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Friday, 22 November, 2024
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AIADMK गौंडर-थेवर संगठनों में सिमट गई है, यह एकजुटता का वक्त है, नहीं तो विभाजन दूर नहीं

2026 तमिलनाडु विधानसभा चुनाव AIADMK के लिए चुनौती बने हुए हैं. अगर MGR के वफादारों की अध्यक्षता वाली ‘शांति समिति’ सफल नहीं होती है, तो एक और विभाजन हो सकता है.

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अखिल भारतीय अन्ना द्रविड़ मुनेत्र कषगम (AIADMK) अपने गृह राज्य तमिलनाडु में अस्तित्व के संकट का सामना कर रही है. मुख्यमंत्री एमके स्टालिन के नेतृत्व वाली द्रविड़ मुनेत्र कषगम (डीएमके) से लगातार दस चुनाव हारने के बाद — जिसमें 2024 का लोकसभा चुनाव भी शामिल है — और हाल ही में हुए विधानसभा उपचुनाव में भी हार का सामना करने के बाद, एआईएडीएमके को तमिलनाडु की राजनीति से संभावित सफाया से बचने के लिए तत्काल कदम उठाने होंगे.

1972 में एमजी रामचंद्रन द्वारा स्थापित, एआईएडीएमके को शक्तिशाली जे जयललिता ने कुशलतापूर्वक आगे बढ़ाया, लेकिन 2016 में उनकी मृत्यु के बाद, पार्टी तीन गुटों में विभाजित हो गई.

जयललिता की मृत्यु के बाद चार साल तक तमिलनाडु पर शासन करने वाले नेता एडप्पादी पलानीस्वामी के पास प्रसिद्ध दो पत्ती वाला चुनाव चिन्ह और एआईएडीएमके के अधिकांश कार्यकर्ताओं और निर्वाचित प्रतिनिधियों का समर्थन था. अन्य समूहों में ओ पन्नीरसेल्वम (ओपीएस), शशिकला (जयललिता की विश्वासपात्र) और टीटीवी दिनाकरन (शशिकला के भतीजे जो अम्मा मक्कल मुनेत्र कषगम के प्रमुख हैं) शामिल हैं. तीनों थेवर समुदाय से हैं, जबकि पलानीस्वामी शक्तिशाली गौंडर जाति से हैं.

अब ईपीएस, जैसा कि पलानीस्वामी लोकप्रिय रूप से जाने जाते हैं, ने शशिकला और ओपीएस के सहयोगी जेसीडी प्रभाकर द्वारा एमजीआर और जयललिता के समर्थकों को एकजुट करने के आह्वान के बाद अलग-अलग समूहों को एक साथ लाने के लिए एक अभियान शुरू किया है. चेन्नई में पार्टी कार्यकर्ताओं की बैठक में ईपीएस ने चुनावी हार पर उनके विचार सुने. सूत्रों का कहना है कि 2021 के विधानसभा चुनाव के बाद ईपीएस से अलग हुए लोग अब सभी गुटों का विलय चाहते हैं.


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आखिरी कोशिश

AIADMK सिमट रही है. एक समय में जो बड़ी जगह इसके पास थी, उसे अब भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) या डीएमके छीन रही है. 2024 के लोकसभा चुनावों का मतदान पैटर्न स्पष्ट रूप से इस पलायन की ओर इशारा करता है.

2024 के लोकसभा चुनावों में AIADMK को बड़ा झटका लगा, उसने जिन 34 सीटों पर चुनाव लड़ा था, उन सभी पर उसे हार का सामना करना पड़ा; सात सीटों पर पार्टी की ज़मानत जब्त हो गई. कोई यह तर्क दे सकता है कि AIADMK आज गौंडर और थेवर संगठनों तक सीमित हो गई है.

अपने समर्थन आधार के पूर्ण विनाश को रोकने के लिए एमजीआर और जयललिता के वफादारों ने हाल ही में AIADMK के सभी अलग-अलग समूहों से विलय के लिए संपर्क करने के लिए एक ‘शांति समिति’ बनाई है. कैडर अपने कट्टर प्रतिद्वंद्वी डीएमके से सीधे मुकाबला करने के लिए एक मजबूत नेतृत्व चाहते हैं.

लेकिन AIADMK के लगभग सभी चार समूह द्रविड़ संस्कृति के पक्ष में एक ही राग अलाप रहे हैं, जो अंततः स्टालिन के हित में काम आ रहा है.

द्रविड़ पार्टियों ने 1967 से तमिलनाडु की राजनीति पर अपना दबदबा कायम रखा है, जब डीएमके ने विधानसभा चुनाव जीता था और कांग्रेस को हराया था. पेरियार के द्रविड़ कषगम से शुरू हुआ यह दल अब लगभग आठ दलों में बंट चुका है. वह हिंदुत्व और भाजपा के वर्चस्व के विरोध में खड़े हैं.

हालांकि, यह दिलचस्प है कि तमिलनाडु में सबसे पहले नरम हिंदुत्व की विचारधारा को एमजीआर और जयललिता लेकर आए थे. जयललिता ने अयोध्या में राम मंदिर और संविधान के अनुच्छेद-370 को हटाने की पुरजोर वकालत की थी. राजनीति की इन वैचारिक रूप से अलग शैलियों ने एक तरह से गौंडर और थेवर जातियों के दो प्रमुख नेताओं ईपीएस और ओपीएस को द्रविड़ विचारधारा के खिलाफ अपनी राजनीति बनाने में मदद की है.

लेकिन दो करोड़ कार्यकर्ताओं का कैडर चाहता है कि एआईएडीएमके एमके स्टालिन और डीएमके से उसी तरह लड़े जैसे जयललिता ने बड़ी सफलता के साथ किया था, अक्सर विधानसभा और लोकसभा चुनावों में पार्टी को हराया था.

AIADMK के लिए यह समझदारी नहीं होगी कि वह अंदर की हलचल को अनदेखा करे और तुरंत पुनरुद्धार के कदम न उठाए. 2021 के विधानसभा चुनाव, 2024 के लोकसभा चुनाव और 10 जुलाई को विक्रवंडी विधानसभा उपचुनाव के बाद AIADMK के कई कार्यकर्ता पहले ही पार्टी छोड़ चुके हैं, जिनमें से सभी में डीएमके ने जीत हासिल की थी.

तनाव का एक और बिंदु विचारधारा और जाति के आधार पर खेमों में विभाजन है. गौंडर खेमा भाजपा से बाहर चला गया, लेकिन थेवर समूह वहीं रहा और हर कोई एक-दूसरे पर जातिगत वर्चस्व का आरोप लगा रहा है.

एक और विभाजन?

2026 के विधानसभा चुनाव एआईएडीएमके के लिए चुनौती बने हुए हैं. अगर एमजीआर के वफादारों की अध्यक्षता वाली ‘शांति समिति’ सफल नहीं होती है, तो कार्यकर्ताओं के फिर से विभाजित होने का खतरा है, जो पार्टी में पांचवां विभाजन होगा.

ईपीएस खेमे में कानाफूसी है कि कुछ लोग सोशल डेमोक्रेटिक पार्टी ऑफ इंडिया (इस्लामिक संगठन पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया की राजनीतिक शाखा) और सीमन की अध्यक्षता वाली तमिल समर्थक, द्रविड़ विरोधी नाम तमिलर काची जैसी छोटी पार्टियों के साथ गठबंधन करना चाहते हैं.

सीमन तमिल ईलम के कट्टर समर्थक हैं और उन्होंने 2008 में लिट्टे (LTTE) के नेता प्रभाकरण से भी मुलाकात की थी. क्या ईपीएस सीमन की एनटीके के साथ जाने के लिए मजबूर होगी?

इन सभी बातों को ध्यान में रखते हुए और बिना किसी पूर्वाग्रह के विश्लेषण करते हुए एआईएडीएमके का भविष्य वास्तव में बहुत निराशाजनक दिखता है. अगर सुधार नहीं हुआ तो AIADMK एक बार फिर टूट जाएगी — लेकिन इस बार पार्टी छोड़ने वाले लोग डीएमके या भाजपा में शामिल हो सकते हैं.

दुर्भाग्य से कांग्रेस के लिए AIADMK का विभाजन उसे ज़्यादा फायदा नहीं पहुंचाएगा क्योंकि AIADMK की वैचारिक जड़ें स्वाभाविक रूप से उसे डीएमके के करीब ले जाती हैं. इसके अलावा, कांग्रेस लंबे समय से डीएमके के साथ गठबंधन करके ईपीएस से खुद को दूर कर रही है.


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क्या इसमें नई दिल्ली का हाथ है?

इसका जवाब स्पष्ट रूप से हां है. जयललिता के निधन के तुरंत बाद केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने एआईएडीएमके के सभी गुटों को विलय के लिए मनाने का प्रयास किया, लेकिन किसी ने भी सकारात्मक प्रतिक्रिया नहीं दी. ईपीएस अड़े रहे. अगर 2024 के लोकसभा चुनाव में भाजपा के प्रस्ताव को स्वीकार कर लिया जाता, तो डीएमके के नेतृत्व वाला INDIA गठबंधन राज्य में 39 में से 39 सीटें जीतकर जीत नहीं पाता और ईपीएस के नेतृत्व वाली एआईएडीएमके केंद्रीय मंत्रिमंडल में होती.

इससे 2026 का विधानसभा चुनाव बेहद महत्वपूर्ण हो जाता है.

66-विधायकों और छह राज्यसभा सांसदों के लिए, बदलाव के प्रति अड़े रहने वाले ईपीएस स्टालिन की डीएमके के लिए 2026 को आसान बना देंगे. एआईएडीएमके का हश्र बाकी सभी को भी परेशान कर देगा — डॉ. अंबुमणि रामदास की पीएमके, जीके वासन की तमिल मनीला कांग्रेस और सीमन की एनटीके — और भी मुश्किल में होंगे.

(लेखक का एक्स हैंडल @RAJAGOPALAN1951 है. व्यक्त किए गए विचार निजी हैं.)

(इस लेख को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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