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Tuesday, 26 November, 2024
होमदेशदबी आवाज़ें, बंद शटर, मणिपुर संघर्ष ने चहल-पहल भरे मोरेह को भूतहा शहर में तब्दील कर दिया

दबी आवाज़ें, बंद शटर, मणिपुर संघर्ष ने चहल-पहल भरे मोरेह को भूतहा शहर में तब्दील कर दिया

राइफलधारी सुरक्षा बल अब सड़कों पर छाए हुए हैं. ज़्यादातर परिवार पलायन कर चुके हैं, कारोबार खत्म हो रहे हैं और जो यहां बचे हैं वो गुज़ारा करने के लिए संघर्षरत हैं.

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मोरेह: भारत-म्यांमार सीमा पर स्थित कभी चहल-पहल से भरे रहने वाले व्यापारिक शहर मोरेह में पिछले डेढ़ साल से हिंसक जातीय संघर्षों के बाद एक अजीब सी खामोशी पसरी है.

इन दिनों, असम राइफल्स, सीमा सुरक्षा बल (बीएसएफ), केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल (सीआरपीएफ) और रैपिड एक्शन फोर्स (आरएएफ) के राइफलधारी केंद्रीय सशस्त्र पुलिस बल (सीएपीएफ) के जवानों की संख्या शहर की सड़कों पर स्थानीय लोगों से कहीं ज़्यादा है.

मोरेह में भारत-म्यांमार मैत्री पुल-जिसके ज़रिए सीमा पार से व्यापारी न केवल बर्मा बल्कि थाईलैंड और चीन से भी अपना माल बेचने आते थे — वहां काफी समय से सन्नाटा है. यह पुल भारत को म्यांमार के सागाइंग डिवीजन के कलेवा शहर से जोड़ता है.

कई दुकानदारों ने अपने शटर बंद कर दिए हैं, जिससे इस सीमावर्ती शहर की अर्थव्यवस्था को बहुत नुकसान पहुंचा है, जिसे दक्षिण एशिया और दक्षिण-पूर्व एशिया के लिए भारत का प्रवेश द्वार माना जाता है.

इम्फाल से लगभग 110 किलोमीटर दूर स्थित मोरेह, चूड़ाचांदपुर के बाद दूसरी ऐसी जगह है, जहां पिछले साल 3 मई को मुख्य रूप से हिंदू मैतेई और आदिवासी कुकी समुदाय के बीच जातीय संघर्ष भड़क उठा था. मैतेई समुदाय के लोगों ने अनुसूचित जनजाति का दर्जा दिए जाने की मांग की थी. अब तक हुई हिंसा में 256 लोगों की मौत हो चुकी है और 60,000 लोग राज्य से विस्थापित हुए हैं.

हिंसा के कारण राज्य में जन-जीवन अस्त-व्यस्त हो गया है. हालांकि, म्यांमार के साथ 390 किलोमीटर की सीमा साझा करने वाले कमर्शियल सेटंर मोरेह में इसका असर ज्यादा दिख रहा है.

सशस्त्र समूहों ने इस बहुजातीय शहर में मैतेई लोगों के घरों पर हमला किया और उन्हें जला दिया. यहां कुकी, नागा, तमिल, बिहारी, सिख, नेपाली, बंगाली और उड़िया आदि आदिवासी रहते हैं.

हिंसा के कारण शहर की पूरी नागरिक मैतेई आबादी को मोरेह से भागने पर मजबूर होना पड़ा है. उन्होंने या तो इम्फाल घाटी में शरण ली, जहां समुदाय के अधिकांश लोग रहते हैं या वह गुवाहाटी, मिज़ोरम और मेघालय जैसे पड़ोसी राज्यों में चले गए हैं.

वर्तमान में, मोरेह में मैतेई मुख्य रूप से मणिपुर पुलिस कमांडो हैं. हालांकि, जनवरी 2024 में पुलिस कैंप पर सशस्त्र समूहों द्वारा किए गए हमले के बाद उनकी संख्या में भी कमी आई है.

और ऐसा नहीं है कि सिर्फ मैतेई लोग ही शहर छोड़कर भागे हैं. मोरेह की अर्थव्यवस्था का मुख्य आधार, सीमा व्यापार ठप होने के कारण, मोरेह में काम करने वाले अन्य समुदायों के कई लोग, कुछ अस्थायी रूप से, सामान्य स्थिति बहाल होने तक, शहर से चले गए हैं.

मोरेह में तैनात सुरक्षा एजेंसी के एक वरिष्ठ अधिकारी ने दिप्रिंट को बताया कि पिछले साल मई में हिंसा भड़कने से पहले शहर में लगभग 35,000 लोग रहते थे. अधिकारी ने कहा, “इस साल जनवरी से अब तक लगभग 60 प्रतिशत दुकानें बंद हो चुकी हैं.”

मोरेह के लंगकिचोई गांव के निवासी 65-वर्षीय होलमांग मेत ने दिप्रिंट को बताया, “करने के लिए कुछ नहीं है…गुज़ारा करना बहुत मुश्किल हो गया है. यहां मेरा अपना घर और एक छोटी सी किराने की दुकान है, लेकिन डेढ़ साल पहले की तुलना में बिक्री आधी रह गई है. लगभग हर चीज़ की कीमत आसमान छू रही है.”

मेत 26 साल पहले सेना से नॉन-कमीशन अधिकारी के पद से सेवानिवृत्त हुए थे और वर्तमान में मोरेह सहित टेंग्नौपाल जिले के पूर्व सैनिक संघ के अध्यक्ष हैं.

उन्होंने कहा, “डेढ़ साल पहले तक मैं सीमा पार से 50 रुपये प्रति लीटर पेट्रोल खरीदता था, लेकिन सीमा व्यापार बंद होने के बाद, अब मैं इसे 120 रुपये प्रति लीटर पर खरीदता हूं. मोरेह आज भी संघर्ष कर रहा है.”

मोरेह में पहाड़ी आदिवासी परिषद के अध्यक्ष कैखोला हाओकिप ने कहा कि जब संघर्ष चरम पर था, तब स्थिति भयानक थी, लेकिन अब चीज़ें तक की तुलना में आसान हैं. “हम यह सुनिश्चित करने की कोशिश कर रहे हैं कि हालात सुधरें ताकि मोरेह शहर के लोग अपने काम पर वापस लौट सकें और छात्र अपने स्कूलों में वापस लौट सकें.”

हाओकिप ने कहा, “मोरेह के लोग आम तौर पर व्यापार और व्यवसाय पर निर्भर हैं. मैं कहूंगा कि 95 प्रतिशत लोग. करीब 4-5 प्रतिशत लोग पहाड़ी इलाकों में खेती पर निर्भर हैं. लोग मुश्किल दौर से गुज़र रहे हैं. आजीविका को प्रभावित करने वाली कठिनाइयों से उबरने की कोशिश कर रहे हैं.”

भारत-म्यांमार सीमा पर मणिपुर के मोरेह — एक समय सबसे व्यस्त व्यापारिक शहर पर सुरक्षा बलों का दबदबा | फोटो: सूरज सिंह बिष्ट/दिप्रिंट
भारत-म्यांमार सीमा पर मणिपुर के मोरेह — एक समय सबसे व्यस्त व्यापारिक शहर पर सुरक्षा बलों का दबदबा | फोटो: सूरज सिंह बिष्ट/दिप्रिंट

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कभी रहा संपन्न व्यावसायिक केंद्र

भारत और म्यांमार ने 2018 में मुक्त आवागमन व्यवस्था (एफएमआर) पर हस्ताक्षर किए, जिसके बाद भारत और म्यांमार के बीच 1,643 किलोमीटर लंबी अंतर्राष्ट्रीय सीमा पर व्यापार को बढ़ावा मिला — जो मणिपुर, मिज़ोरम, नागालैंड और अरुणाचल प्रदेश के चार राज्यों से होकर गुज़रती है. मणिपुर, जो म्यांमार के साथ 398 किलोमीटर की सीमा साझा करता है, भी लाभार्थियों में से एक था.

मोरेह में तैनात सुरक्षा एजेंसी के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा, केंद्र द्वारा 2018 में म्यांमार के तामू और मणिपुर के मोरेह के बीच अनौपचारिक, सीमा पार व्यापार को सुविधाजनक बनाने के लिए एफएमआर की घोषणा करने से पहले भारत-म्यांमार सीमा पर न केवल लकड़ी, सुपारी, सोने, बल्कि ब्यूटी प्रोडक्ट्स, कपड़े, इलेक्ट्रॉनिक्स, शराब, खाने-पीने की चीज़ों जैसे सामान का भी अवैध सीमा पार व्यापार बड़े पैमाने पर होता था.

एफएमआर ने अंतर्राष्ट्रीय सीमा के दोनों ओर रहने वाली जनजातियों को बिना वीज़ा के एक-दूसरे के देशों में 16 किलोमीटर तक की यात्रा करने, अपना माल बेचने, सामान खरीदने और वापस जाने की अनुमति दी. भारत-म्यांमार मैत्री पुल के पूरा होने के कुछ समय बाद ही नामफालोंग में चहल-पहल वाला सीमा बाज़ार खुल गया. राज्य सरकार के आंकड़ों के अनुसार, भारत और म्यांमार के बीच अंतर्राष्ट्रीय सीमा पर स्थित मोरेह भूमि बंदरगाह ने 2019-22 में 355 करोड़ रुपये का व्यापार किया.

भारतीय भूमि बंदरगाह प्राधिकरण द्वारा संकलित एक रिपोर्ट में कहा गया है, औपचारिक क्षेत्र में तामू-मोरेह के माध्यम से भारत को म्यांमार का निर्यात 2005-06 में 11.28 मिलियन अमेरिकी डॉलर से बढ़कर 2020-21 में 154.00 मिलियन अमेरिकी डॉलर हो गया. मोरेह-तामू के माध्यम से म्यांमार को भारत का निर्यात 2005-06 में 4 मिलियन अमेरिकी डॉलर से बढ़कर 2020-21 में 32.45 मिलियन अमेरिकी डॉलर हो गया.

भारत से म्यांमार को होने वाले प्रमुख निर्यात में हाई-स्पीड डीजल, वॉलपेपर, गेहूं का आटा, मिथाइल ब्रोमाइड और उर्वरक शामिल हैं. म्यांमार से आयात में सुपारी, ताज़ी सब्जियां और फल शामिल हैं. दोनों देशों के बीच ज़्यादातर व्यापार अनौपचारिक रूप से होता है.

उक्त सुरक्षा अधिकारी ने बताया कि एक समय में तेज़ी से बढ़ रहा सीमा व्यापार, जिसने मोरेह की अर्थव्यवस्था को बनाए रखा था, उस समय बुरी तरह प्रभावित हुआ जब सीमा व्यापार को निलंबित कर दिया गया — पहले कोविड-19 के दौरान और फिर 2021 में म्यांमार में सैन्य तख्तापलट के बाद और तब से व्यापार बंद है.

3 मई 2023 की हिंसा आखिरी तिनका थी. अधिकारी ने कहा, “इसने जो थोड़ा-बहुत व्यापार चल रहा था, उसे भी खत्म कर दिया.”

केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने इस साल फरवरी में FMR को निलंबित करने की घोषणा की.

हालांकि, मोरेह में अर्थव्यवस्था को चालू रखने के लिए, सरकार ने एक अनौपचारिक व्यवस्था की, जिसके तहत म्यांमार के तामू जैसे स्थानों से लोगों — मुख्य रूप से छोटे-मोटे फेरीवाले — को भारत-म्यांमार सीमा पार करने और मोरेह में प्रवेश करने की अनुमति दी गई, ताकि वह अनौपचारिक बाज़ार के हिस्से के रूप में रोज़ाना सुबह 4 बजे से दोपहर 12 बजे के बीच अपना सामान बेच सकें. मोरेह के पास होलेनफाई में, असम राइफल्स ने उनके प्रवेश के लिए एक अस्थायी द्वार बनाया. मोरेह के फेरीवाले भी बाज़ार में अपना सामान बेचते हैं.

मोरेह में अभी भी चल रहा एक बाज़ार | फोटो: सूरज सिंह बिष्ट/दिप्रिंट
मोरेह में अभी भी चल रहा एक बाज़ार | फोटो: सूरज सिंह बिष्ट/दिप्रिंट

रोज़ाना लगने वाला यह बाज़ार पहले के चहल-पहल भरे नामफालोंग बाज़ार की तुलना में कुछ भी नहीं है. म्यांमार से करीब 60-70 लोग रोज़ी-रोटी कमाने के लिए यहां आते हैं और सब्जियां, सूखी मछली, मसाले, कपड़े, जूते, खाने-पीने की चीज़ें आदि बेचते हैं.

सुरक्षा एजेंसी के एक अन्य अधिकारी ने दिप्रिंट को बताया, “यह सीमा के दोनों तरफ के स्थानीय लोगों की मदद करने के लिए एक अनौपचारिक व्यवस्था है. वरना, उनके लिए गुज़ारा करना थोड़ा मुश्किल हो जाएगा.”

अब, अनौपचारिक सीमा बाज़ार के बाहर, कुछ ही दुकानदार बचे हैं. मोरेह के मुख्य मार्गों में से एक पर मुट्ठी भर छोटी-छोटी किराना दुकानें हैं, जो ज्यादातर बर्मा के सामान बेचती हैं, जिसमें ग्लान मास्टर, फॉर्मूला, फ्रीडम, ओल्ड मेड रम और म्यांमार रम जैसे नामों वाली सस्ती शराब से लेकर साबुन, बिस्कुट और गॉडजिला मच्छर भगाने वाली क्रीम तक शामिल हैं.

मोरेह के हालात के बारे में पूछे जाने पर सड़क किनारे छोटी सी दुकान चलाने वाली 30-वर्षीय ज्योति मुदाली ने कहा, दुकानों के मालिक, जिनमें से ज्यादातर मणिपुरी नहीं हैं, नए चेहरों से सावधान रहते हैं और बातचीत करने में अनिच्छुक रहते हैं. अभी यहां के माहौल ठीक नहीं है.”

सूखी मछली बेचतीं महिला | फोटो: सूरज सिंह बिष्ट/दिप्रिंट
सूखी मछली बेचतीं महिला | फोटो: सूरज सिंह बिष्ट/दिप्रिंट

मोरेह में जन्मी नेपाली महिला ज्योति की शादी एक ओडिया व्यक्ति से हुई है. “मेरे माता-पिता नेपाल से आए और यहीं बस गए.”

थोड़ी सी पूछताछ के बाद वे थोड़ा खुल गईं.

उन्होंने कहा, “हम किसी तरह गुज़ारा कर पा रहे हैं. यह आसान नहीं है. दुकान से होने वाली कमाई मुश्किल से मेरे परिवार को चलाने और मेरे बच्चों की स्कूल फीस भरने के लिए काफी है. हम यहां इसलिए रह रहे हैं क्योंकि हम कहीं और जाने का जोखिम नहीं उठा सकते.”

हाओकिप ने कहा कि उन्हें उम्मीद है कि केंद्र सरकार चीज़ों को सही करने की पूरी कोशिश कर रही है. उन्होंने कहा, “इसमें बहुत सी चीज़ें शामिल हैं…दोनों तरफ से राजनीतिक मांगें हैं. हम उम्मीद करते हैं और प्रार्थना करते हैं कि चीज़ें शांतिपूर्ण हो जाएं और जल्द से जल्द सामान्य स्थिति लौट आए.”

भारत-म्यांमार सीमा पर स्थित मोरेह में एक व्यक्ति एक वाहन में सामान लोड करते हुए | फोटो: सूरज सिंह बिष्ट/दिप्रिंट
भारत-म्यांमार सीमा पर स्थित मोरेह में एक व्यक्ति एक वाहन में सामान लोड करते हुए | फोटो: सूरज सिंह बिष्ट/दिप्रिंट

स्थानीय लोग दबी आवाज़ में यह भी कहते हैं कि अनौपचारिक सीमा पार व्यापार अभी भी बंद है, लेकिन अधिकारियों ने ड्रग्स, लकड़ी और सुपारी के चल रहे अवैध व्यापार पर आंखें मूंद ली हैं — जो सैकड़ों करोड़ रुपये का है.

सुरक्षा एजेंसी के एक दूसरे अधिकारी ने कहा कि यह पूरी तरह से झूठ नहीं है. अधिकारी ने कहा, “मोरेह सीमा पर अवैध व्यापार में कमी आई है, लेकिन यह पूरी तरह से बंद नहीं हुआ है. जब तक पूरी बाड़बंदी नहीं हो जाती, तब तक आप इसे पूरी तरह से रोक नहीं सकते. जब भी हमें सूचना मिलती है, हम तस्करी के सामान पर छापा मारते हैं और उन्हें जब्त कर लेते हैं.”

अधिकारी ने कहा कि सीमा पर बाड़ लगाने के लिए केंद्र सरकार के नए सिरे से प्रयास के बीच, तस्करी का रास्ता अन्य क्षेत्रों जैसे कि कामजोन जिले में नामली-वांगली और चंदेल के कुछ इलाकों में भी स्थानांतरित हो गया है.

अधिकारी ने कहा, “यह एक खुली सीमा है, जिसे विशाल पहाड़ी ट्रैक और जंगलों से मदद मिलती है.”

सीमा पर बाड़ लगाना

पिछले साल मई में मणिपुर में संघर्ष छिड़ने के बाद केंद्र सरकार ने 1,643 किलोमीटर लंबी अंतर्राष्ट्रीय सीमा पर बाड़ लगाने की अपनी मुहिम को फिर से शुरू किया. हालांकि, यह कदम मिज़ोरम सरकार के साथ विवाद का विषय बन गया है, जबकि नागालैंड सरकार ने इसका खुलकर विरोध किया है.

भारत और म्यांमार के बीच एक खुली सीमा है. केंद्र सरकार इस पर बाड़ लगाने की योजना बना रही है | फोटो: सूरज सिंह बिष्ट/दिप्रिंट
भारत और म्यांमार के बीच एक खुली सीमा है. केंद्र सरकार इस पर बाड़ लगाने की योजना बना रही है | फोटो: सूरज सिंह बिष्ट/दिप्रिंट

मोरेह में भी, कामजोन से मोरेह, चंदेल और चूड़ाचांदपुर तक सीमा पर बाड़ लगाने का स्थानीय लोगों द्वारा विरोध किया जा रहा है.

बाड़ लगाने का विरोध कर रहीं कुकी महिलाओं में से एक, कनांग वेंग की नैनिंग गुइथे ने पूछा, “सीमा के दूसरी तरफ हमारे लोग रहते हैं और यह हमेशा से ऐसा ही रहा है. अगर आप बाड़ लगाएंगे, तो हमारे परिवार के सदस्य कैसे आएंगे?”

हालांकि, मणिपुर और म्यांमार की 398 किलोमीटर लंबी सीमा पर बाड़ लगाने का काम 2008 में ही शुरू हो गया था, लेकिन कई कारणों से इस परियोजना में बहुत देरी हो गई है. मोरेह सीमा पर तैनात एक सुरक्षा अधिकारी ने बताया कि अब तक केवल 10 किलोमीटर की सीमा पर ही बाड़ लगाई गई है.

अमित शाह ने पिछले साल सितंबर में घोषणा की थी कि केंद्र सरकार सीमा पर बाड़ लगाने के लिए 31,000 करोड़ रुपये खर्च करेगी. हालांकि, जारी हिंसा के कारण बाड़ लगाने के काम में और देरी हो रही है.

दूसरी ओर, भारत पिछले एक दशक से मोरेह सीमा पर बुनियादी ढांचे के विकास में तेज़ी ला रहा है. 1,360 किलोमीटर लंबा भारत-म्यांमार-थाईलैंड त्रिपक्षीय राजमार्ग, जो मोरेह को थाईलैंड के माय सोट से जोड़ेगा, म्यांमार के माध्यम से पूर्वोत्तर को थाईलैंड से जोड़ेगा और व्यापार और वाणिज्य को सुविधाजनक बनाएगा, अभी निर्माणाधीन है.

मेत ने कहा, “मोरेह मणिपुर के लिए सोने की मुर्गी बन सकता है. इसमें बहुत संभावनाएं हैं, लेकिन इसे साकार करने के लिए शांति बहाल करने की ज़रूरत है. यह इस तरह के माहौल में नहीं हो सकता.”

(इस रिपोर्ट को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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