मुंबई: राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) प्रमुख मोहन भागवत ने गुरुवार को कहा कि दुनिया को आज आपसी मेलजोल की जरूरत है, और भारत अपनी विविधता और सबको साथ लेकर चलने की परंपरा दिखाकर “विश्वगुरु” बन सकता है.
इसी बात को आगे बढ़ाते हुए उन्होंने कहा कि हिंदू अपने पूजा स्थलों को लेकर गहराई से जुड़ाव महसूस करते हैं, लेकिन हर दिन राम मंदिर जैसे मुद्दों को उठाने से कोई लाभ नहीं होगा.
पुणे में एक कार्यक्रम के दौरान मोहन भागवत ने कहा, “हिंदुओं को लगता था कि राम मंदिर बनना चाहिए और वह हो नहीं रहा था. हिंदू अपने पूजा स्थलों को लेकर भावुक होते हैं, लेकिन यह सोचना कि ऐसा करके कोई हिंदू नेता बन सकता है… या हर दिन ऐसे मुद्दों को उठाना और घृणा, दुश्मनी और पुराने बोझ से शक पैदा करना… यह कैसे काम करेगा? यह नहीं चलेगा.”
उन्होंने आगे कहा, “हमें दुनिया को दिखाना होगा कि हम सभी एक साथ शांति से रह सकते हैं. इसका एक छोटा प्रयोग हमारे अपने देश में होना चाहिए.”
भागवत ने अपने भाषण में यह भी कहा कि भारत कोई ऐसा देश नहीं है जिसे अंग्रेजों ने बनाया है, बल्कि यह संस्कृति और परंपरा से जन्मा है, सत्ता की जरूरत से नहीं, जैसा कि अधिकांश अन्य देशों के साथ हुआ है.
उन्होंने कहा, “देश में सभी प्रकार के लोग हैं, और यह बात राजनीतिक पार्टियों और धार्मिक समूहों को नहीं भूलनी चाहिए.”
“जिस धर्म ने सृष्टि की रचना के समय से ही प्रकृति को संभाला है, वही हमारे देश की नींव है. यह बात बिल्कुल स्पष्ट होनी चाहिए. इसमें कोई भ्रम नहीं होना चाहिए… चाहे वह कोई भी राजनीतिक पार्टी हो या धार्मिक संगठन. यह भी साफ होना चाहिए कि एकता का मतलब इस विविधता को खत्म करना नहीं है. विविधता एकता का श्रृंगार है, और हमें इसे स्वीकार करना और इसका सम्मान करना चाहिए.”
‘हिंदू राष्ट्र’
आरएसएस प्रमुख ने कहा कि सुरक्षा कारणों और अस्तित्व की आवश्यकता के अलावा, अन्य देशों को जोड़ने वाले कारकों में भाषा और साझा अर्थव्यवस्था जैसे कारण भी शामिल हैं, लेकिन ये उन्हें साथ बनाए रखने के लिए पर्याप्त नहीं थे.
“हम देखते हैं कि ये देश भी आपस में लड़ते रहते हैं. इसी से राष्ट्र-राज्य की अवधारणा जन्म लेती है. हमारे पास ऐसा कुछ नहीं था. हम सभी खुश थे और हमें सत्ता स्थापित करने के लिए किसी राष्ट्र-राज्य की आवश्यकता नहीं थी, क्योंकि किसी को भी आपस में लड़ने की जरूरत नहीं पड़ी. हम कहते हैं कि एकता विविधता में है, लेकिन मैं कहता हूं कि विविधता ही एकता है,” उन्होंने टिप्पणी की. “जो लोग कहते हैं कि कुछ लोग हमारे नहीं हैं… वे दूसरे हैं, वे एक छोटे दृष्टिकोण वाले व्यक्ति की भाषा बोल रहे हैं.”
यह विचार कि सभी हमारे हैं, प्राचीन भारत की सभ्यता की विचारधारा है, जिसे कुछ लोग, जिनमें आरएसएस के सदस्य भी शामिल हैं, आज “हिंदू राष्ट्र” कहते हैं.
‘औरंगजेब, अंग्रेजों ने शरारत की’
भागवत ने आगे कहा कि भारतीय संस्कृति यह दिखाती है कि हम एकजुट होकर रह सकते हैं, लेकिन कुछ लोग समय-समय पर “गड़बड़ी” करने की कोशिश करते रहे हैं.
“औरंगज़ेब ने यही किया. समावेशन हो रहा था, लेकिन उसने इसे बाधित कर दिया…,” उन्होंने कहा, यह जोड़ते हुए कि अगली बड़ी बाधा 1857 में हुई.
“एक मौलवी और एक संत ने तय किया था कि राम मंदिर हिंदुओं को दे दिया जाए. ब्रिटिश समझ गए कि जो लोग आपस में लड़ते हैं, वे हमारे जैसे विदेशी ताकतों के खिलाफ एकजुट हो सकते हैं. इसलिए उन्हें विभाजित रखना चाहिए. पाकिस्तान उसी साजिश का परिणाम था. नहीं तो सभी कह रहे थे कि हम स्वतंत्र भारत में रहना चाहते हैं.”
भागवत ने कहा कि भारत के लोगों को “प्रभुत्व की लड़ाई और कट्टरता” को भूलकर देश की “समावेशी संस्कृति” का हिस्सा बनना होगा.
“अगर ऐसा है… हम सभी एक हैं, तो विभाजन और प्रभुत्व की भाषा कहां से आती है? अल्पसंख्यक कौन है? बहुसंख्यक कौन है? सभी समान हैं. कानून का पालन करें और एक-दूसरे के साथ अच्छा व्यवहार करें.”
(इस रिपोर्ट को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.)
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