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Thursday, 19 December, 2024
होमडिफेंसचीन ने 2005 समझौते का उल्लंघन किया—सीमा विवाद को द्विपक्षीय संबंधों से अलग करने की कोशिश

चीन ने 2005 समझौते का उल्लंघन किया—सीमा विवाद को द्विपक्षीय संबंधों से अलग करने की कोशिश

बीजिंग जिस समझौते की बात कर रहा है, उस पर 2003 में ऐसी व्यवस्था स्थापित होने के बाद तत्कालीन विशेष प्रतिनिधियों ने हस्ताक्षर किए थे. इस पर हिंदी, चीनी और अंग्रेजी में हस्ताक्षर किए गए थे.

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नई दिल्ली: 23वीं भारत-चीन विशेष प्रतिनिधियों की वार्ता के बाद, बीजिंग ने कहा है कि राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल और विदेश मंत्री वांग यी ने सीमा विवाद को हल करने के लिए एक “स्वीकार्य पैकेज” पर छह बिंदुओं की सहमति जताई है. 

चीन के बयान के दूसरे बिंदु में 2005 में दिल्ली में दोनों पक्षों के बीच हुए समझौते का जिक्र किया है. 

सुरक्षा और कूटनीतिक क्षेत्र के कई सूत्रों ने दिप्रिंट को बताया कि भले ही चीन ने समझौते पर  साइन किए थे, लेकिन पड़ोसी देश ने तुरंत ही इसका उल्लंघन करना शुरू कर दिया था.

सूत्रों ने कहा कि चीन अब 2005 के समझौते की ओर लौट रहा है क्योंकि इसमें सीमा विवाद को द्विपक्षीय संबंधों से अलग रखने की बात की गई थी, जो हाल ही में बीजिंग की इच्छा रही है, और न्यू दिल्ली इस पर ढील देने को तैयार नहीं है.

चीन के बयान के अनुसार, बुधवार को दवाली और वांग यी दोनों ने “2005 में दोनों देशों के विशेष प्रतिनिधियों द्वारा सहमति व्यक्त किए गए राजनीतिक मार्गदर्शक सिद्धांतों के अनुसार, सीमा विवाद के लिए एक वाजिब और पारस्परिक रूप से स्वीकार्य समाधान के लिए लगातार प्रयास करने की अपनी प्रतिबद्धता को दोहराया.”

दिलचस्प बात यह है कि भारतीय बयान में “छह बिंदु सहमति” का कोई जिक्र नहीं है.

2005 का वह समझौता जिसे चीन ने ज़िक्र किया था, उस समय के विशेष प्रतिनिधियों द्वारा 2003 में एक तंत्र स्थापित करने के बाद साइन किया गया था. उस समय भारत के विशेष प्रतिनिधि NSA एम.के. नारायणन थे.

यह समझौता हिंदी, चीनी और अंग्रेजी में साइन किया गया था, और इसमें यह साफ किया गया था कि किसी भी विवाद की स्थिति में अंग्रेजी संस्करण को अंतिम माना जाएगा.

समझौते में कई अहम अनुच्छेद थे जिन पर दोनों पक्ष सहमत हुए थे, लेकिन बाद में चीन ने उन्हें कई बार उल्लंघन किया.

समझौते के अनुसार, यह भारत और चीन के लोगों के बुनियादी हितों की सेवा करता है कि वे शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व के पांच सिद्धांतों, आपसी सम्मान और एक-दूसरे की चिंताओं और आकांक्षाओं के प्रति संवेदनशीलता, और समानता के आधार पर दीर्घकालिक, रचनात्मक और सहयोगात्मक साझेदारी को बढ़ावा दें.

इसमें कहा गया, “बाइलेट्रल रिश्ते को सभी स्तरों और सभी क्षेत्रों में गुणात्मक रूप से सुधारने की इच्छा रखते हुए, जबकि भिन्नताओं को शांतिपूर्ण तरीके से, निष्पक्ष, उचित और पारस्परिक रूप से स्वीकार्य तरीके से हल किया जाएंगे.”

तब से लेकर अब तक, हर एक बार जब चीन ने भारतीय क्षेत्र में घुसपैठ की, चाहे वह अस्थायी ही क्यों न हो, यह समझौते का उल्लंघन था.

इस समझौते में यह कहा गया था कि दोनों देश 1993 में भारत-चीन सीमा पर शांति बनाए रखने और 1996 में सैन्य क्षेत्र में विश्वास निर्माण उपायों पर किए गए समझौतों का पालन करेंगे.

समझौते में यह भी लिखा था कि दोनों देश सीमा विवाद का समाधान अपने लंबे समय के हितों के अनुसार करना चाहते हैं और जल्दी समाधान से दोनों देशों के मूलभूत हितों को फायदा होगा.

समझौते में यह भी था कि सीमा विवाद को द्विपक्षीय संबंधों में कोई नुकसान नहीं पहुंचाना चाहिए.

“दोनों पक्ष सीमा विवाद को शांतिपूर्वक और दोस्ताना तरीके से हल करेंगे. कोई भी पक्ष दूसरे पर बल का प्रयोग नहीं करेगा. सीमा विवाद का हल भारत और चीन के अच्छे संबंधों को मजबूत करेगा,” इसमें कहा गया था. 

सुरक्षा और रक्षा प्रतिष्ठान के सूत्रों ने कहा कि चीन द्वारा एलएसी के भारतीय हिस्से में की गई सैन्य घुसपैठ इस समझौते का उल्लंघन था.

भारत ने यह स्पष्ट कर दिया है कि 2020 की स्थिति को बनाए रखा जाने तक द्विपक्षीय संबंधों में सुधार नहीं हो सकता. इसका मतलब है कि चीन को अपनी सेनाओं को अग्रिम स्थानों से हटाना होगा, तभी सामान्य संबंध बहाल हो सकते हैं.

हालांकि, हाल के दिनों में चीन ने कहा है कि एलएसी पर तनाव को द्विपक्षीय संबंधों से दूर किया जाए.

 2005 का समझौता क्या कहता है?

2005 के समझौते में कहा गया था कि दोनों देशों को सीमा के मुद्दे का हल समान रूप से और निष्पक्ष तरीके से तलाशना चाहिए, और यह दोनों देशों के समग्र संबंधों के दृष्टिकोण से किया जाना चाहिए.

“दोनों देशों को आपसी सम्मान और समझ के साथ सीमा के मुद्दे पर अपने दृष्टिकोण में बदलाव करना चाहिए, ताकि एक पारस्परिक रूप से स्वीकार्य समाधान निकल सके. सीमा का हल अंतिम और पूरे भारत-चीन सीमा क्षेत्र को कवर करने वाला होना चाहिए,” इसमें कहा गया था.

सूत्रों के अनुसार, सबसे बड़ा विवाद भारत का अक्साई चिन पर दावा और चीन का अरुणाचल प्रदेश, खासकर तवांग पर दावा है.

समझौते में यह भी कहा गया था कि दोनों देशों को एक-दूसरे के रणनीतिक और उचित हितों, और समान सुरक्षा के सिद्धांतों को ध्यान में रखना चाहिए.

भारत का लद्दाख में रक्षा और बुनियादी ढांचा बढ़ाना, जिसे मोदी सरकार के दौरान तेज किया गया, चीन ने समझौते का उल्लंघन माना.

समझौते में यह भी कहा गया था कि दोनों देशों को ऐतिहासिक साक्ष्य, राष्ट्रीय भावनाएं, और सीमा क्षेत्र की स्थिति को ध्यान में रखना चाहिए.

समझौते में कहा गया था कि सीमा को ऐसी प्राकृतिक विशेषताओं के आधार पर तय किया जाना चाहिए, जिन्हें दोनों पक्ष आसानी से पहचान सकें.

“सीमा तय करते वक्त, दोनों पक्षों को सीमा क्षेत्रों में रहने वाली लोगों के हितों का ध्यान रखना चाहिए.”

सूत्रों ने बताया कि जबकि उन्हें 2005 में हुई बातचीत का पूरा विवरण नहीं पता, यह अनुच्छेद भारत के तवांग को भारतीय क्षेत्र मानने के दावे को सही ठहराता है.

समझौते में यह भी कहा गया था कि सीमा के अंतिम समाधान के लिए आधुनिक मानचित्रण और सर्वेक्षण के तरीकों का इस्तेमाल किया जाएगा और दोनों देशों के मिलकर सर्वेक्षण किए जाएंगे.

“सीमा के सवाल का अंतिम समाधान होने तक, दोनों पक्षों को एलएसी का पूरी तरह सम्मान करना चाहिए और सीमा क्षेत्रों में शांति बनाए रखने के लिए मिलकर काम करना चाहिए.”

इसमें कहा गया था, “भारत-चीन संयुक्त कार्य समूह और भारत-चीन राजनयिक और सैन्य विशेषज्ञ समूह 7 सितंबर 1993 और 29 नवंबर 1996 के समझौतों के तहत अपना काम जारी रखेंगे, जिसमें वास्तविक नियंत्रण रेखा (LAC) का स्पष्ट रूप से निर्धारण और विश्वास निर्माण उपायों का पालन शामिल है.”

(इस रिपोर्ट को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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