(सज्जाद हुसैन)
इस्लामाबाद, 18 दिसंबर (भाषा) पाकिस्तान के मौलवियों ने सरकार को यह स्पष्ट कर दिया है कि उनके मदरसे सरकार के प्रभाव से मुक्त रहेंगे और सरकारी विभाग का हिस्सा नहीं बनेंगे। यह मौलवियों द्वारा 2019 में अपनाए गए रुख से विपरीत है।
विभिन्न पारंपरिक मदरसा बोर्ड ने 2019 में संघीय शिक्षा मंत्रालय को कुछ नियंत्रण सौंपने पर सहमति जताई थी।
इस्लाम के विभिन्न संप्रदायों के मौलवियों द्वारा संचालित मदरसों का प्रतिनिधित्व करने वाली संस्था इत्तेहाद तंजीमात-ए-मदारिस पाकिस्तान ने मंगलवार को एक बैठक के बाद यह घोषणा की।
मौलवियों के एक संयुक्त प्रतिनिधिमंडल ने इस्लामाबाद में जमीयत उलेमा-ए-इस्लाम फजल (जेयूआई-एफ) के प्रमुख मौलाना फजलुर रहमान से उनके आवास पर मुलाकात की और मदरसों के पंजीकरण से संबंधित विधेयक को लेकर पैदा हुए विवाद में उनके रुख का समर्थन किया।
जेयूआई-एफ नेता सरकार पर सोसाइटी पंजीकरण (संशोधन) विधेयक 2024 के लिए राजपत्र अधिसूचना जारी करने का दबाव बना रहे हैं। इसका उद्देश्य 2019 के समझौते को वापस लेना है और इसी के साथ जिला प्रशासन को मदरसों का पंजीकरण करने का अधिकार मिलेगा।
यहां से प्रकाशित मुख्य अंग्रेजी अखबार ‘डॉन’ की खबर के मुताबिक, मौलवियों के संयुक्त प्रतिनिधिमंडल में बरेलवी, देवबंदी, शिया और अहले हदीस विचारधाराओं से संबंधित मदरसा बोर्ड शामिल थे, जबकि पांचवां बोर्ड जमात-ए-इस्लामी के नियंत्रण वाले मदरसों का था।
बैठक के बाद जारी एक बयान में मुफ्ती तकी उस्मानी ने कहा कि 2019 में शिक्षा मंत्रालय के प्रशासनिक नियंत्रण में आने का बोर्ड का सामूहिक निर्णय दबाव में लिया गया था, क्योंकि उस समय उन्होंने सोचा था कि किसी और की तुलना में शिक्षा मंत्रालय के नियंत्रण में रहना बेहतर है।
उस्मानी ने कहा कि मदरसे स्वायत्त बने रहेंगे तथा वे पाकिस्तान में प्राधिकारियों के अधीन नहीं होंगे, जैसा कि वे सऊदी अरब, संयुक्त अरब अमीरात और मिस्र में हैं।
भाषा धीरज मनीषा
मनीषा
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