नयी दिल्ली, पांच नवंबर (भाषा) राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने मंगलवार को कहा कि बौद्ध समुदाय के पास ऐसे समय में मानव जाति को देने के लिए बहुत कुछ है जब दुनिया संघर्ष और जलवायु संकट का सामना कर रही है।
उन्होंने यहां पहले एशियाई बौद्ध सम्मेलन के उद्घाटन समारोह में अपने संबोधन में यह भी रेखांकित किया कि बुद्ध धम्म (बौद्ध धर्म के सिद्धांत) ‘करुणा’ शब्द में समाहित है, जिसकी ‘‘आज दुनिया को जरूरत है’’।
मुर्मू ने कहा, ‘‘जब दुनिया आज कई मोर्चों पर अस्तित्व के संकट का सामना कर रही है, न केवल संघर्ष बल्कि जलवायु संकट का भी, तो आपके बड़े समुदाय के पास मानव जाति को देने के लिए बहुत कुछ है। बौद्ध धर्म के विभिन्न सिद्धांत दुनिया को दिखाते हैं कि संकीर्ण संप्रदायवाद का मुकाबला कैसे किया जाए, उनका मुख्य संदेश अभी भी शांति और अहिंसा पर केंद्रित बना हुआ है।’’
राष्ट्रपति ने कहा कि ‘‘एशिया को मजबूत बनाने’’ में बुद्ध धम्म की भूमिका पर भी चर्चा करने की जरूरत है।
उन्होंने कहा, ‘‘वास्तव में, हमें यह देखने के लिए चर्चा का विस्तार करने की जरूरत है कि कैसे बुद्ध धम्म एशिया और दुनिया में शांति, वास्तविक शांति ला सकता है, ऐसी शांति जो न केवल शारीरिक हिंसा से बल्कि लालच और नफरत की सभी ताकतों से मुक्त हो।’’
उनकी टिप्पणी यूक्रेन-रूस और पश्चिम एशिया संघर्ष के बीच आई है।
राष्ट्रपति मुर्मू ने इस बात पर जोर दिया कि कैसे चीनी और अन्य विद्वानों द्वारा अनुवाद के माध्यम से कई बौद्ध साहित्यिक कृतियों ने अतीत में कई मूल रचनाएं नष्ट हो जाने के बाद भी इसके संरक्षण में योगदान दिया।
उन्होंने कहा कि यह ‘‘बौद्ध साहित्य को हमारे लिए वास्तव में साझा विरासत बनाता है’’।
मुर्मू ने हाल ही में सरकार द्वारा अन्य भाषाओं के अलावा पाली एवं प्राकृत को दिए गए शास्त्रीय भाषा के दर्जे का भी उल्लेख किया और कहा कि इससे दोनों भाषाओं में ग्रंथों के संरक्षण तथा उनके पुनरुद्धार में मदद मिलेगी।
राष्ट्रपति ने कहा, ‘‘मुझे विश्वास है कि यह शिखर सम्मेलन बुद्ध की शिक्षाओं की हमारी साझा विरासत के आधार पर हमारे सहयोग को मजबूत करने में काफी मदद करेगा।’’
दो दिवसीय सम्मेलन की मेजबानी अंतरराष्ट्रीय बौद्ध परिसंघ (आईबीसी) के सहयोग से संस्कृति मंत्रालय कर रहा है।
सम्मेलन का विषय ‘एशिया को मजबूत बनाने में बुद्ध धम्म की भूमिका’ है।
मंत्रालय ने कहा कि बुद्ध धम्म भारत की संस्कृति का एक मूल्यवान घटक बनकर उभरा है, जो दृढ़ विदेश नीति और प्रभावी राजनयिक संबंध विकसित करने में देश की सहायता करता है।
इसने कहा कि सम्मेलन भारत की ‘एक्ट ईस्ट’ नीति की भी अभिव्यक्ति है, जो मार्गदर्शक प्रकाश के रूप में धम्म के साथ एशिया के सामूहिक, समावेशी और आध्यात्मिक विकास पर आधारित है।
भाषा नेत्रपाल नरेश
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