नई दिल्ली: राजस्थान के चूरू में ओम प्रकाश जोगेंद्र सिंह (ओपीजेएस) यूनिवर्सिटी की जांच करने पर खुलासा हुआ कि निजी विश्वविद्यालयों, दलालों (बिचौलियों), पेपर लीक गिरोहों और सरकारी नौकरी के इच्छुक उम्मीदवारों के बीच गठजोड़ के कारण राज्य में भर्ती घोटाले हुए.
जांचकर्ताओं ने निष्कर्षों को राज्य की शिक्षा प्रणाली पर एक “भद्दा मज़ाक” करार दिया, जिसके बाद राजस्थान सरकार ने पिछले पांच साल में सरकारी नौकरियों में तीन लाख भर्तियों की जांच करने का फैसला किया है.
सात दिन पहले राजस्थान स्पेशल ऑपरेशन ग्रुप (एसओजी) ने फर्ज़ी डिग्री जारी करने के आरोप में ओपीजेएस यूनिवर्सिटी के खिलाफ औपचारिक रूप से एफआईआर दर्ज की और संस्थापक-मालिक जोगिंदर सिंह दलाल, पूर्व अध्यक्ष सरिता करवासरा और पूर्व रजिस्ट्रार जितेंद्र यादव को गिरफ्तार किया.
ओपीजेएस यूनिवर्सिटी की स्थापना 2013 में हुई थी और तब से इसने 43,000 से अधिक डिग्रियां प्रदान की हैं, जो अधिकृत संख्या से कहीं अधिक है, जिसमें 708 पीएचडी, 8,000 से अधिक इंजीनियरिंग डिग्रियां और शारीरिक शिक्षा में 1,600 से अधिक डिग्रियां शामिल हैं.
यह एफआईआर राजस्थान अधीनस्थ एवं मंत्रिस्तरीय सेवा चयन में तैनात एक अधिकारी द्वारा सरकारी परीक्षाओं में बैठने वाले अभ्यर्थियों को यूनिवर्सिटी द्वारा जारी की गई पिछली तारीख की डिग्रियों के बारे में शिकायत के बाद दर्ज की गई है.
राजस्थान पुलिस के सूत्रों के अनुसार, शिकायत मिलने के बाद मार्च में जांच और वेरिफिकेशन की प्रक्रिया शुरू की गई. ओपीजेएस यूनिवर्सिटी के पेरोल पर केवल 30 कर्मचारी हैं और पिछले पांच महीनों में एसओजी को इसके आसपास कोई छात्र नहीं मिला.
अतिरिक्त पुलिस महानिदेशक (एसओजी) वी.के. सिंह ने दिप्रिंट को बताया, “यहां कोई शिक्षक नहीं है, फिर भी डिग्रियां दी जा रही हैं. प्राथमिक विद्यालयों में अधिक शिक्षक हैं. पीएचडी सहित 43,000 डिग्रियां देने वाली यूनिवर्सिटी के लिए केवल 30 कर्मचारियों के साथ चलना असंभव है. यूनिवर्सिटी ने एमएससी कृषि, बीएड और बीपीएड (शारीरिक शिक्षा स्नातक) जैसे कोर्स में बिना मान्यता के डिग्री और प्रमाण पत्र प्रदान किए हैं.”
एसओजी के अनुसार, लैब टेक्नीशियन के तौर पर शुरुआत करने वाले यादव 2015 से 2020 तक यूनिवर्सिटी रजिस्ट्रार थे. करवासरा 2015 से 2020 तक अध्यक्ष बनने से पहले 2013 से 2015 तक रजिस्ट्रार थे.
अपने कार्यकाल के बाद, यादव राजस्थान के अलवर में सनराइज यूनिवर्सिटी के सह-मालिक बन गए; गुजरात के पाटन में एक और यूनिवर्सिटी खोली और राजस्थान के बारां में एक तीसरी यूनिवर्सिटी शुरू करने की योजना बनाई.
वर्तमान में दलाल के खिलाफ चार मामले दर्ज हैं. स्कॉलरशिप घोटाले में कथित संलिप्तता के लिए हरियाणा में दो मामले दर्ज हैं. अन्य दो मामले राजस्थान में फर्ज़ी डिग्री देने के मामले में दर्ज हैं. पुलिस सूत्रों ने बताया कि यादव को कभी गिरफ्तार नहीं किया गया, लेकिन दलाल के खिलाफ सभी मामलों में उससे पूछताछ की गई है.
‘प्रिंटिंग प्रेस’
राजस्थान पुलिस के सूत्रों ने विश्वविद्यालय को शैक्षणिक संस्थान के बजाय “प्रिंटिंग प्रेस” बताया.
एक सूत्र ने कहा, “आरोपियों ने पूछताछ के दौरान बताया है कि वे कुछ अस्थायी शिक्षकों को UPI के ज़रिए भुगतान करते थे. कौन-सा विश्वविद्यालय UPI मोड में भुगतान करता है? वे अब तक ऐसा कोई लेनदेन भी नहीं दिखा पाए हैं, जिससे यह साबित हो सके.”
गठजोड़ के बारे में बात करते हुए पुलिस के सूत्रों ने कहा कि बिना विश्वविद्यालय की डिग्री वाले, लेकिन सरकारी नौकरी की तलाश कर रहे उम्मीदवार कुछ बिचौलियों की मदद लेते थे, जो पहले उन्हें पेपर लीक गिरोह से जोड़ते थे. बिचौलिए उम्मीदवारों को निजी विश्वविद्यालयों के नाम देते थे, जहां वे कथित तौर पर डिग्री हासिल कर रहे थे, ताकि वे नौकरी के फॉर्म भर सकें. पेपर लीक गिरोह उन्हें प्रश्नपत्र देते थे या डमी उम्मीदवारों का उपयोग करके उन्हें परीक्षा पास करने में मदद करते थे. बाद में बिचौलियों ने आखिरकार उन्हें विश्वविद्यालयों से संपर्क करवाया, जिन्होंने उन्हें पिछली तारीख की डिग्री और प्रमाण पत्र प्रदान किए.
उदाहरण के लिए जांचकर्ताओं को 2022 की शारीरिक प्रशिक्षण प्रशिक्षक (पीटीआई) परीक्षा में “धांधली” के सबूत मिले. परीक्षा देने वाले 1,300 से ज़्यादा उम्मीदवारों के पास ओम प्रकाश जोगेंद्र सिंह यूनिवर्सिटी की डिग्री थी. जांचकर्ताओं ने कहा कि ऐसा तब हुआ जब ओपीजेएस यूनिवर्सिटी ने 2016 से इस खास कोर्स में सिर्फ 100 सीटों के लिए मान्यता दी हुई है.
पुलिस के एक अन्य सूत्र ने बताया, “चूंकि परीक्षा के लिए उम्मीदवारों को 2020 से पहले कोर्स के लिए नामांकित होना ज़रूरी था, इसलिए यूनिवर्सिटी ने उन्हें पिछली तारीख के सर्टिफिकेट दिए.”
हालांकि, पुलिस सूत्रों ने कहा कि यूनिवर्सिटी और पेपर लीक माफिया के बीच कोई सीधा संबंध नहीं है. एक सूत्र ने कहा, “यह सब बिचौलियों के ज़रिए होता है. यह एक बहुस्तरीय गठजोड़ है.”
जब एसओजी अधिकारियों ने दलाल से छात्रों के पुराने रिकॉर्ड मांगे, तो उसने कथित तौर पर दावा किया कि दिसंबर 2019 में आग लगने से वे नष्ट हो गए थे.
पुलिस सूत्रों ने कहा कि उसने अन्य आरोपियों के साथ मिलकर घोटाले के जरिए 400 करोड़ रुपये से अधिक कमाए हैं.
अब, अधिकारी उन उम्मीदवारों से पूछताछ शुरू करेंगे, जिन्होंने विश्वविद्यालय से फाइनल पास करने और भर्ती परीक्षाओं के माध्यम से सरकारी नौकरियों के लिए चयनित होने का दावा किया है. उन्होंने ओपीजेएस द्वारा आयोजित परीक्षाओं में गड़बड़ियों को लेकर शिक्षा विभाग से भी संपर्क किया है.
पिछले साल दिसंबर में विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) ने विश्वविद्यालय को “गैर-मान्यता प्राप्त” घोषित कर दिया था, क्योंकि यह पीएचडी डिग्री देने के लिए आयोग के मानदंडों का पालन करने में विफल रहा था. यूजीसी द्वारा कई नोटिस और रिमाइंडर के बावजूद, ओपीजेएस ने कथित तौर पर 2018 में प्रदान की गई पीएचडी की जानकारी और डेटा प्रदान नहीं किया था. इस बीच, उच्च शिक्षा विभाग ने भी विश्वविद्यालय में नए प्रवेश रोक दिए हैं.
(इस रिपोर्ट को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)
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