गुवाहाटी, 20 जनवरी (भाषा) लेखक और ‘सेंटर फॉर डेवलपमेंट एंड पीस स्टडीज’ के कार्यकारी निदेशक वासबीर हुसैन ने कहा है कि असमिया हिंदुओं एवं असमिया मुसलमानों के बीच संबंध बहुत मजबूत हैं। उन्होंने कहा कि दोनों समुदायों के बीच पारंपरिक दोस्ती को कोई भी आसानी से नहीं तोड़ सकता है।
असमिया सैयदों का प्रतिनिधित्व करने वाले संगठन असमिया सैयद कल्याण ट्रस्ट के चौथे वर्षगांठ समारोह को संबोधित करते हुए रविवार को हुसैन ने गुवाहाटी विश्वविद्यालय से 17वीं शताब्दी के मुस्लिम सुधारक और सूफी संत अज़ान पीर के नाम पर ‘अंतर-धार्मिक सद्भाव या समुदायों की सद्भावना’ विषय पर एक पीठ शुरू करने का आग्रह किया।
असमिया सैयद उन पांच मुस्लिम समूहों में से एक है जिन्हें असम सरकार ने आधिकारिक तौर पर राज्य के मूल निवासी समुदायों के रूप में मान्यता दी है।
हुसैन ने कहा कि धर्म को छोड़कर असमिया हिंदुओं और असमिया मुसलमानों में कोई अंतर नहीं है। उनकी भाषा, संस्कृति, खान-पान की आदतें सभी कुछ एक जैसी हैं और वे एक जैसे कपड़े पहनते हैं।
उन्होंने कहा, ‘‘मेरा दृढ़ विश्वास है कि असमिया हिंदुओं और असमिया मुसलमानों के बीच दोस्ती के पारंपरिक बंधन को कोई भी आसानी से नहीं तोड़ सकता।’’
हुसैन, गुवाहाटी से संचालित ‘नॉर्थईस्ट लाइव’ के प्रधान संपादक भी हैं।
हुसैन ने बताया कि किस प्रकार असम के स्थानीय मुसलमान धार्मिक इस्लाम की तुलना में सांस्कृतिक इस्लाम का पालन करते हैं और राज्य की बड़ी हिंदू आबादी के साथ शांतिपूर्वक रहते हैं।
उन्होंने असमिया मुस्लिम समुदाय की विरासत के संरक्षण और इसके समग्र विकास के लिए असम के मुख्यमंत्री हिमंत विश्व शर्मा द्वारा की गई पहल की सराहना की।
कार्यक्रम के मुख्य अतिथि गुवाहाटी विश्वविद्यालय के कुलपति नानी गोपाल महंत ने कहा कि लोगों या समुदायों की अनेक पहचान हो सकती हैं, जो धर्म से परे होती हैं।
उन्होंने असमिया मुसलमानों और सैयदों का उदाहरण दिया जो सूफी संत अज़ान पीर के वंशज हैं। उन्होंने कहा कि वे वृहत्तर असमिया समाज का हिस्सा हैं।
महंत ने आश्वासन दिया कि वह गुवाहाटी विश्वविद्यालय में अज़ान पीर पीठ शुरू करने के असमिया सैयद कल्याण ट्रस्ट के प्रस्ताव को आगे बढ़ाएंगे और वह प्रसिद्ध असमिया लेखक सैयद अब्दुल मलिक की कृति ‘जिकिर्स अरु जारी’ को पुनः प्रकाशित करने की दिशा में काम करेंगे।
इस अवसर पर असमिया सैयद कल्याण ट्रस्ट के अध्यक्ष सैयद अब्दुल रशीद अहमद ने भी अपने विचार रखे।
भाषा यासिर वैभव
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