scorecardresearch
Friday, 22 November, 2024
होममत-विमतपाकिस्तानी लड़कियों से इस्लाम कबूल कराते हैं, पर प्रेम विवाहों पर ऑनर किलिंग की तलवार लटकती है

पाकिस्तानी लड़कियों से इस्लाम कबूल कराते हैं, पर प्रेम विवाहों पर ऑनर किलिंग की तलवार लटकती है

तीन साल बाद भी क़ंदील बलोच की ऑनर किलिंग के मामले में न्याय नहीं हुआ है, जबकि उसका भाई शेखी बघारते हुए हत्या का ज़ुर्म स्वीकार कर चुका है.

Text Size:

आगामी 15 जुलाई को क़ंदील बलोच की अपने ही भाई के हाथों जघन्य ऑनर किलिंग की तीसरी बरसी है. क़ंदील पाकिस्तान की पहली सोशल मीडिया सेलेब्रिटी थी, जिसके व्यक्तित्व ने ख़ुदापरस्त इस देश में बहुतों को असहज कर रखा था.

सोशल मीडिया वीडियो में अपनी सेक्शुअलिटी का खुल कर प्रदर्शन करते हुए 26 वर्षीया क़ंदील अपने आलोचकों को ललकारती थी. ‘मुझे 99 फीसदी यकीन है कि तुम लोग मुझसे नफरत करते हो, पर मुझे 100 फीसदी यकीन है कि इससे मेरी जूती तक को कोई फर्क नहीं पड़ता.’ निर्विवाद रूप से क़ंदील अपने दृष्टिकोण और अवज्ञा भाव की अभिव्यक्ति करने वाली स्त्री का जीता-जागता उदाहरण थी, जिसकी न सिर्फ चौतरफा निंदा हुई, बल्कि अंतत: इसी वजह से उसका दुखद अंत भी हुआ.

15 जुलाई 2016 की रात क़ंदील के भाई वसीम अज़ीम ने पहले ही उसे नशा दिया और फिर नींद में ही उसका दम घोंट दिया. कोर्ट में अपना ज़ुर्म कबूल करते हुए उसने कहा कि हत्या करने पर उसे गर्व है. अज़ीम ने कहा, ‘अपने परिवार को राहत पहुंचा कर मैंने ज़न्नत और इज़्ज़त हासिल की है.’ उसने आगे कहा, ‘लड़कियां घर के भीतर रहने और परंपराओं का पालन कर परिवार को इज़्ज़त बख्शने के लिए पैदा होती हैं, पर क़ंदील ने कभी ऐसा नहीं किया. मेरे दोस्त मुझे उसके वीडियो और तस्वीरें भेजते थे, जिन्हें हर कोई शेयर कर रहा था.’

एक भी सप्ताह ऐसा नहीं गुजरता है, जब पाकिस्तान में इस तरह का भयावह अपराध नहीं होता हो. हर दफे एक जैसी कहानी होती है, सिर्फ किरदार और पृष्ठभूमि अलग-अलग होते हैं. बस महिलाओं की दुर्दशा अपरिवर्तित रहती है. अक्सर पिता, भाई, पति या चाचा के हाथों, ऐसे रिश्ते जिनमें कि महिलाओं को ‘सुरक्षा’ प्रदान करने का विचार अंतर्निहित है.

हाल के वर्षों में अनेक ऐसी हत्याएं हुई हैं, जब हत्यारों ने प्रतिष्ठा के नाम पर इस जघन्य अपराध को अंजाम दिया. क़ंदील बलोच की हत्या के बाद पहली बार ये मुद्दा राष्ट्रीय बहस का विषय बन पाया और परिणामस्वरूप महिलाओं की रक्षा के वास्ते ऑनर किलिंग के खिलाफ़ कानून को सख्त बनाया गया. पर दुर्भाग्य से, स्थिति पहले जैसे ही है.


यह भी पढ़ें : आर्टिकल 15: जाति से मुक्त हो जाने पर भी औरतों को लड़ाई अलग से ही लड़नी पड़ेगी


गत 30 जून को, मुल्तान के मोहम्मद अजमल ने इस शक के आधार पर अपनी पत्नी, दो बच्चों और ससुराल के छह लोगों की हत्या कर दी कि उसकी पत्नी का कोई प्रेम प्रसंग चल रहा था. अजमल ने अपनी पत्नी के परिजनों के घर को आग लगा कर मृतकों की लाशों को भी जला दिया. इसी सप्ताह नौशेरा में, अकबर ख़ान नामक एक व्यक्ति ने अपनी बेटी और उसके मंगेतर की इसलिए हत्या कर दी, कि शीघ्र ही उसका दामाद बनने वाला युवक उसकी अनुपस्थिति में उसकी बेटी से मिलने आया था. इस हत्या में ख़ान के बेटे अहमद अली ने उसकी मदद की थी. ये सब प्रतिष्ठा के नाम पर किया गया.

ऐसे बहुत से उदाहरण हैं जब पुरुष उन्हें अस्वीकार्य कतिपय बातों के लिए महिलाओं को दंडित करने में प्रतिष्ठा का बहाना बनाते हैं. ऐसा करते हुए पुरुष खुद को पीड़ित के रूप में पेश करते हैं कि जिसकी प्रतिष्ठा को एक स्त्री ने अपने किसी कार्य से धूमिल कर दिया हो. इस प्रक्रिया में महिलाओं को जहां उनके बुनियादी अधिकारों तक से वंचित किया जाता है, वहीं, उनके पुरुष अपनी मर्ज़ी से उनके कार्यों को शर्मनाक करार दे सकते हैं.

हाल के वर्षों में इस कुप्रथा का चलन कम नहीं हुआ है और कानून जागरूकता पैदा करने में नाकाम रहा है. मीडिया में इन घटनाओं की कवरेज नहीं के बराबर होती है. इससे साबित होता है कि समाज इस मुद्दे को किस कदर महत्वहीन मानता है, साथ ही इससे आम लोगों की मनोदशा भी ज़ाहिर होती है. हम समाज की इस बुराई के प्रति असंवेदनशील हो गए हैं और इसे खत्म करने के लिए कोई ठोस उपाय नहीं किए गए हैं.

क़ंदील बलोच की हत्या पर दिखे दुर्लभ आक्रोश ने पाकिस्तान की संसद को ऑनर किलिंग के खिलाफ नया कानून लाने के लिए मजबूर कर दिया था. ऑनर किलिंग विरोधी नए क़ानून में, पीड़ित के परिजनों द्वारा हत्यारों को माफ किए जाने संबंधी एक कानूनी खामी को सुधारते हुए, कड़ी सजा का प्रावधान किया गया है. नए कानून ने परिजनों से क्षमादान के उस अधिकार को छीन लिया है, सिर्फ मौत की सजा पाए दोषियों के लिए ही अपवाद रखा गया है.

हालांकि, अभी भी इससे बहुत फर्क नहीं पड़ा है. तीन साल बाद भी, क़ंदील बलोच के मामले में न्याय नहीं हो पाया है. हालांकि, उसका हत्यारा भाई घमंड दिखाते हुए अपना ज़ुर्म कबूल कर चुका है. ऐसे ही एक मामले में, पाकिस्तानी मूल की इतालवी महिला सना चीमा के पिता, भाई और चाचा को फरवरी में बरी कर दिया गया. हालांकि, अभियुक्तों ने पिछले साल अप्रैल में उसका गला घोंटने की बात कबूल कर ली थी. सना की हत्या इटली में अपनी पसंद के व्यक्ति से शादी करने के उसके मनसूबे के कारण की गई थी.

2016 में, 28 वर्षीया ब्रिटिश-पाकिस्तानी नागरिक सामिया शाहिद की हत्या कर दी गई थी. वह पाकिस्तान आई हुई थी, जब उसके पूर्व पति मोहम्मद शकील ने उसके पिता की मदद से उसका बलात्कार किया और उसकी हत्या कर दी. परिजनों ने पहले दिल का दौरा पड़ने से सामिया की मौत होने का दावा किया. लेकिन, अधिकारियों ने जांच में पाया कि उसे गला घोंट कर मारा गया था. उसके पिता को उसी साल जमानत पर रिहा कर दिया गया था, जिसकी 2018 में लाहौर के एक अस्पताल में मौत हो गई.


यह भी पढ़ें : पाकिस्तानी मीडिया ने इस बार गलत महिला से मोल लिया है पंगा- रेहम खान


लैंगिक असमानता पर विश्व आर्थिक मंच की 2018 की एक रिपोर्ट के अनुसार पाकिस्तान 149 देशों की सूची में 148वें पायदान पर है. इस रिपोर्ट को हिकारत की नजर से देखा गया था, जैसा कि पाकिस्तान में महिलाओं के खिलाफ़ अपराध को देखा जाता है.

ऐसे अपराधों को जायज़ ठहराने के बहानों के मद्देनज़र, ये देख कर अचरज होता है कि अल्पसंख्यक लड़कियों के इस्लाम कबूलने को कैसे कामदेव की कृपा के रूप में देखा जाता है, जबकि एक ही धर्म के भीतर उसी तरह के प्रेम विवाहों को प्रतिष्ठा से जोड़ दिया जाता है और हत्याएं की जाती हैं. वास्तव में ये एक दुखद स्थिति है जब समाज अपनी मान्यताओं को सही ठहराने के लिए एक अपराध को स्वीकार्य, यहां तक कि प्रशंसनीय साबित करने की बेईमान कोशिश करता दिखता है.

(लेखिका पाकिस्तान की एक स्वतंत्र पत्रकार हैं. उनका ट्विटर हैंडल @nailainayat है. प्रस्तुत विचार उनके निजी हैं.)

share & View comments