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Monday, 7 October, 2024
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कर्नाटक कैबिनेट जाति आधारित जनगणना पर 18 अक्टूबर को चर्चा कर सकती है : सिद्धरमैया

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बेंगलुरु, सात अक्टूबर (भाषा) कर्नाटक के मुख्यमंत्री सिद्धरमैया ने सोमवार को कहा कि सामाजिक-आर्थिक एवं शिक्षा सर्वेक्षण रिपोर्ट 18 अक्टूबर को चर्चा के लिए मंत्रिमंडल के समक्ष रखी जाएगी और सरकार बैठक में लिए गए निर्णय के अनुसार आगे का कदम उठाएगी। सामाजिक-आर्थिक एवं शिक्षा सर्वेक्षण रिपोर्ट को जाति जनगणना के नाम से भी जाना जाता है।

कर्नाटक राज्य पिछड़ा वर्ग आयोग ने तत्कालीन अध्यक्ष के. जयप्रकाश हेगड़े के नेतृत्व में 29 फरवरी को रिपोर्ट मुख्यमंत्री सिद्धरमैया को सौंपी थी।

रिपोर्ट समाज के कुछ वर्गों और सत्तारूढ़ कांग्रेस के भीतर आपत्तियों के बीच प्रस्तुत की गई थी।

कर्नाटक के दो प्रमुख समुदायों – वोक्कालिगा और लिंगायत – ने सर्वेक्षण पर आपत्ति जताते हुए इसे ‘‘अवैज्ञानिक’’ बताया है और मांग की है कि इसे खारिज किया जाए और एक नया सर्वेक्षण कराया जाए। सिद्धरमैया ने सोमवार को पिछड़ा वर्ग समुदाय के मंत्रियों और विधायकों के साथ चर्चा की।

मुख्यमंत्री ने बैठक के बाद पत्रकारों से कहा कि बैठक में सांसदों को भी आमंत्रित किया गया था, लेकिन कोई नहीं आया। बैठक में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के विधान परिषद सदस्य (एमएलसी) एन. रवि कुमार समेत करीब 30 विधायक शामिल हुए।

सिद्धरमैया ने कहा, ‘‘उन्होंने मुझे एक अनुरोध पत्र दिया है। पत्र में सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि उन्होंने मांग की है कि सरकार सामाजिक-आर्थिक और शिक्षा सर्वेक्षण रिपोर्ट को स्वीकार करे और इसे लागू करे। मैं स्पष्ट करना चाहता हूं कि यह पिछड़े वर्गों का जाति सर्वेक्षण नहीं है, यह सात करोड़ कन्नड़ लोगों का सर्वेक्षण है।’’ उन्होंने कहा कि देश में पहली बार कर्नाटक में ऐसा सर्वेक्षण किया गया था। उन्होंने कहा कि यह कांग्रेस सरकार द्वारा किया गया था, जब वही मुख्यमंत्री थे।

उन्होंने कहा, ‘‘….मुझे सामाजिक-आर्थिक और शिक्षा सर्वेक्षण प्राप्त हो गया है। मैं इसे कैबिनेट के समक्ष रखूंगा और चर्चा के बाद निर्णय लिया जाएगा….मैंने विधायकों से भी कहा है कि इसे कैबिनेट के समक्ष रखा जाएगा, संभवतः 18 अक्टूबर को….हम कैबिनेट में चर्चा करेंगे और कैबिनेट जो निर्णय लेगी, हम उसी के अनुसार चलेंगे।’’ जयप्रकाश हेगड़े के नेतृत्व वाले आयोग ने कहा था कि रिपोर्ट 2014-15 में राज्य भर के जिलों के संबंधित उपायुक्तों के नेतृत्व में 1.33 लाख शिक्षकों सहित 1.6 लाख अधिकारियों द्वारा एकत्र किए गए आंकड़े के आधार पर तैयार की गई थी, जब एच कंथाराजू इसके अध्यक्ष थे।

सिद्धरमैया के नेतृत्व वाली तत्कालीन कांग्रेस सरकार (2013-2018) ने 2015 में 170 करोड़ रुपये की अनुमानित लागत से राज्य में सर्वेक्षण शुरू किया था।

तत्कालीन अध्यक्ष कंथाराजू के नेतृत्व में राज्य पिछड़ा वर्ग आयोग को जाति जनगणना रिपोर्ट तैयार करने का काम सौंपा गया था। सर्वेक्षण का काम 2018 में सिद्धरमैया के मुख्यमंत्री के रूप में पहले कार्यकाल के अंत में पूरा हुआ था। उसके बाद सर्वेक्षण के निष्कर्ष कभी रिपोर्ट के रूप में सार्वजनिक नहीं किए गए।

सिद्धरमैया ने कहा कि कंथाराजू की अध्यक्षता वाले ‘स्थायी पिछड़ा वर्ग आयोग’ द्वारा 2014 में सर्वेक्षण किया गया था। उन्होंने कहा, ‘‘आयोग ने सर्वेक्षण करने में बहुत समय लिया और मुझे कंथाराजू ने बताया कि सर्वेक्षण घर-घर जाकर किया गया था।’’

उन्होंने कहा कि उन्होंने न तो सर्वेक्षण देखा है और न ही उसका अध्ययन किया है। उन्होंने कहा कि मुख्यमंत्री के रूप में उनके पिछले कार्यकाल के दौरान कंथाराजू आयोग की रिपोर्ट तैयार नहीं थी, ‘‘इसलिए मैं इसे स्वीकार नहीं कर सका और लागू नहीं कर सका।’’

चुनाव के बाद कांग्रेस-जद(एस) गठबंधन सरकार सत्ता में आई और एच डी कुमारस्वामी (जनता दल-सेक्युलर के) मुख्यमंत्री बने। सिद्धरमैया ने कहा कि बाद में कंथाराजू को रिपोर्ट सौंपने के लिए समय तय किया गया था, लेकिन कुमारस्वामी रिपोर्ट प्राप्त करने के लिए सहमत नहीं हुए और अगली बार सत्ता में आयी भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) सरकार ने भी रिपोर्ट प्राप्त नहीं की।

उन्होंने कहा कि इस बीच, के. जयप्रकाश हेगड़े आयोग के अध्यक्ष बने, क्योंकि कंथाराजू का कार्यकाल समाप्त हो गया था। उन्होंने कहा कि हेगड़े ने रिपोर्ट (नये सिरे से) जमा करने के लिए समय मांगा था और उन्हें तीन महीने का समय दिया गया। उन्होंने कहा, ‘‘हेगड़े की अध्यक्षता वाले आयोग ने रिपोर्ट जमा की है, जो मुझे मिल गई है और उसके बाद पिछड़े वर्ग के समुदायों और अन्य लोगों सहित कई लोगों की ओर से इसे स्वीकार करने की मांग की गई है।’’

राजनीतिक रूप से प्रभावशाली दो समुदायों – लिंगायत और वोक्कालिगा – की ओर से कड़ी आपत्ति के साथ सर्वेक्षण रिपोर्ट सरकार के लिए राजनीतिक रूप से विवादास्पद मुद्दा बन सकती है, क्योंकि यह एक टकराव का कारण बन सकती है। ऐसा इसलिए क्योंकि दलित और अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) इसे सार्वजनिक करने की मांग कर रहे हैं।

उपमुख्यमंत्री एवं प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष डी के शिवकुमार वोक्कालिगा समुदाय से आते हैं। उन्होंने कुछ अन्य मंत्रियों के साथ मिलकर समुदाय द्वारा मुख्यमंत्री को पहले सौंपे गए ज्ञापन पर हस्ताक्षर किए थे, जिसमें अनुरोध किया गया था कि आंकड़े के साथ रिपोर्ट को खारिज कर दिया जाए।

वीरशैव-लिंगायतों के सर्वोच्च निकाय ‘अखिल भारतीय वीरशैव महासभा ने भी सर्वेक्षण के प्रति अपनी असहमति जताई है और नये सर्वेक्षण की मांग की है। इस महासभा के अध्यक्ष कांग्रेस के वरिष्ठ नेता एवं विधायक शमनुरु शिवशंकरप्पा हैं। लिंगायत समुदाय से आने वाले कई मंत्रियों और विधायकों ने भी इस पर आपत्ति जतायी है।

कुछ विश्लेषकों के अनुसार, लगातार सरकारें इसे जारी करने से कतराती रही हैं क्योंकि सर्वेक्षण के निष्कर्ष कथित तौर पर कर्नाटक में विभिन्न जातियों, खासकर लिंगायतों और वोक्कालिगा की संख्या के बारे में ‘‘पारंपरिक धारणा’’ के विपरीत हैं, जिससे यह राजनीतिक रूप से पेचीदा मुद्दा बन गया है।

भाषा

अमित अविनाश

अविनाश

यह खबर ‘भाषा’ न्यूज़ एजेंसी से ‘ऑटो-फीड’ द्वारा ली गई है. इसके कंटेंट के लिए दिप्रिंट जिम्मेदार नहीं है.

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