इम्फाल: केंद्र ने मणिपुर में नए सिरे से फैली हिंसा को नियंत्रित करने के लिए केंद्रीय सशस्त्र पुलिस बल (सीएपीएफ) की अतिरिक्त कंपनियों को तैनात किया है, लेकिन केंद्र में भारतीय जनता पार्टी के लिए एक बड़ा सिरदर्द यह है कि पार्टी की राज्य इकाई में “फूट” पड़ गई है.
सोमवार को मुख्यमंत्री एन. बीरेन सिंह के आवास पर हुई बैठक में छह मैतेई महिलाओं और बच्चों के अपहरण और हत्या के पीछे कुकी उग्रवादियों के खिलाफ कार्रवाई करने का प्रस्ताव पारित किया गया, जो इस बात का ताज़ा उदाहरण है कि मणिपुर के मुख्यमंत्री को अपने लोगों को एकजुट रखना कितना मुश्किल लग रहा है.
मुख्यमंत्री कार्यालय के सूत्रों ने बताया कि सोमवार को मंत्रियों सहित करीब 26 विधायक बैठक में शामिल हुए थे, वहीं दिप्रिंट को यह भी पता चला है कि भाजपा के 37 विधायकों में से कई बैठक में अनुपस्थित रहे. सात कुकी विधायकों के अलावा सत्तारूढ़ पार्टी के एक दर्जन से अधिक मैतेई विधायक बैठक में शामिल नहीं हुए या बैठक में शामिल न होने का कोई कारण भी नहीं बताया.
बैठक में एक प्रस्ताव पारित किया गया, जिसमें केंद्र से अपील की गई कि वह 14 नवंबर को जिरीबाम में हुई हिंसा के बाद घाटी के छह पुलिस थाना क्षेत्रों में सशस्त्र बल (विशेष शक्तियां) अधिनियम (AFSPA) लागू करने के फैसले की समीक्षा करे. यह भी फैसला लिया गया कि अगर लिए गए प्रस्तावों को निर्धारित अवधि के भीतर लागू नहीं किया जाता है, तो सभी राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन विधायक “राज्य के लोगों के परामर्श से भविष्य की कार्रवाई” तय करेंगे.
60-सदस्यीय मणिपुर विधानसभा में, भाजपा के पास 37 विधायक हैं, जिनमें जनता दल (यूनाइटेड) से आए पांच विधायक शामिल हैं. इनके अलावा, भाजपा की सहयोगी नागा पीपुल्स फ्रंट (एनपीएफ) के पास पांच विधायक हैं.
एक अन्य पूर्व सहयोगी नेशनल पीपुल्स पार्टी (एनपीपी), जिसने पिछले रविवार को जिरीबाम हिंसा के बाद अपना समर्थन वापस ले लिया था, के पास सात विधायक हैं. पूर्व सहयोगी कुकी पीपुल्स अलायंस के पास दो, कांग्रेस के पास पांच विधायक, जेडी(यू) के पास एक और तीन निर्दलीय विधायक हैं.
नाम न बताने की शर्त पर एक विधायक ने कहा, “मुख्यमंत्री सचिवालय ने 11 विधायकों/मंत्रियों की सूची जारी की, जिन्होंने बैठक में शामिल न होने का कोई कारण नहीं बताया, जबकि अनुपस्थित रहने वालों की वास्तविक सूची लंबी है.”
दिल्ली में मौजूद एक अन्य विधायक ने दिप्रिंट को बताया, “पिछले एक साल में सीएम बीरेन सिंह के अपने विधायकों के बीच समर्थन में कमी आई है. पिछले साल ही कुकी बीजेपी विधायकों ने हिंसा के बाद उनके इस्तीफे की मांग की थी, लेकिन पिछले एक साल में कई ऐसे मामले सामने आए हैं, जब कई मैतेई बीजेपी विधायकों ने उन्हें हटाने की मांग की है.”
विधायक ने बताया कि पिछले महीने मणिपुर विधानसभा के अध्यक्ष सत्यव्रत सिंह और शिक्षा मंत्री टी. विश्वजीत सिंह समेत पार्टी के करीब 19 विधायकों ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिखकर बीरेन सिंह को हटाने की मांग की थी. “केंद्रीय नेतृत्व जानता है कि वर्तमान समय में मणिपुर में बीजेपी के भीतर फूट पड़ रही है. अगर विधायक खुलकर कुछ नहीं कह रहे हैं, तो इसका कारण सशस्त्र समूहों द्वारा निशाना बनाए जाने का डर है.”
दिप्रिंट ने मुख्यमंत्री से फोन पर बात करने की कोशिश की, लेकिन कोई जवाब नहीं मिल पाया है.
तीसरे बीजेपी विधायक ने कहा कि बीरेन सिंह पर यह दिखाने का बहुत दबाव है कि मणिपुर में स्थिति नियंत्रण में है. विधायक ने कहा, “सोमवार की बैठक इसी बात का संकेत देने के लिए बुलाई गई थी.”
मंगलवार को मुख्यमंत्री ने जिरीबाम में हुई घटना की निंदा की और कहा कि सरकार तब तक चैन से नहीं बैठेगी जब तक अपराधियों को सज़ा नहीं मिल जाती.
तीन मिनट के वीडियो क्लिप में उन्होंने कानून व्यवस्था की स्थिति बनाए रखने के लिए केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल और राज्य पुलिस को “हार्दिक आभार” भी व्यक्त किया और कहा कि राज्य हमेशा अपने लोगों की सुरक्षा को प्राथमिकता देगा.
उन्होंने राज्य में शांति लाने के लिए केंद्र की “अथक प्रतिबद्धता” के लिए भी धन्यवाद दिया.
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‘इस मोड़ पर CM को हटाने की संभावना नहीं’
हालांकि, राज्य में तैनात एक वरिष्ठ सरकारी अधिकारी ने दिप्रिंट को बताया कि बीरेन सिंह की अलोकप्रियता के बावजूद, उन्हें हटाए जाने की संभावना नहीं है. “इस मोड़ पर, तो कतई नहीं. उन्हें हटाने का कोई भी फैसला यह संदेश देगा कि केंद्र ने कुकी के दबाव में ऐसा किया है, जो लगातार उन्हें हटाने की मांग कर रहे हैं. अगर ऐसा होता है, तो इस बात का वास्तविक डर है कि घाटी (इम्फाल), जो अभी बहुत अस्थिर है उसमें हिंसा भड़क सकती है और इसे नियंत्रित करना मुश्किल हो सकता है.”
अधिकारी ने कहा कि केंद्र सावधानी से कदम उठा रहा है क्योंकि वह स्थिति की अस्थिरता से वाकिफ है. उन्होंने कहा, “अगर सीएम को हटाने का कोई फैसला लेना है, तो यह 2027 के विधानसभा चुनावों के करीब हो सकता है. अभी नहीं. यथास्थिति बरकरार रहेगी. इस समय केंद्र की प्राथमिकता राज्य में सुरक्षा बढ़ाना है ताकि आगे कोई हिंसा न हो.”
इस समय केंद्र सरकार राज्य में कानून-व्यवस्था की स्थिति को संभालने और सुरक्षा व्यवस्था को मजबूत करने में व्यस्त है. हिंसा की ताज़ा घटनाओं के बाद केंद्रीय गृह मंत्रालय ने राज्य में 5,000 से अधिक कर्मियों वाली सीएपीएफ की 50 और कंपनियों की तैनाती का आदेश दिया है. सेना ने सोमवार को इम्फाल में फ्लैग मार्च भी किया.
सिर्फ नागरिक ही नहीं, इम्फाल में निर्वाचित प्रतिनिधि भी भीड़ की हिंसा का शिकार हुए हैं. शनिवार को जिरीबाम घटना के अपराधियों के खिलाफ कार्रवाई की मांग कर रही गुस्साई भीड़ ने घाटी में रहने वाले एक दर्जन से अधिक विधायकों और मंत्रियों के आवासों में तोड़फोड़ की. भीड़ ने सीएम बीरेन सिंह के पैतृक घर में घुसने की भी कोशिश की और तोड़फोड़ की.
शनिवार को हुई तोड़फोड़ की घटनाओं के बाद से पूरे इम्फाल में सुरक्षा बढ़ा दी गई है, जिसमें मैतेई विधायकों और मंत्रियों के आवास भी शामिल हैं. मंत्री एल. सुशिंद्रो के आवास के बाहर कंसर्टिना तार, बंकर और एक बड़ा लोहे का गेट लगाया गया है.
वहां तैनात सीमा सुरक्षा बल के एक जवान ने कहा, “शनिवार की घटना के बाद हमने उनके आवास की सुरक्षा बढ़ा दी है. हम कोई जोखिम नहीं लेना चाहते.”
हालांकि, मणिपुर पिछले साल मई से ही उबल रहा है, जब पहली बार मैतेई और आदिवासी कुकी समुदायों के बीच जातीय संघर्ष हुआ था, लेकिन हिंसा का ताज़ा दौर तब शुरू हुआ, जब सीआरपीएफ ने जवाबी फायरिंग में कथित तौर पर दस हमार उग्रवादियों को मार गिराया.
इसके बाद जिरीबाम में एक शरणार्थी शिविर से छह मैतेई महिलाओं और बच्चों का अपहरण किया गया. बराक नदी में आठ महीने के एक शिशु सहित छह लोगों के शव मिलने के बाद तनाव बढ़ गया.
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