चंडीगढ़: दो हफ्ते पहले, गुरुद्वारा चुनाव आयोग ने एक बार फिर शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक समिति (एसजीपीसी) के चुनावों के लिए मतदाताओं के रजिस्ट्रेशन की आखिरी तारीख 15 दिसंबर तक बढ़ा दी, यह दावा करते हुए कि इसे आखिरी बार बढ़ाया जा रहा है.
21 अक्टूबर, 2023 को चुनाव प्रक्रिया शुरू होने के बाद से छठी बार तारीख बढ़ाई गई है.
एसजीपीसी सिख गुरुद्वारा अधिनियम, 1925 के तहत बनाई गई एक वैधानिक संस्था है, जो पंजाब, हिमाचल प्रदेश और चंडीगढ़ में सिख गुरुद्वारों को नियंत्रित और प्रबंधित करती है. इसे सिख मतदाताओं द्वारा चुने गए 159-सदस्यीय बोर्ड द्वारा चलाया जाता है. कोई भी अमृतधारी सिख एसजीपीसी का हिस्सा बनने के लिए चुनाव लड़ सकता है. पंजाब, हिमाचल प्रदेश और चंडीगढ़ में जीवन में कभी केश न कटाने वाला हर सिख वयस्क वोट देने का पात्र है.
एसजीपीसी चुनाव हर पांच साल में केंद्रीय गृह मंत्रालय द्वारा गठित गुरुद्वारा चुनाव आयोग द्वारा आयोजित किए जाते हैं. हालांकि, एसजीपीसी के आखिरी चुनाव 2011 में हुए थे और तब चुने गए सदस्य अपने पदों पर बने हुए हैं.
इस साल के शुरू में चुनाव होने की उम्मीद थी, लेकिन मतदाताओं के रजिस्ट्रेशन के लिए दिए गए हालिया विस्तार के साथ, अब इनके अगले साल किसी समय होने की उम्मीद है.
गुरुद्वारा चुनाव आयुक्त ने पहले रजिस्ट्रेशन के लिए अतिरिक्त समय देने का कारण कम संख्या में रजिस्ट्रेशन बताया था, लेकिन आयोग ने हाल ही में राज्य में संपन्न हुए उपचुनावों और चल रही धान खरीद में पंजाब सरकार की व्यस्तता को नवीनतम विस्तार का कारण बताया है.
पिछले साल अक्टूबर में रजिस्ट्रेशन की प्रक्रिया शुरू होने से लेकर इस साल अप्रैल तक, रजिस्टर्ड वोटर्स की संख्या केवल 27.5 लाख तक ही पहुंच पाई थी, जो सितंबर 2011 में हुए पिछले चुनावों के लिए रजिस्टर्ड वोटर्स की संख्या का लगभग आधा है. 2011 के चुनावों के लिए लगभग 52 लाख मतदाताओं ने रजिस्ट्रेशन कराया था और लगभग 63 प्रतिशत मतदान हुआ था.
आयोग के सूत्रों ने दिप्रिंट को बताया कि अब तक रजिस्टर्ड वोटर्स की संख्या 50 लाख तक पहुंच गई है और 15 दिसंबर तक और इसके और बढ़ने की संभावना कम ही है.
चुनावों के लिए नया कार्यक्रम जारी करते हुए आयोग ने पंजाब सरकार को लिखा कि मतदाता सूचियों की छपाई की प्रक्रिया अगले साल 2 जनवरी तक पूरी हो जाएगी और 24 जनवरी तक दावे और आपत्तियां प्राप्त करने के लिए सूचियां 3 जनवरी तक सार्वजनिक कर दी जाएंगी. सभी सूचियों की छपाई 24 फरवरी तक समाप्त होनी है और मतदाता सूचियों का अंतिम प्रकाशन 25 फरवरी को किया जाएगा.
इस प्रक्रिया के समाप्त होने के बाद चुनाव की तारीख अधिसूचित किए जाने की उम्मीद है.
मुख्य चुनाव आयुक्त न्यायमूर्ति एस.एस. सरोन ने पंजाब सरकार को भेजे पत्र में कहा, “यह ध्यान रखना उचित है कि पात्र सिख व्यक्तियों को मतदाता के रूप में रजिस्टर्ड करने और मतदाता सूची तैयार करने के लिए समय-समय पर विस्तार किया गया है. पात्र व्यक्तियों के रजिस्ट्रेशन की प्रक्रिया कुछ धीमी रही है. यह भी ध्यान में रखना चाहिए कि एसजीपीसी के बोर्ड के सदस्यों के लिए चुनाव एक दशक के बाद हो रहे हैं. इसके अलावा, सरकार अन्य कामों में व्यस्त है, जिन पर ध्यान देने की ज़रूरत है.”
उन्होंने कहा, “आयोग के पास चुनाव कराने के लिए पर्याप्त कर्मचारी नहीं हैं…यह सरकारी मशीनरी पर निर्भर है.”
रजिस्ट्रेशन का कार्य पटवारी और ब्लॉक स्तर के अधिकारियों द्वारा किया जाता है, जबकि विभिन्न जिलों के उपायुक्तों को पूरी प्रक्रिया की जिम्मेदारी दी जाती है.
दिप्रिंट यहां आपको एसजीपीसी के कार्यों, चुनाव, जो पिछले 13 साल में नहीं हुए हैं और पंजाब की राजनीति के साथ इसके संबंधों के बारे में बता रहा है.
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‘मिनी संसद’
एसजीपीसी का निर्माण 1920 के दशक के गुरुद्वारा सुधार आंदोलन के कारण हुआ, जिसके तहत सिख नेताओं ने गुरुद्वारों के वंशानुगत प्रबंधकों महंतों से गुरुद्वारों का नियंत्रण छीन लिया था.
गुरुद्वारा सुधार आंदोलन की परिणति 1925 के सिख गुरुद्वारा अधिनियम को अपनाने में हुई जिसने एसजीपीसी को एक निगमित निकाय के रूप में स्थापित किया.
एसजीपीसी में 180 सदस्य हैं, जिनमें से 159 स्पष्ट रूप से परिभाषित भौगोलिक निर्वाचन क्षेत्रों से चुने जाते हैं. पंजाब, हिमाचल प्रदेश और चंडीगढ़ में मतदान बैलेट पेपर के माध्यम से होता है.
भारत भर के प्रमुख सिखों में से 15 सदस्यों को नामित किया जाता है, जबकि छह सदस्यों में पांच अकाल तख्त और अमृतसर में स्वर्ण मंदिर के मुख्य ग्रंथी शामिल होते हैं.
चूंकि, यह एक निर्वाचित निकाय है, इसलिए एसजीपीसी को सिखों की “मिनी संसद” भी कहा जाता है.
एसजीपीसी के अध्यक्ष पद के लिए हर साल चुनाव होते हैं, जिसमें सदस्यों में से इसका प्रमुख चुना जाता है. एसजीपीसी बोर्ड के लिए 2011 से चुनाव नहीं हुए हैं, लेकिन अध्यक्ष पद के लिए हर साल चुनाव होते रहे हैं.
एसजीपीसी अध्यक्ष, 11-सदस्यीय कार्यकारी निकाय और एसजीपीसी के सदस्यों में से चुने गए पदाधिकारी निकाय के रोज़मर्रा के कामकाज के लिए जिम्मेदार हैं.
एडवोकेट हरजिंदर सिंह धामी को पिछले महीने फिर से एसजीपीसी अध्यक्ष चुना गया.
अमृतधारी सिख होने के अलावा, एसजीपीसी सदस्यों से सिख इतिहास और धर्मग्रंथों के ज्ञान में निपुण होने की उम्मीद की जाती है. उनसे सिख रहत मर्यादा (आचार संहिता) का सख्ती से पालन करने के अलावा आध्यात्मिक होने की उम्मीद की जाती है. हालांकि, आदर्श स्थिति से बहुत दूर, कुछ अध्यक्षों सहित कुछ एसजीपीसी सदस्य पिछले कुछ वर्षों में भ्रष्टाचार और कदाचार के आरोपों सहित विवादों में घिरे रहे हैं.
शक्तिशाली निकाय
एसजीपीसी न केवल कुछ सबसे बड़े गुरुद्वारों के कामकाज पर अधिकार रखती है, बल्कि उनके वित्तीय प्रबंधन के लिए भी जिम्मेदार है. अकेले स्वर्ण मंदिर का वार्षिक बजट 1,000 करोड़ रुपये है.
एसजीपीसी का कार्यालय स्वर्ण मंदिर के परिसर में ही है.
एसजीपीसी सिख समुदाय के पांच तख्तों के साथ मिलकर काम करती है, जिसमें अकाल तख्त अमृतसर भी शामिल है, जिसे सिखों का सर्वोच्च निकाय माना जाता है. पांचों तख्तों के उच्च सिख एसजीपीसी के पदेन सदस्य हैं.
गुरुद्वारों के प्रबंधन के अलावा, एसजीपीसी को सिख धर्म के प्रचार का कार्य भी सौंपा गया है. यह दुनिया भर के सिखों को सिख रहत मर्यादा को बनाए रखने के लिए प्रेरित करता है. एसजीपीसी एकमात्र निकाय है जो गुरु ग्रंथ साहिब के स्वरूपों को छाप और वितरित कर सकता है, जिन्हें सिखों द्वारा सजीव गुरु माना जाता है.
एसजीपीसी कई शैक्षणिक संस्थान भी चलाती है, जिनमें स्कूल, कॉलेज, पॉलिटेक्निक, एक विश्वविद्यालय, एक मेडिकल कॉलेज और एक डेंटल कॉलेज शामिल हैं.
एसजीपीसी उन मामलों में भी अंतिम प्राधिकरण है, जहां सिख या गैर-सिख सिख धर्म की परंपराओं और परंपराओं के साथ टकराव में आते हैं.
एसजीपीसी भारत सरकार और विदेशी सरकारों के साथ भी सिख मुद्दों को उठाती है, अगर उनके द्वारा बनाए गए कुछ नियम और कानून किसी सिख की मर्यादा से समझौता करने की धमकी देते हैं.
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एसजीपीसी पर शिरोमणि अकाली दल का नियंत्रण
हालांकि, पंजाब में अधिकांश प्रमुख राजनीतिक दल एसजीपीसी चुनावों के लिए अपने उम्मीदवार खड़े करते हैं, लेकिन पिछले कुछ दशकों से शिरोमणि अकाली दल (शिअद) का एसजीपीसी पर नियंत्रण रहा है, जिसके उम्मीदवार एसजीपीसी बोर्ड में अधिकांश सीटें जीतते रहे हैं.
शिअद का इतिहास एसजीपीसी जितना ही पुराना है और पार्टी का गठन वास्तव में एसजीपीसी की टास्क फोर्स के रूप में किया गया था.
अकालियों को अपने राजनीतिक विरोधियों की ओर से एसजीपीसी के कामकाज पर नियंत्रण रखने के लिए कड़ी आलोचना का सामना करना पड़ता है, कथित तौर पर वह अपने राजनीतिक हितों को आगे बढ़ाने के लिए सिख संस्थानों का इस्तेमाल करते हैं.
जब 2011 में एसजीपीसी के आखिरी चुनाव हुए थे, तब शिअद ने संत समाज के साथ मिलकर 170 में से 157 सीटें जीती थीं. 2022 में हरियाणा को अलग एसजीपीसी मिलने के बाद निर्वाचित सीटों की संख्या घटकर 159 रह गई है. पिछले चुनावों के बाद से लगभग 30 सदस्यों का निधन हो चुका है.
एसजीपीसी का अध्यक्ष भी ज्यादातर शिअद का सदस्य रहा है. हालांकि, हाल के दिनों में अकाली अध्यक्ष की जगह शिअद के विद्रोही गुट के किसी व्यक्ति को लाने के कुछ गंभीर प्रयास किए गए हैं.
इस अक्टूबर में, जब धामी चौथी बार अध्यक्ष चुने गए, तो उन्होंने अकाली विद्रोही बीबी जागीर कौर को हराया. कौर अकाली सुधार लहर की एक प्रमुख नेता हैं, जो शिअद से अलग हुए गुट से अलग हुआ है.
अक्टूबर में हुए चुनाव अकालियों के लिए महत्वपूर्ण थे, क्योंकि अकाल तख्त के साथ तनाव बढ़ गया था. अकाल तख्त सिखों की सर्वोच्च संस्था है, जो एसजीपीसी के साथ प्रशासनिक संपर्क में काम करती है.
धामी ने 142 वोटों में से 107 वोट पाकर आराम से जीत हासिल की. कौर को केवल 33 वोट मिले, जो 2022 में उनके वोटों से काफी कम है. दो वोट अवैध घोषित किए गए.
पिछले कुछ वर्षों में पंजाब में सत्ता में रही कांग्रेस और आम आदमी पार्टी सहित विभिन्न राजनीतिक दलों ने भी एसजीपीसी के चुनावों में देरी की आलोचना की है.
इन दलों का आरोप है कि चुनाव न होने से अकाली दल को लाभ होता है, क्योंकि पिछले 10 वर्षों से पंजाब में सत्ता से बाहर रहने के बावजूद सिख संस्थाओं पर उसका नियंत्रण बना हुआ है और वह इन संस्थाओं का इस्तेमाल कर राजनीति में अपना दबदबा कायम रखता है.
पंजाब में एसजीपीसी पर नियंत्रण के लिए प्रयासरत मुख्य राजनीतिक दलों के अलावा कई कट्टरपंथी संगठन भी इस सत्ता के लिए होड़ में हैं. 2011 के चुनावों में कट्टरपंथी समूह शिअद (अमृतसर) द्वारा खड़े किए गए उम्मीदवार शिअद से हार गए थे. हालांकि, पंजाब की राजनीति में कट्टरपंथी तत्वों के हालिया उभार का असर एसजीपीसी चुनावों में भी दिखने वाला है.
जेल में बंद सिख कट्टरपंथी अमृतपाल सिंह, जो इस वर्ष संसदीय चुनावों में हिरासत में रहते हुए खडूर साहिब से सांसद चुने गए थे, पहले ही कई स्थानों पर यह स्पष्ट कर चुके हैं कि वे अपने समर्थन वाले अन्य उम्मीदवारों के साथ एसजीपीसी चुनाव लड़ेंगे.
लंबी मुकदमेबाजी
सिर्फ उन्हीं सिखों को एसजीपीसी चुनावों में वोट देने की अनुमति है जो गुरुद्वारा चुनाव आयोग द्वारा मतदाता के रूप में पंजीकृत हैं. रजिस्टर्ड मतदाताओं में वयस्क सिख पुरुष और महिलाएं शामिल हैं जो केशधारी हैं (जिन्होंने अपने बाल नहीं कटवाए हैं) लेकिन वे अमृतधारी हो भी सकते हैं और नहीं भी. रजिस्टर्ड मतदाताओं को धूम्रपान नहीं करना चाहिए और न ही शराब पीना चाहिए.
सहजधारी सिख — जो सिख धर्म का पालन करते हैं, लेकिन सिखों के पांच क में से किसी का भी उपयोग कर सकते हैं या नहीं कर सकते हैं: केश (बिना कटे बाल और दाढ़ी), कंगा, (केश के लिए कंघी), कड़ा, कच्छेरा (अंडरगारमेंट) और कृपाण — रजिस्टर्ड के रूप में पंजीकृत नहीं हो सकते हैं.
पंजीकृत राजनीतिक दल सहजधारी सिख पार्टी का कहना है कि 1944 में एसजीपीसी चुनावों में सहजधारी सिखों को मतदान का अधिकार दिया गया था. 2003 में केंद्र सरकार ने एक अधिसूचना जारी की थी, जिसके तहत सहजधारियों को इन चुनावों में मतदान करने से रोक दिया गया था और तब से पार्टी मतदान के अधिकार को बहाल करने के लिए लड़ रही है.
सहजधारियों ने इस अधिसूचना को पंजाब और हरियाणा हाई कोर्ट में चुनौती दी थी, लेकिन एसजीपीसी के चुनाव पर रोक नहीं लगाई गई और सितंबर 2011 में चुनाव हुए.
दिसंबर 2011 में कोर्ट ने इस आधार पर अधिसूचना को खारिज कर दिया कि भारत सरकार केवल अधिसूचना के माध्यम से सिख गुरुद्वारा अधिनियम, जो एक केंद्रीय कानून है, में कोई संशोधन नहीं कर सकती.
एसजीपीसी ने हाई कोर्ट के आदेश को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी और नवनिर्वाचित एसजीपीसी सदस्यों को काम शुरू करने की अनुमति नहीं दी गई. हालांकि, कोर्ट ने 2010 में चुने गए अध्यक्ष और अन्य पदाधिकारियों की 15 सदस्यीय समिति को मामले का फैसला होने तक काम जारी रखने की अनुमति दी.
जब सुप्रीम कोर्ट में मामला चल रहा था, मई 2016 में संसद ने सहजधारियों से वोटिंग अधिकार वापस लेने के लिए 1925 के अधिनियम में संशोधन किया. उस साल सितंबर में सुप्रीम कोर्ट ने एसजीपीसी की याचिका का निपटारा इस आधार पर कर दिया कि संसद द्वारा 1925 के अधिनियम में संशोधन के बाद यह अप्रासंगिक हो गया था.
2011 में चुने गए सदस्य 2016 में सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद पद पर आसीन हुए और तब से गिनती की जाए तो उनका पांच साल का कार्यकाल 2021 में समाप्त हो गया.
1925 के अधिनियम में संशोधन को सहजधारी सिख पार्टी ने 2017 में पंजाब और हरियाणा हाई कोर्ट में चुनौती दी थी, जहां मामला अभी भी लंबित है.
पार्टी के अध्यक्ष डॉ. परमजीत सिंह रानू ने शुक्रवार को दिप्रिंट से कहा, “2016 के संशोधन ने एसजीपीसी को, जिसे व्यापक रूप से वैश्विक स्तर पर सिखों की एक छोटी संसद माना जाता है, एक गैर-प्रतिनिधि निकाय में बदल दिया है, जिसे सिखों के एक बहुत छोटे वर्ग तक ही सीमित माना जाता है.”
इस साल अप्रैल में सहजधारी सिख पार्टी ने चल रहे मामले में एक आवेदन दायर किया था, जिसमें सहजधारी सिखों के वोटिंग अधिकार से संबंधित मुकदमा अदालत में लंबित रहने तक अगले एसजीपीसी चुनाव के लिए नए मतदाताओं के पंजीकरण पर रोक लगाने की प्रार्थना की गई थी.
आवेदन पर विचार करते हुए हाई कोर्ट की एक खंडपीठ ने इस मुद्दे पर भारत संघ, पंजाब और एसजीपीसी को 16 मई को नोटिस जारी किया. पीठ ने आदेश दिया कि एसजीपीसी चुनाव का परिणाम 2017 की याचिका के परिणाम के अधीन होगा.
इस मामले में अगली सुनवाई की तारीख 16 जनवरी, 2025 है.
(इस रिपोर्ट को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)
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