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Tuesday, 19 November, 2024
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‘लोग करीब आने से कतराते हैं’ — पांव में GPS बांधकर चुनाव प्रचार क्यों कर रहे हैं हाफिज़ सिकंदर

प्रतिबंधित जमात-ए-इस्लामी कश्मीर के पूर्व जिला अध्यक्ष हाफिज़ मोहम्मद सिकंदर मलिक बांदीपोरा से निर्दलीय उम्मीदवार बनकर चुनाव लड़ रहे हैं. 2019 में गिरफ्तार किए गए हाफिज़ पर यूएपीए के आरोप हैं.

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बांदीपोरा: प्रतिबंधित जमात-ए-इस्लामी (जेईआई) कश्मीर के पूर्व जिला अध्यक्ष हाफिज़ मोहम्मद सिकंदर मलिक (37) ज़मानत पर बाहर हैं, लेकिन उनके परिवार के सदस्य और प्रियजन पिछले तीन महीनों से उनके करीब आने से कतराते हैं.

हाफिज़ सिकंदर जम्मू-कश्मीर चुनाव के लिए प्रचार करने वाले एकमात्र उम्मीदवार हैं, जिन्होंने अपने टखने पर काले रंग का ग्लोबल पोजिशनिंग सिस्टम (जीपीएस) ट्रैकर बांधा हुआ है. जम्मू-कश्मीर पुलिस जीपीएस ट्रैकर के जरिए 24 घंटे उन पर नज़र रखती है.

हाफिज़ सिकंदर ने दिप्रिंट से बात करते हुए कहा, “शुरू में जब उन्होंने ट्रैकर लगाया तो मेरे परिवार के सदस्य भी मेरे पास आने से कतराने लगे थे. कुछ लोग सोचते थे कि डिवाइस के ज़रिए उनकी बातचीत सुनी जाएगी, लेकिन धीरे-धीरे उन्हें समझ में आ गया कि यह मेरी हरकतों पर नज़र रखने के लिए है. मुझे लगता है कि यह मेरी निजता का बहुत बड़ा उल्लंघन है और ऐसा नहीं किया जाना चाहिए.”

बांदीपोरा के गुंडपोरा इलाके से ताल्लुक रखने वाले हाफिज़ सिकंदर प्रतिबंधित जेईआई कश्मीर के समर्थन से बांदीपोरा विधानसभा क्षेत्र से निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर चुनाव लड़ रहे हैं. उन्होंने तब चर्चा बटोरी थी जब वे जीपीएस पहनकर अपना नामांकन पत्र दाखिल करने गए थे.

हाफिज़ सिकंदर ने कहा कि ट्रैकर को लगभग तीन महीने पहले राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) द्वारा जेईआई के खिलाफ जांच किए जा रहे एक मामले से संबंधित अदालत के निर्देश पर लगाया गया था.

फरवरी 2019 में केंद्र सरकार द्वारा प्रतिबंधित किए जाने के कारण धार्मिक-राजनीतिक संगठन जमात-ए-इस्लामी कश्मीर को चुनाव लड़ने की अनुमति नहीं है. हालांकि, इसने 10 निर्दलीय उम्मीदवारों का समर्थन करते हुए लगभग चार दशकों के बाद अप्रत्यक्ष रूप से इस चुनावी मैदान में प्रवेश किया है.

हाफिज़ सिकंदर, जो गैरकानूनी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम के तहत आरोपों का सामना कर रहे हैं, को जम्मू और कश्मीर के विशेष दर्जे को समाप्त करने के बाद 2019 में गिरफ्तार किया गया और दो दिसंबर 2023 को उन्हें ज़मानत दी गई.


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‘कई लोग जेल में सड़ रहे हैं’

हाफिज़ सिकंदर अपने टखने पर लगे जीपीएस ट्रैकर को दिखाते हुए | फोटो: प्रवीण जैन/दिप्रिंट
हाफिज़ सिकंदर अपने टखने पर लगे जीपीएस ट्रैकर को दिखाते हुए | फोटो: प्रवीण जैन/दिप्रिंट

सिकंदर ने दिप्रिंट को बताया, “यह जीपीएस ट्रेकर मुझे करीब तीन महीने पहले लगाया गया. मुझे जीपीएस दिया गया है, तो मैं क्या कह सकता हूं? आपको पता होना चाहिए कि जब यह किसी व्यक्ति पर लगा है तो उसकी निजता सुरक्षित नहीं रहती. दूसरी बात, जेल से बाहर होने के बावजूद, मैं खुद को आज़ाद महसूस नहीं करता क्योंकि मुझ पर लगातार नज़र रखी जा रही है.”

हाफिज़ सिकंदर ने कहा कि अगर सरकार समाज में अच्छे नागरिक चाहती है, तो उसे यह सुनिश्चित करना होगा कि उन्हें ऐसा महसूस कराया जाए. उन्होंने कहा, “हमें समाज में एक अच्छे नागरिक की तरह महसूस कराने और व्यवहार करने के लिए सरकार की ओर से कुछ अच्छी पहल होनी चाहिए. सरकार को भविष्य में किसी और पर ऐसे जीपीएस ट्रैकर नहीं लगाने चाहिए.”

निर्दलीय उम्मीदवार ने आगे कहा, “अगर मैं जमानत पर बाहर हूं, तो वो इस तरह से मेरी हरकतों पर नज़र क्यों रखेंगे? क्या वह ज़मानत पर बाहर आए सभी लोगों के साथ ऐसा करते हैं? जम्मू-कश्मीर के लोगों को क्यों निशाना बनाया जाता है? मैं जहां भी जाता हूं, वो मेरी हरकतों पर नज़र रखते हैं. मेरी राय में ऐसी चीज़ें नहीं होनी चाहिए और हम सरकार को समझाएंगे कि यह अच्छी बात नहीं है.”

इस साल की शुरुआत में जम्मू-कश्मीर पुलिस ने ज़मानत पर बाहर आए “आतंकवाद से संबंधित” आरोपों का सामना कर रहे आरोपियों की निगरानी के लिए जीपीएस ट्रैकिंग डिवाइस पेश की. हाफिज़ को यह डिवाइस इसलिए लगाई गई है ताकि चुनाव प्रचार के लिए बाहर जाते समय उनकी हरकतों पर नज़र रखी जा सके.

दिप्रिंट से बात करते हुए हाफिज़ सिकंदर ने कहा कि उन्होंने चुनाव में भाग लेने का फैसला इसलिए किया क्योंकि कई मुद्दे इस क्षेत्र को परेशान कर रहे हैं.

उन्होंने कहा, “देखिए, कई मुद्दों पर तुरंत ध्यान देने की ज़रूरत है, चाहे बेरोज़गारी हो, स्वास्थ्य हो या शिक्षा. अभी भी कई लोग जेल में सड़ रहे हैं. कई लोगों ने अपनी जवानी बेबुनियाद आरोपों में जेलों में बिताई है. हम उनके लिए भी आवाज़ उठाना चाहते हैं.”

अपने “दुख” को उजागर करते हुए हाफिज़ ने कहा, “2016 के बाद से मैंने बहुत कुछ सहा है. मुझे लगता है कि कश्मीर में यह पुरानी परंपरा (लोगों को पकड़कर सलाखों के पीछे डालने की) चल रही है, इसलिए हम कोशिश कर रहे हैं कि सरकार इन चीज़ों पर ध्यान दे. भविष्य में ऐसी चीज़ें नहीं होनी चाहिए. चुनाव लड़ने का यही मुख्य उद्देश्य है.”


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घोषणापत्र में वक्फ संशोधन विधेयक

हालांकि, जमात-ए-इस्लामी कश्मीर द्वारा समर्थित निर्दलीयों ने ज़मीनी स्तर पर हलचल मचा दी है, लेकिन यह पहली बार नहीं है जब यह चुनावी राजनीति में उतरा है. 1987 तक यह जम्मू-कश्मीर की चुनावी राजनीति में सक्रिय था, जब इसने व्यापक धांधली के आरोपों के बाद चुनावों का बहिष्कार किया था.

इस चुनाव के बारे में बोलते हुए हाफिज़ सिकंदर ने कहा कि अगर जमात-ए-इस्लामी कश्मीर पर प्रतिबंध हटा दिया गया होता, तो “निश्चित रूप से हम सभी जगहों पर भाग लेते, लेकिन चूंकि जमात पर अभी भी प्रतिबंध है, इसलिए हम इसकी नीतियों आदि पर बात नहीं कर सकते.”

हाफिज़ सिकंदर ने अपने घोषणापत्र में वक्फ संशोधन विधेयक का विरोध करना भी शामिल किया है. उन्होंने कहा, “हाल ही में सरकार ने वक्फ संशोधन विधेयक पेश किया है. यह मुस्लिम समुदाय के लिए काफी बड़ी चुनौती है, क्योंकि इन संपत्तियों का इस्तेमाल समाज के गरीब तबके के उत्थान के लिए किया जा रहा था. इसलिए, हम इसका (वक्फ संशोधन विधेयक) विरोध करते हैं. मैं अपने अभियान में भी इसे उजागर कर रहा हूं.”

राजनीतिक दलों और उम्मीदवारों द्वारा जेईआई कश्मीर द्वारा समर्थित निर्दलीय उम्मीदवारों को ‘प्रॉक्सी उम्मीदवार’ बताए जाने पर हाफिज़ सिकंदर ने कहा कि सभी को चुनावी प्रक्रिया में भाग लेने का अधिकार है.

उन्होंने कहा, “हमने किसी के साथ समझौता नहीं किया है और न ही हम किसी के आधार पर चुनाव में भाग ले रहे हैं. इंजीनियर राशिद साहब की भी अपनी सोच है और उनकी पार्टी भी चुनाव लड़ रही है. लोग तय करेंगे कि वो किसे अपना नेता बनाना चाहते हैं.”

हाफिज़ सिकंदर ने कहा कि पिछले कुछ सालों में जम्मू-कश्मीर में विकास हुआ है, लेकिन “370 के बाद भी यहां डर का माहौल है.”

उन्होंने कहा, “इसलिए, हम यह नहीं कह सकते कि अनुच्छेद-370 के निरस्त होने के बाद सब कुछ ठीक है. राज्य के लोगों को सुरक्षित महसूस कराने की ज़रूरत है और उनका हर समय डर में रहना बंद करवाने की ज़रूरत है. मैं अपनी ओर से जनता तक पहुंचने और अपने अभियान की फंडिंग के लिए “शुभचिंतकों” और धार्मिक नेताओं पर निर्भर हूं.”

(इस खबर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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