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Friday, 22 November, 2024
होमदेशहाईकोर्ट ने कंगना की फिल्म ‘इमरजेंसी’ पर सेंसर बोर्ड से कहा- ‘क्रिएटिव फ्रीमड पर रोक नहीं लगाई जा सकती

हाईकोर्ट ने कंगना की फिल्म ‘इमरजेंसी’ पर सेंसर बोर्ड से कहा- ‘क्रिएटिव फ्रीमड पर रोक नहीं लगाई जा सकती

फिल्म की रिलीज में देरी से नाखुश कोर्ट ने केंद्रीय फिल्म प्रमाणन बोर्ड (सीबीएफसी) से 25 सितंबर तक फैसला लेने को कहा.

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मुंबई: बॉम्बे हाईकोर्ट ने गुरुवार को कहा कि रचनात्मक स्वतंत्रता और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर अंकुश नहीं लगाया जा सकता और सेंसर बोर्ड किसी फिल्म को सिर्फ इसलिए प्रमाणित करने से इनकार नहीं कर सकता क्योंकि कानून-व्यवस्था की समस्या की आशंका है.

जस्टिस बी पी कोलाबावाला और फिरदौस पूनीवाला की खंडपीठ ने कंगना रनौत अभिनीत फिल्म ‘इमरजेंसी’ को प्रमाण पत्र जारी करने पर निर्णय नहीं लेने के लिए केंद्रीय फिल्म प्रमाणन बोर्ड (सीबीएफसी) से नाराजगी जताई और 25 सितंबर तक निर्णय लेने का आदेश दिया.

इसने पूछा कि क्या सीबीएफसी को लगता है कि इस देश के लोग इतने भोले हैं कि वे फिल्म में दिखाई गई हर बात पर विश्वास कर लेंगे.

याचिकाकर्ता के इस दावे पर कि सीबीएफसी राजनीतिक कारणों से फिल्म को प्रमाण पत्र जारी करने में देरी कर रहा है, हाईकोर्ट ने कहा कि फिल्म की सह-निर्माता रनौत खुद भाजपा की मौजूदा सांसद हैं और सवाल किया कि क्या सत्तारूढ़ पार्टी अपने ही सांसद के खिलाफ काम कर रही है.

पूर्व प्रधानमंत्री दिवंगत इंदिरा गांधी की मुख्य भूमिका निभाने और फिल्म का निर्देशन व को-प्रोडक्शन करने वाली कंगना रनौत ने इस सप्ताह की शुरुआत में सीबीएफसी पर प्रमाण पत्र देने में देरी करने का आरोप लगाया था ताकि फिल्म के रिलीज में देरी की जा सके.

पीठ ने कहा, “आपको (सीबीएफसी) किसी न किसी तरह से निर्णय लेना ही होगा. आपको यह कहने का साहस होना चाहिए कि यह फिल्म रिलीज नहीं हो सकती. कम से कम तब हम आपके साहस और निर्भीकता की सराहना करेंगे. हम नहीं चाहते कि सीबीएफसी तटस्थ रहे.”

अदालत ज़ी एंटरटेनमेंट एंटरप्राइजेज द्वारा दायर एक याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें सीबीएफसी को फिल्म “इमरजेंसी” के लिए प्रमाण पत्र जारी करने का निर्देश देने की मांग की गई थी. 6 सितंबर को रिलीज होने वाली यह जीवनी पर आधारित फिल्म विवादों में फंस गई है, क्योंकि शिरोमणि अकाली दल सहित सिख संगठनों ने इस फिल्म पर समुदाय को गलत तरीके से दिखाने और ऐतिहासिक तथ्यों को गलत तरीके से पेश करने का आरोप लगाया है.

इस महीने की शुरुआत में हाईकोर्ट ने सेंसर बोर्ड को फिल्म को तुरंत प्रमाणित करने का निर्देश देकर तत्काल राहत देने से इनकार कर दिया था.

कोर्ट ने कहा था कि वह मध्य प्रदेश हाईकोर्ट द्वारा जारी निर्देश के मद्देनजर इस स्तर पर तत्काल राहत नहीं दे सकता है, जिसमें सेंसर बोर्ड को फिल्म को प्रमाणित करने से पहले आपत्तियों पर विचार करने के लिए कहा गया था.

इसके बाद बेंच ने सेंसर बोर्ड को 18 सितंबर तक फिल्म को प्रमाण पत्र जारी करने पर अपना फैसला लेने का निर्देश दिया था.

गुरुवार को सीबीएफसी की ओर से पेश वरिष्ठ वकील अभिनव चंद्रचूड़ ने अदालत को बताया कि बोर्ड के अध्यक्ष ने फिल्म को अंतिम निर्णय के लिए संशोधन समिति को भेज दिया है.

चंद्रचूड़ ने कहा कि फिल्म में सार्वजनिक अव्यवस्था की आशंका थी.

ज़ी एंटरटेनमेंट की ओर से पेश वरिष्ठ वकील वेंकटेश धोंड ने कहा कि यह सिर्फ समय पाने और यह सुनिश्चित करने के लिए किया गया था कि फिल्म अक्टूबर से पहले रिलीज न हो. क्योंकि उसी वक्त हरियाणा में चुनाव होने हैं.

पीठ ने कहा कि सीबीएफसी ने अपने पहले के आदेश का पालन नहीं किया है और केवल एक विभाग से दूसरे विभाग पर जिम्मेदारी डाल दी है.

हाईकोर्ट ने कहा कि सेंसर बोर्ड को पूरी प्रक्रिया 18 सितंबर तक पूरी कर लेनी चाहिए.

सीबीएफसी को यह निष्कर्ष नहीं निकालना चाहिए कि कानून और व्यवस्था की समस्या हो सकती है और इसलिए किसी फिल्म को प्रमाणित नहीं किया जा सकता.

उच्च न्यायालय ने कहा, “इसे रोकना होगा. अन्यथा हम यह सब करके रचनात्मक स्वतंत्रता और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को पूरी तरह से सीमित कर रहे हैं,”

“क्या सीबीएफसी को लगता है कि इस देश की जनता इतनी भोली और मूर्ख है कि वह फिल्मों में जो कुछ भी देखती है, उस पर विश्वास कर लेती है? रचनात्मक स्वतंत्रता के बारे में क्या?”

न्यायालय ने इस बात पर भी आश्चर्य व्यक्त किया कि लोगों को फिल्मों में जो दिखाया जा रहा है, उसके प्रति वे इतने संवेदनशील क्यों होंगे.

न्यायमूर्ति कोलाबावाला ने हल्के-फुल्के अंदाज में कहा, “हमें समझ में नहीं आता कि लोग इतने संवेदनशील क्यों हैं. फिल्मों में हमेशा मेरे समुदाय का मजाक उड़ाया जाता है. हम कुछ नहीं कहते. हम बस हंसते हैं और आगे बढ़ जाते हैं.”

चंद्रचूड़ ने दो सप्ताह का समय मांगा, लेकिन अदालत ने कहा कि इस पर 25 सितंबर तक फैसला लिया जाना चाहिए. धोंड ने तर्क दिया कि राजनीतिक कारणों से फिल्म को प्रमाण पत्र जारी नहीं किया जा रहा है.

पीठ ने राजनीतिक पहलू पर सवाल उठाते हुए पूछा कि क्या याचिकाकर्ता यह दावा कर रहा है कि सत्तारूढ़ पार्टी खुद रनौत के खिलाफ है, जो फिल्म की सह-निर्माता और भाजपा की लोकसभा सदस्य भी हैं.

“सह-निर्माता खुद भाजपा की सांसद हैं. वह भी सत्तारूढ़ पार्टी का हिस्सा हैं. तो आप कह रहे हैं कि उनकी अपनी पार्टी अपने सदस्य के खिलाफ है?”

धोंड ने दावा किया कि सत्तारूढ़ पार्टी समाज के एक विशेष वर्ग को खुश करने के लिए एक मौजूदा सांसद को नाराज़ करने को तैयार थी.

ज़ी एंटरटेनमेंट ने अपनी याचिका में दावा किया कि सीबीएफसी ने पहले ही फिल्म के लिए प्रमाण पत्र बना लिया है, लेकिन वह इसे जारी नहीं कर रहा है.


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