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Wednesday, 9 October, 2024
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‘मोदी के बाद BJP की पहली जीत’ — हरियाणा चुनाव ने जता दिया कि RSS अब भी प्रमुख है

रतन शारदा के अनुसार, जबकि कई स्थानीय भाजपा नेताओं ने लोकसभा चुनावों में आरएसएस से संपर्क तक नहीं किया, वे न केवल हरियाणा बल्कि अन्य राज्यों में भी आरएसएस स्वयंसेवकों के साथ सक्रिय रूप से काम कर रहे थे.

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नई दिल्ली: इस साल मई में लोकसभा चुनाव के बीच में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के अध्यक्ष जे.पी. नड्डा ने राष्ट्रीय सुर्खियां बटोरीं, जब उन्होंने कहा कि पार्टी अब सक्षम है और अब उसे अपने वैचारिक संरक्षक राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के प्रचार की ज़रूरत नहीं है.

उस चुनाव का परिणाम, जिसमें आरएसएस के कार्यकर्ता बड़े पैमाने पर बाहर बैठे थे, केंद्र में भाजपा के लिए काफी चिंताजनक रहा था.

कुछ ही महीनों बाद, उन्हीं आरएसएस कार्यकर्ताओं ने हरियाणा में पार्टी के लिए अथक प्रचार किया — घर-घर जाकर मतदाता पर्चियां और पर्चे बांटे, हज़ारों बैठकें आयोजित कीं, ग्राउंड से पार्टी के लिए फीडबैक इकट्ठा किया और यहां तक कि चुनाव उम्मीदवारों की सिफारिश भी की.

इसका नतीजा यह हुआ कि छोटे से राज्य में भाजपा को लगातार तीसरी बार अप्रत्याशित और अभूतपूर्व जीत मिली.

महीनों तक भाजपा और आरएसएस के बीच ठंडे रिश्तों के तुरंत बाद आए हरियाणा विधानसभा चुनाव के नतीजों से पता चलता है कि अपनी आज़ादी के दावे के विपरीत, भाजपा को अभी भी चुनावों के दौरान अपने वैचारिक मार्गदर्शक की बहुत ज़रूरत है.

आरएसएस के एक लीडर ने नाम न बताने की शर्त पर दिप्रिंट से कहा, “उम्मीद है कि यह भाजपा के लिए एक आरामदायक जीत होगी और उन्हें एहसास होगा कि अगर वह संगठन को कमज़ोर करेंगे तो वह एक व्यक्ति के नाम पर चुनाव नहीं जीत सकते.”

उन्होंने कहा, “एक तरह से, यह मोदी के बाद भाजपा की पहली जीत है और ऐसा इसलिए है क्योंकि ध्यान संगठन पर था न कि एक व्यक्ति पर.”

आरएसएस के अंदरूनी सूत्रों के अनुसार, हरियाणा के नतीजों से पता चलता है कि पार्टी अपनी पुरानी स्थिति में लौट आई है.

उक्त लीडर ने कहा, “भाजपा हमेशा से ही कैडर आधारित पार्टी रही है. अक्सर, भाजपा का कैडर आरएसएस के सदस्यों से ही बना होता है. लोकसभा चुनाव में भी पार्टी अपने कैडर की बात नहीं सुन रही थी, जिसका खमियाज़ा उसे भुगतना पड़ा…अब लगता है कि उसे सबक मिल गया है.”


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साथ मिलकर काम करना

आरएसएस के आजीवन सदस्य रतन शारदा ने कहा कि इस बार आरएसएस ने ग्राउंड पर काम किया है, इसका एक मुख्य संकेत हरियाणा में मतदान प्रतिशत का बढ़ना रहा है. “आरएसएस ने चुनाव के लिए हरियाणा में हज़ारों बैठकें आयोजित कीं…लेकिन फिर भी मैं कहूंगा कि आरएसएस का समर्थन सिर्फ एक कारक है. मुख्य बात यह है कि लोकसभा चुनाव के विपरीत, भाजपा नेता ग्राउंड पर आरएसएस और भाजपा कार्यकर्ताओं की बात सुन रहे थे और यह कारगर रहा.”

शारदा के अनुसार, जबकि लोकसभा चुनावों में कई जगहों पर स्थानीय भाजपा नेताओं ने मदद के लिए आरएसएस से संपर्क तक नहीं किया था, अब वह न केवल हरियाणा में बल्कि पूरे राज्यों में सक्रिय रूप से आरएसएस स्वयंसेवकों के साथ काम कर रहे हैं.

शारदा ने कहा, “दिक्कत यह थी कि भाजपा के मध्यम स्तर के नेता, जो 2014 के आसपास शामिल हुए थे, उन्हें लगा कि ग्राउंड पर काम किए बिना प्रधानमंत्री के नाम पर या सोशल मीडिया के ज़रिए वोट हासिल किए जा सकते हैं. इन नेताओं को इस बात की कोई समझ नहीं थी कि पार्टी को खड़ा करने के लिए किस तरह की ज़मीनी मेहनत की गई है.”

शारदा ने कहा कि हरियाणा चुनाव में ऐसा लगता है कि उन्होंने अपना सबक सीख लिया है और इसका उन्हें फायदा भी मिला है. उन्होंने कहा, “भाजपा को पूरे भारत में हरियाणा मॉडल का पालन करने की ज़रूरत है और इसके नतीजे दिखेंगे.”

इस महीने की शुरुआत में दिप्रिंट ने रिपोर्ट की थी कि आरएसएस ने हरियाणा में भाजपा के लिए प्रचार करने में कोई कसर नहीं छोड़ी. नियमित समीक्षा बैठकें (दोनों संगठनों के सदस्यों के बीच बैठकें), आरएसएस के स्वयंसेवकों द्वारा घर-घर जाकर प्रचार करना, हर घर में मतदाता पर्चियां बांचना, कार्यकर्ताओं द्वारा भाजपा को ग्राउंड से मिलने वाली प्रतिक्रिया पहुंचाना और यहां तक कि किस राष्ट्रीय नेता को किस निर्वाचन क्षेत्र में प्रचार करना चाहिए, इस बारे में अधिक से अधिक जानकारी देना — भाजपा के अभियान में आरएसएस की महत्वपूर्ण भूमिका रही है.

हरियाणा के एक आरएसएस नेता ने कहा, “समस्या अति आत्मविश्वास की थी.”

उन्होंने कहा, “जैसे ही यह विनम्रता में बदल गया, भाजपा लौट आई…ऐसा इसलिए है क्योंकि इसकी नीतियां, राष्ट्रवाद किसी भी अन्य पार्टी की तुलना में अतुलनीय हैं.”

शारदा ने सहमति जताई. उन्होंने कहा कि चुनाव परिणाम जाति आधारित राजनीति के लिए एक बड़ा झटका है, जो अब दीवार से टकरा गई है.

(इस रिपोर्ट को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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