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Friday, 22 November, 2024
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ज़मीनी कार्यकर्ता, RSS का समर्थन और कांग्रेस का अहंकार — हरियाणा में BJP की हैट्रिक के पीछे के कारक

लोकसभा में 10 में से 5 सीटें हारने के बाद हरियाणा में भाजपा ने लगभग बाजी पलट दी है. यह नॉन-जाट मतदाताओं को एकजुट करने में सफल रही, साथ ही इसने जाटों के गढ़ में 12 नई सीटें भी जीतीं.

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गुरुग्राम: भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने हरियाणा विधानसभा चुनावों में सबको चौंका दिया, लोकसभा चुनावों से बेहतर प्रदर्शन करते हुए जिसमें इसने 44 विधानसभा क्षेत्रों में बढ़त हासिल की थी. मंगलवार को इसने 48 सीटें जीतीं, हालांकि इसका वोट शेयर लोकसभा चुनावों में 46 प्रतिशत से घटकर 39.94 प्रतिशत रह गया. दिलचस्प बात यह है कि लगभग बराबर वोट शेयर (39.09 प्रतिशत) के साथ, कांग्रेस ने केवल 37 सीटें जीतीं और एक पर बढ़त हासिल की, जैसा कि निर्वाचन आयोग के रात 8 बजे तक के आंकड़ों से पता चलता है.

लोकसभा में 10 में से 5 सीटें हारने के बाद, जहां पार्टी 90-विधानसभा सीटों में से 46 पर इंडिया ब्लॉक उम्मीदवारों से पीछे थी, हरियाणा में भाजपा ने लगभग बाजी पलट दी और लगातार तीसरी बार सरकार बनाने की संभावना है — जो राज्य के 57 साल के इतिहास में पहली बार होगा.

जिन राजनीतिक विश्लेषकों से दिप्रिंट ने बात की वह भाजपा के प्रदर्शन से हैरान थे.

हरियाणा के राजनीतिक विश्लेषक महाबीर जागलान ने कहा, “भाजपा ने अपने प्रदर्शन से सभी को चौंका दिया है. अब तक के रुझान बताते हैं कि भाजपा लोकसभा चुनावों के दौरान जिन 44 विधानसभा सीटों पर आगे थी, उन पर कब्ज़ा करने में सफल रही है, साथ ही मई 2024 में पिछड़ने वाली कई अन्य सीटों पर अपनी स्थिति मजबूत करने में भी सफल रही है.”

उन्होंने कहा, “पार्टी हिसार जिले की लगभग सभी सीटों पर आगे है, जहां कांग्रेस ने लोकसभा चुनावों के दौरान जीत हासिल की थी. भाजपा ने पूर्व सीएम भूपेंद्र सिंह हुड्डा के गढ़ राई, खरखौदा, गोहाना और सोनीपत सीटों पर भी सेंध लगाई है.”

जागलान ने कहा कि रुझानों से पता चलता है कि मेवात क्षेत्र को छोड़कर अहीरवाल और दक्षिणी हरियाणा में भाजपा ने जीत दर्ज की है. पार्टी जीटी रोड बेल्ट में कांग्रेस से आगे थी और आश्चर्यजनक रूप से उसने कई सीटें भी जीतीं जिन्हें कांग्रेस या चौटाला का गढ़ माना जाता था, जैसे उचाना, नरवाना, बरवाला, तोशाम और बाधरा आदि.

उन्होंने कहा कि अहीरवाल और जीटी रोड बेल्ट हमेशा से भाजपा का गढ़ रहा है, लेकिन हिसार और भिवानी में पार्टी के प्रदर्शन से पता चलता है कि इसने अपना वोट बैंक मजबूत किया है.

इंदिरा गांधी नेशनल कॉलेज, लाडवा के प्रिंसिपल और राजनीति विज्ञान के प्रोफेसर कुशल पाल ने कहा कि इस चुनाव में भाजपा के पक्ष में और कांग्रेस के खिलाफ कई कारक काम कर रहे थे.

पाल ने दिप्रिंट को बताया, “सबसे पहले, भाजपा के पास एक मजबूत संगठनात्मक ढांचा है जो ज़मीनी स्तर, बूथ स्तर और पन्ना (प्रमुख) स्तर तक जाता है. इस बार उन्हें आरएसएस का सक्रिय समर्थन मिला. इससे उन्हें यह सुनिश्चित करने में मदद मिली कि उनके मतदाता अपना वोट डालेंगे. दूसरी ओर, कांग्रेस लोकसभा चुनावों में 5 सीटें जीतने के बाद अति आत्मविश्वास से घिरी हुई थी.”

उन्होंने आगे कहा कि ‘जाट बनाम नॉन-जाट’ राजनीति के माध्यम से नॉन-जाट वोटों को एकजुट करना, विशेष रूप से अन्य पिछड़ा वर्ग के वोट एक और कारण है कि भाजपा इस चुनाव में जीत हासिल करने में सक्षम रही है.

भाजपा नॉन-जाट मतदाताओं को एकजुट करने में सफल रही, साथ ही जाटों के गढ़ में 9 नई सीटें भी जीतीं.

कुशल पाल ने कहा, “जब भाजपा ने 12 मार्च को हरियाणा में नायब सैनी को सीएम बनाया, तो उनके पास लोकसभा चुनाव से पहले ओबीसी को एकजुट करने के लिए बहुत कम समय था. हालांकि, अब वह इन मतदाताओं को एकजुट करने में सफल रहे हैं.”

लगभग बराबर वोट शेयर के बावजूद भाजपा और कांग्रेस द्वारा जीती गई सीटों की संख्या में भारी अंतर को समझाते हुए पाल ने कहा कि चुनावों में यह बहुत आम बात है.

उन्होंने कहा, “राजनीति विज्ञान में हम फर्स्ट पास्ट द पोस्ट (एफपीटीपी) और आनुपातिक प्रतिनिधित्व (पीआर) के बीच का अंतर पढ़ाते हैं. हमारे देश में अपनाई जाने वाली एफपीटीपी में वह उम्मीदवार जीतता है, जिसे किसी निर्वाचन क्षेत्र में सबसे अधिक वोट मिलते हैं. पीआर प्रणाली के तहत, विधानसभा में सीटें पार्टी के वोटों के प्रतिशत के अनुपात में होती हैं. अगर कांग्रेस के कुछ विधायक बड़े अंतर से जीतते हैं, तो वोट शेयर बढ़ जाएगा. संभावना है कि भाजपा के कई विधायक कम अंतर से जीते हों.”

(इस रिपोर्ट को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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