scorecardresearch
Wednesday, 18 September, 2024
होमफीचरगोल्ड मेडल विजेता तनीषा ने 12 साल तक स्कूल में शारीरिक अक्षमता को छिपाया, खेल ने उन्हें आज़ादी दी

गोल्ड मेडल विजेता तनीषा ने 12 साल तक स्कूल में शारीरिक अक्षमता को छिपाया, खेल ने उन्हें आज़ादी दी

तनीषा ने राष्ट्रीय से लेकर राज्य स्तरीय चैंपियनशिप में तीन गोल्ड, एक सिल्वर और एक ब्रॉन्ज सहित पांच मेडल जीते हैं. हालांकि, उनकी झिझक अब दूर हो गई है और अब वह गर्व के साथ रहती हैं.

Text Size:

सीकर: तनीषा बाजिया के सीकर स्थित गांव के स्कूल ने हाल ही में उनके बचपन के रहस्य को उजागर किया — यह उनकी शारीरिक अक्षमता थी जिसे उन्होंने 12 साल तक छिपाए रखा. यह रहस्य तब सामने आया जब उन्होंने इस जुलाई में बेंगलुरु में 13वीं राष्ट्रीय सब-जूनियर पैरा एथलेटिक्स चैंपियनशिप में 400 मीटर की दौड़ में सिल्वर मेडल जीता.

बड़े होने पर तनीषा ज़्यादातर घर पर ही रहती थीं क्योंकि दूसरे बच्चे उनकी दिव्यांगता के लिए उनका मज़ाक उड़ाते थे. इसलिए, जब उनका दाखिला अपने गांव से 5 किलोमीटर दूर के स्कूल में हुआ, तो उन्होंने अपने शिक्षकों और सहपाठियों से अपनी शारीरिक अक्षमता को छिपाने का फैसला किया.

लेकिन यह आसान नहीं था. इसका मतलब था अकेलेपन और अंधकार में जीना. तनीषा सेलिब्रेशन और पारिवारिक कार्यक्रमों से दूर रहती थीं. जब उनके दोस्त खेलते थे तो वे उसमें हिस्सा नहीं लेती थीं.

“पहले मैं खुलकर किसी भी चीज़ को एंजॉय नहीं कर पाती थी और अब मैं आज़ादी से जीती हूं और कोई भी मुझ पर टिप्पणी नहीं करता. मैं किसी से अपना हाथ नहीं छिपाती.”

— तनीषा बाजिया

स्कूल में किसी को नहीं पता था कि तनीषा का बायां हाथ आधा ही है. उन्होंने अपनी स्कर्ट के बाएं हिस्से में एक एक्स्ट्रा जेब बनाई, अपने आधे हाथ को हमेशा दुपट्टे में बांधकर उसे अंदर ही रखा.

राजस्थान के सीकर के अगलोई गांव में अपने घर में लकड़ी की चारपाई पर बैठीं 18-वर्षीय तनीषा ने दिप्रिंट से बातचीत में कहा, “मेरा बायां हाथ हमेशा मेरी स्कर्ट की जेब में रहता था. इस तरह मैंने अपनी दिव्यांगता को छिपाया ताकि कोई मुझ पर हंसे नहीं.”

सीकर जिला मुख्यालय से 50 किलोमीटर दूर है. यह अरावली की पहाड़ियों से घिरा हुआ है.

बेंगलुरू में मिली शानदार जीत ने उनकी ज़िंदगी में सब कुछ बदल दिया. उनका हाथ अब बाईं जेब से बाहर रहता है और उनका आत्मविश्वास भी.

तनीषा ने थोड़ा शर्माते हुए कहा, “पहले मैं खुलकर किसी भी चीज़ को एंजॉय नहीं कर पाती थी और अब मैं आज़ादी से जीती हूं और कोई भी मुझ पर टिप्पणी नहीं करता. मैं किसी से अपना हाथ नहीं छिपाती.”

Tanisha has won three gold, one silver, and one bronze medal in national and state-level championships | Photo: Krishan Murari, ThePrint
तनीषा ने राष्ट्रीय और राज्य स्तरीय चैंपियनशिप में तीन गोल्ड, एक सिल्वर और एक ब्रॉन्ज मेडल जीता है | फोटो: कृष्ण मुरारी/दिप्रिंट

पिछले एक साल में उन्होंने राष्ट्रीय और राज्य स्तरीय चैंपियनशिप में कुल पांच मेडल जीते जिनमें दो गोल्ड मार्च 2023 में राज्य स्तरीय जूनियर और सब-जूनियर पैरा एथलेटिक्स में 1,500 मीटर और 400 मीटर दौड़ की कैटेगरी में आए.

उन्होंने अपना हाथ दिखाते हुए कहा, “इसने मेरी ज़िंदगी बदल दी है. अब मैं खुद को स्वीकार कर लेती हूं और मुझे इस बात पर कोई शर्म नहीं है कि मैं क्या हूं.”

खेल एक जरिया

2006 में तनीषा पैदा हुईं तो, उनका बायां हाथ आधा गायब था, उनके पिता उन्हें तुरंत सीकर के एक डॉक्टर के पास ले गए.

अग्लोई में अपने घर के आंगन में बैठे 43-वर्षीय जाट किसान इंद्राज बाजिया ने कहा, “डॉक्टर ने मुझसे सिर्फ एक लाइन कही. यह ऊपरवाले की देन है. उसे ढेर सारा प्यार देना. तब से मैंने उसे बहुत प्यार से पाला है और उसके साथ कभी भेदभाव नहीं किया.”

Tanisha's house in Sikar's Agloi village | Photo: Krishan Murari, ThePrint
सीकर के अग्लोई गांव में तनीषा का घर | फोटो: कृष्ण मुरारी/दिप्रिंट

बाजिया हमेशा अपनी बेटी को याद दिलाते थे कि वे अकेली नहीं हैं — दुनिया में उनके जैसे कई बच्चे हैं. जब तक तनीषा को यह बात समझ में आई, तब तक उनकी ज़िंदगी के कई साल बीत चुके थे.

लेकिन खेलों ने उन्हें उस जगह से बाहर निकाला, जिसमें वे सिमट गई थीं.

पिछले साल, तनीषा ने बेंगलुरु में नेशनल पैरा एथलेटिक्स चैंपियनशिप में टेन-पिन बॉलिंग में हिस्सा लिया और गोल्ड मेडल जीता. यह एक संयोग था, जिसने उन्हें दौड़ में अपना करियर बनाने के लिए प्रेरित किया.

वे एक रिश्तेदार की मदद से महाराणा प्रताप पुरस्कार विजेता कोच महेश नेहरा और उनकी पत्नी सरिता बावरिया से मिलीं. वे राज्य भर में शारीरिक रूप से अक्षम बच्चों को ट्रेनिंग देते है. उन्होंने विभिन्न खेलों में 4,000 से अधिक बच्चों को ट्रेनिंग दी है. इनमें से लगभग 300 को स्पेशली ऐब्ल्ड स्पोर्ट्स कोटे के तहत सरकारी नौकरी भी मिली है.

वो बहुत बेहतरीन दौड़ती हैं और आगे बढ़ने की बहुत संभावना है. इसलिए हम उन्हें ट्रेनिंग देने हर हफ्ते उनके गांव जाते हैं.

— सरिता बावरिया, तनिषा की कोच

तनीषा ने कहा, “हमें नहीं पता था कि कहां और कैसे खेलना है. उन्होंने ही हमें आगे बढ़ने के लिए प्रेरित किया और दौड़ने के लिए कहा.”

नेहरा और बावरिया उन्हें हफ्ते में दो बार ट्रेनिंग देते हैं.

बावरिया ने कहा, “तनिषा में कुछ करने की ललक है और इस लड़की ने एक साल में खुद को साबित भी किया है. वो बहुत बेहतरीन दौड़ती हैं और आगे बढ़ने की बहुत संभावना है. इसलिए हम उन्हें ट्रेनिंग देने हर हफ्ते उनके गांव जाते हैं.”

बावरिया, जो खुद एक नेशनल लेवल की खिलाड़ी रही हैं, शारीरिक रूप से अक्षम बच्चों को ट्रेनिंग देने में अपना काफी समय देती हैं.

उन्होंने बताया, “ये सभी बहुत गरीब परिवारों से हैं और सालों से निराशा में जी रहे हैं.”

Agloi village is nearly 50 kilometres from Sikar district headquarters | Photo: Krishan Murari, ThePrint
अग्लोई गांव सीकर जिला मुख्यालय से करीब 50 किलोमीटर दूर है | फोटो: कृष्ण मुरारी/दिप्रिंट

यह भी पढ़ें: ओडिशा का यह पुलिसकर्मी गरीब आदिवासी नौजवानों को दे रहा है ट्रेनिंग, 50 से ज्यादा को मिली नौकरी


खुद में आत्मविश्वास पाना

तनीषा के पास मार्गदर्शन और सहायता के लिए कोच थे, लेकिन यह उनके पिता थे जिन्होंने उन्हें अब तक की सबसे बड़ी चुनौती लेने के लिए प्रेरित किया. अपनी पहली दौड़ प्रतियोगिता में, उन्हें 1,500 मीटर की दौड़ में सक्षम बच्चों के साथ मुकाबला करना था.

उस दिन को याद करते हुए, उन्होंने कहा कि प्रतिभागी उन पर हंस रहे थे, उन्हें उनके साथ दौड़ने नहीं दे रहे थे, लेकिन उनके पिता ने जोर देकर कहा कि वो हिस्सा लें. तनीषा घबराई हुई थीं क्योंकि अगर वो परफॉर्म नहीं करती, तो उनका और ज्यादा मज़ाक उड़ाया जाता. इसलिए वे पूरी ताकत से दौड़ीं.

उन्होंने बताया, “जब मैं चौथे स्थान पर आई, तो सभी ने आकर मुझसे हाथ मिलाया. तभी मुझे लगा कि मैं कुछ कर सकती हूं.”

इससे उनका आत्मविश्वास इतना बढ़ गया जितना तब तक किसी और चीज़ से नहीं बढ़ा था.

Tanisha Bajia with her father Indraj Bajia who helped her in his athletics journey | Photo: Krishan Murari, ThePrint
तनीषा बाजिया अपने पिता इंद्राज बाजिया के साथ जिन्होंने उनकी एथलेटिक्स यात्रा में उनकी मदद की | फोटो: कृष्ण मुरारी/दिप्रिंट

जुलाई में जब तनीषा पैरा एथलेटिक्स चैंपियनशिप के लिए बेंगलुरु के श्री कांतीरवा स्टेडियम पहुंचीं, तो सैकड़ों दर्शकों से भरे बड़े स्टेडियम को देखकर वह घबरा गईं.

उन्होंने कहा, “मेरे दिमाग में बस एक ही बात थी: मुझे पूरे साल की सारी मेहनत एक ही बार में लगानी थी.”

उन्होंने 400 मीटर की दौड़ में 1 मिनट और 15 सेकंड में दौड़ पूरी करके सिल्वर मेडल जीता था.

तनीषा की मां भंवरी देवी ने कहा, “मैंने अपनी बेटी को कभी इतना खुश नहीं देखा, जितना वो अब है. खेल ने उसे पूरी तरह बदल दिया है. अब वह गर्व के साथ जीती है और उसकी झिझक खत्म हो गई है.”


यह भी पढ़ें: मैदान नहीं, जूते नहीं, सुविधा नहीं लेकिन ओडिशा का देवगढ़ कैसे बन रहा है हॉकी के सितारों की फैक्ट्री


जोहड़ की ज़मीन पर ट्रेनिंग

इंद्राज बाजिया ने जोहड़ (सामुदायिक भूमि) पर एक रनिंग ट्रैक बनाया, क्योंकि अग्लोई गांव में तनीषा की प्रैक्टिस के लिए कोई जगह नहीं है.

अरावली पहाड़ियों के बीच में, जहां ऊबड़-खाबड़ इलाका काफी ज्यादा है, एक पिता के प्यार और दृढ़ संकल्प ने एक बंजर जोहड़ को अपनी शारीरिक रूप से अक्षम बेटी के लिए 200 मीटर के रनिंग ट्रैक में बदल दिया.

बाजिया ने ट्रैक बनाने में 9,000 रुपये खर्च किए. पिछले 10 महीनों में उन्होंने बरसात के मौसम में इसकी मरम्मत पर 9,000 रुपये और खर्च किए हैं. उन्होंने कहा, “हमारे गांव में खेल के लिए कोई सुविधा नहीं है. इसलिए पिछले साल, मैंने जोहड़ पर एक ट्रैक तैयार बनाने का फैसला किया, लेकिन शुरू में ग्रामीणों ने विरोध किया क्योंकि उन्हें लगा कि मैं यह अपने निजी इस्तेमाल के लिए कर रहा हूं.” उन्होंने कहा, उन्होंने सभी को आश्वासन दिया है कि कोई भी आकर ट्रैक पर प्रैक्टिस कर सकता है.

एक समय में ऊबड़-खाबड़ ज़मीन अब नई उपजाऊ धरती बन गई है.

Tanisha's achievements inspire local children | Photo: Krishan Murari, ThePrint
तनीषा की उपलब्धियां स्थानीय बच्चों को प्रेरित करती हैं | फोटो: कृष्ण मुरारी/दिप्रिंट

तनिषा की उपलब्धियां स्थानीय बच्चों को प्रेरित करती हैं. उनके पिता ने कहा, “यह सब तनिषा से शुरू हुआ, लेकिन अब लड़कियों सहित 10 से अधिक बच्चे हर दिन प्रैक्टिस के लिए यहां आते हैं.”

उन्होंने कहा कि उनकी बेटी की उपलब्धि के बाद भी प्रशासन और पैरा स्पोर्ट्स फेडरेशन से कोई मदद नहीं मिली है. यहां तक ​​कि बेंगलुरु में भी वो रनिंग शूज़ नहीं, बल्कि सामान्य स्पोर्ट्स शूज पहनकर दौड़ीं. उनके पास उचित किट नहीं है.

राजस्थान के दिव्यांग पैरा स्पोर्ट्स एसोसिएशन के साथ काम करने वाले द्रोणाचार्य पुरस्कार विजेता कोच महावीर सैनी ने कहा, “तनिषा दौड़ने में बहुत अच्छी हैं, लेकिन वो अभी बहुत जूनियर हैं. उन्हें खुद को और साबित करना है. तभी हम उनकी मदद कर पाएंगे.”

तनिषा का अगला लक्ष्य और भी बड़ा है. समर ओलंपिक जारी है, लेकिन उन्हें नहीं पता कि यह क्या है.

अपने मेडल दिखाते हुए उन्होंने कहा, “मैं अगले साल होने वाले एशियन गेम्स की तैयारी कर रही हूं.”

(इस ग्राउंड रिपोर्ट को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


यह भी पढ़ें: लंबे इंतजार के बाद तीरंदाज दीप्ति कुमारी को मिला धनुष, अब भारत के लिए फिर से खेलने की है चाह


 

share & View comments