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Sunday, 22 December, 2024
होममत-विमतप्रियंका गांधी की वायनाड की कहानी कई मोड़ ले सकती है – सफलता, खौफ, INDIA के लिए मनोरंजन

प्रियंका गांधी की वायनाड की कहानी कई मोड़ ले सकती है – सफलता, खौफ, INDIA के लिए मनोरंजन

अब जब राहुल का फॉर्मूला विफल होता दिखाई दे रहा है, तभी सोनिया गांधी ने प्रियंका को राजनीति में पदार्पण की अनुमति दी है.

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हिंदुस्तानी शास्त्रीय संगीत में एक ‘घराना’ प्रणाली है. इसमें एक विशेष प्रथा शामिल है जिसमें गुरु अपने संगीत ज्ञान को सभी छात्रों को देता है और मूल शिक्षाओं को अपने सबसे अच्छे शिष्यों के लिए बचाकर रखता है. ये शिष्य ज़रूरी नहीं कि गुरु के रक्त संबंधी हों, क्योंकि परंपराएं तभी जीवित रहती हैं जब उन्हें सही लोगों तक पहुंचाया जाता है.

हालांकि, कांग्रेस पार्टी के लिए यह सच नहीं है. गांधी-नेहरू परिवार के मौजूदा मार्गदर्शक राहुल गांधी और प्रियंका गांधी बाहरी लोगों को पार्टी में ऊपर आने की अनुमति नहीं देंगे. शीर्ष सीटें केवल राहुल बाबा और प्रियंका दीदी के लिए आरक्षित हैं, और अगर यह फॉर्मूला काम नहीं करता है, तो हमेशा पहला दामाद राजनीतिक शुरुआत के लिए तैयार रहता है. गांधी-वाड्रा की अगली पीढ़ी पहले से ही उत्तराधिकार की कतार में है; प्रियंका की बेटी या बेटा ही यह पद संभालेंगे.

हालांकि, इसे रोकने की ज़रूरत है और मीडिया को लोकतंत्र की खातिर सच बताना चाहिए. मैं अपनी बात को स्पष्ट करने के लिए शाहिद कपूर के 2013 के गाने गंदी बात के शीर्षक का मज़ाकिया तौर पर संदर्भ दे रही हूं.

वायनाड से प्रियंका गांधी का संसदीय पदार्पण वंशवादी राजनीति के अलावा और कुछ नहीं है. यह नेहरू-गांधी परिवार की विरासत, प्रभाव और राजनीतिक स्पेक्ट्रम पर नियंत्रण की पुष्टि है. वायनाड को खाली करने और रायबरेली को बनाए रखने का राहुल गांधी का विकल्प उत्तर और दक्षिण भारत दोनों में कांग्रेस की उपस्थिति सुनिश्चित करने और पार्टी की राष्ट्रीय पहुंच को मजबूत करने की उनकी रणनीति को दिखाता है. वायनाड से चुनाव लड़कर, प्रियंका न केवल एक सीट पर कदम रख रही हैं; वे एक रणनीतिक गढ़ में कदम रख रही हैं. राहुल की 2019 की जीत ने कांग्रेस के लिए व्यापक चुनावी झटकों के बावजूद वायनाड में पार्टी की स्थिति को मजबूत किया.

“तुम जानते हो मेरा बाप कौन है?” स्पष्ट रूप से गांधी परिवार का आदर्श वाक्य प्रतीत होता है.

नई इंदिरा गांधी?

गांधी परिवार की कुलमाता सोनिया माइनो कांग्रेस पार्टी को अपने पूर्ववर्तियों की तरह ही चलाती हैं — एक निजी जागीर. जन्मस्थान के कारण उन्हें शीर्ष स्थान से दूर रहना पड़ा और उन्होंने नम्र, कभी धमकी न देने वाले मनमोहन सिंह को प्रधानमंत्री की कुर्सी पर बिठाया, जब तक कि वे अपने बच्चों को इस पद पर नहीं बिठा सकीं. पारंपरिक इतालवी वंश से आने वाली मां ने बेटे का पक्ष लिया और इसलिए प्रियंका को किनारे रखा. अब, जब राहुल का फॉर्मूला विफल होता दिख रहा है, तब उन्होंने प्रियंका को अपनी राजनीतिक शुरुआत करने की अनुमति दी है.

प्रियंका के पहनावे ने उन्हें उनकी दादी की छवि में ढाल दिया है. छोटे कर्ल्स (बाल), नाक और ड्रेप्ड साड़ी के साथ, प्रियंका को इंदिरा गांधी की उत्तराधिकारी के रूप में प्रचारित किया जा रहा है, इस उम्मीद के साथ कि उनकी नाक पिनोचियो की तरह न हो जाए. मतदाताओं को लुभाने के लिए एक सावधानी से गढ़ी गई परीकथा, जिसमें प्रियंका को उनकी दादी के राजनीतिक पुनर्जन्म के रूप में पेश किया गया है, गढ़ी जा रही है.

यह देखना अभी बाकी है कि प्रियंका की कहानी क्या मोड़ लेती है. क्या यह इंडिया गुट के लिए सफलता, खौफ या मनोरंजन की कहानी बनेगी? क्या वे इंदिरा गांधी की राजनीतिक चालों को आगे बढ़ा पाएंगी और राजनीतिक विरासत को बनाए रखने के लिए अपनी मैकियावेलियन रणनीति को जारी रख पाएगी — जैसे 1967 में कांग्रेस को तोड़ना, चुनाव में अलग-थलग पड़ना, आपातकाल और भिंडरावाले?


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धर्म, जाति की बयानबाजी

यह विडंबना है कि कांग्रेस ने उत्तर-दक्षिण में विभाजन पैदा करने के बाद प्रियंका को गांधी की सुरक्षित सीट वायनाड से मैदान में उतारने का फैसला किया है. वायनाड, जो दक्षिण की तरह ही दक्षिण में है. इसे राहुल गांधी ने अपनी पारंपरिक अमेठी के बैकअप के तौर पर चुना था. वायनाड लोकसभा सीट 2008 के परिसीमन अभ्यास के दौरान बनाई गई थी, जो कांग्रेस के पक्ष में रही.

कांग्रेस उम्मीदवार एमआई शानवास ने 2009 और 2014 में वायनाड सीट जीती, उसके बाद 2019 और 2024 में राहुल गांधी ने जीत दर्ज की. यह सीट प्रियंका के लिए तब उपलब्ध हुई जब राहुल बाबा ने इसे मूडी अमेठी के पक्ष में छोड़ने का फैसला किया. उन्होंने भारतीय जनता पार्टी की स्मृति ईरानी से इसे जीता था. अब इस बात पर कोई क्षेत्रीय बयानबाजी नहीं है कि उत्तर भारतीय प्रियंका गांधी वाड्रा को केरल की सीट पर क्यों उतारा जा रहा है.

जाति जनगणना के ज़रिए भारत के सामाजिक विकास को मध्यकाल में वापस ले जाने की कोशिश करने वाली पार्टी को प्रियंका गांधी की जाति के सवाल पर गंभीरता से विचार करने की ज़रूरत है. 1997 में प्रियंका गांधी ने रॉबर्ट वाड्रा से शादी की, जो फिर से, हैरानी की बात है, कि ईसाई हैं. उनकी मां एंग्लो-इंडियन मौरीन वाड्रा हैं, जिनका वंश स्कॉटलैंड में पाया जाता है.

रॉबर्ट के पिता राजिंदर वाड्रा ने मौरीन से शादी करने से पहले अपने पारंपरिक सियालकोटी पंजाबी वदेहरा उपनाम को बदलकर अंग्रेज़ीकृत ‘वाड्रा’ रख लिया था. इसलिए अगर प्रियंका अपने पति की जाति या गोत्र लेती हैं, तो उनके पास कोई नहीं होगा क्योंकि वे ईसाई हैं. तो इससे प्रियंका गांधी वाड्रा का क्या होगा, जो लगातार जाति जनगणना के लिए जोर देती हैं? क्या अब वे अपने भाई, मां या पार्टी के अन्य सदस्यों से 2014 में कांग्रेस शासित कर्नाटक में हुई जाति जनगणना को प्रकाशित करने के लिए कहेंगी?


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प्रियंका गांधी की दोहरी बातें

2021 के उत्तर प्रदेश चुनाव के लिए प्रचार करते हुए प्रियंका ने स्पष्ट रूप से कहा कि लोगों को अपने निर्वाचित प्रतिनिधियों को अधिक जवाबदेह बनाने के लिए जाति और धर्म के आधार पर वोट नहीं देना चाहिए. अब जब वे राजनीति में शामिल हो गई हैं, तो उन्होंने इस कहानी पर पूरी तरह से पलटवार किया है और जाति जनगणना की अपनी पार्टी की प्रतिगामी मांग का समर्थन किया है क्योंकि इससे ‘समान प्रतिनिधित्व’ देने में मदद मिलेगी.

इसके अलावा, प्रियंका गांधी के पति रॉबर्ट वाड्रा भी उनकी ज़िम्मेदारी हैं, जो कहावत है कि उन्हें यह बोझ उठाना होगा. चाहे कितनी भी सफेद पोती गई पारिवारिक तस्वीरें क्यों न हों, प्रियंका के गले में इस बोझ को नहीं हटा सकतीं और भ्रष्टाचार और गलत कामों के आरोपों से ध्यान नहीं हटा सकतीं.

प्रियंका द्वारा अपनी संपत्ति को मात्र 12 करोड़ रुपये घोषित करना कोई हंसी की बात नहीं है. उनकी अचल संपत्तियों में “नई दिल्ली के महरौली इलाके में विरासत में मिली खेती की ज़मीन भी शामिल है, जिसे वे अपने भाई राहुल गांधी के साथ साझा करती हैं. फार्महाउस सहित इस ज़मीन की कीमत 2.1 करोड़ रुपये है.”

मुझे महरौली के बीचों-बीच स्थित इस ‘फार्महाउस’ को 5 करोड़ रुपये में खरीदकर खुशी होगी. दरअसल, अकेले उनके कला संग्रह को ही व्यापक रूप से अमूल्य माना जाता है. यस बैंक के संस्थापक राणा कपूर ने 2022 में प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) को दिए गए एक बयान में आरोप लगाया कि प्रियंका ने उन्हें एमएफ हुसैन की कलाकृति खरीदने के लिए “मजबूर” किया ताकि वे न्यूयॉर्क में अपनी मां के इलाज का खर्च उठा सकें. कौन जानता है कि उनकी अलमारी से और कौन-सी छिपी हुई संपत्ति निकल कर आएगी?

(मीनाक्षी लेखी भाजपा की नेत्री, वकील और सामाजिक कार्यकर्ता हैं. उनका एक्स हैंडल @M_Lekhi है. व्यक्त किए गए विचार निजी हैं)

(इस लेख को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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