नयी दिल्ली, 15 नवंबर (भाषा) उच्चतम न्यायालय ने कहा है कि यौन तस्करी के पीड़ितों के लिए समग्र पुनर्वास ढांचे की स्थापना के संबंध में विधायी शून्यता है और केंद्र को मुद्दे पर विचार कर इस संबंध में हलफनामा दायर करना चाहिए।
न्यायमूर्ति जेबी पारदीवाला और न्यायमूर्ति पंकज मिथल की पीठ ने कहा कि मानव और यौन तस्करी ऐसे अपराध हैं जो पीड़ितों के जीवन को मुश्किल बना देते हैं तथा उनके जीवन, स्वतंत्रता एवं व्यक्तिगत सुरक्षा के अधिकार को नष्ट कर देते हैं।
पीठ ने कहा कि ऐसे अपराधों का समाज के कमजोर वर्ग, खासकर महिलाओं और बच्चों के जीवन पर गंभीर असर पड़ता है।
उच्चतम न्यायालय ने कहा कि ऐसे अपराधों के पीड़ितों के साथ अकसर तस्करों द्वारा दुर्व्यवहार किया जाता है तथा उन्हें शारीरिक और मानसिक हिंसा सहनी पड़ती है।
इसने कहा, ‘‘उन्हें कई जानलेवा चोटें लगने तथा यौन संचारित रोगों सहित संक्रमण और बीमारियों का खतरा अधिक रहता है।’’
पीठ ने कहा कि इसके अतिरिक्त मानसिक स्वास्थ्य के संबंध में इसका परिणाम चिंता विकार, अभिघातजन्य तनाव विकार (पीटीएसडी), अवसाद तथा मादक द्रव्यों के सेवन के रूप में भी निकल सकता है।
इसने कहा कि ऐसे अधिकतर पीड़ितों को चिकित्सकों और अन्य मानसिक स्वास्थ्य पेशेवरों तक निरंतर पहुंच की आवश्यकता हो सकती है, जो उनकी विशिष्ट आवश्यकताओं को पूरा कर सकें।
शीर्ष अदालत यौन उत्पीड़न के पीड़ितों के संबंध में 2015 के फैसले के अनुपालन का आग्रह करने वाली याचिका पर सुनवाई कर रही थी।
भाषा नेत्रपाल संतोष
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