scorecardresearch
Thursday, 28 November, 2024
होमदेशकांवड़ियों के लिए फ्री रेल यात्रा का समय है सावन का महीना, नारंगी कपड़े ही उनका टिकट

कांवड़ियों के लिए फ्री रेल यात्रा का समय है सावन का महीना, नारंगी कपड़े ही उनका टिकट

कांवड़ियों का कहना है कि इन दिनों कोई उनसे सवाल नहीं करता. टीटीई भी टिकट के लिए नहीं पूछते. लेकिन यात्री कांवड़ियों से परेशान हैं और उनके लिए एक अलग से कोच की बात कहते हैं.

Text Size:

वाराणसी : वाराणसी में चारों ओर नारंगी रंग फैला हुआ है. कांवड़ियों की भीड़ नांरगी रंग की टी शर्ट पहनें और कांवड़ लिए घाटों की तरफ गंगाजल लेने के लिए बढ़ रही है.

कुछ लोग पीएम नरेंद्र मोदी और सीएम योगी आदित्यनाथ की तस्वीरों वाली टी-शर्ट पहनें दिख रहे हैं, तो कुछ लोग गली बॉय फिल्म के फेसम रैप अपना टाइम आएगा लिखी टी-शर्ट पहनें घूम रहे हैं.

पास के जिले चंदौली से आए 18 साल के संजीव यादव दिप्रिंट को बताते हैं कि ‘आप टी-शर्ट पर कुछ भी अपनी पसंद का छपवा सकते हैं. इसकी ज्यादा लागत नहीं आती है.’

शाम को वाराणसी के घाटों पर आसमान का रंग सुंदर हो चला है और एक हेलिकॉप्टर ऊपर चक्कर काटते हुए गुलाब की पंखुड़ियां फेंक रहा है. हालांकि, वाराणसी की सड़कें कई रंगों से चमक रही हैं, मगर ट्रेनों में यात्रियों के चेहरों के रंग कुछ फीके ही नजर आते हैं. इन यात्रियों को अपनी सीटें कांवड़ियों के साथ साझा करनी पड़ रही हैं.

‘टीटीई हमारे कपड़े देख कर टिकट चेक नहीं कर रहे’

पंडित दीन दयाल उपाध्याय रेलवे स्टेशन पर बैठे पुनीत कुशवाहा (30 वर्षीय) बताते हैं, ‘हमारे नारंगी कपड़े ही हमारे टिकट हैं. जिससे हम इलाहाबाद, बनारस, सुलतानगंज और आसपास के इलाकों में जा सकते हैं. टीटीई हमसे इस महीने में टिकट दिखाने के लिए नहीं कहते. इस बात का थोड़ा फायदा तो होना चाहिए.’

पुनीत आगे कहते हैं, ‘अच्छा ही है कि टीटीई धार्मिक काम के लिए जाने देते हैं. वैसे भी हम ट्रेन से इतनी जगहों पर आने जाने का खर्च नहीं उठा पाते.’

‘औरतों के लिए बनारस तक की रेल यात्रा मजेदार है’

बिहार के बक्सर से आई 45 वर्षीय रेवती देवी बताती हैं कि ‘औरतें तो वैसे भी कहीं ज्यादा आती जाती नहीं हैं. सावन का महीना है, जब हम धार्मिक जगहों पर रेल से आते-जाते हैं. रेल में बढ़िया से आना तो सब ही चाहते हैं.’

रेवती देवी आगे कहती हैं कि ‘हमको कौन परेशान करेगा? अब तो टीटीई और पुलिसवाले भी ठीक से बात करते हैं. यही तो भोले बाबा की ताकत है जो सबकी ताकत झुका देती है.’

‘आस्था के नाम पर परेशान करते हैं’

असम के डिब्रूगढ़ जा रहे सन्नी सिंह तंग होकर कहते हैं, ‘ये आस्था के नाम पर परेशान करना है. हमने अपनी सीटों के लिए पूरे पैसे दिए हैं. पूरी सीट चाहिए है लंबी यात्रा के लिए. सरकार को इनके लिए अलग से इंतजाम करना चाहिए.’

55 वर्षीय सावित्री देवी इस बात से सहमत हैं. लेकिन अपनी बात पर जोर देते हुए कहती हैं कि ‘सीट खाली दिखेगी तो बैठेंगे ही. ये तो सावन का महीना है इसलिए लोग सीट को लेकर समझौता कर लेते हैं. सावन के अलावा बाकी महीनों में लड़ाई हो जाती है.’

मनीष पांडे पटना से बक्सर रोज आते-जाते हैं. उनका इस बात पर अलग मत है. वो कहते हैं ‘इन लोगों के पास लंबी दूरी की यात्रा करने का कोई जरिया नहीं है. एक महीने की बात होती है. एडजस्ट कर लेना चाहिए.’

लेकिन, वह कहते हैं कि दूसरे यात्रियों को खूब परेशानी उठानी पड़ती है. क्योंकि उन्हें अपनी आरक्षित सीट कांवड़ियो के साथ साझा करनी पड़ती है. उन्हें भी लगता है कि सरकार को ऐसे में अलग बोगी कांवड़ियों के लिए देनी चाहिए.

‘हम धार्मिक ग्रुप्स को कोई सुविधा मुफ्त नहीं देते हैं’

रेलवे के एक अधिकारी ने दिप्रिंट को बताया, ‘सावन के महीने में रेलवे कर्मचारियों को और बाकी यात्रियों को भी दिक्कत तो झेलनी पड़ती है. लेकिन इसके लिए अलग से कोच नहीं दिया जा सकता.’

अधिकारी ने यह भी बताया कि ‘हम धार्मिक ग्रुप्स को ऐसे मुफ्त की सेवा नहीं दे सकते. गरीब हों या अमीर. अगर कोई बिना टिकट के यात्रा कर रहा है तो उसे जुर्माना तो भरना पड़ेगा.’

एक टीटीई ने नाम ना छापने की शर्त पर बताया, ‘इस दौरान हम ज्यादा सख्ती नहीं दिखाते हैं. कई कांवड़िये तो काफी गरीब होते हैं. अगर हम फाइन लगा भी देंगे तो भी सरकार के लिए ही परेशानी का सबब बनेगा.’

गाजीपुर के दिलदारनगर के रवि राम का कहना है, ‘सभी कांवड़िये नियम नहीं तोड़ते. जो अत्यंत गरीब हैं वो आस-पास के शिव मंदिरों में पूजा कर लेते हैं. उन्हें ऐसी यात्रा के लिए बिना टिकट के यात्रा करने की जरूरत नहीं है.

share & View comments