कोलकाता: 9 अगस्त को नाइट ड्यूटी के दौरान कोलकाता के आरजी कर मेडिकल कॉलेज और अस्पताल में कथित रूप से बलात्कार और हत्या की शिकार हुई 31-वर्षीया पोस्ट ग्रेजुएट ट्रेनी डॉक्टर की पोस्टमार्टम रिपोर्ट में योनि से काफी रक्तस्राव, घाव, गर्दन पर काटने के निशान, घायल होंठ और सिर पर गंभीर चोट के निशान पाए गए हैं. रिपोर्ट में हाइमन में 150 मिलीग्राम वीर्य की मौजूदगी भी पाई गई है.
कलकत्ता हाई कोर्ट के समक्ष अपनी याचिका में माता-पिता ने दावा किया है कि उनकी बेटी के साथ एक से अधिक व्यक्तियों ने या सामूहिक बलात्कार किया गया है.
दिप्रिंट के पास मुख्य न्यायाधीश की पीठ के समक्ष दायर याचिका मौजूद है.
पिछले हफ्ते तत्कालीन आरजी कर प्रिंसिपल डॉ. संदीप घोष द्वारा कोलकाता के प्रमुख सरकारी मेडिकल फैसिलिटी ने इसे आत्महत्या का मामला बताया था. घटना के बाद से राज्य की स्वास्थ्य सेवा प्रणाली अस्त-व्यस्त है.
माता-पिता ने कलकत्ता हाईकोर्ट को बताया कि उन्होंने अपनी बेटी से आखिरी बार 9 अगस्त को रात 11:30 बजे बात की थी, जिस दौरान उसने किसी तरह की परेशानी का संकेत नहीं दिया था. हालांकि, अगली सुबह 10:53 बजे उन्हें आरजी कर के सहायक अधीक्षक ने बताया कि उनकी बेटी बीमार है. ठीक 22 मिनट बाद, सुबह 11:15 बजे, उन्हें उसी अधिकारी का एक और कॉल आया और इस बार उन्हें बताया गया कि उनकी बेटी ने आत्महत्या कर ली है. माता-पिता ने यह भी आरोप लगाया कि उन्हें अपनी बेटी का शव देखने की अनुमति देने से पहले तीन घंटे तक इंतज़ार करना पड़ा.
हालांकि, राज्य ने हाईकोर्ट को सूचित किया कि अस्पताल ने पुलिस चौकी को सुबह 10:10 बजे सूचना दे दी थी. ताला पुलिस स्टेशन को सुबह 10:30 बजे सूचित किया गया और होमिसाइड टीम सुबह 11 बजे घटनास्थल पर पहुंची. अतिरिक्त पुलिस आयुक्त के पद पर पुलिस के एक वरिष्ठ अधिकारी आधे घंटे बाद घटनास्थल पर पहुंचे. राज्य ने यह भी कहा कि माता-पिता दोपहर 1 बजे पहुंचे और उन्हें 10 मिनट बाद अपनी बेटी का शव देखने की अनुमति दी गई.
जांच में कोई प्रगति न होने का हवाला देते हुए कलकत्ता हाईकोर्ट ने घटना की जांच केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (सीबीआई) को सौंप दी और कोलकाता पुलिस को सभी सबूत, सीसीटीवी फुटेज और मामले के दस्तावेज केंद्रीय जांच एजेंसी को सौंपने का निर्देश दिया.
सीबीआई को कोर्ट रूम में ही केस डायरी सौंपी गई और उसने मंगलवार देर रात एफआईआर दर्ज की. केंद्रीय एजेंसी की विशेष अपराध इकाई की टीम नई दिल्ली से कोलकाता पहुंच गई है. सीबीआई की यह विशेष इकाई गंभीर, सनसनीखेज और संगठित अपराध की जांच करती है.
HC ने केस CBI को क्यों सौंपा?
कोलकाता पुलिस ने पिछले शनिवार को प्रेस कॉन्फ्रेंस कर मीडिया को बताया कि डॉक्टर के बलात्कार और हत्या के आरोप में एक व्यक्ति को गिरफ्तार किया गया है, लेकिन मीडिया के बार-बार पूछने के बावजूद यह बताने से इनकार कर दिया कि वह कोलकाता पुलिस का नागरिक स्वयंसेवक था या नहीं.
तब से, कोलकाता पुलिस ने 25 से ज़्यादा लोगों से पूछताछ की है, कई दिनों की सीसीटीवी फुटेज की जांच की है, लेकिन अभी तक किसी और व्यक्ति की संलिप्तता नहीं पाई गई है. पुलिस कर्मियों, फोरेंसिक विशेषज्ञों, डीसीपी और कोलकाता पुलिस के अतिरिक्त सीपी (आई) की अध्यक्षता वाली एसआईटी द्वारा की जा रही जांच के बीच, मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने सोमवार को पीड़ित परिवार से उनके घर पर मुलाकात करने के बाद घोषणा की कि अगर पुलिस सात दिनों के भीतर जांच पूरी नहीं कर पाती है, तो मामला सीबीआई को ट्रांसफर कर दिया जाएगा. 2011 के बाद से टीएमसी शासन में ऐसा पहले कभी नहीं हुआ है. दरअसल, राज्य ने 2018 में सीबीआई को दी गई सामान्य सहमति वापस ले ली थी.
कलकत्ता हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश ने इस घटना की सीबीआई जांच का आदेश देते हुए, जिसके कारण देशव्यापी विरोध प्रदर्शन शुरू हो गए हैं, कहा, “सार्वजनिक विश्वास केवल आम जनता तक ही सीमित नहीं होगा, चूंकि यह घटना अस्पताल में हुई है, जो कि एक सरकारी अस्पताल है, इसलिए मरीजों, जो कि संबंधित जनता हैं, को भी सुरक्षित और आश्वस्त महसूस करवाना चाहिए कि उचित कार्रवाई की जा रही है और जांच उचित तरीके से आगे बढ़ेगी तथा दोषियों को सज़ा मिलेगी.”
हाईकोर्ट जांच की निगरानी करेगा और उसने सीबीआई को जांच की प्रगति पर समय-समय पर रिपोर्ट दाखिल करने का निर्देश दिया है. “हम यह टिप्पणी करने में पूरी तरह से उचित हैं कि प्रशासन पीड़िता या पीड़िता के परिवार के साथ नहीं था. हमने वरिष्ठ स्थायी वकील से पूछा था कि क्या प्रिंसिपल, अधीक्षक और सहायक अधीक्षक ने बयान दर्ज किया और सुनवाई के समय जवाब मिला कि कोई बयान दर्ज नहीं किया गया है.”
अदालत ने अपने 17-पृष्ठ के आदेश में कहा, “सामान्य परिस्थितियों” में, उसने रिपोर्ट दाखिल करने का निर्देश दिया होगा. “हालांकि, यह मामला एक अनोखा मामला है और तथ्य और परिस्थितियां बिना समय गंवाए उचित आदेश की मांग करती हैं. हम ऐसा कहने के लिए आश्वस्त हैं क्योंकि पांच दिन बीत जाने के बाद भी जांच में कोई महत्वपूर्ण प्रगति नहीं दिख रही है, जो अब तक हो जानी चाहिए थी और समय की और हानि होने पर, हम रिट याचिकाकर्ताओं, विशेष रूप से, पीड़िता के माता-पिता द्वारा उठाई गई दलील को स्वीकार करने में पूरी तरह से न्यायसंगत होंगे कि इस बात की पूरी संभावना है कि सबूत नष्ट कर दिए जाएंगे और गवाहों को प्रभावित किया जाएगा.”
(इस रिपोर्ट को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)
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