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Saturday, 21 September, 2024
होममत-विमतभारत से तुलना करके खामेनेई गाज़ा के दर्द को कमतर आंत रहे हैं, उन्हें अपने गिरेबान में झांकने की ज़रूरत

भारत से तुलना करके खामेनेई गाज़ा के दर्द को कमतर आंत रहे हैं, उन्हें अपने गिरेबान में झांकने की ज़रूरत

इसमें कोई संदेह नहीं है कि खामेनेई इस तरह के भ्रामक ट्वीट के जरिए कुछ मुस्लिम समुदायों के साथ कम समय में राजनीतिक लाभ प्राप्त कर सकते हैं, यह एक ऐसा खेल है जिसमें वे नए नहीं हैं.

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मिलाद-उन-नबी के अगले दिन ईरान के सुप्रीम लीडर अयातुल्ला खामेनेई द्वारा किए गए हालिया ट्वीट पर भारतीयों द्वारा कड़ी प्रतिक्रिया दी गई है. इस ट्वीट में उनके द्वारा भारतीय मुसलमानों की स्थिति को गाजा और रोहिंग्या मुसलमानों की स्थिति जैसा दिखाने की कोशिश की गई थी. खास तौर पर दिलचस्प बात यह है कि उन्होंने यह पोस्ट उसी दिन किया जिस दिन उन्होंने इस्लामिक एकता सप्ताह मनाया था, जिसमें उन्होंने इस्लामिक उम्मा की अवधारणा पर चर्चा की थी.

मैं भी मानवाधिकारों पर ईरान के दोगलेपन से लेकर उम्मा के विचार और “सच्चे मुसलमान” की उनकी परिभाषा से जुड़े व्यापक मुद्दों तक कई मोर्चों पर ट्वीट की आलोचना कर सकती हूं. लेकिन जिस चीज ने मेरा ध्यान सबसे ज्यादा खींचा, वह था इस तरह के बयान के पीछे की मंशा, खासकर भारत के साथ ईरान के मजबूत रणनीतिक संबंधों को देखते हुए. इसके पीछे की छिपी हुई मंशा को पढ़ पाना मुश्किल नहीं है. ईरान के सुप्रीम लीडर की खुद को मुस्लिम दुनिया के ‘सच्चे नेता’ के रूप में स्थापित करने की इच्छा साफ दिखती है.

खामेनेई ने भारतीय मुसलमानों के बारे में इस तरह की बात पहली बार नहीं की है. इससे पहले भी, उन्होंने 2020 के दिल्ली दंगों और कश्मीर मुद्दे के बारे में ट्वीट किया था, जिसमें भारत में मुस्लिम समुदाय के लिए उनके द्वारा चिंता व्यक्त की गई थी. जबकि भारत के अंदर कई मुद्दे हैं, जिनसे निपटने की ज़रूरत है, लेकिन खामेनेई उन्हें अपने राजनीतिक एजेंडे के लिए हथियार बनाते दिखते हैं.

गाजा और रोहिंग्या मुसलमानों की भारतीय मुसलमानों से तुलना जितनी हास्यास्पद लगती है, अयातुल्ला खामेनेई का भड़काऊ ट्वीट अंततः पहले उनकी पीड़ा को उतना ही तुच्छ या कमतर करके भी दिखाता है. एक भारतीय पसमांदा मुस्लिम महिला के रूप में, जिसने अपना पूरा जीवन एक स्थिर राष्ट्र में बिताया है, एक बहुलवादी समाज से लाभान्वित हुई है, साथी भारतीयों के साथ संस्कृति साझा की है, और एक लोकतांत्रिक और गणतंत्र प्रणाली के तहत रह रही है, जब मैं फिलिस्तीन और म्यांमार की स्थिति पर विचार करती हूं तो मेरे अंदर गहरी कृतज्ञता के भाव से भर जाती हूं.

इस राष्ट्र का हिस्सा होने के नाते तुलनात्मक रूप से जिस शांति और अवसरों का मैं आनंद उठाती हूं उसकी मैं सराहना करती हूं. हां, हमारे अपने मुद्दे और कमियां हैं. और उन्हें खत्म करने के लिए, हमारे पास हमारा सपोर्ट सिस्टम और अच्छी तरह से काम करने वाली लोकतांत्रिक संस्थाएं हैं, समुदाय के भीतर और बाहर से ऐसे लोग हैं जो मुसलमानों और अन्य भारतीयों के प्रति न्याय और अधिकारों के लिए लड़ते हैं. भारतीय मुसलमान लंबे समय से राष्ट्र का अभिन्न अंग रहे हैं, जो इसकी समृद्ध विविधता और बहुलता में योगदान देते हैं.

अब इसकी तुलना खामेनेई के ट्वीट में बताए गए देशों से करें – म्यांमार और फिलिस्तीन दोनों ही देशों में संघर्ष की स्थिति है, लोगों का उत्पीड़न और विस्थापन हो रहा है. इसके विपरीत, भारतीय मुसलमानों की स्थिति बहुत अलग है. उन्हें एक साथ एक समूह का हिस्सा होने की बात कहकर, खामेनेई न केवल जमीनी हकीकत को गलत तरीके से पेश कर रहे हैं, बल्कि गाज़ा और म्यांमार में लोगों को जिस वास्तविक पीड़ा और कठिनाइयों का सामना करना पड़ रहा है, उसे भी वह कमतर करके आंक रहे हैं. इस तरह की तुलना उनके दर्द और संघर्ष की गंभीरता को कमतर करती है.


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एक समस्याग्रस्त विचार

उम्मा की अवधारणा आज की दुनिया में पहले ही विफल हो चुकी है, राष्ट्रीय पहचान ने इसे बहुत पीछे छोड़ दिया है. खामेनेई मानवाधिकारों की बात का इस्तेमाल करके दुनिया के मुसलमानों को एकजुट करने की कोशिश कर रहे हैं. क्या मुसलमानों को दुनिया भर में अपने धर्म के बाकी लोगों के बेहतरी के बारे में चिंतित होना चाहिए? बेशक. लेकिन किसी को यहीं नहीं रुक जाना चाहिए. आधुनिकता के मानवतावादी आदर्शों में नैतिक चिंता का दायरा व्यापक है. मानवाधिकारों के लिए एक सांप्रदायिक आधार लगातार बढ़ते विभाजन को जन्म दे सकता है.

सच्चे मुसलमान होने की पहचान को वह इस तरह के संकीर्ण दृष्टिकोण से जोड़ते हैं, जो एक बहुत ही समस्याग्रस्त विचार है. यह एक ऐसा समाज बनाता है जहां व्यक्ति अपने नेता के प्रति राजनीतिक निष्ठा के माध्यम से लगातार अपने ‘मुस्लिम होने’ को साबित करने के दबाव में रहते हैं या बहिष्कार के खतरे का सामना करते हैं. असहमति की आवाज़ें ऐसे शत्रुतापूर्ण माहौल में जीवित नहीं रह सकतीं, जो किसी भी ऐसे समुदाय की प्रगति को रोकती हैं.

भले ही हम इन चिंताओं को नज़रअंदाज़ कर दें, लेकिन ईरान के सर्वोच्च नेता द्वारा मुसलमानों पर ऐसी राय व्यक्त करना एक तमाशा ही लगता है. उनके देश में महिलाओं के साथ हो रहे दुर्व्यवहार ही अपने आप में बहुत कुछ बयां कर रहे हैं. यह एक ऐसा देश है जहाँ महिलाओं को हिजाब से खुद को ढकने के लिए मजबूर किया जाता है और अधिकारी अब आधी आबादी की व्यक्तिगत पसंद और बुद्धिमत्ता व समझ पर विश्वास नहीं करते हैं. ऐसे देश के नेतृत्व को दूसरों के आंतरिक मामलों के बारे में भड़काऊ बयान देने से पहले अपने गिरेबान में झाँकना चाहिए.

इसमें कोई संदेह नहीं है कि खामेनेई इस तरह के भ्रामक ट्वीट के ज़रिए कुछ मुस्लिम समुदायों के साथ थोड़े समय में राजनीतिक लाभ प्राप्त कर सकते हैं. यह एक ऐसा खेल है जिसमें वे नए नहीं हैं और न ही हम उनसे भविष्य में इससे दूर रहने की उम्मीद कर सकते हैं. लेकिन ऐसी रणनीति के दीर्घकालिक निहितार्थ क्या होंगे? यह देखना अभी बाकी है. मुझे संदेह है कि भारत और ईरान के बीच रणनीतिक गठबंधन इस तरह के स्टंट से प्रभावित होगा. इसमें कोई संदेह नहीं है कि खामेनेई द्वारा व्यक्त किए गए ये विचार समस्याग्रस्त हैं और बेहतर, अधिक शांतिपूर्ण दुनिया के लिए इनका विरोध किया जाना चाहिए.

(आमना बेगम अंसारी एक स्तंभकार और टीवी समाचार पैनलिस्ट हैं. वह ‘इंडिया दिस वीक बाय आमना एंड खालिद’ नामक एक साप्ताहिक यूट्यूब शो चलाती हैं. उनका एक्स हैंडल @Amana_Ansari है. व्यक्त किए विचार निजी हैं.)

(इस लेख को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.)


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