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Saturday, 21 September, 2024
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नेस्ले स्तनपान कानून के ‘उल्लंघन’ में अनुसंधान कराने के लिए फिर से मुसीबत में

नेस्ले ने आरोपों से इनकार करते हुए कहा कि हमेशा से सभी कानूनों को मानते आये हैं.

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नई दिल्ली : स्विस खाद्य दिग्गज कंपनी नेस्ले की भारतीय शाखा कथित रूप से पांच भारतीय अस्पतालों में स्तनपान को बढ़ावा देने वाले कानून का उल्लंघन करने वाली एक रिसर्च कराने के लिए संदेह के घेरे में आ गई है.

एक गैर सरकारी संस्था ब्रेस्टफीडिंग प्रमोशन नेटवर्क ऑफ इंडिया (बीपीएनआई) की शिकायत के बाद केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने इंडियन काउंसिल ऑफ़ मेडिकल रिसर्च को इस मामले की जांच करने एवं ज़रूरी कदम उठाने के लिए निर्देश दे दिया है.

2 अगस्त को लिखे एक पत्र में, स्वास्थ्य सचिव प्रीति सूदन ने आईसीएमआर (ICMR) के महानिदेशक बलराम भार्गव को निर्देश दिया है कि वे सुनिश्चित करें कि भविष्य में सभी परीक्षणों में आईएमएस (IMS) अधिनियम का उल्लंघन न होने देने के लिए पहले जांच की जाए. दिप्रिंट ने पत्र की एक प्रति देखी है.


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भारत में, शिशु दूध का भंडार, दूध पिलाने की बोतलें और शिशु खाद्य पदार्थ अधिनियम, जिसे आईएमएस अधिनियम के रूप में भी जाना जाता है, उत्पाद निर्माताओं द्वारा स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं के प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष प्रायोजन को प्रतिबंधित करता है.

इस आईएमएस (IMS) अधिनियम के तहत सूचीबद्ध शिशु उत्पादों का निर्माण करने वाली कंपनियों द्वारा वित्तीय कर्मियों, वित्तीय लाभ, और सेमिनारों, शैक्षिक पाठ्यक्रमों, प्रतियोगिताओं, फैलोशिप या स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं के लिए अनुसंधान के वित्तपोषण पर भी रोक लगता है.

नेस्ले ने आरोपों से इनकार किया और कहा कि यह ‘आईएमएस अधिनियम सहित सभी कानूनों और नियमों के अनुरूप रहा है.’

शिकायत

बीपीएनआई द्वारा भेजी गई शिकायत के अनुसार, नेस्ले इंडिया लिमिटेड को प्राथमिक अस्पतालों में  ‘हॉस्पिटल में भारती हुए शिशुओं के बहु-विषयक अवलोकन एवं अध्ययन’ के ऊपर चलते अनुसन्धान के लिए धनराशि उपलब्ध कराने का दोषी पाया गया है.

शिशु दूध के विकल्प और शिशु आहार के प्रमुख निर्माता, जिसमें लैक्टोजेन और नान शामिल हैं, को कथित तौर पर क्लाउडिन अस्पताल, बेंगलुरू, इंस्टीट्यूट ऑफ चाइल्ड हेल्थ, कोलकाता, मनिपाल अस्पताल बेंगलुरू, सर गंगाराम अस्पताल नई दिल्ली एवं कलकत्ता मेडिकल रिसर्च इंस्टिट्यूट में अनुसंधान प्रायोजित करते हुए पाया गया.

बीपीएनआई (BPNI) द्वारा भेजी गई शिकायत में कहा गया है, ‘इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च (ICMR) द्वारा बनाए गए आईसीएमआर क्लिनिकल ट्रायल रजिस्ट्री की जांच करने पर, बीपीएनआई ने पुष्टि की कि शिशु दूध के विकल्प और शिशु खाद्य पदार्थ के निर्माता नेस्ले इंडिया लिमिटेड इस रिसर्च क प्रायोजित कर रही है.’

दिप्रिंट ने उस पत्र को देखा है, जिसे जुलाई में बीपीएनआई द्वारा सरकार को भेजा गया था.

नेस्ले ने कहा कोई उल्लंघन नहीं

नेस्ले ने कहा कि उसने आईएमएस अधिनियम का उल्लंघन नहीं किया है.

नेस्ले के प्रवक्ता ने दिप्रिंट के सवालों के एक ईमेल के जवाब में कहा. ‘आईएमएस अधिनियम में वैज्ञानिक जानकारी के मकसद के लिए किए गए अध्ययन पर रोक नहीं है. यह अधिनियम वैज्ञानिक जानकारी के प्रसार को हतोत्साहित या प्रतिबंधित नहीं करता है.’

प्रवक्ता के अनुसार, ‘धारा 9 को मात्र पढ़ना स्पष्ट रूप से दिखाएगा कि अधिनियम स्वास्थ्यकर्मियों के लिए वित्तीय उत्पीड़न या किसी भी योगदान या आर्थिक लाभ पर रोक लगाता है, जिसमें संगोष्ठी, सम्मेलन आदि का वित्त पोषण शामिल है, अगर ये दूध पिलाने वाली बोतल, शिशु आहार और शिशु दूध के विकल्पों के उपयोग को बढ़ावा देने के उद्देश्य से हैं.’

प्रवक्ता ने कहा, ‘इस अध्ययन का उद्देश्य विज्ञान-आधारित अनुसंधान को प्रोत्साहित करना है. यह अध्ययन एक संस्था-आधारित अध्ययन है, सभी संस्थागत नैतिकता समिति की मंजूरी प्रतिभागी साइटों से प्राप्त की गई है.’

‘स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय (MoHFW) के पत्र ने भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद (ICMR) से इस मामले की जांच करने का अनुरोध किया है. नेस्ले इंडिया इस मुद्दे पर अपना सारा समर्थन ICMR को मुहैया कराएगा और हम अपनी स्थिति को लेकर आश्वस्त हैं.’


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पहले के मामले

इससे पहले जनवरी में, माता-पिता को शिशु दूध पाउडर सहित अपने शिशु उत्पादों की सिफारिश करने के लिए डॉक्टरों को प्रभावित करने के आरोपों पर इसी कानून, आईएमएस अधिनियम का उल्लंघन करने के लिए कंपनी उसी मंत्रालय के संदेह के घेरे में थी.

फिर बीपीएनआई ने महाराष्ट्र के धुले में 24 अक्टूबर 2018 को डॉक्टरों के लिए नेस्ले न्यूट्रिशन इंस्टीट्यूट (NNI) द्वारा आयोजित एक ‘वैज्ञानिक कार्यक्रम’ के बारे में संदेह व्यक्त किया. एनएनआई ने आरोपों से इनकार किया था.

पिछले नवंबर में, दो बाल रोग विशेषज्ञों को आमंत्रित करने के बाद कंपनी को ‘शिशुओं के भोजन पर वैज्ञानिक बैठक’ को रद्द करना पड़ा क्योंकि वक्ताओं ने इंडियन एकेडमी ऑफ पीडियाट्रिक्स की दिल्ली इकाई को बीपीएनआई की शिकायत के बाद सम्मेलन में भाग लेने से मना कर दिया.

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)

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