नई दिल्ली: दिप्रिंट को मिली जानकारी के मुताबिक अर्थशास्त्री अजीत रानाडे ने पुणे स्थित गोखले इंस्टीट्यूट ऑफ पॉलिटिक्स एंड इकोनॉमिक्स (GIPE) के कुलपति (V-C) के पद से “व्यक्तिगत कारणों” से इस्तीफा दे दिया है, साथ ही उन्होंने यह भी कहा कि उनके इस्तीफे का मतलब यह नहीं है कि वे इस पद के लिए “अयोग्य” हैं.
रानाडे की वाइस चांसलर के रूप में नियुक्ति सितंबर से ही चर्चा में है, जब उन्हें GIPE के पूर्व चांसलर, दिवंगत बिबेक देबरॉय द्वारा गठित एक फैक्ट-फाइंडिंग कमेटी द्वारा यह पता लगाने के बाद पद से हटा दिया गया था कि उनकी उम्मीदवारी विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (UGC) के नियमों का उल्लंघन करती है. हालांकि, बॉम्बे हाईकोर्ट ने उन्हें राहत दे दी थी.
न्यायालय द्वारा उनके निष्कासन पर रोक लगाने के कुछ समय बाद ही प्रधानमंत्री की आर्थिक सलाहकार परिषद के अध्यक्ष देबरॉय ने इस्तीफा दे दिया और अर्थशास्त्री संजीव सान्याल ने 6 अक्टूबर को पदभार संभाला. देबरॉय का 1 नवंबर को निधन हो गया.
29 अक्टूबर को सान्याल को लिखे गए पत्र में रानाडे ने कहा कि उन्होंने व्यक्तिगत कारणों से तत्काल प्रभाव से अपने पद से इस्तीफा देने का फैसला किया है. दिप्रिंट ने वह पत्र देखा है.
उन्होंने पत्र में कहा, “उत्कृष्टता की खोज में संस्थान को शानदार सफलता के लिए मेरी शुभकामनाएं. कृपया ध्यान दें कि इस्तीफे का यह पत्र किसी भी तरह से अक्टूबर 2021 में कुलपति के रूप में मेरी नियुक्ति में किसी भी दोष या अयोग्यता को स्वीकार करने का संकेत नहीं देता है.”
दिप्रिंट ने कॉल और संदेशों के माध्यम से रानाडे से संपर्क किया. प्रतिक्रिया मिलने पर इस रिपोर्ट को अपडेट किया जाएगा.
रानाडे की कुलपति के रूप में नियुक्ति को लेकर विवाद
रानाडे को 2022 में GIPE, एक डीम्ड यूनिवर्सिटी का कुलपति नियुक्त किया गया था. जब उन्हें इस पद के लिए आवेदन करने के लिए आमंत्रित किया गया था, तब वे संस्थान के सर्वोच्च निर्णय लेने वाले निकाय, प्रबंधन बोर्ड के सदस्य थे. उस समय, GIPE की संस्थापक सोसायटी, सर्वेंट्स ऑफ इंडिया सोसाइटी ने तत्कालीन चांसलर राजीव कुमार को लिखे एक पत्र में रानाडे की उम्मीदवारी का मुद्दा उठाया था और इसे “हितों का टकराव” बताया था.
बाद में, दिसंबर 2023 में, GIPE के पूर्व संकाय सदस्य मुरली कृष्ण, जिन्हें 2018 में “कदाचार” के आरोपों के कारण GIPE से हटा दिया गया था, ने UGC के पास एक शिकायत दर्ज कराई, जिसमें आरोप लगाया गया कि रानाडे की नियुक्ति UGC के नियमों का उल्लंघन करती है क्योंकि उनके पास प्रोफेसर के रूप में 10 साल का अनुभव नहीं था.
2018 में जारी यूजीसी के नियमों के अनुसार कुलपति नियुक्त किए जाने वाले व्यक्ति को “विश्वविद्यालय में प्रोफेसर के रूप में कम से कम 10 साल का अनुभव या किसी प्रतिष्ठित शोध संगठन या/और अकादमिक, प्रशासनिक संगठन में कम से कम 10 साल का अनुभव होना चाहिए, साथ ही अकादमिक नेतृत्व का प्रमाण भी होना चाहिए”.
उनकी शिकायत पर कार्रवाई करते हुए, यूजीसी ने पूर्व चांसलर कुमार को जनवरी में दो बार और फिर इस साल जून में एक बार फिर कार्रवाई रिपोर्ट (एटीआर) मांगी.
इसके बाद कुमार ने इस साल 27 जून को रानाडे को एक कारण बताओ नोटिस जारी किया, जिसमें उनके कर्तव्यों का निर्वहन करते समय “कथित गलत बयानी” और “अस्वीकार्य आचरण” की शिकायतों का जिक्र किया गया था, जैसा कि एक सेवारत संकाय सदस्य ने पहले दिप्रिंट को बताया था.
जीआईपीई चांसलर के रूप में कुमार का कार्यकाल जून में समाप्त हो गया. उसके बाद, देबरॉय ने चांसलर का पद संभाला और रानाडे को जारी किए गए कारण बताओ नोटिस और उनके खिलाफ शिकायतों की जांच करने के लिए फैक्ट-फाइंडिंग कमेटी का गठन किया. फैक्ट-फाइंडिंग कमेटी ने रिपोर्ट दी कि वह “यूजीसी दिशा-निर्देशों द्वारा निर्धारित मानदंडों को पूरा नहीं करते” और उन्हें पद से हटाने की जोरदार सिफारिश की.
(इस रिपोर्ट को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.)
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