नई दिल्ली: प्रशांत किशोर की नई-नवेली जनसुराज पार्टी से लेकर कर्नाटक में गौड़ा परिवार तक, कांग्रेस और भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के बाहर के कई राजनीतिक खिलाड़ियों का भाग्य दांव पर लगा है क्योंकि देश भर में 46 विधानसभा क्षेत्रों में उपचुनाव होने हैं.
23 नवंबर को मतगणना के दिन महाराष्ट्र और झारखंड के नतीजे सुर्खियों में रहेंगे. हालांकि, अन्य उपचुनावों के नतीजे, जो इसमें शामिल किरदारों के लिए रास्ता तय करेंगे, राष्ट्रीय राजनीति पर भी असर डालेंगे.
2024 की गर्मियों में देश के राजनीतिक मूड में बदलाव देखने को मिला, जिसमें भाजपा ने खुद को लोकसभा में आधे से भी कम अंक पर पाया, जबकि कांग्रेस ने पिछले एक दशक में अपनी अनियंत्रित गिरावट में उलटफेर देखा. इसके बाद भाजपा ने अपने सहयोगी दलों, तेलुगु देशम पार्टी (टीडीपी) और जनता दल (यूनाइटेड) की मदद से लगातार तीसरी बार सरकार बनाई.
लोकसभा चुनावों के तुरंत बाद जुलाई में हुए उपचुनावों के पहले दौर में विपक्ष को बढ़त मिली थी. इंडिया ब्लॉक ने 13 सीटों में से 10 सीटें जीतीं, जहां चुनाव हुए. भाजपा को केवल दो सीटें मिलीं. हालांकि, पिछले महीने हरियाणा विधानसभा चुनाव में आए नतीजों ने कांग्रेस को यह याद दिलाया कि लोकसभा में उसका प्रदर्शन क्षणिक हो सकता है.
निर्वाचन आयोग द्वारा 48 निर्वाचन क्षेत्रों में उपचुनाव की घोषणा के बाद, सिक्किम में सत्तारूढ़ सिक्किम क्रांतिकारी मोर्चा ने दो सीटों पर निर्विरोध जीत हासिल की. वर्तमान में कांग्रेस के पास 46 सीटों में से 14 और भाजपा के पास 11 सीटें हैं.
महाराष्ट्र और झारखंड में अनुकूल परिणाम, साथ ही उपचुनावों में संख्या में बढ़त, विपक्षी खेमे, खासकर कांग्रेस में विश्वास बहाल करने में मदद करेगी. हरियाणा के बाद भाजपा के लिए उपचुनाव भारतीय राजनीति के केंद्रीय ध्रुव के रूप में अपनी श्रेष्ठता की पुष्टि करने का अवसर लेकर आए हैं.
फिर भी, यह केवल भाजपा और कांग्रेस के बारे में नहीं है. यह केवल 16 सीटों पर कांग्रेस और भाजपा के बीच सीधी लड़ाई है, जो मुख्य रूप से राजस्थान, मध्य प्रदेश, असम, छत्तीसगढ़, गुजरात और कर्नाटक में केंद्रित है.
उदाहरण के लिए बिहार को ही लें, जहां चार निर्वाचन क्षेत्रों में उपचुनाव हो रहे हैं. सत्तारूढ़ जेडी(यू) और मुख्य विपक्षी दल, राष्ट्रीय जनता दल से कहीं अधिक, किशोर की जन सुराज पार्टी के प्रदर्शन पर नज़रें होंगी, जो पिछले दो साल में राज्य भर में पदयात्रा के बाद अपना पहला चुनावी अभियान चला रही है.
किशोर की पार्टी के आने से उपचुनाव बहुध्रुवीय हो गया है, ऐसे में राजद के लिए कड़ी टक्कर होने वाली है, जिसने पहले चार में से दो सीटें जीती थीं. मुस्लिम-यादव वोट बैंक पर निर्भर राजद को इस बार न केवल जदयू बल्कि जेएसपी की चुनौती से भी निपटना है, जिसने बेलागंज निर्वाचन क्षेत्र में एक प्रमुख मुस्लिम चेहरे को मैदान में उतारा है.
कर्नाटक में तीन विधानसभा क्षेत्रों में उपचुनाव होने हैं. चन्नपटना के नतीजों पर सबकी निगाहें रहेंगी क्योंकि जेडीएस अध्यक्ष एचडी कुमारस्वामी ने अपने बेटे निखिल कुमारस्वामी को इस सीट से मैदान में उतारकर इसे गौड़ा परिवार के लिए प्रतिष्ठा की लड़ाई बना दिया है. निखिल, जो पहले एक लोकसभा चुनाव और एक विधानसभा चुनाव हार चुके हैं, की जीत उनके चचेरे भाइयों प्रज्वल रेवन्ना और सूरज रेवन्ना के खिलाफ लंबित आपराधिक आरोपों के बीच पार्टी के भविष्य के रूप में उनकी स्थिति को मजबूत करेगी.
मेघालय में, जहां मूलनिवासी वॉयस ऑफ द पीपल पार्टी (वीपीपी) के उदय ने सत्तारूढ़ नेशनल पीपुल्स पार्टी के आधार को खत्म कर दिया है, मुख्यमंत्री कॉनराड संगमा ने अपनी पत्नी मेहताब चांडी संगमा को गाम्बेग्रे सीट पर मैदान में उतारा है. तुरा से लोकसभा के लिए चुने जाने के बाद कांग्रेस के सालेंग संगमा के इस्तीफे के बाद उपचुनाव ज़रूरी हो गए थे.
पश्चिम बंगाल में छह सीटों पर उपचुनाव होंगे. सत्तारूढ़ टीएमसी कोलकाता के आरजी कर मेडिकल कॉलेज और अस्पताल में एक प्रशिक्षु डॉक्टर के बलात्कार और हत्या के बाद राज्य भर में भड़के विरोध प्रदर्शनों के पीछे विपक्ष की लामबंदी का मुकाबला करने के लिए हर संभव कोशिश कर रही है. भाजपा के अलावा, कांग्रेस और वाम दलों के उम्मीदवार — जो इस बार एक साथ चुनाव नहीं लड़ रहे हैं — मैदान में हैं.
उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी और भाजपा फिर से लड़ेंगे. कांग्रेस ने इसे भाजपा के खिलाफ लड़ाई को मजबूत करने के लिए एक बड़े दिल वाला कदम बताते हुए दौड़ से बाहर कर दिया है.
2022 के विधानसभा चुनावों में भाजपा ने नौ में से दो सीटें — खैर और फूलपुर जीतीं, जबकि राष्ट्रीय लोक दल, जो उस समय सपा का सहयोगी था, और निषाद पार्टी ने क्रमशः मीरापुर और मझवां में जीत हासिल की. सपा ने शेष चार सीटें — कुंदरकी, करहल, शीशमऊ और कटेहरी जीतीं. पार्टी ने 2024 के चुनावों में राज्य की 80 लोकसभा सीटों में से 37 सीटें जीतकर पर्यवेक्षकों को चौंका दिया, जो भाजपा से सात अधिक हैं.
हालांकि, भाजपा से कहीं अधिक, मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के लिए उपचुनाव के नतीजों पर बहुत कुछ निर्भर है, जिनके नेतृत्व पर लोकसभा चुनावों में राज्य में पार्टी के निराशाजनक प्रदर्शन के बाद गहन सवाल उठ रहे हैं.
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