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Wednesday, 18 September, 2024
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लर्निंग हुई और मज़ेदार — गाजियाबाद की आंगनवाड़ी को मिला डिजिटल बोर्ड

गाजियाबाद के मोरटी गांव में माता-पिता से लेकर स्टूडेंट्स तक — आंगनवाड़ी केंद्र संख्या 1 और 2 पर लगे डिजिटल बोर्ड के बारे में अधिक जानना चाहते हैं जो उनसे बातें करता है.

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गाजियाबाद: जैसे ही टीचर ने इस चमकदार क्लास की दीवार पर लगी डिजिटल स्क्रीन को चालू किया तो तीन से छह साल की उम्र के सभी बच्चे उत्साहित हो उठे. स्क्रीन पर एक एनिमेटेड सेब एक बॉक्स से निकलता है, और बच्चे गाते हैं, “ए इज़ फॉर एप्पल”. यह कोई पॉश प्राइवेट स्कूल नहीं बल्कि गाजियाबाद के मोरटी गांव में एक आंगनवाड़ी केंद्र है जो क्लास में अधिक बच्चों को बुलाने और लर्निंग को और बेहतर बनाने के लिए तकनीक का सहारा ले रहा है.

पूरे भारत में पैरेंट्स अपने बच्चों के स्क्रीन टाइम को कम करने के लिए कड़ी मेहनत कर रहे होंगे, लेकिन यहां इस आंगनवाड़ी में डिजिटल बोर्ड आकर्षण का बड़ा केंद्र बन गया है. यह गाजियाबाद की आंगनवाड़ियों को एक-एक करके डिजिटल बनाने की महत्वाकांक्षी योजना का हिस्सा है.

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3012 द्वारा प्रायोजित ‘भारत की पहली एआई-सक्षम आंगनवाड़ी’ के नाम से यह शहर में चर्चा का विषय बन गई है. हालांकि, पूरी तरह से एआई-आधारित नहीं है, लेकिन मोरटी में पैरेंट्स से लेकर बच्चों तक सभी आंगनवाड़ी केंद्र संख्या 1 और 2 पर लगे डिजिटल बोर्ड के बारे में अधिक जानना चाहते हैं, जो उनसे बात करता है.

इसे शुरू किए जाने के सात दिनों के भीतर ही संख्या 35 से बढ़कर 42 हो गई है.

गाजियाबाद में बाल विकास और परियोजना प्रबंधक शारदा ने कहा, “पिछले एक हफ्ते में एक भी स्टूडेंट सेंटर पर देर से नहीं आया है. हमें केवल छह-सात दिनों में आठ नए एडमिशन भी मिले हैं.”

पहले जहां हेल्पर बच्चों को सेंटर तक लाने के लिए दरवाजे खटखटाते थे, वहीं अब पैरेंट्स उन्हें समय से पहले लेकर आ रहे हैं. डिजिटल बोर्ड ने पढ़ाई और लर्निंग को मज़ेदार बना दिया है.

टच स्क्रीन पर आइकन के से एक्सेस किए जा सकने वाले छोटे मॉड्यूल के जरिए से स्टूडेंट हिंदी, अंग्रेज़ी और गणित के साथ-साथ सामान्य ज्ञान की चीज़ों को भी सीख सकते हैं.

चार-वर्षीय श्रृष्टि ज़ोर से कहती हैं, “सी इज़ फॉर कैट” और स्क्रीन पर फोटो दिखने से पहले ही अपनी सहेली के साथ उछल पड़ती हैं.

Morti Anganwadi at Muradnagar, Ghaziabad |Almina Khatoon, ThePrint
मुरादनगर, गाजियाबाद में मोरती आंगनवाड़ी | फोटो: अलमिना खातून/दिप्रिंट

नए चमचमाते क्लासरूम

स्मार्ट बोर्ड का स्वागत करने के लिए पूरे आंगनवाड़ी को नया लुक दिया गया है. क्लास की नई रंग-बिरंगी दीवारों पर अब बच्चों के चित्र हैं, जिन पर गिनती और हिंदी और अंग्रेज़ी के अक्षर लिखे हैं. राउंड टेबल के चारों ओर छोटी-छोटी लाल और नीली प्लास्टिक की कुर्सियां हैं. एक दीवार पर एक बड़े पेड़ की पेंटिंग है, जिसकी शाखाओं से कई बंदर लटके हुए हैं, साथ ही दिनों और महीनों के नाम भी लिखे हैं. क्लास में सब कुछ नया है.

With the installation of digital screen, the almost empty Anganwadi classroom is now always full with children |special arrangement
डिजिटल स्क्रीन लगने से लगभग खाली रहने वाली आंगनवाड़ी क्लास अब हमेशा बच्चों से भरी रहती है | फोटो: स्पेशल अरेंजमेंट

चार साल की एक बच्ची जो हर रोज़ क्लास जाती है, उनकी मां नीतू देवी ने बताया, “कुछ ही दिनों में हमारे बच्चे ने काफी कुछ सीख लिया है.”

उन्होंने कहा, “जब वो (बच्ची) घर आती है, तो कहानियां सुनाती है. वो जिद्द करती है कि हम उसे जल्दी क्लास छोड़ दें ताकि वो कुछ भी न चूके.”

गृहिणी नीतू के लिए यह एक स्वागत योग्य बदलाव है.

The whole classroom has different drawings and letters, countings all over its walls |Almina Khatoon, ThePrint
पूरी क्लास में दीवारों पर अलग-अलग चित्र और अक्षर, गिनती लिखी हुई है | फोटो: अलमिना खातून/दिप्रिंट

इनोजिकल के संस्थापक आशुतोष वशिष्ठ ने बताया, केंद्र में डिजिटल स्क्रीन पर पूरे महीने की गतिविधियों और कोर्स को दिखाया जाता है. यह इनोजिकल इनोवेशन प्राइवेट लिमिटेड की बनाई गई ऐप से समर्थित है, जो डैशबोर्ड के जरिए से गतिविधियों और कोर्स को रियल टाइम चैक करने की अनुमति देता है.


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मौज-मस्ती के साथ सीखना

रोटरी फाउंडेशन अगले दो महीनों में गाजियाबाद में 1,300 आंगनवाड़ी केंद्रों में से 200 को डिजिटल बनाने की योजना बना रहा है.

हर सेंटर में आमतौर पर केवल दो या तीन सहायक होते हैं जो बच्चों की देखभाल, उन्हें पढ़ाने और गर्भवती महिलाओं और नई माताओं के लिए अतिरिक्त कार्यक्रमों का प्रबंधन करते हैं.

रोटरी डिस्ट्रिक्ट गवर्नर प्रशांत राज शर्मा ने कहा, “अपनी कई जिम्मेदारियों को देखते हुए सहायकों के पास अक्सर बच्चों को बुनियादी चीज़ें सिखाने पर ध्यान केंद्रित करने के लिए बहुत कम समय होता है”, लेकिन इन स्मार्ट टूल्स के साथ, निर्धारित मासिक कोर्स और गतिविधियों के अनुसार, अब एक क्लिक में सब कुछ आ जाता है. अब, स्टूडेंट अपने आप सीखते हैं.”

पर्दे के पीछे, डिजिटल स्क्रीन एक स्मार्ट लर्निंग डिवाइस से कहीं अधिक है. यह सरकार को लर्निंग प्रोग्राम की निगरानी करने, कोर्स को मानकीकृत करने और प्राइवेट प्रीस्कूल और नर्सरी के साथ बने रहने की अनुमति देता है.

शर्मा ने कहा, “सरकार और रोटरी फाउंडेशन अलग-अलग मेट्रिक्स को ट्रैक कर सकते हैं, जैसे कि स्क्रीन कितनी देर तक एक्टिव रही, स्टूडेंट ने कौन सी गतिविधियां कीं और कौन सी गतिविधियां सबसे लंबे समय तक चलीं.”

यह जानकारी यह समझने के लिए ज़रूरी है कि बच्चे क्या सीखना चाहते हैं, किन अवधारणाओं को समझना उनके लिए कठिन है, इत्यादि.

गाजियाबाद के जिला मजिस्ट्रेट इंद्र विक्रम सिंह ने कहा, “पहले, यह निगरानी करना मुश्किल था कि बच्चे क्या सीख रहे हैं, लेकिन अब, सभी गतिविधियों पर नज़र रखना बहुत आसान हो गया है.”

शर्मा के अनुसार, महाराष्ट्र और गुजरात की सरकारों ने भी इस प्रोजेक्ट में रुचि दिखाई है, जिसका उद्देश्य आंगनवाड़ियों को बच्चों के लिए अधिक मज़ेदार और लर्निंग वातावरण में बदलना है.

शर्मा ने कहा, “प्रोजेक्ट की सबसे बड़ी उपलब्धि यह है कि जो बच्चे पहले केवल मिड-डे मील के लिए आते थे, वो अब सीखने के लिए आते हैं.”

दोपहर के समय जब पांच वर्षीय कनक अपनी मां के साथ आंगनवाड़ी से बाहर निकल रही थीं, तो उन्होंने पीछे मुड़कर अब खाली स्क्रीन पर नज़र डाली. उन्होंने अपनी मां से थोड़ी देर और रुकने के लिए कहने की कोशिश की, लेकिन मां ने उनका हाथ पकड़ लिया और वे चले गए.

(इस रिपोर्ट को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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