नयी दिल्ली, 15 नवंबर (भाषा) दिल्ली उच्च न्यायालय ने उस मध्यस्थता फैसले में हस्तक्षेप करने से इनकार कर दिया है, जिसमें गेल को जिंदल सॉ लिमिटेड को 70 लाख अमेरिकी डॉलर से अधिक का भुगतान करने का निर्देश दिया गया था।
न्यायमूर्ति विभु बाखरू और न्यायमूर्ति सचिन दत्ता की पीठ ने 29 अक्टूबर को एकल न्यायाधीश के फैसले के खिलाफ गैस अथॉरिटी ऑफ इंडिया लिमिटेड (गेल) की अपील को यह कहते हुए खारिज कर दिया कि यह “अनुचित” थी।
यह मामला सॉ पाइप्स लिमिटेड (अब जिंदल सॉ लिमिटेड) द्वारा गेल को पाइपों की देरी से आपूर्ति से संबंधित था।
दिसंबर 2002 में पारित और फिर मार्च 2003 में संशोधित आदेश में मध्यस्थता न्यायाधिकरण ने माना था कि माल की आपूर्ति न लेने के कारण हुई देरी के लिए गेल जिम्मेदार है और इसलिए उसने सॉ पाइप्स लिमिटेड द्वारा दायर दावों को स्वीकार कर लिया था।
उसने आगे कहा था कि गेल, सॉ पाइप्स की ओर से की गई देरी के कारण पाइपों के लिए देय कीमत को कम करने का हकदार नहीं था और उसने सॉ पाइप्स को ब्याज और लागत सहित 72,30,378.23 अमेरिकी डॉलर का भुगतान करने का आदेश दिया था।
नवंबर 2010 में जब गेल ने इसे मध्यस्थता अधिनियम के तहत चुनौती दी थी तो एकल न्यायाधीश ने उपरोक्त फैसले को बरकरार रखा।
भाषा प्रशांत रंजन
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