नई दिल्ली: आईआईएम-बेंगलुरू के पूर्व छात्र और हिंदी लेखक नित्यानंद मिश्रा ने मोदी सरकार के लिए एक संदेश रखते हैं: ‘प्रशासन को ‘मोदी शासन’ के रूप में देखें ‘मोदी सरकार’ नहीं.’
पिछले सप्ताह इंडिया इंटरनेशनल सेंटर (आईआईसी) में एक संबोधन में नित्यानंद मिश्रा ने कहा, ‘अगर ऐसा होता है तो वह इसे पंसद करेंगे, न केवल सरकार, बल्कि लोग सामान्य रूप से हिंदी में बोलते समय उर्दू शब्दों का उपयोग करना बंद कर देंगे और संस्कृत का उपयोग करेंगे.’
मिश्रा ने भारतीय संस्कृति और हिंदी भाषा पर हिंदी और संस्कृत में कई किताबें लिखी हैं. वह श्रीजन फाउंडेशन द्वारा आयोजित एक कार्यक्रम में बोल रहे थे. संगठन जो खुद को ‘सभ्यता, दर्शन और परंपरा के रूप में भारत के विचार का समर्थक बताता है.’
यह फाउंडेशन उन कार्यक्रमों को आयोजित करने के लिए जाना जाता है, जहां मेहमान मुख्य रूप से दक्षिणपंथी सोच के होते हैं, जैसे विवादास्पद हिंदुत्व के विचारक राजीव मल्होत्रा.
इंडिया इंटरनेशनल सेंटर (आईआईसी) के इवेंट में लगभग 150 उपस्थित लोगों से भरे हॉल को संबोधित करते हुए मिश्रा ने अपने संस्कृत और प्राकृत विकल्पों को उर्दू और अरबी शब्दों की जगह लेने की बात की है.
उद्धृत उदाहरणों में ‘हज़ार’ (हज़ार) के स्थान पर ‘सहस्त्र’ शब्द का सुझाव दिया था.
भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के लिए भी सलाह थी: ‘नामुमकिन अब मुमकिन है’ का नारा आदर्श रूप में ‘असम्भव अब सम्भव है’.
‘दो अलग-अलग भाषाएं ‘
नित्यानंद मिश्रा आईआईएम बेंग्लुरू से एमबीए करने के बाद वित्त क्षेत्र से जुड़े. लेकिन 2016 से संस्कृत और हिंदी के प्रचार के लिए काम कर रहे हैं, राजीव मल्होत्रा और अन्य हिंदुत्व विचारधाराओं के साथ विभिन्न प्लेटफार्मों पर भी दिखाई दे रहे हैं.
उनके द्वारा लिखी गई पुस्तकों में ‘महावीरी: हनुमान-चालीसा डिमिस्टिफाई’, ‘ओम माला: ओंकार के अर्थ और कुंभ: दि ट्रेडिशनली मॉडर्न मेला.’
दिप्रिंट से बात करते हुए, मिश्रा ने कहा कि हिंदी और उर्दू दो अलग-अलग भाषाएं हैं और ‘जैसा है वैसा ही बोलना चाहिए.’
उन्होंने कहा, ‘हिंदी में संस्कृत और प्राकृत से अधिक शब्द होने चाहिए, उर्दू और अरबी से नहीं’.
उन्होंने कहा कि अन्य भारतीय भाषाओं जैसे कि बंगला, मराठी, गुजराती, कन्नड़, तेलुगु और मलयालम में भी शब्द संस्कृत से लिए गए हैं. मिश्रा ने कहा, ‘संस्कृत और प्राकृत का हिंदी में उपयोग भी हिंदी को दक्षिण भारतीयों तक पहुंचाने में मदद करेगा. मैं उर्दू और अरबी के खिलाफ नहीं हूं, मैं सिर्फ संस्कृतनिष्ठ हिंदी के पक्ष में हूं.
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2017 में आरएसएस की तरफ से ऐसा सुझाव सामने आया था. जब संघ से जुड़े गैर-सरकारी संगठन शिक्षा उत्थान न्यास ने सिफारिश की थी कि स्कूलों में हिंदी की पाठ्यपुस्तकों से उर्दू शब्दों को शुद्ध किया जाए. हालांकि, मिश्रा ने कहा कि वह संघ से जुड़े नहीं थे और उर्दू मुक्त हिंदी के लिए उनका अभियान स्वतंत्र था.
मिश्रा को एक अतिथि के रूप में आमंत्रित करने के बारे में पूछे जाने पर, श्रीजन फाउंडेशन की दीपिका पाठक ने कहा कि संगठन ‘ऐसी बातचीत ऐसे लोगों के साथ कर रहा है जो भारतीय संस्कृति पर काम कर रहे हैं और इसे साझा करने के लिए एक अलग दृष्टिकोण रखते हैं.’
‘हम भारतीय संस्कृति के अनसुने पक्ष के बारे में लोगों को जागरूक करने के लिए ऐसा करते हैं. हमने पाया कि नित्यानंद मिश्रा संस्कृत के प्रचार के लिए कुछ अच्छा काम कर रहे थे और इसलिए उनसे संपर्क किया गया.’
‘हिंदी को शुद्ध बनाना’
कार्यक्रम में भाग लेने वाले मिश्रा के समर्थक ‘हिंदी को शुद्ध’ बनाने के विचार से सहमत हैं.
भारतीय भाषा आंदोलन के जगदीश चंद्र भट्ट ने कहा कि ‘मैं इस विचार से पूरी तरह सहमत हूं कि हिंदी को उर्दू मुक्त बनाया जाना चाहिए.’ यह संगठन भाषाओं को संरक्षित करने के लिए काम करता है. हिंदी और उर्दू अलग-अलग भाषाएं हैं और उन्हें इसी तरह ट्रीट किया जाना चाहिए. लोग जो चाहे बोल सकते हैं, लेकिन जब लेखन की बात आती है, तो भाषा को किसी भी प्रभाव से रहित होना चाहिए.’
हालांकि, हिंदी विशेषज्ञों ने कहा कि यह विचार एक सुंदर भाषा का अंत कर देगा, जिसे ‘हिंदुस्तानी’ के रूप में जाना जाता है.
मुख्य रूप से हिंदी भाषा के साथ काम करने वाले भारतीय गीतकार, संगीतकार और पटकथा लेखक स्वानंद किरकिरे ने कहा, ‘जो लोग हिंदी में उर्दू के शब्दों का इस्तेमाल नहीं करते हैं, वे खुद उर्दू में कम से कम आधा वाक्य बोलते हैं’
उन्होंने कहा, ‘भाषा लगातार बदलती रहती है और अन्य भाषाओं से संदर्भ लेती है, इस तरह से रुझान आते हैं.’
स्वानंद किरकिरे ने कहा उदाहरण के लिए ‘वॉट लगाना’ अनिवार्य रूप से मराठी है, लेकिन अब इसे हिंदी में भी इस्तेमाल किया जा रहा है. हिंदी फिल्में इस वाक्य को कई बार इस्तेमाल करती हैं. कई अन्य अभिव्यक्तियां हैं, जिन्होंने खुद को हिंदी का हिस्सा बना लिया है और इतनी अच्छी तरह चल रही हैं.
उन्होंने कहा जिस भाषा का हम उपयोग करते हैं वह हिंदी और उर्दू का मिश्रण है, जो हिंदुस्तानी है. इसे हिंदी नहीं कहते हैं.’
दिल्ली विश्वविद्यालय में हिंदी के प्रोफेसर अपूर्वानंद ने कहा कि मिश्रा का विचार मूर्खतापूर्ण है. उन्होंने यह भी कहा कि कोई भी भाषा पूरी तरह से शुद्ध नहीं हो सकती है. यदि आप अन्य भाषाओं को देखते हैं, तो उनमें भी प्रभाव हैं.
अपूर्वानंद ने कहा, ‘अगर व्यक्ति हिंदी में संस्कृत के साथ उर्दू शब्दों को बदलना चाहता है, तो पहले उसे विकल्प ढूंढ़ने दें, उस भाषा में लोगों से बात करें और देखें कि वे लोग कैसे प्रतिक्रिया देते हैं.’ यह वास्तव में, एक ऐसी भाषा है जिसे समाज के एक निश्चित तबके से वंचित कर दिया गया है, जैसे किसान, मजदूर, निचली जातियों के लोग. यह एक ऐसा प्रश्न है जिसे संस्कृत को बढ़ावा देने की कोशिश करने वालों द्वारा हमेशा के लिए अनदेखा कर दिया गया है.’
दिल्ली विश्वविद्यालय के हिंदी के प्रोफेसर चंद्रशेखर रावत ने इस दावे का समर्थन किया. उन्होंने कहा, अगर कोई भाषा समय के साथ विकसित नहीं होती है, तो वह अस्तित्व में नहीं रहेगी. कोई भी व्यक्ति संस्कृत नहीं बोलता है क्योंकि भाषा ने समय के साथ बदलाव नहीं किया.
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केंद्र सरकार के आधिकारिक हिंदी प्रभाग ने इस विचार पर टिप्पणी करने से इंकार कर दिया.
हालांकि, मानव संसाधन विकास मंत्रालय में एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि सरकार ‘हिंदी भाषा को बढ़ावा देने की अपनी क्षमता में सब कुछ कर रही है.’ अधिकारी ने कहा, ‘अब, मानव संसाधन विकास मंत्री ने भी भाषा के प्रोत्साहन पर जोर दिया है.’
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