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Friday, 22 November, 2024
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NE में आदिवासी स्वायत्त परिषदों को मजबूत करने की कोशिश, BJP के सहयोगी दल 6ठी अनुसूची में चाहते हैं संशोधन

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नई दिल्ली: पूर्वोत्तर में आदिवासी स्वायत्त परिषदों को अधिक वित्तीय और कार्यकारी शक्तियों से लैस करने की मांग को सामूहिक रूप से बल मिलने वाला है, क्योंकि क्षेत्र की 10 ऐसी परिषदें इसे केंद्र के पटल पर वापस लाने के लिए एक साथ आ रही हैं.

संविधान की छठीं अनुसूची के तहत गठित इन परिषदों को संचालित करने वाली पार्टियों ने केंद्र सरकार पर दबाव बनाने के लिए गठबंधन किया है, जिसमें भारतीय जनता पार्टी के सहयोगी दल जैसे कि नेशनल पीपुल्स पार्टी (एनपीपी), टिपरा इंडीजेनस प्रोग्रेसिव रीजनल एलायंस (टीआईपीआरए मोथा) और यूनाइटेड पीपुल्स पार्टी लिबरल (यूपीपीएल) शामिल हैं.

दिप्रिंट को मिली जानकारी के मुताबिक इस संबंध में इन पार्टियों के मुख्य कार्यकारी सदस्यों और अन्य वरिष्ठ नेताओं ने सोमवार और शनिवार को नई दिल्ली में हुई बैठकों में निर्णय लिया.

यह घटनाक्रम ऐसे समय में हुआ है जब भाजपा और उसके सहयोगी पूर्वोत्तर में पिछड़ रहे हैं, क्योंकि वे आदिवासी बहुल राज्यों – मेघालय, मिजोरम और नागालैंड में एक भी लोकसभा सीट जीतने में विफल रहे हैं.

अनिवार्य रूप से, पार्टियों ने संविधान (125वां संशोधन) विधेयक को पारित करने के लिए एक संयुक्त मंच बनाया है, जिसे 6 फरवरी, 2019 को राज्यसभा में पेश किया गया था.

यह विधेयक भारत के संविधान के अनुच्छेद 244(2) और 275(1) द्वारा शासित छठीं अनुसूची क्षेत्रों में परिषदों की प्रशासनिक, वित्तीय, संरचनाओं में महत्वपूर्ण संशोधन लाने का प्रयास करता है.

भाजपा सहयोगी एनपीपी और टिपरा मोथा के नेता, जो कि क्रमशः खासी हिल्स स्वायत्त जिला परिषदों (केएचएडीसी) और त्रिपुरा आदिवासी क्षेत्र स्वायत्त जिला परिषद (टीटीएडीसी) में सत्ता में हैं, ने पुष्टि की कि गृह मंत्रालय ने उन्हें इस मुद्दे पर बातचीत के लिए बुलाया है.

ये 10 परिषदें असम, मेघालय, मिजोरम और त्रिपुरा में छठी अनुसूची क्षेत्रों में फैली हुई हैं. असम की तीन परिषदों में से, उत्तरी कछार हिल्स स्वायत्त परिषद और कार्बी आंगलोंग स्वायत्त परिषद, भाजपा द्वारा शासित हैं, जबकि यूपीपीएल बोडोलैंड प्रादेशिक परिषद चलाने वाले गठबंधन में सबसे बड़ी पार्टी है.

मेघालय में, तीन स्वायत्त जिला परिषदें – जो क्रमशः खासी, जयंतिया और गारो हिल्स डिवीजनों को कवर करती हैं – सभी एनपीपी के नेतृत्व वाले सत्तारूढ़ गठबंधन द्वारा शासित हैं, जिसका भाजपा हिस्सा है. टिपरा मोथा त्रिपुरा जनजातीय क्षेत्र स्वायत्त जिला परिषद चलाती हैं.

मिजोरम में, लाई और चकमा स्वायत्त जिला परिषदें मिज़ो नेशनल फ्रंट (एमएनएफ) द्वारा शासित हैं, जो राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) का भी एक घटक है, जबकि मारा परिषद का नेतृत्व भाजपा करती है.

125वें संविधान संशोधन विधेयक को पारित करवाने की मांग ऐसे समय में की जा रही है, जब इस साल के अंत में खासी और जयंतिया स्वायत्त जिला परिषदों में चुनाव होने हैं. बोडोलैंड प्रादेशिक परिषद के भी अगले साल चुनाव होने हैं.

दोनों बैठकों में मौजूद एक नेता ने दिप्रिंट को बताया, “एनपीपी के पास इस मांग को आक्रामक तरीके से उठाने के अलावा कोई विकल्प नहीं है, क्योंकि नई पार्टी वॉयस ऑफ द पीपल पार्टी ने शिलांग लोकसभा सीट जीतकर खासी लोगों के बीच अपनी पैठ बना ली है. दूसरी ओर, यूपीपीएल का मुकाबला बोडोलैंड पीपुल्स फ्रंट से होगा.”

बैठकों में शामिल दो नेताओं ने बताया कि संयुक्त मंच, जिसका संयोजक केएचएडीसी होगा, देश में समान नागरिक संहिता लागू होने की स्थिति में छठी अनुसूची के क्षेत्रों को इसके दायरे से बाहर रखने का मामला भी उठाएगा.

“दशकों में यह पहली बार है कि क्षेत्र की सभी 10 आदिवासी स्वायत्त परिषदें एक साझा मंच पर एक साथ आई हैं. हमारे निर्णय बांग्लादेश में चल रहे संकट की पृष्ठभूमि में भी लिए गए हैं, जिसके कारण सीमा पार से बड़ी संख्या में लोग भारत में आ रहे हैं. टिपरा मोथा के संस्थापक प्रद्योत माणिक्य देबबर्मा ने कहा, “हमारे स्वदेशी समुदायों को भूमि के स्वामित्व, खनिज संसाधनों के निष्कर्षण से रॉयल्टी के मामले में जो सुरक्षा चाहिए, उसे मजबूत करने के लिए विधेयक का पारित होना जरूरी है.”

(इस खबर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.)


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