नयी दिल्ली, 30 सितंबर (भाषा) उच्चतम न्यायालय ने राष्ट्रीय राजधानी में हरित आवरण बढ़ाने के लिए उठाए गए किसी भी व्यापक उपाय के बारे में जानकारी नहीं देने पर सोमवार को दिल्ली सरकार के वन विभाग की खिंचाई की और कहा कि उसका रवैया पूरी तरह लापरवाही भरा है।
शीर्ष अदालत ने कहा, ‘‘न्यायाधीश आते हैं और चले जाते हैं। यह न्यायाधीशों के लाभ के लिए नहीं बल्कि राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली के लिए है।’’
न्यायमूर्ति एएस ओका और न्यायमूर्ति ऑगस्टिन जॉर्ज मसीह की पीठ ने वन विभाग के प्रधान सचिव को 18 अक्टूबर को ऑनलाइन माध्यम से उपस्थित होने का निर्देश दिया और उन्हें 15 अक्टूबर तक व्यक्तिगत हलफनामा दायर करके बताने को कहा कि दिल्ली के हरित आवरण को बढ़ाने के लिए उठाए गए कदमों और उठाए जाने वाले कदमों के बारे में जानकारी रिकॉर्ड पर क्यों नहीं रखी गई।
शीर्ष अदालत उस याचिका पर सुनवाई कर रही थी जिसमें राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली में वृक्षों का आवरण बढ़ाने के लिए अधिकारियों को निर्देश देने का आग्रह किया गया है।
न्यायालय ने 26 जून को दिल्ली विकास प्राधिकरण (डीडीए) अध्यक्ष के खिलाफ दायर एक अवमानना याचिका के माध्यम से उसके संज्ञान में लाए गए ‘‘अवैध और मनमाने ढंग से पेड़ों की कटाई के कृत्य’’ को गंभीरता से लिया था।
इसने दिल्ली के उपराज्यपाल वीके सक्सेना के रिज क्षेत्र के दौरे के संबंध में जानकारी नहीं देने पर डीडीए को फटकार लगाई थी, जहां 1,100 पेड़ काटे गए थे। इसने कहा था कि डीडीए उच्च अधिकारियों को बचा रहा है और अधीनस्थ अधिकारियों को दोषी ठहरा रहा है।
अवमानना याचिका को बाद में प्रधान न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ की अगुवाई वाली पीठ को स्थानांतरित कर दिया गया, जहां यह वर्तमान में लंबित है।
भाषा नेत्रपाल धीरज
धीरज
यह खबर ‘भाषा’ न्यूज़ एजेंसी से ‘ऑटो-फीड’ द्वारा ली गई है. इसके कंटेंट के लिए दिप्रिंट जिम्मेदार नहीं है.