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Friday, 22 November, 2024
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‘इस्लामीकरण करने की कोशिश’, LSR में वार्षिक दीपावली कार्यक्रम का नाम ‘नूर’ रखने की हो रही आलोचना

फैकल्टी के छात्रों ने उर्दू नाम और थीम का बचाव किया, आलोचना को ‘अनावश्यक’ बताया और इस बात पर जोर दिया कि पिछले कई वर्षों से वार्षिक दिवाली कार्यक्रम का शीर्षक ‘नूर’ रहा है.

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नई दिल्ली: लेडी श्री राम (एलएसआर) कॉलेज के गुरुवार को आयोजित वार्षिक दीपावाली मेले के उर्दू नाम ने विवाद को जन्म दे दिया है, क्योंकि दक्षिणपंथी समर्थकों ने संस्थान पर हिंदू त्योहार के उत्सव का “इस्लामीकरण” करने का आरोप लगाया है।

एलएसआर का नेशनल सर्विस स्कीम (एनएसएस) प्रभाग पिछले कई वर्षों से ‘नूर’ नाम के वार्षिक दीपावली मेले का आयोजन कर रहा है। इस कार्यक्रम में जागरूकता और सामुदायिक जुड़ाव को बढ़ावा देने के लिए विभिन्न गैर-लाभकारी संगठनों के साथ सहयोग किया जाता है।

इस साल आधिकारिक थीम ‘नज़्म-ए-बहार: भीतर के प्रकाश की प्रार्थना’ थी। एक पोस्टर के अनुसार, इस साल के मेले का उद्देश्य “छोटे उद्यमियों और महिलाओं द्वारा संचालित उद्यमों” को सबके सामने लाना था।

हालांकि, इस थीम ने सोशल मीडिया पर काफी नाराजगी पैदा की, जिसमें कई उपयोगकर्ताओं ने एलएसआर से ‘नूर’ शब्द को ‘दीवाली’ से बदलने का आग्रह किया।

कर्नाटक के तीन कार्यकर्ताओं ने भी गुरुवार को प्रिंसिपल सुमन शर्मा को पत्र लिखकर कॉलेज पर आरोप लगाया कि उन्होंने कार्यक्रम के पोस्टरों से दीवाली शब्द को “पूरी तरह से हटा दिया” है।

यह ईमेल भाजपा के पूर्व आर्थिक प्रकोष्ठ सदस्य सिंहराणा शार्वा, अखिल भारत हिंदू महासभा के प्रभारी विजय बी.जी. और विश्व हिंदू परिषद के पदाधिकारी रोहित एन. ने लिखा था।

इसमें कहा गया था: “दीपावली शब्द को पूरी तरह से हटा दिया जाना, जिसे सार्वभौमिक रूप से प्रकाश के त्योहार के रूप में मान्यता प्राप्त है, ने काफी भ्रम और असंतोष को जन्म दिया है… ‘नूर’ शब्द का उपयोग करना, जिसका अर्थ अन्य सांस्कृतिक परंपराओं से अधिक निकटता से जुड़ा हुआ है, केवल भ्रम को और गहरा करता है। यह सवाल उठाता है कि क्या यह कार्यक्रम वास्तव में दीपावली मनाने के लिए है या यह ‘प्रकाश’ की आड़ में किसी अन्य त्योहार को बढ़ावा दे रहा है।”

कार्यक्रम का एक पोस्टर साझा करते हुए, दक्षिणपंथी इन्फ्लुएंसर शेफाली वैद्य ने एक्स पर लिखा, “इसलिए एलएसआर ने जानबूझकर #deepawali शब्द को छोड़कर, और इसे नूर कहकर यह #deepawali का इन्विटेशन भेजा है। वे कॉलेज का नाम क्यों नहीं बदल देते? मेरा मतलब है कि श्री राम क्यों? उसका भी उर्दूकरण करना ‘धर्मनिरपेक्षता’ के अनुरूप होगा!”

कुछ एक्स यूजर्स ने बताया कि पिछले साल कॉलेज ने लाइफ को सेलिब्रेट करने के लिए ‘जश्न-ए-आभा’ थीम पर कार्यक्रम आयोजित किया था।

एक ने लिखा, “हां, यह लेडी श्री राम कॉलेज, डीयू का दीवाली उत्सव कार्यक्रम है। क्या आपको दीवाली शब्द मिला? दीवाली अब नूर बन गई है, उत्सव को नज़्म-ए-बहार कहा जाता है। पिछले साल उन्होंने इसका नाम ‘जश्न-ए-आभा’ रखा था। पहले उन्होंने हिंदुओं को इसे मनाने से रोकने की कोशिश की, जब वे असफल रहे, तो इसका इस्लामीकरण करना शुरू कर दिया,”

दिप्रिंट ने एलएसआर की प्रिंसिपल सुमन शर्मा और कन्वीनर तृप्ति बस्सी और शमा नूरीन मेजर से कॉल और मैसेज के ज़रिए टिप्पणी के लिए संपर्क किया। जब वे जवाब देंगे तो यह रिपोर्ट अपडेट कर दी जाएगी।

हालांकि, नाम न बताने की शर्त पर कई फैकल्टी सदस्यों और छात्रों ने इस आलोचना को “अनावश्यक” बताया और ज़ोर देकर कहा कि पिछले कई सालों से वार्षिक दीवाली कार्यक्रम का शीर्षक ‘नूर’ रहा है।

‘उर्दू सुंदर है, आलोचना अनावश्यक’

एक छात्रा ने कहा कि उन्होंने ‘नज़्मे-ए-बहार’ थीम को चुना, क्योंकि “उर्दू के शब्द सुंदर हैं और वे हमारे शब्दों के सही अर्थ को व्यक्त करते हैं”

उसने कहा, “उर्दू एक हिंदुस्तानी भाषा है। इसकी उत्पत्ति भारत में हुई। उर्दू हमारी भाषाओं में इतनी घुल-मिल गई है कि उर्दू को पूरी तरह से हटाना संभव भी नहीं है.”

एक अन्य छात्रा ने बताया कि ‘दीवाली मेला’ शब्द इस आयोजन के लिए एक व्यापक शब्द है जिसका मुख्य उद्देश्य गैर सरकारी संगठनों को अपने उत्पादों को प्रदर्शित करने के लिए एक मंच प्रदान करना है।

छात्रा ने कहा, “हमारे कुछ प्रदर्शन दुर्गा पूजा से भी जुड़े हैं। इसलिए, ऐसा नहीं है कि हम केवल दीवाली मनाना चाहते हैं। ऐसा करने का समय सही था। फिलहाल कोई परीक्षा नहीं होनी है। मौसम अच्छा है। हर कोई उत्सव के मूड में है।”

एक अन्य ने कहा कि प्रोफेसरों ने उनसे ‘नज़्म-ए-बहार’ के पोस्टर हटाने के लिए कहा। “लेकिन हमने ‘नूर’ शब्द नहीं हटाने का फैसला किया क्योंकि यह कॉलेज का एक महत्वपूर्ण पहलू है। हम, एलएसआर के छात्र, इस कार्यक्रम को ‘नूर’ नाम से पहचानते हैं, न कि ‘दीवाली मेला’ से।”

कॉलेज के एक वरिष्ठ संकाय सदस्य ने कहा कि उर्दू शब्दों के इस्तेमाल में लोगों को समस्या होना हास्यास्पद है। “उर्दू एक ऐसी भाषा है जिसकी उत्पत्ति भारत में हुई है, और यह भारतीय उपमहाद्वीप के बाहर नहीं बोली जाती है। इसमें संस्कृत सहित कई भाषाओं के शब्द हैं, और सबसे महत्त्वपूर्ण बात कि कई अन्य भाषाओं सहित इसका व्याकरण भी हिंदी से समान है.”

प्रोफेसर ने कहा, “लिपि में अंतर हुआ… और 19वीं शताब्दी तक, जब कुछ लोगों ने सांस्कृतिक एकीकरण की यह पूरी प्रक्रिया शुरू की… तो भाषाएं अपने सांप्रदायिक एजेंडे के तहत अलग-अलग होने लगीं…”

(इस रिपोर्ट को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.)


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