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Tuesday, 28 January, 2025
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ग़रीब क़ैदियों के लिए केंद्र की योजना में कम रुचि, 2 सालों में केवल 8 राज्यों ने मांगी वित्तीय मदद

सुप्रीम कोर्ट के समक्ष दायर हलफनामे के अनुसार, गृह मंत्रालय ने इस योजना के लिए 2023-24 से 2025-26 तक 3 वित्तीय वर्षों के लिए 20 करोड़ रुपये का वार्षिक बजटीय अनुदान निर्धारित किया है.

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नई दिल्ली: केंद्र की उस योजना के लिए बहुत कम लोग आगे आ रहे हैं, जो उन गरीब कैदियों को वित्तीय सहायता देती   है, जो आर्थिक तंगी के कारण अदालत के आदेशों के अनुसार जुर्माना भरने या जमानत बॉन्ड देने में असमर्थ हैं और इस वजह से जेल से रिहा नहीं हो पाते.

नवंबर में दायर एक हलफनामे में, जिसे सोमवार को सुप्रीम कोर्ट के सामने पेश किया गया, केंद्रीय गृह मंत्रालय (एमएचए) ने बताया कि पिछले 2 वर्षों में केवल आठ राज्यों ने ‘गरीब कैदियों के लिए सहायता योजना’ के तहत वित्तीय सहायता मांगी है.

इस योजना का लाभ उठाने वाले राज्यों में अरुणाचल प्रदेश, गुजरात, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, ओडिशा, पंजाब, राजस्थान और उत्तराखंड शामिल हैं. इन राज्यों ने पिछले दो वर्षों में केंद्रीय नोडल एजेंसी (सीएनए) से 9 लाख रुपए से थोड़ा अधिक धनराशि निकाली है. सीएनए का कार्य राज्यों से आवेदन मिलने पर धनराशि वितरित करना है. इस योजना के लिए राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) को सीएनए नियुक्त किया गया है.

हलफनामे के अनुसार, मंत्रालय ने 2023-24 से 2025-26 तक की 15वीं वित्त आयोग की अवधि के लिए इस योजना के तहत राज्यों को सहायता प्रदान करने के लिए 20 करोड़ रुपए का वार्षिक बजटीय प्रावधान किया है.

केंद्र सरकार ने यह हलफनामा उस लंबित मामले में दायर किया है, जिसमें सुप्रीम कोर्ट ने जमानत पर व्यापक दिशानिर्देश जारी किए थे और यह स्थापित किया था कि “जमानत नियम है और जेल अपवाद.” 2022 में जस्टिस एम.एम. सुंदररेश की अध्यक्षता वाली बेंच ने इस मामले में फैसला सुनाया था और तब से यह जमानत देने की प्रक्रिया को सुव्यवस्थित करने के लिए इस मामले की सुनवाई कर रही है.

सोमवार को बेंच द्वारा देखे गए केंद्र के हलफनामे में अदालत के जमानत पर अलग कानून बनाने के सुझाव को भी शामिल किया गया. हलफनामे में नए दंड संहिताओं का जिक्र करते हुए केंद्र ने कहा: “चूंकि भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (बीएनएसएस), 2023 के अध्याय-35 में जमानत और बॉन्ड से संबंधित प्रावधान पर्याप्त माने गए हैं, इसलिए ‘जमानत’ पर अलग कानून लाने का कोई प्रस्ताव नहीं है.”

गरीब कैदियों के लिए सहायता योजना के बारे में अधिक जानकारी देते हुए केंद्र ने कहा कि इसके दिशानिर्देश और मानक संचालन प्रक्रिया (एसओपी) के अनुसार, राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को जून 2023 में प्रत्येक जिले में एक सशक्त समिति और राज्य मुख्यालय स्तर पर एक ओवरसाइट समिति गठित करने के लिए कहा गया था.

सशक्त समिति को प्रत्येक मामले में जमानत प्राप्त करने या जुर्माना भरने के लिए वित्तीय सहायता की आवश्यकता का आकलन करने का अधिकार दिया गया है. इस समिति द्वारा लिए गए निर्णय के आधार पर, जिला आयुक्त या जिला मजिस्ट्रेट सीएनए से धनराशि निकालकर गरीब कैदियों को वित्तीय मदद मुहैया करेंगे.

सरकार के हलफनामे के अनुसार, 28 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों ने इस समिति का गठन कर दिया है. बिहार, झारखंड, सिक्किम, उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल, दिल्ली, लक्षद्वीप और पुदुचेरी जैसे आठ राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों ने अब तक यह पुष्टि नहीं की है कि उन्होंने इस संबंध में क्या कदम उठाए हैं. हलफनामे में यह भी बताया गया है कि 26 राज्यों ने इस बारे में जानकारी दी है कि उन्होंने सहायक खाता खोला है, जिसमें केंद्र सरकार के फंड उन राज्यों द्वारा आवेदन प्राप्त होने पर जमा किए जाएंगे.

केंद्र सरकार ने अपनी ओर से राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के साथ समीक्षा बैठकों के दौरान इस योजना के महत्व पर बार-बार जोर दिया है. गृह मंत्रालय ने हर बार उनसे आग्रह किया है कि वे अपने संबंधित क्षेत्रों में पात्र कैदियों की पहचान करें और उन्हें इस योजना का लाभ दें.

(इस रिपोर्ट को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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