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Friday, 22 November, 2024
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वीपी सिंह, चंद्रशेखर, एनडी तिवारी सरीखे नेता पैदा करने वाली यूनिवर्सिटी में अब छात्रसंघ चुनाव नहीं

यूनिवर्सिटी की ओर से दिए गए तर्क में बताया गया कि छात्रसंघ चुनाव प्रतिबंधित नहीं किया जा रहा है. केवल मोड ऑफ इलेक्शन में बदलाव किया गया है.

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लखनऊ/प्रयागराज: एक दौर में छात्र राजनीति की नर्सरी कहे जाने वाले इलाहाबाद यूनिवर्सिटी में अब छात्रसंघ चुनाव नहीं होंगे. यूनिवर्सिटी प्रशासन की ओर से छात्रसंघ चुनाव को खत्म कर छात्र परिषद का गठन किया गया है. एकेडिमिक काउंसिल की बैठक में इस पर सहमति बन गई है. जिस यूनिवर्सिटी में पूर्व राष्ट्रपति डॉ शंकर दयाल शर्मा, पूर्व पीएम वीपी सिंह, चन्द्रशेखर, गुलजारी लाल नंदा और पूर्व सीएम एनडी तिवारी ने राजनीति का ककहरा सीखा, अब वहां छात्रसंघ चुनाव नहीं होंगे.

96 साल का रहा है छात्रसंघ का इतिहास

इलाहबाद यूनिवर्सिटी के छात्रसंघ का इतिहास 96 साल पुराना है. यहां पहले छात्रसंघ का गठन साल 1923 में हुआ था. 96 साल पुराने छात्रसंघ चार साल बाद अपना शतक पूरा करने जा रहा था लेकिन यूनिवर्सिटी प्रशासन ने छात्रसंघ को अचानक झटका दिया और कार्य परिषद में छात्र परिषद के गठन पर अंतिम मुहर लग गई. यह अहम फैसला शनिवार को यूनिवर्सिटी में हुई कार्य परिषद की बैठक में किया गया. बैठक के दौरान छात्रसंघ भवन पर विरोध में प्रदर्शन हुआ, जिस पर पुलिस को लाठियां चलानी पड़ी. छात्रसंघ अध्यक्ष उदय प्रकाश यादव और महामंत्री शिवम सिंह को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया गया. देर शाम इन्हें रिहा कर दिया गया.


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यूनिवर्सिटी का तर्क

यूनिवर्सिटी प्रशासन की ओर से दिए गए तर्क में बताया गया कि छात्रसंघ चुनाव प्रतिबंधित नहीं किया जा रहा है. पीआरओ डाॅ चितरंजन ने केवल मोड ऑफ इलेक्शन में बदलाव किया गया है. दरअसल, लिंगदोह कमेटी ने अपनी संस्तुति 6.1.2 और 6.2.1 में साफ निर्देश दिया है कि सिर्फ जेएनयू और हैदराबाद विश्वविद्यालय जैसे छोटे कैंपस तथा कम छात्र संख्या वाले परिसर में ही प्रत्यक्ष मतदान द्वारा छात्रसंघ का गठन होगा. जबकि ज्यादा छात्र संख्या और कई परिसर वाले विश्वविद्यालय में अनिवार्य रूप से छात्र परिषद का ही गठन होगा. लिंगदोह कमेटी की सिफारिशें सुप्रीम कोर्ट द्वारा स्वीकृत हैं और देशभर के विश्वविद्यालयों के लिए बाध्यकारी हैं.

कैसे बनेगा छात्र परिषद

नई व्यवस्था में अब छात्र सीधे पदाधिकारी नहीं चुन सकेंगे, बल्कि छात्र कक्षा प्रतिनिधि का चुनाव करेंगे और कक्षा प्रतिनिधि छात्र परिषद के पदाधिकारियों को चुनेंगे. यूनिवर्सिटी प्रशासन के मुताबिक, छात्र परिषद चुनाव का मॉडल ज्यादा व्यापक और पारदर्शी है. इसमें हर संकाय से स्नातक, परास्नातक और पीएचडी के छात्र चुन कर आएंगे. ये पदाधिकारियों का चुनाव करेंगे. इस पूरी प्रक्रिया में आम छात्र ही मतदान करेंगे. इसमें हर स्तर पर अधिकतम छात्रों की भागीदारी होगी.


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छात्रनेता हैरान, कार्ट जाने की तैयारी

हालांकि छात्रनेताओं का कहना है कि ये यूनिवर्सिटी प्रशासन की मनमानी है. छात्रसंघ की पूर्व अध्यक्ष व सपा नेता ऋचा सिंह का कहना है कि लिंगदोह कमेटी की कितनी सिफारिशें आजतक यूनिवर्सिटी ने मानी? यूनिवर्सिटी के वीसी पर तमाम आरोप हैं उनकी खुद जांच चल रही है. छात्रसंघ मुखर रहकर इस पर आवाज उठाता था. इसी आवाज को दबाने के लिए यूनिवर्सिटी प्रशासन ने ये फैसला लिया. छात्र परिषद में तो वही स्टूडेंट्स रहेंगे जिन्हें यूनिवर्सिटी प्रशासन चाहेगा. यहां के छात्रसंघ ने देश को तमाम विजनरी नेता दिए लेकिन प्रशासन छात्रों की आवाज दबाने में जुटा है.

गौरवमयी रहा है यूनिवर्सिटी का इतिहास

पूर्व प्रधानमंत्री विश्वनाथ प्रताप सिंह 1949 में इस छात्र संघ के उपाध्यक्ष रहे. आजाद भारत के पहले छात्रसंघ अध्यक्ष यूपी-उत्तराखंड के पूर्व सीएम एनडी तिवारी बने. 1948 में यूनिवर्सिटी के अध्यक्ष लोकसभा के पूर्व महासचिव सुभाष कश्यप बने. मौजूदा राजनीति में मुरली मनोहर जोशी, रीता बहुगुणा जोशी, मुख्तार अब्बास नकवी, अनुग्रह नारायण सिंह भी इसी यूनिवर्सिटी के छात्र रहे हैं.

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