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शुक्रवार, 4 जुलाई, 2025
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भारत, स्पेन को खुले एवं सुरक्षित हिंद-प्रशांत निर्माण में योगदान देना चाहिए: पेड्रो सांचेज

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मुंबई, 29 अक्टूबर (भाषा) दक्षिण चीन सागर में बीजिंग की आक्रामकता के बीच नौवहन की स्वतंत्रता की रक्षा की आवश्यकता को रेखांकित करते हुए स्पेन के राष्ट्रपति पेड्रो सांचेज ने मंगलवार को कहा कि उनके देश और भारत को एक खुले और सुरक्षित हिंद-प्रशांत क्षेत्र के निर्माण में योगदान देना चाहिए।

मुंबई में स्पेन-भारत फोरम और ऑब्जर्वर रिसर्च फाउंडेशन (ओआरएफ) द्वारा आयोजित एक कार्यक्रम में सांचेज ने कहा कि नियम-आधारित अंतरराष्ट्रीय व्यवस्था खतरे में है और इसलिए मैड्रिड और नयी दिल्ली को बहुपक्षीय संस्थाओं की रक्षा करनी चाहिए और उन्हें मजबूत बनाने की दिशा में काम करना चाहिए।

उन्होंने कहा कि दुनिया की शक्ति का केंद्र एशिया की ओर स्थानांतरित हो गया है, जहां भारत एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। सांचेज ने घोषणा की कि स्पेन एशिया के लिए एक नयी रणनीति शुरू करने पर काम कर रहा है, जो दुनिया के सबसे बड़े महाद्वीप के साथ उनके देश के संबंधों को मजबूती प्रदान करेगा।

भारत की आधिकारिक यात्रा पर आए सांचेज ने कहा कि दुनिया के सकल घरेलू उत्पाद का 36 प्रतिशत हिस्सा मध्य हिंद-प्रशांत क्षेत्र पर निर्भर है।

उन्होंने कहा कि यह महत्वपूर्ण क्षेत्र दुनिया की 60 प्रतिशत आबादी और वैश्विक समुद्री व्यापार का 50 प्रतिशत हिस्सा है, जो समुद्री डकैती, आतंकवाद, प्राकृतिक आपदाओं, हथियारों और मादक पदार्थों की तस्करी और अवैध मछली पकड़ने जैसी सुरक्षा चुनौतियों का सामना करता है।

उन्होंने कहा कि चूंकि इस क्षेत्र में तेल, मत्स्य पालन और महत्वपूर्ण खनिज भंडार जैसे महत्वपूर्ण रणनीतिक प्राकृतिक संसाधन हैं, इसलिए यहां सुरक्षा चुनौतियां अधिक महत्वपूर्ण हैं। उन्होंने कहा, ‘‘इसलिए, हमें नौवहन और ओवरफ्लाइट की स्वतंत्रता की रक्षा करनी चाहिए। भारत और स्पेन को एक सुरक्षित हिंद-प्रशांत में योगदान देना चाहिए।’’

सांचेज ने कहा कि देशों के बीच शांतिपूर्ण अस्तित्व सुनिश्चित करने के लिए, क्षेत्रीय अखंडता और राष्ट्रों की संप्रभुता जैसे सिद्धांतों का पालन किया जाना चाहिए।

उन्होंने कहा कि भारत और स्पेन को नागरिकों की सुरक्षा और जरूरतमंद लोगों को मानवीय सहायता पहुंचाने और मानवाधिकारों और लोकतंत्र की रक्षा जैसे क्षेत्रों में मिलकर काम करना चाहिए।

सांचेज ने कहा कि कृत्रिम बुद्धिमत्ता (एआई) में असाधारण क्षमता है, लेकिन इस परिवर्तनकारी तकनीक के दुरुपयोग के जोखिम का आकलन करने की आवश्यकता पर जोर दिया।

सांचेज ने कहा, ‘‘जैसे-जैसे हमारे देश अपनी तकनीकी क्षमताओं में सुधार करते हैं, एआई सहयोग प्रमुख क्षेत्रों को बदल सकता है। यह हमारे लोकतंत्रों को खतरा पहुंचाने वाली झूठी सूचनाओं के प्रसार से संबंधित चुनौतियों का समाधान करने में भी मदद कर सकता है।’’

उन्होंने कहा कि एआई में अंतरराष्ट्रीय सहयोग एक सुरक्षित, अधिक समतावादी और खुली दुनिया के लिए आवश्यक है। उन्होंने कहा, ‘‘एआई को नैतिक होना चाहिए। हमें यह सुनिश्चित करने के लिए मजबूत नैतिक मानक और जवाबदेही तंत्र स्थापित करना चाहिए कि यह मानवाधिकारों का सम्मान करे और सामाजिक भलाई को बढ़ावा दे।’’

सांचेज ने कहा, ‘‘हम सभी को डिजिटल प्रौद्योगिकी और एआई के वैश्विक शासन के लिए इस व्यापक ढांचे की स्थापना में भाग लेना चाहिए।’’

सांचेज ने कहा कि ऐसा करने के लिए, ‘ग्लोबल साउथ’ में एआई क्षमता का निर्माण करना महत्वपूर्ण है।

‘ग्लोबल साउथ’ शब्द का इस्तेमाल आमतौर पर लैटिन अमेरिका, एशिया, अफ्रीका और ओशिनिया के क्षेत्रों के लिए इस्तेमाल किया जाता है। इसका आशय, यूरोप और उत्तरी अमेरिका के बाहर, दक्षिणी गोलार्द्ध और भूमध्यरेखीय क्षेत्र में स्थित ऐसे देशों से है जो ज्यादातर कम आय वाले या विकासशील हैं।

सांचेज ने कहा कि इसमें एआई अनुसंधान और विकास केंद्रों का एक वैश्विक नेटवर्क बनाना, लक्षित प्रशिक्षण कार्यक्रम प्रदान करना और उच्च प्रदर्शन वाले कंप्यूटिंग संसाधनों तक पहुंच सुनिश्चित करना शामिल है।

भाषा

अमित पवनेश

पवनेश

यह खबर ‘भाषा’ न्यूज़ एजेंसी से ‘ऑटो-फीड’ द्वारा ली गई है. इसके कंटेंट के लिए दिप्रिंट जिम्मेदार नहीं है.

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