पटना : राजद अध्यक्ष और जेल में बंद लालू प्रसाद यादव जदयू के साथ गठबंधन करने की संभावनाएं तलाश रहे हैं. हाल ही में आरएसएस के लोगों की सरकार में हुई नियुक्तियों को जांचने के आदेश देने पर खतरे में पड़ी बिहार सरकार के साथ लालू को अपने पुराने गठबंधन को वापस पुनर्जीवित करने की उम्मीद नज़र आ रही है.
पिछले ही हफ्ते तेजस्वी यादव और वरिष्ठ राजद नेता शिवानन्द तिवारी हाल ही में लोकसभा चुनाव में मिली करारी हार को लेकर पार्टी अध्यक्ष लालू यादव से रांची जेल में मिले. दोनों ने ही महागठबंधन की संभावनाओं की ओर इशारा किया.
तेजस्वी यादव ने पिता से रांची में मिलने के बाद पत्रकारों को बताया कि हम अगला चुनाव महागठबंधन के सहारे लड़ेंगे और सरकार बनाएंगे.
हालांकि तेजस्वी ने यह साफ-साफ नहीं बताया की वे इस बार किस के साथ गठबंधन बनायेंगे. मालूम हो कि साल के शुरुआत में छोटी पार्टियों और कांग्रेस ने राजद के साथ मिलकर गठबंधन बनाया था जबकि 2015 के आम चुनावों में जदयू के साथ. चुनाव जीतने के बाद जदयू ने महागठबंधन छोड़ बीजेपी का दामन थाम लिया था.
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वहीं शिवानन्द तिवारी ने खुलकर इस मसले पर बात की. उन्होंने दिप्रिंट की बताया – ‘आरएसएस वाली घटना से हुई किरकिरी की वजह से लालू जी इस मामले पर नज़र रख रहे हैं. जिस प्रकार से गिरिराज सिंह और बीजेपी के तमाम दूसरे नेता नितीश कुमार का विरोध कर रहे हैं, वह ठीक नहीं है.’ पर उन्होंने ये भी कहा कि राजद तभी गठबंधन के लिए तैयार होगा जब जदयू बीजेपी से पूरी तरह से नाता तोड़ लेगी.
राजद के लिए संभावनाएं
मई में नीतीश सरकार ने बिहार पुलिस की स्पेशल ब्रांच को आरएसएस के करीबियों की सरकार में नियुक्ति की जांच करने के निर्देश दिये थे. इस पर गिरिराज सिंह ने नितीश कुमार की कड़ी आलोचना की. तब से गठबंधन में खटास आने की खबरें तेज़ हो गयी हैं. सिंह ने कहा कि सरकार को शुभचिंतकों पर जासूसी नहीं करनी चाहिए. अगर पुलिस को आरएसएस से संबंधित कोई जानकारी चाहिए थी तो उन्हें डिप्टी सीएम सुशील कुमार मोदी से पूछना था.
बीजेपी और जदयू के बीच हुई तनातनी के कारण ऐसी खबरें तेज़ हो गयीं कि जल्द ही नीतीश और बीजेपी अपनी राहें अलग कर सकते हैं. जबकि सुशील कुमार मोदी ने इन सब ‘अफवाहों’ को विराम देते हुए कहा कि ‘इसमें कोई संदेह नहीं कि हम अगला चुनाव साथ ही लड़ेंगे और नीतीश कुमार ही हमारे नेता होंगे. उन्होंने साथ ही राजद पर तंज कसते हुए कहा कि भला डूबते हुए जहाज का कौन सहारा बनेगा. सुशील कुमार विधानसभा में उस समय सालाना बजट के विनियोग बिल से जुड़ी बहस की अध्यक्षता कर रहे थे.
वहीं राजद नेता अब्दुल बारी सिद्दीकी ने इस बात को ख़ारिज करते हुए कहा कि सुशील कुमार मोदी को ये बात सालाना बजट की बहस के दौरान बोलनी पड़ी, ये बात काफी है इस इशारे के लिए कि दोनों पार्टियों के बीच सब कुछ सही नहीं है.
रविवार को मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने सिद्दीकी से उनके दरभंगा स्थित आवास पर मुलाकात की.
अन्य जदयू नेताओं का इस मसले पर टालमटोल वाला रवैया नज़र आया. संसदीय मामलों के मंत्री श्रवण कुमार जो कि नीतीश कुमार के करीबी हैं, ने दिप्रिंट को बताया कि राजनीति असंख्य संभावनाओं वाला खेल है. पर अभी चिंता की कोई बात नहीं है.
मुश्किल है गठबंधन- अन्य नेता
बाकी के नेताओं ने इस गठबंधन की संभावनाओं को दिवास्वप्न की संज्ञा दी. पूर्व सांसद रंजन प्रसाद यादव जो कि नीतीश और लालू दोनों के करीबी रहे हैं, ने बताया कि महागठबंधन नहीं हो सकता. दो पार्टियों में गठबंधन तभी हो सकता है जब दोनों के पास देने के लिए कुछ हो. जहां राजद की हालत खस्ता है वहीं नीतीश कुमार भी अपने वोटों को बचाए रखने के लिए संघर्ष कर रहे हैं. ये फायदे का सौदा नहीं रहेगा. वहीं बीजेपी के पास एक विशाल राष्ट्रीय वोट बेस है. नीतीश कुमार को राजद के साथ गठबंधन करने की कोई ख़ास आवश्यकता नहीं पड़ेगी.
मात्र दो महीने में ही एनडीए ने 40 में से 39 लोकसभा सीटें जीतीं. एनडीए का वोट प्रतिशत राजद से करीब 28 प्रतिशत अधिक रहा. और 2020 चुनाव में भी बीजेपी द्वारा नीतीश को सीएम पद का दावेदार घोषित करने के कारण उनकी कुर्सी पक्की है.
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हालांकि केंद्र में मोदी सरकार का होना नीतीश कुमार के लिए फायदेमंद ही रहा है. नीतीश के अनुसार मोदी सरकार में 50,000 करोड़ रुपये बिहार की सड़कों के लिए खर्च किये हैं. वहीं पटना मेट्रो जैसे दूसरे प्रोजेक्ट भी शुरू हुए हैं.
पर नीतीश की बीजेपी और लालू के बीच चलती खींचतान के कारण उनके पास विकल्प कम बचे हैं.
इस मसले पर कुछ राजद नेताओं का भी ये मानना है कि अगर नीतीश उनके साथ दोबारा हाथ मिलते हैं तो ये एक चमत्कार ही होगा.
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