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Friday, 11 October, 2024
होमदेशमधुमिता हत्या:उप्र सरकार ने सजा में छूट पर विचार करने के न्यायालय के आदेश को वापस लेने की मांग की

मधुमिता हत्या:उप्र सरकार ने सजा में छूट पर विचार करने के न्यायालय के आदेश को वापस लेने की मांग की

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नयी दिल्ली, 11 अक्टूबर (भाषा) उत्तर प्रदेश सरकार ने उच्चतम न्यायालय से उस आदेश को वापस लेने का अनुरोध किया है जिसमें उसे 2003 में 26 वर्षीय कवयित्री मधुमिता शुक्ला की हत्या के मामले के एक दोषी की समय पूर्व रिहाई पर विचार करने के लिए कहा गया है।

न्यायमूर्ति अभय एस ओका और न्यायमूर्ति अगस्टीन जॉर्ज मसीह की पीठ ने शीर्ष अदालत की रजिस्ट्री से कहा कि राज्य सरकार की याचिका को एक उचित पीठ के समक्ष रखने के लिए प्रधान न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ से उचित निर्देश प्राप्त किया जाए।

गत 30 सितंबर को मामले में उत्तर प्रदेश सरकार का पक्ष रखते हुए अतिरिक्त महाधिवक्ता गरिमा प्रसाद ने पीठ को बताया कि इस साल 8 जनवरी को बिलकिस बानो के मामले में दूसरे फैसले के मद्देनजर, राज्य सरकार ने रोहित चतुर्वेदी के मामले में पारित 15 दिसंबर, 2023 के आदेश को वापस लेने या संशोधित करने की मांग की है।

शीर्ष अदालत ने आठ जनवरी को 2002 के गोधरा दंगों के दौरान बिलकिस बानो से सामूहिक बलात्कार और उसके परिवार के सात सदस्यों की हत्या से जुड़े मामले में 11 दोषियों को गुजरात सरकार की ओर से दी गई सजा में छूट को रद्द कर दिया था।

उसने कहा था कि गुजरात सरकार माफी आदेश पारित करने के लिए उपयुक्त प्राधिकार नहीं है। उसने स्पष्ट किया कि जिस राज्य में अपराधी पर मुकदमा चलाया जाता है और उसे सजा सुनाई जाती है, वह दोषी की सजा में छूट की याचिका पर फैसला करने के लिए सक्षम है। बिलकिस बानो मामले में दोषियों पर महाराष्ट्र में मुकदमा चलाया गया था।

इस प्रक्रिया में, पीठ ने शीर्ष अदालत की एक अन्य पीठ के 13 मई, 2022 के एक फैसले को रद्द कर दिया था, जिसमें गुजरात सरकार को 11 दोषियों की सजा में छूट के आवेदनों पर विचार करने का निर्देश दिया गया था और कहा गया था कि इसे ‘अदालत के साथ धोखाधड़ी करके’ प्राप्त किया गया था।

न्यायमूर्ति अजय रस्तोगी (अब सेवानिवृत्त) और न्यायमूर्ति विक्रमनाथ की पीठ ने 13 मई, 2022 को गुजरात सरकार से 9 जुलाई, 1992 की उसकी माफी नीति के अनुसार दोषी राधेश्याम शाह की समयपूर्व रिहाई की याचिका पर विचार करने को कहा था, जिसमें कहा गया कि जिस राज्य में अपराध हुआ था, उसकी सरकार के पास आवेदन पर फैसला करने का अधिकार है।

इस मामले में, न्यायमूर्ति अनिरुद्ध बोस (अब सेवानिवृत्त) और न्यायमूर्ति मसीह की पीठ ने 15 दिसंबर, 2023 को 13 मई, 2022 के फैसले के संदर्भ में उत्तर प्रदेश सरकार से कहा कि चतुर्वेदी की सजा में छूट की याचिका पर विचार करे जिस पर उत्तराखंड की एक अदालत में हत्या का मुकदमा चला था।

पीठ ने कहा, ‘‘हम, तदनुसार, निर्देश देते हैं कि याचिकाकर्ता-दोषी (चतुर्वेदी) द्वारा दायर की गई सजा में छूट की याचिका उत्तराखंड राज्य द्वारा उत्तर प्रदेश राज्य के गृह सचिव को भेजी जाए। यह आज से तीन सप्ताह की अवधि के भीतर किया जाना चाहिए। इसके बाद, उत्तर प्रदेश राज्य इस प्रश्न की जांच करेगा और आगे आठ सप्ताह की अवधि के भीतर उस संबंध में निर्णय लेगा।’’

उत्तर प्रदेश सरकार ने उस आदेश को वापस लेने की मांग की है, जिसमें उसे दोषी की सजा में छूट की याचिका पर इस आधार पर निर्णय लेने के लिए कहा गया था कि उच्चतम न्यायालय ने बिलकिस बानो मामले में बाद के फैसले में माना है कि जिस राज्य में दोषियों पर मुकदमा चलाया गया था, वह समय से पहले रिहाई के लिए ऐसी याचिका पर निर्णय लेने के लिए उचित प्राधिकार है।

शुक्ला की 9 मई, 2003 को लखनऊ की पेपर मिल कॉलोनी में गोली मारकर हत्या कर दी गई थी। उस समय वह गर्भवती थीं। कवयित्री की हत्या के आरोप में अमरमणि त्रिपाठी को सितंबर 2003 में गिरफ्तार किया गया था। त्रिपाठी के साथ मधुमिता के कथित रूप से संबंध थे।

इसके बाद, हत्या की साजिश के सिलसिले में अन्य आरोपियों को भी गिरफ्तार किया गया।

उत्तराखंड की एक निचली अदालत ने 24 अक्टूबर, 2007 को अमरमणि त्रिपाठी, उनकी पत्नी मधुमणि त्रिपाठी, भतीजे रोहित चतुर्वेदी और सहयोगी संतोष कुमार राय को शुक्ला की हत्या के लिए दोषी ठहराया और उन्हें आजीवन कारावास की सजा सुनाई।

नौतनवा विधानसभा क्षेत्र से निर्वाचित अमरमणि त्रिपाठी 2001 में उत्तर प्रदेश की भाजपा सरकार में मंत्री थे और 2002 में बनी बसपा सरकार में भी वह मंत्री रहे। त्रिपाठी का समाजवादी पार्टी से भी नाता रहा।

इस मामले की जांच 17 जून 2003 को केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (सीबीआई) को सौंप दी गई। 8 फरवरी 2007 को उच्चतम न्यायालय ने मामले की सुनवाई उत्तर प्रदेश से उत्तराखंड स्थानांतरित कर दी।

उत्तराखंड उच्च न्यायालय ने 16 जुलाई 2012 को उनकी दोषसिद्धि और सजा को बरकरार रखा। 19 नवंबर 2013 को उच्चतम न्यायालय ने भी इस आदेश को बरकरार रखा।

गत 24 अगस्त 2023 को उत्तर प्रदेश कारागार विभाग ने अमरमणि त्रिपाठी और उनकी पत्नी मधुमणि त्रिपाठी की समयपूर्व रिहाई का आदेश जारी किया। इसमें राज्य की 2018 की सजा में छूट देने की नीति और इस तथ्य का हवाला दिया गया कि उन्होंने अपनी सजा के 16 साल पूरे कर लिए हैं।

आपराधिक साजिश और हत्या के मामले में दोषी ठहराए गए चतुर्वेदी ने उत्तराखंड सरकार से समय से पहले रिहाई के लिए आवेदन किया था, लेकिन उसकी याचिका खारिज कर दी गई।

इसके बाद, बिलकिस बानो मामले में पहले फैसले (13 मई, 2022) का हवाला देते हुए, चतुर्वेदी ने शीर्ष अदालत से उत्तर प्रदेश सरकार को समय से पहले रिहाई के लिए निर्देश देने का अनुरोध किया।

भाषा वैभव संतोष

संतोष

यह खबर ‘भाषा’ न्यूज़ एजेंसी से ‘ऑटो-फीड’ द्वारा ली गई है. इसके कंटेंट के लिए दिप्रिंट जिम्मेदार नहीं है.

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