नई दिल्ली: रामानंद सागर की रामायण में अपने किरदार (राम) के लिए मशहूर भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के लोकसभा सांसद अरुण गोविल के लिए रामचरितमानस सकारात्मकता लाने और आधुनिक समय की अराजकता के बीच पारिवारिक जीवन में समय-परीक्षणित मूल्यों को फिर से स्थापित करने की कुंजी है.
मेरठ के सांसद ने अयोध्या में रामलला की मूर्ति की प्राण-प्रतिष्ठा की पहली वर्षगांठ मनाने के लिए देश भर में रामचरितमानस की 11 लाख प्रतियां बांटने की घोषणा करते हुए कहा, “अगर हम अपनी ज़िंदगी में रामायण को 10 प्रतिशत भी अपना लें, तो खुशियां आ जाएंगी…रामायण पारिवारिक, सामाजिक रिश्तों का संग्रह है…अगर घर में शांति नहीं होगी, तो आप काम नहीं कर पाएंगे. पारिवारिक शांति बहुत ज़रूरी है. रामायण हमें जो सिखाती है, हम उसे सीखना नहीं जानते. ज़िंदगी में खुश रहने के लिए सकारात्मकता ज़रूरी है.”
उन्होंने मंगलवार को मेरठ में एक प्रेस वार्ता में कहा, “मैं यह सब प्रसिद्ध होने के लिए नहीं कर रहा हूं.”
उन्होंने कहा कि यह प्रयास बेशक नया है, लेकिन आज परिवारों में जो विघटन हो रहा है, उसे रोकने के लिए किसी न किसी को तो कहीं से शुरुआत करनी ही होगी.
गोविल ने समझाया, “उन्होंने कहा कि अगर हम पारिवारिक व्यवस्था के विघटन को रोकना चाहते हैं और खुशियां वापस लाना चाहते हैं, तो लोगों को यह समझाना और बताना होगा कि अगर परिवार में सुख और शांति है, तो जीवन में ढेर सारी खुशियां हैं. खुशी हमें मानसिक ही नहीं, बल्कि शारीरिक रूप से भी प्रभावित करती है. अगर नकारात्मकता कम हो, तो हम कई बीमारियों से ग्रसित नहीं होते. रामायण ही एकमात्र ग्रंथ है, जो सकारात्मक जीवन जीने के बारे में बताता है और, इसीलिए यह एक नया प्रयोग है.”
उन्होंने कहा कि उन्हें जो भी सम्मान मिला है, वह रामायण की बदौलत ही मिला है और इसलिए उन्होंने हर घर में इसकी प्रतियां वितरित करने के लिए कार्यक्रम शुरू करने का इरादा किया है.
उन्होंने दिप्रिंट से कहा कि यह पहल एक एनजीओ द्वारा की जाएगी. “राम के चरित्र के चित्रण की मेरी ज़िंदगी में छाप बरकरार है. अब समाज को कुछ देने की बारी मेरी है और इसमें कोई संदेह नहीं है कि रामायण के माध्यम से लोगों के जीवन में और अधिक सकारात्मकता लाई जा सकती है.”
संबंधित घटनाओं में, पहली बार भाजपा सांसद बने गोविल ने कहा कि उनका काम सिर्फ अपने संसदीय क्षेत्र के लोगों की शिकायतें और अपील सुनना नहीं है.
प्रेस वार्ता में उन्होंने कहा, “लोग मेरे पास सड़क बनाने, पानी की व्यवस्था करने…नालियों को ठीक करने के लिए आते हैं…लोगों की मांगों के बावजूद, मुझे नहीं लगता कि मैं सिर्फ इन चीज़ों के लिए यहां आया हूं.”
“मैं राजनीति में आने के लिए इच्छुक नहीं था, लेकिन मुझे यहां भेजा गया. भगवान राम ने मुझे भेजा है या नहीं (मुझे नहीं पता) लेकिन मैं यहां हूं…मुझे लगता है कि (इसके पीछे) एक कारण है.”
समाजवादी पार्टी (सपा) के प्रवक्ता राजकुमार भाटी ने उनके बयान की आलोचना की. उन्होंने कहा कि सांसदों और विधायकों की प्राथमिक भूमिका अपने निर्वाचन क्षेत्रों का विकास और लोगों की समस्याओं का समाधान करना है, “रामायण और कुरान बांटना नहीं”.
उन्होंने कहा, “रामायण या कुरान पढ़ना निजी पसंद हो सकता है. रामायण बांटना किसी सांसद का काम नहीं है…भाजपा लोगों को समस्याओं को सुलझाने के बजाय गैर-गंभीर मामलों में उलझाने में माहिर है. गोविल भी योगी (आदित्यनाथ) से प्रेरणा ले रहे हैं जो लोगों को रामायण युग में ले जाना चाहते हैं.”
यह पहली बार नहीं है जब विपक्ष ने गोविल पर निशाना साधा है. आम चुनावों से पहले, भाजपा उम्मीदवार ने भारतीय संविधान को लेकर विवाद खड़ा कर दिया था.
उस समय समाजवादी पार्टी के प्रमुख अखिलेश यादव उन लोगों में से थे जिन्होंने गोविल की टिप्पणियों की आलोचना की थी.
इसी तरह, अभिनेता से नेता बने गोविल ने ओटीटी प्लेटफार्मों पर आने वाले अश्लील कंटेंट की स्ट्रीमिंग के संबंध में मौजूदा तंत्र पर सवाल उठाया था. लोकसभा में इस मामले को उठाते हुए उन्होंने इस संदर्भ में तंत्र को और अधिक सख्त बनाने की भी मांग की थी.
उस समय नवंबर में पहली बार सांसद बने गोविल ने तर्क दिया था कि “ओटीटी प्लेटफार्मों पर जो कुछ भी दिखाया जा रहा है वह बहुत अश्लील है, हम इसे परिवार के साथ बैठकर नहीं देख सकते”.
गोविल इस तरह के कंटेंट की स्ट्रीमिंग की जांच के लिए कुछ नियम बनाने पर अड़े हुए हैं. उन्होंने दिप्रिंट से कहा, “…हम ओटीटी और टीवी पर ऐसा कंटेंट नहीं देख सकते हैं. इन कंटेंट्स की जांच के लिए रेगुलेशन होना चाहिए. हमारी संस्कृति दूसरों से अलग है. इस तरह की वीडियो या सीरीज़ हमारे मूल्यों, पारिवारिक व्यवस्था और यहां तक कि मानसिक और शारीरिक रूप से भी हमें प्रभावित करती है.”
उन्होंने कहा कि सरकार ने भी चिंता जताई है और कहा है कि इस पर संसदीय स्थायी समिति विचार करेगी.
उन्होंने कहा, “ये सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म दूसरे देशों से आते हैं, जिनकी संस्कृति हमसे अलग है…इस तरह के (कंटेंट को रेगुलेट करने वाली) चर्चा आज लगभग हर देश में हो रही है. इसलिए मैं अनुरोध करता हूं कि संसदीय स्थायी समिति को भी इस मुद्दे को उठाना चाहिए.”
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