगा.

उन्होंने दिप्रिंट को बताया, “260 अपर प्राइमरी और सेकेंडरी स्कूलों में से 200 में एक भी दाखिला नहीं था. विलय आरटीई मानदंडों के अनुरूप है और विलय किए जा रहे सीनियर सेकेंडरी स्कूल एक ही कैंपस में चलाए जाएंगे.”

मोदी ने कहा, “इस कदम का उद्देश्य लड़कों और लड़कियों दोनों के लिए शिक्षा के विकल्पों का विस्तार करना है, जिससे विभिन्न स्ट्रीम की एक विस्तृत सीरीज़ मिलेगी. हम सुनिश्चित करेंगे कि लड़कियां स्कूल न छोड़ें. इसे सुनिश्चित करने के लिए स्कूलों को पहले ही निर्देश जारी किए जा चुके हैं.”

स्कूलों का विलय क्यों

राजस्थान में स्कूलों के रेशनलाइज़ेशन प्रोजेक्ट 2014 में पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे के कार्यकाल में शुरू किया गया था. 2018 तक प्राइमरी और सेकेंडरी स्कूलों के साथ-साथ 20,000 से अधिक स्कूलों का विलय किया जा चुका था.

जोधपुर में इस बिल्डिंग में चलने वाले दो स्कूलों का विलय किया जाएगा | फोटो: फरीहा इफ्तिखार/दिप्रिंट
जोधपुर में इस बिल्डिंग में चलने वाले दो स्कूलों का विलय किया जाएगा | फोटो: फरीहा इफ्तिखार/दिप्रिंट

हालांकि, दिसंबर 2018 में मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार के सत्ता में आने के बाद नज़रिया बदल गया. आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार, पहले विलय किए गए 606 प्राइमरी और 796 सेकेंडरी स्कूलों को छात्र और शिक्षक जुड़ाव में सुधार के लिए अलग कर दिया गया.

वर्तमान में राजस्थान में 70,233 सरकारी स्कूल हैं. इनमें से 32,598 प्राइमरी स्कूल हैं.

स्कूलों का रेशनलाइज़ेशन केवल राजस्थान तक सीमित नहीं है. यह मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, हिमाचल प्रदेश और ओडिशा में हो रहा है, जहां छोटे, कम दाखिले वाले स्कूलों को पास के बड़े स्कूलों में विलय किया जा रहा है. हिमाचल प्रदेश के स्पीति सहित कई क्षेत्रों में विरोध सामने आया है, जहां पिछले साल एक स्थानीय स्कूल को दूर के एक स्कूल में विलय किए जाने के बाद पैरेंट्स ने विरोध प्रदर्शन किया था, जिसमें मुश्किल रास्ते और खराब मौसम की स्थिति का हवाला दिया गया था, जिससे युवा छात्रों के लिए वहां तक जाना चुनौतीपूर्ण हो गया था.

2017 में, शिक्षा मंत्रालय ने नीति आयोग की प्रतिक्रिया के आधार पर स्कूलों को रेशनलाइज़ेशन करने के लिए दिशा-निर्देश जारी किए. विलय का समर्थन करते हुए, दिशा-निर्देशों ने लचीलेपन की आवश्यकता पर जोर दिया, “one-size-fits-all” अप्रोच के खिलाफ चेतावनी दी. उन्होंने भाषा, संस्कृति और सामुदायिक सहमति जैसे कारकों पर विचार करने पर जोर दिया और चेतावनी दी कि लड़कों और लड़कियों के स्कूलों का विलय केवल सामुदायिक स्वीकृति के साथ ही होना चाहिए.

हालांकि, राजस्थान सरकार द्वारा हाल ही में किए गए विलय के आदेश इन सिफारिशों का उल्लंघन करते प्रतीत होते हैं.


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‘हमारी गलती क्या है?’

विलय किए जा रहे कई स्कूल केवल लड़कियों के हैं, जो मुख्य रूप से हाशिए पर पड़े समुदायों और अल्पसंख्यक समूहों की सेवा करते हैं. इनमें से कोई भी कम या ज़ीरो दाखिलों वाला स्कूल नहीं है, बल्कि वह उसी कैंपस में चलते हैं, जहां को-एड वाले स्कूल सेकेंड शिफ्ट में चलते हैं.

जोधपुर के प्रताप नगर इलाके में गर्ल्स सीनियर सेकेंडरी स्कूल के बाहर छात्राएं | फोटो: फरीहा इफ्तिखार/दिप्रिंट
जोधपुर के प्रताप नगर इलाके में गर्ल्स सीनियर सेकेंडरी स्कूल के बाहर छात्राएं | फोटो: फरीहा इफ्तिखार/दिप्रिंट

जोधपुर के सिवांची गेट में सरकारी गर्ल्स सीनियर सेकेंडरी स्कूल और प्रताप नगर गर्ल्स सीनियर सेकेंडरी स्कूल ऐसे दो उदाहरण हैं. इन स्कूलों की छात्राओं और पैरेंट्स ने 22-25 जनवरी तक विरोध प्रदर्शन किया और फैसले को वापस लेने की मांग की. विरोध में पुलिस वाहन के ऊपर बैठी लड़कियों के वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हुए.

बीकानेर, झुंझुनू और सवाई माधोपुर समेत अन्य जगहों पर भी लड़कियों के स्कूलों के इसी तरह के विलय की योजना है.

जोधपुर के सिवांची गेट स्कूल में पढ़ने वालीं मोनिका कुमारी (13) को उम्मीद है कि वे अपने परिवार की पहली लड़की होंगी जो अपनी पढ़ाई पूरी कर पाएंगी और एक टीचर बनेंगी. उनके स्कूल के विलय से उनके सपने चकनाचूर होने का खतरा है.

उन्होंने पूछा, “मेरे माता-पिता ने हमेशा से यही कहा है कि अगर स्कूल को-एड हो गया तो वह हमें पढ़ाई पूरी नहीं करने देंगे. इस फैसले को लेने से पहले किसी ने हमसे या हमारे माता-पिता से नहीं पूछा. यह स्कूल पिछले 40 सालों की तरह क्यों नहीं चल सकता? एक तरफ सरकार ‘बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ’ को बढ़ावा देती है. दूसरी तरफ, यह ऐसे अचानक फैसले ले रही है, जो हमारे भविष्य को खत्म कर सकते हैं. हमारी क्या गलती है?”

जोधपुर के प्रताप नगर में सरकारी गर्ल्स सीनियर सेकेंडरी स्कूल की कक्षा 6 में पढ़ने वाली बेनज़ीर (12) ने कहा, “मैंने पहले कभी को-एड स्कूल में पढ़ाई नहीं की और मुझे लड़कों के साथ पढ़ने में आत्मविश्वास नहीं है. मुझे समझ में नहीं आता कि वो हमें इतना परेशान क्यों कर रहे हैं.”

पिछले सोमवार शाम करीब 5:30 बजे माता-पिता यह सुनिश्चित करने के लिए स्कूल के बाहर इकट्ठा हुए कि उनकी बेटियों का स्कूल तुरंत विलय न हो.

एक पैरेंट बबीता ने दिप्रिंट को बताया, “मेरी दो बेटियां यहां कक्षा 9 में हैं. कक्षा 8 के बाद, मुझे अपने पति और ससुराल वालों से बहुत संघर्ष करना पड़ा, जो एक निश्चित उम्र के बाद लड़कियों को स्कूल भेजने के खिलाफ हैं, ताकि उनका दाखिला हो सके. मैं उनकी सुरक्षा की खातिर उन्हें रोज़ाना स्कूल छोड़ती और लाती हूं. विलय के बाद, वो उन्हें एक दिन भी स्कूल में नहीं रहने देंगे.”

इन स्कूलों के अधिकारी भी हैरान हैं. सिवांची गेट स्कूल के एक वरिष्ठ अधिकारी ने दिप्रिंट को बताया कि स्कूल में ज्यादातर लड़कियां हाशिए की पृष्ठभूमि से आती हैं, उनकी मां घरेलू सहायिका के रूप में काम करती हैं और पिता काफी कम सैलरी पर मामूली नौकरी करते हैं.

अधिकारी ने नाम न छापने का अनुरोध करते हुए कहा, “माता-पिता की मानसिकता को रातों-रात बदलना ठीक नहीं है. मेरा मानना ​​है कि को-एड पढ़ाई लड़कियों को लाभान्वित कर सकती है, जिससे उन्हें दुनिया का सामना करने के लिए तैयार होने में मदद मिल सकती है. हालांकि, ऐसा बदलाव समुदाय के साथ अच्छे से विचार-विमर्श के बाद ही होना चाहिए.”

सिवांची गेट स्कूल, जिसमें 450 छात्राएं हैं, 1,000 छात्राओं वाले दूसरे स्कूल में विलय हो जाएगा. अधिकारी ने सवाल किया, “केवल 20 वर्किंग क्लास हैं. 1,450 छात्राएं इस जगह में कैसे बैठेंगी? अगर विलय होता है, तो भी हम इसे दो शिफ्टों में चलाएंगे. इसका क्या मतलब है?”

प्रताप नगर गर्ल्स स्कूल, जिसमें 400 से ज़्यादा छात्राएं हैं, जिनमें से ज़्यादातर मोची समुदाय से हैं, को भी इसी तरह की समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है. नाम न बताने की शर्त पर एक शिक्षिका ने दिप्रिंट को बताया, “विलय की घोषणा के बाद, कई पैरेंट्स ने स्थानांतरण प्रमाणपत्र मांगे. सबसे नज़दीकी लड़कियों का स्कूल पांच किलोमीटर से ज़्यादा दूर है. ज़्यादातर अपनी बेटियों को वहां नहीं भेज सकते. इसके अलावा, 1,000 छात्राओं के साथ, हमारे पास बहुत कम क्लास हैं.”


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अचानक मीडियम बदलना

अजमेर के अंदरकोट में 200 और 75 छात्रों वाले दो उर्दू-मीडियम स्कूलों को एक ही बिल्डिंग में चलने वाले हिंदी-मीडियम स्कूल में विलय किया जाना है, लेकिन एक अलग शिफ्ट में.

इनमें से एक स्कूल की कक्षा 7 की छात्रा सानिया ने दिप्रिंट से कहा, “अगर हम हिंदी मीडियम में पढ़ना चाहते, तो हम शुरू से ही इसे चुनते. अब, पहली से लेकर सातवीं क्लास तक उर्दू-मीडियम में पढ़ने के बाद, मैं अचानक मीडियम कैसे बदल सकती हूं? मेरे परिवार में कोई भी मेरी पढ़ाई में मदद नहीं कर पाएगा.”

अपने प्लान्स के बारे में बात करते हुए, उन्होंने कहा, “बहुत कुछ करना है, मैडम. मुझे उर्दू की टीचर बनना है.”

अपनी चिंताओं को दोहराते हुए, कक्षा 8 की छात्रा बुशरा ने कहा, “उर्दू केवल एक समुदाय की भाषा नहीं है; यह संवैधानिक भाषाओं में से एक है. तो हमारे स्कूल का विलय क्यों किया जा रहा है?”

स्कूल के एक सीनियर टीचर ने कहा कि बुशरा और सानिया का स्कूल 1941 से चल रहा है. उन्होंने दिप्रिंट को बताया, “राजस्थान में उर्दू मीडियम के बहुत कम स्कूल हैं और अब अगर इनका विलय हो जाता है तो उर्दू टीचर्स कहां जाएंगे? हमारे स्टूडेंट्स इस बदलाव का सामना कैसे करेंगे? यह फैसला इतन चौंकाने वाला है, खासकर तब जब सरकार देशी भाषाओं में शिक्षा को प्रोत्साहित कर रही है.”

इस मुद्दे ने राजनीतिक मोड़ भी ले लिया है, राज्य कांग्रेस समिति के अल्पसंख्यक विंग के सदस्य एस.एम. अकबर ने इस मामले को सीएम कार्यालय के समक्ष उठाया है. उन्होंने दिप्रिंट को बताया, “यह अल्पसंख्यक बहुल क्षेत्र है और इन स्कूलों में कई पीढ़ियों से परिवार पढ़ते आए हैं. इनके विलय के अचानक फैसले ने पैरेंट्स को परेशान कर दिया है, जो अपने बच्चों की पढ़ाई के मीडियम को बदलने और अपनी बेटियों को को-एड स्कूलों में भेजने की संभावना को लेकर चिंतित हैं. हम सरकार से इस फैसले को तुरंत वापस लेने का आग्रह करते हैं.”

इसी तरह, अजमेर के कोटरा मोहल्ले में एक और स्कूल, सिंधी दिल्ली गेट स्कूल, को एक हिंदी-मीडियम स्कूल में विलय किया जाना है, जबकि उसे एक बिलकुल नई इमारत मिल गई है. स्कूल में 275 स्टूडेंट्स हैं.

जब दिप्रिंट ने बुधवार को स्कूल का दौरा किया, तो एक सीनियर टीचर ने कहा कि सिंधी को पढ़ाई के मीडियम के रूप में इस्तेमाल नहीं किया गया था, लेकिन कक्षा 11 और 12 के लिए यह अनिवार्य विषय बना हुआ है. उन्होंने कहा कि इसका उद्देश्य भाषा को संरक्षित करना है.

नाम न बताने का अनुरोध करते हुए टीचर ने कहा, “अगर हम किसी ऐसे स्कूल के साथ विलय करते हैं, जो सिंधी नहीं पढ़ाता है, तो हम इसे अनिवार्य नहीं बना पाएंगे. सिंधी पहले से ही एक लुप्तप्राय भाषा है और यह विलय इसे और विलुप्त होने की ओर धकेल सकता है.”

स्कूल ने शिक्षा विभाग के अधिकारियों को भी इस मुद्दे के बारे में सूचित किया है. टीचर ने कहा, “हमें अभी तक उनसे कोई जवाब नहीं मिला है.”

छोटे बच्चों के लिए स्कूल की दूरी

जयपुर के न्यू संजय नगर में पांचवीं क्लास तक के स्टूडेंट्स वाले एक प्राइमरी स्कूल के हाल ही में विलय के आदेश से निवासी हैरान हैं. स्थानीय लोगों ने बताया कि कोविड-19 से पहले 2019 में भारी बारिश के कारण स्कूल की मूल इमारत क्षतिग्रस्त हो गई थी, जिसके कारण बच्चों को अस्थायी रूप से एक किलोमीटर दूर दूसरे स्कूल में जाना पड़ा. स्थानीय लोगों के काफी हस्तक्षेप और विरोध के बाद हाल ही में इमारत का पुनर्निर्माण किया गया. हालांकि, अब यह बंद है और स्टूडेंट्स के लिए काफी दिक्कतें हैं.

जयपुर के न्यू संजय नगर इलाके में प्राइमरी स्कूल की बंद इमारत | फोटो: फरीहा इफ्तिखार/दिप्रिंट
जयपुर के न्यू संजय नगर इलाके में प्राइमरी स्कूल की बंद इमारत | फोटो: फरीहा इफ्तिखार/दिप्रिंट

स्कूल को राजीव नगर के सीनियर सेकेंडरी स्कूल में विलय कर दिया गया है, जहां इसे अस्थायी रूप से स्थानांतरित किया गया था, आदेश में कहा गया है कि दोनों स्कूल एक ही बिल्डिंग में चलेंगे. छोटे बच्चों के लिए भारी बैग के साथ स्कूल तक लंबी दूरी तय करना एक संघर्ष बन गया है.

मूल स्कूल की इमारत के खराब हो जाने के बाद इकरा शास्त्री नगर के एक नज़दीकी स्कूल में चली गईं. तब से इकरा उस दिन का बेसब्री से इंतज़ार कर रही हैं, जब उनका स्कूल फिर से खुलेगा.

उन्होंने कहा, “पिछले साल हम हर दिन निर्माण स्थल पर जाते थे, उम्मीद करते थे कि नई इमारत में क्लास शुरू हो जाएंगी, लेकिन अब, वह कह रहे हैं कि हमें राजीव नगर में ले जाया जाएगा. मैं स्कूल जाते-जाते बहुत थक जाती हूं.”

शुक्रवार दोपहर को, निवासी मैमूना बेगम ने संजय नगर में कूड़े के ढेर के पास खेल रहे छोटे बच्चों के एक समूह को तितर-बितर करने का प्रयास किया.

दिप्रिंट से बात करते हुए, उन्होंने कहा कि उनके इलाके के कई छोटे बच्चे अब स्कूल नहीं जाते हैं. “इस स्कूल में दाखिला लेने वाले बच्चे अभी भी क्लास में जाते हैं, लेकिन 100-120 बच्चे, जो अब तीन से चार साल के हैं, नहीं जाते हैं. उनके माता-पिता काम पर जाते हैं और उनके पास उन्हें दूसरे स्कूल से लेने और छोड़ने का समय नहीं होता है, जो एक किलोमीटर से भी ज़्यादा दूर है. उन्हें उम्मीद थी कि इस इमारत के फिर से खुलने पर वह दाखिला ले लेंगे.”

राजस्थान प्राथमिक एवं माध्यमिक शिक्षक संघ के प्रदेश अध्यक्ष विपिन कुमार ने शिक्षा के अधिकार (आरटीई) अधिनियम 2009 के उल्लंघन पर चिंता जताई, जिसके अनुसार, प्रत्येक बच्चे के एक किलोमीटर के भीतर प्राइमरी स्कूल होना अनिवार्य है.

उन्होंने सवाल किया, “जब नई इमारत बन गई है, तो सरकार स्कूल का विलय क्यों कर रही है? यह छात्रों के शिक्षा के अधिकार का स्पष्ट उल्लंघन है. छोटे बच्चे दूर के स्कूल में कैसे जाएंगे?”

कुमार ने बताया कि जब वसुंधरा राजे की सरकार ने स्कूलों का विलय किया, तो इससे छात्रों के स्कूल छोड़ने की संख्या में उल्लेखनीय वृद्धि हुई. उन्होंने पूछा, “ऐसा ही फिर होगा. छात्र लंबी दूरी के कारण स्कूल जाने से मना कर देंगे और माता-पिता अंततः थक जाएंगे. फिर शिक्षक छात्रों की नियमित उपस्थिति कैसे सुनिश्चित कर सकते हैं?”

जयपुर के रथखाना क्षेत्र में दीन दयाल उपाध्याय राजकीय वरिष्ठ माध्यमिक विद्यालय, जिसमें वर्तमान में 280 स्टूडेंट्स का दाखिला है, को उसी कैंपस में संचालित दूसरे स्कूल में विलय करने के राज्य सरकार के आदेश पर स्कूल अधिकारियों की ओर से कड़ी प्रतिक्रिया आई है.

स्कूल के एक सीनियर टीचर ने दिप्रिंट को बताया कि 1949 में स्थापित यह संस्थान अगर किसी दूसरे स्कूल में विलय हो जाता है तो अपनी पहचान खो देगा. नाम न बताने की शर्त पर उन्होंने कहा, “यह जयपुर में पंडित जी (दीन दयाल उपाध्याय) के नाम पर बना एकमात्र स्कूल है. पंडित जी जनसंघ के संस्थापकों में से एक थे. उनकी विरासत का दावा करने वाली भाजपा सरकार इस स्कूल का विलय कैसे कर सकती है? होना तो इसके विपरीत चाहिए था.”

शून्य या कम दाखिले वाले स्कूलों की कहानी

सरकारी अधिकारियों के अनुसार, विलय किए गए कई स्कूलों में दाखिले शून्य या कम था. इसके पीछे का कारण समझने के लिए, दिप्रिंट ने इनमें से कुछ स्कूलों का दौरा किया और पाया कि स्थानीय लोगों ने जीर्ण-शीर्ण बुनियादी ढांचे के कारण अपने बच्चों को वहां भेजना बंद कर दिया है.

जोधपुर के नरसिंह कॉलोनी में स्कूल की बंद इमारत. अब इसे दूसरे स्कूल में मिला दिया गया है | फोटो: फरीहा इफ्तिखार/दिप्रिंट
जोधपुर के नरसिंह कॉलोनी में स्कूल की बंद इमारत. अब इसे दूसरे स्कूल में मिला दिया गया है | फोटो: फरीहा इफ्तिखार/दिप्रिंट

उदाहरण के लिए जोधपुर के बाहरी इलाके में स्थित नरसिंह कॉलोनी में गवर्नमेंट सीनियर सेकेंडरी स्कूल को दाखिलों की कमी के कारण मंडोर के एक सीनियर सेकेंडरी स्कूल में मिला दिया गया. स्कूल की जीर्ण-शीर्ण इमारत अब बंद है.

स्थानीय लोगों ने दिप्रिंट को बताया कि लगभग दो साल पहले तक स्कूल में 50 से ज़्यादा स्टूडेंट्स थे. एक निवासी पोकर राम ने दिप्रिंट को बताया, “2023 के मानसून के दौरान, इमारत से पानी टपकने लगा और छत का एक हिस्सा ढह गया. इसके बावजूद, मरम्मत नहीं की गई. नतीजतन, माता-पिता अपने बच्चों को स्कूल से निकालने लगे. आसपास कोई दूसरा प्राइमरी स्कूल नहीं था, इसलिए पैरेंट्स को अपने बच्चों को इलाके के एक छोटे से प्राइवेट स्कूल में भेजने के लिए मजबूर होना पड़ा. पिछले साल तक, केवल चार से पांच बच्चे ही थे. स्कूल को कुछ महीनों के लिए पास के एक घर से चलाना पड़ा.”

जोधपुर शहर से 15 किमी दूर कदम कंडी क्षेत्र में एक और सरकारी प्राइमरी स्कूल को चोखा गांव के एक सीनियर स्कूल के साथ मिला दिया गया है. हालांकि, जब दिप्रिंट ने स्कूल का दौरा किया, तो स्थानीय लोगों ने कहा कि यह एक आश्रम के कैंपस में चल रहा था और केवल दो से तीन बच्चों का दाखिला यहां था.

एक निवासी बबलू ने कहा, “माता-पिता पहले से ही अपने बच्चों को चोखा गांव भेज रहे थे क्योंकि कदम कंडी स्कूल में उचित बुनियादी ढांचा नहीं था. यह यहां से लगभग 3 किमी दूर है.”

इसी तरह, जोधपुर से 40 किमी दूर बोडवी कलां बावड़ी में एक और स्कूल को पास के बोडवी खुर्द गांव के सीनियर स्कूल में मिला दिया गया है.

स्कूल के प्रिंसिपल गोविंद सिंह के मुताबिक, पिछले साल अगस्त से स्कूल में सिर्फ एक स्टूडेंट था. उन्होंने दिप्रिंट को बताया, “मेरे सहित दो कर्मचारी थे और हमारे पास सिर्फ एक बच्चा था. हमने ज़्यादा दाखिले लाने की कोशिश की, लेकिन यह कारगर नहीं हुआ.”

शिक्षक संघ के अध्यक्ष कुमार ने बताया कि आयु मानदंड में बदलाव के कारण पिछले साल कई स्कूलों में कक्षा 1 में कोई नया दाखिला नहीं हुआ. राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 के तहत, कक्षा 6 के लिए प्रवेश आयु अब बढ़ाकर छह वर्ष कर दी गई है. उन्होंने पूछा, “कई छोटे बच्चे अभी भी आंगनवाड़ी में जाते हैं और इस साल उनके स्कूलों में जाने की उम्मीद थी. जब सरकार ने उनके स्कूल बंद कर दिए हैं तो वह कैसे काम चलाएंगे?”

उन्होंने शिक्षकों के पदों के भविष्य को लेकर चिंता जताई. “सरकार का दावा है कि वह स्कूलों को बंद नहीं कर रही है, बल्कि उनका विलय कर रही है, लेकिन जब एक स्कूल दूसरे स्कूल में विलय होता है, तो उसके टीचर्स का भी विलय हो जाएगा. कोई नया शिक्षक पद नहीं बनाया जाएगा. सभी बी.एड ग्रेजुएट्स कहां जाएंगे?”

(इस ग्राउंड रिपोर्ट को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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