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Saturday, 11 January, 2025
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रक्षा मंत्रालय ने 2025 के लिए बड़े लक्ष्य तो तय कर लिए, पहले थिएटर कमांड का गठन ज़रूरी

भारत के राजनीतिक नेतृत्व को स्वीकार करना पड़ेगा कि खासकर टेक्नोलॉजी के मामले में तेज़ी से बदलती इस दुनिया में प्रतिरक्षा की तैयारी का तकाज़ा यह है कि इसके लिए जीडीपी के 2 प्रतिशत से ज्यादा के बराबर बजट देना पड़ेगा.

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भारत के राजनीतिक नेतृत्व को स्वीकार करना पड़ेगा कि खासकर टेक्नोलॉजी के मामले में तेज़ी से बदलती इस दुनिया में प्रतिरक्षा की तैयारी का तकाज़ा यह है कि इसके लिए जीडीपी के 2 प्रतिशत से ज्यादा के बराबर बजट देना पड़ेगा.

रक्षा मंत्रालय (एमओडी) ने घोषणा की है कि 2025 ‘सुधारों का साल’ होगा. उसने जो प्रेस विज्ञप्ति जारी की है उसमें रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह का यह बयान उद्धृत किया गया है — “‘सुधारों का साल’ सेनाओं के आधुनिकीकरण के सफर में बड़ी छलांग साबित होगा और यह प्रतिरक्षा संबंधी तैयारियों में अभूतपूर्व प्रगति की नींव डालेगा”, लेकिन इस प्रेस विज्ञप्ति में जिन नौ व्यापक क्षेत्रों का ज़िक्र किया गया है वह कोई नई चीज़ नहीं प्रस्तुत करते क्योंकि उनमें से अधिकतर चीज़ें एमओडी के रेडार पर लंबे समय से मौजूद हैं. एकमात्र नई चीज़ वह भी आंशिक तौर पर, अंत यह कही गई है : “हमें भारतीय संस्कृति तथा विचारों पर गौरव की भावना जगानी चाहिए”.

प्रेस विज्ञप्ति में जिस चीज़ को ‘बड़ी छलांग’ जैसा माना जा सकता है वह यह है : “सुधारों का लक्ष्य पहल के मामलों में संयुक्तता तथा एकता को बढ़ावा देना और ‘इंटीग्रेटेड थिएटर कमांड्स’ की स्थापना को आसान बनाना होना चाहिए”. यह दिलचस्प वाक्य यह आभास कराता है कि ‘इंटीग्रेटेड थिएटर कमांड्स’ (आईटीसी) की स्थापना से संयुक्तता तथा एकता को बढ़ावा दिया जाना चाहिए. इसके विपरीत, हमारे वर्तमान कमांड ढांचे को आइटीसी में पुनर्गठित करने का मकसद संयुक्तता तथा एकता को बढ़ावा देना है. यानी पुनर्गठन एक मकसद को हासिल करने का साधन है.

इंटीग्रेटेड थिएटर कमांड्स

आईटीसी के गठन के बारे में राजनीतिक फैसले किए पांच साल बीत चुके हैं. इस पर अमल में इतनी देरी स्वीकार नहीं की जा सकती, लेकिन निर्णय प्रक्रिया में खलल दिसंबर 2021 में चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ (सीडीएस) जनरल बिपिन रावत दुखद आसामयिक निधन के कारण पड़ा. इसके बाद, वर्तमान सीडीएस जनरल अनिल चौहान की नियुक्ति में नौ महीने की देरी हुई. इस देरी के लिए निश्चित ही राजनीतिक नेतृत्व को जिम्मेदार ठहराया जा सकता है.

वैसे, आईटीसी के गठन का फैसला करने का श्रेय राजनीतिक नेतृत्व को ही जाता है. इस पर तीनों सेनाएं एकमत नहीं थीं. वायुसेना इसकी प्रमुख विरोधी थी, लेकिन जब राजनीतिक फैसला कर लिया गया तब सेनाओं को इसे लागू करने के सिवा दूसरा कोई विकल्प नहीं बचा. इसलिए हैरानी की बात यह है कि एमओडी ने अपने ही फैसले को लागू करवाने की पर्याप्त कोशिश नहीं की. एमओडी अब न तो यह कह सकता है और न उसे यह कहना चाहिए कि यह पुनर्गठन करने का पूरा जिम्मा तीनों सेनाओं का ही था. अगर ऐसा होता तो यह फैसला कभी होता ही नहीं और होता भी तो यह पुनर्गठन मात्र दिखावा होता जिसमें किसी एक सेना के संकीर्ण हितों की रक्षा की जाती और संयुक्तता तथा एकता हासिल करने के लक्ष्य की बलि चढ़ा डी जाती. उम्मीद की जाती है कि रक्षा क्षेत्र में सुधारों के मामले में 2025 को ‘गौरवशाली वर्ष’ बनाने की कोशिश के साथ आईटीसी का गठन सेनाओं के बीच के विवादों के बीच हासिल न्यूनतम उपलब्धि बनकर नहीं रह जाएगा.


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टेक्नोलॉजी में विकास और अधिग्रहण

टेक्नोलॉजी और रक्षा औजारों के अधिग्रहण के आपस में जुड़े मसले दूसरे उन क्षेत्रों से भी जुड़े हैं जिन पर ज़ोर दिया जाना है. एमओडी ने 2021 में ही ‘रिफॉर्म्स इन डिफेंस सेक्टर : प्रोपेलिंग प्राइवेट सेक्टर पार्टीसिपेशन’ नामक एक फैक्ट शीट प्रकाशित की थी. इसमें 2014 में भाजपा सरकार के बाद से एमओडी की उपलब्धियों और प्रगति का लेखाजोखा दिया गया था. इसमें इन आठ खंडों को शामिल किया गया था : रक्षा मामलों के लिए घरेलू खरीद का हिस्सा, महत्वपूर्ण टेक्नोलॉजी तक पहुंच, निवेश को प्रोत्साहन, देसीकरण को बढ़ावा, विश्व बाजार की टोह, डिजाइन और विकास की क्षमताओं का उपयोग, व्यापार और प्रदर्शन को आसान बनाना, और विस्तार के कार्यक्रम.

इसमें संदेह नहीं है कि रक्षा मामलों में अधिग्रहण की व्यवस्था के विभिन्न दायरों में बड़ी संख्या में पहल की गई है और की जा रही है. इनमें अमेरिका जैसे मित्र देशों से महत्वपूर्ण टेक्नोलॉजी हासिल करने की कोशिशें शामिल हैं. देश के अंदर स्टार्टअप की क्षमताओं पर भी ध्यान दिया गया है. सार्वजनिक क्षेत्र की उत्पादन इकाइयों में सुधार भी किए जा रहे हैं. लेकिन पूरी रक्षा व्यवस्था में सार्वजनिक क्षेत्र को तरजीह देने की प्रवृत्ति पर रोक लगाकर निजी क्षेत्र को समान अवसर देने की काफी गुंजाइश बाकी है.

रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (डीआरडीओ) में सुधारों के लिए गठित के. विजय राघवन कमिटी ने जनवरी 2024 में अपनी रिपोर्ट दे दी थी. उसमें डिफेंस टेक्नोलॉजी के मामले में निर्णय प्रक्रिया में भारी परिवर्तन करने, डीआरडीओ का पुनर्गठन करने, और निजी क्षेत्र तथा शिक्षा क्षेत्र को बड़ी भूमिका देने की सिफ़ारिशें की गई हैं. उस रिपोर्ट को स्वीकार कर लिया गया और उसे 31 अगस्त 2024 तक लागू करने की समयसीमा तय की गई थी, लेकिन मीडिया रिपोर्टों के अनुसार, डीआरडीओ की कई बैठकों और कदमों के बावजूद बड़े अधिकारियों के प्रतिरोध की वजह से कोई बड़ा पुनर्गठन नहीं किया जा सका है. उम्मीद की जाती है कि इन प्रतिरोधों को 2025 में शांत किया जा सकेगा.

बजट

रक्षा सुधारों की जो कई पहल की गई हैं उन्हें अतिरिक्त बजटीय समर्थन नहीं दिया गया, जो कि मंशाओं और विचारों को सेनाओं के उपयोग लायक उत्पादों में तब्दील करने के लिए अनिवार्य होते हैं. भारत के राजनीतिक नेतृत्व को इस वास्तविकता को स्वीकार करना पड़ेगा कि खासकर टेक्नोलॉजी के मामले में तेजी से बदलती इस दुनिया में प्रतिरक्षा की तैयारी का तकाजा यह है कि इसके लिए जीडीपी के 2 प्रतिशत से ज्यादा के बराबर बजट देना पड़ेगा, जबकि रक्षा बजट को इसी सीमा में बांधकर रखा जाता रहा है. हकीकत यह है कि महंगाई और रुपये की घटती कीमत के कारण इस बजट का वास्तविक मूल्य कम ही रह जाता है.

अब देखना यह है कि1 फरवरी 2025 को जब केंद्रीय बजट पेश किया जाता है तब एमओडी के बड़े मंसूबों के लिए जरूरी फंड आवंटित किया जाता है या नहीं. अगर ऐसा नहीं होता और आगे के वर्षों में भी समर्थन नहीं मिलता तब भावी इतिहासकार भारत में रक्षा क्षेत्र के आधुनिकीकरण के अंतहीन सफर में वर्ष 2025 को ‘गौरवशाली वर्ष’ के रूप में नहीं चिन्हित कर पाएंगे.

(लेफ्टिनेंट जनरल (डॉ.) प्रकाश मेनन (सेवानिवृत्त) तक्षशिला संस्थान में सामरिक अध्ययन कार्यक्रम के निदेशक हैं; राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद सचिवालय के पूर्व सैन्य सलाहकार हैं. उनका ट्विटर हैंडल @prakashmenon51 है. व्यक्त किए गए विचार निजी हैं.)

(इस लेख को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.)


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