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Wednesday, 20 November, 2024
होममत-विमतकरगिल युद्ध की 25वीं वर्षगांठ रक्षा मंत्रालय में बकाया सुधारों की सुध लेने की याद दिलाती है

करगिल युद्ध की 25वीं वर्षगांठ रक्षा मंत्रालय में बकाया सुधारों की सुध लेने की याद दिलाती है

वर्तमान वैश्विक परिदृश्य में, उभरते खतरों और तकनीकी प्रगति के मद्देनजर एक बेहद सशक्त और लचीले रक्षा संरचना की जरूरत आज सबसे ज्यादा महसूस की जा रही है.

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इस साल जुलाई में करगिल युद्ध के 25 साल पूरे हो रहे हैं. इस युद्ध में भारतीय सेना ने तमाम बाधाओं और मुश्किलों पर विजय पाते हुए पाकिस्तानी घुसपैठियों को करगिल सेक्टर की बर्फीली चोटियों से खदेड़ भगाया था. वह भारत का पहला युद्ध था जो टेलीविज़न पर दिखाया जा रहा था और तोलोलिंग तथा टाइगर हिल्स जैसी बंजर पहाड़ी चोटियों का नाम घर-घर में जाना जाने लगा था, जैसे वहां लड़ने और विजय पताका फहराने वाले सैनिकों के नाम हर कोई जान गया था. उनमें से हर एक सैनिक हीरो था, जिनका यह देश हमेशा आभारी रहेगा.

इसके बाद बने जोशीले माहौल में भी हम इस युद्ध से मिले सबक भूले नहीं और ‘करगिल रिव्यू कमिटी’ की कई सिफ़ारिशों को लागू किया गया. इनमें ‘हेडक्वार्टर्स इंटीग्रेटेड डिफेंस स्टाफ’ और ‘डिफेंस इंटेलिजेंस एजेंसी’ के गठन की सिफ़ारिशें भी शामिल थीं. कमिटी ने चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ (सीडीएस) का पद बनाने की भी सिफ़ारिश की थी, जिसे अफसोस है कि करीब दो दशक बाद 2019 में जाकर लागू किया गया. इन बदलावों के कारण तीनों सेनाओं के कामकाज में बेशक काफी अंतर आया है, लेकिन रक्षा मंत्रालय के कायापलट के लिए बहुत कुछ करने की जरूरत है.

रक्षा मंत्रालय राष्ट्रीय सुरक्षा के व्यापक दायरे में भारत की संप्रभुता और भौगोलिक अखंडता की रक्षा करने वाली दीवार जैसी है. वर्तमान वैश्विक परिदृश्य में, उभरते खतरों और तकनीकी प्रगति के मद्देनजर एक बेहद सशक्त और लचीले रक्षा संरचना की जरूरत आज सबसे ज्यादा महसूस की जा रही है. लेकिन रक्षा मंत्रालय की क्षमता और कार्यकुशलता अक्सर जांच के घेरे में आती है और उसमें सुधारों की जरूरत उभरकर सामने आती है.

कुछ सुधार तो किए गए हैं, जैसे सैन्य मामलों के विभाग (डीएमए) का गठन किया गया है, लेकिन कई ऐसे क्षेत्र हैं जिन पर ज़ोर देने और जांच करने की जरूरत है ताकि रक्षा मंत्रालय और इसके जरिए देश की सेना की क्षमताओं और कार्रवाई करने की गति में तेजी आए. इनमें से कई बातों पर कार्रवाई तो हो रही है लेकिन अभी और भी बहुत कुछ करने की जरूरत है.

रणनीतिक योजना और सिद्धांतों की मजबूती

प्रभावी सैन्य ऑपरेशनों के लिए स्पष्ट और लचीली रणनीतिक योजना जरूरी है. सुधारों का ज़ोर कुशल रणनीतिक सिद्धांतों के विकास पर होना चाहिए,जो भावी खतरों का पूर्वानुमान लगा सकें और जिनमें बहुआयामी ऑपरेशनों का समावेश हो. इसमें सेनाओं के बीच संयुक्त कार्रवाई को बढ़ावा देने में निवेश शामिल है. इसके अलावा मिश्रित और विषम खतरों का प्रभावी मुक़ाबला के लिए एजेंसियों के बीच साझीदारी बनाना भी शामिल है. वक़्त की मांग है कि एक राष्ट्रीय सुरक्षा रणनीति के तहत तीनों सेनाओं को सुपरिभाषित ऑपरेशन के लिए निर्देश जारी करने व्यवस्था तैयार की जाए. इसी से प्रस्तावित थिएटर कमांड उभरेंगे.

रणनीतिक संचार और जनसंपर्क व्यवस्था

जन समर्थन हासिल करने और रक्षा नीतियों के बारे में धारणाओं को दिशा देने के लिए प्रभावी संचार व्यवस्था जरूरी है. सुधारों से रणनीतिक संचार क्षमता, मीडिया तथा जनता के साथ पारदर्शी संबंध, और रक्षा तंत्र की सकारात्मक छवि को बढ़ावा दिया जाना चाहिए. फिलहाल इस मामले में जो काम वर्दीधारी सैनिक कर रहे हैं उसे रक्षा मंत्रालय की निगरानी में पेशेवर ‘पीआर’ एजेंसियों से करवाया जा सकता है.

खरीद की प्रक्रियाओं में सुधार

खरीद की प्रक्रियाओं में कार्यकुशलता की कमी लंबे समय से एक चुनौती बनी हुई है. नौकरशाही की जटिल प्रक्रियाओं के कारण खरीद में अक्सर देरी होती है, कीमतों में वृद्धि हो जाती है और पुराने साजोसामान मिलते हैं. रक्षा मंत्रालय जो ‘जरूरत की मंजूरी’ (एओएन) देता है वे सब-की-सब हस्ताक्षरित अनुबंधों में तब्दील नहीं होती. इसके अलावा, ‘एओएन’ और अनुबंधों पर दस्तखत के बीच 22 सप्ताह का जो समय रखा गया है उसका प्रायः पालन नहीं हो पाता, जिससे ऑपेरशन की कुशलता पर असर पड़ता है. खरीद में पारदर्शिता, जवाबदेही और कार्यकुशलता लाने के लिए सुधार बेहद जरूरी हैं. स्थानीय मैनुफैक्चरिंग पर ज़ोर देने से विदेशी सप्लाइ पर निर्भरता घटने के अलावा हमारे सैन्य-उद्योग को मजबूती मिलेगी.

बजट में पारदर्शिता और कार्यकुशलता

रक्षा मंत्रालय के अधीन संसाधनों का जवाबदेही के साथ उपयोग हो, इसके लिए बजटीय पारदर्शिता बहुत जरूरी है. सुधारों का ज़ोर बजट आवंटन प्रक्रिया के सुधार, फिजूलखर्ची पर रोक, और वित्तीय अधिकारों के अधिकतम वितरण पर होना चाहिए. वित्तीय चौकसी बजटीय आवंटनों, सीएजी द्वारा नियमित ऑडिट के जरिए हो, न कि मंजूरी और खरीद की प्रक्रियाओं के विभिन्न स्तरों पर पर निगरानी के जरिए.

तकनीकी प्रगति को अपनाना

इस डिजिटल युग में टेक्नोलॉजी रक्षा महकमे की ‘शक्ति वृद्धि’ का साधन है. रक्षा मंत्रालय एआइ, मशीन लर्निंग, और साइबर डिफेंस सिस्टम जैसी अत्याधुनिक तकनीक को प्राथमिकता दे. इन तकनीकों को रक्षा संबंधी ऑपरेशनों में शामिल करने से स्थिति के बारे में जानकारी बढ़ती है, निर्णय प्रक्रिया में तेजी आती है, और ऑपरेशन की कार्यकुशलता बढ़ती है. मूलतः यह ‘ऑबजर्व, ओरिएंट, डिसाइड, ऐक्ट’ (ऊडा) लूप है, यानी देखो, तैयारी करो, फैसला करो और एक्शन करो. फिलहाल यूक्रेन और दूसरी जगहों पर जो लड़ाई चल रही है उनसे सही सबक सीखना चाहिए.

साइबर सुरक्षा और सूचना सुरक्षा

साइबर हमलों के बढ़ते खतरे रक्षा मंत्रालय में मजबूत साइबर सुरक्षा क्षमता की जरूरत को रेखांकित करते हैं. सुधारों का ज़ोर साइबर हमलों का जवाब देने की क्षमता बढ़ाने, अहम इन्फ्रास्ट्रक्चर की सुरक्षा, व्यापक रक्षा रणनीति में साइबर ऑपरेशनों को शामिल करने पर होना चाहिए. वेपन प्लेटफॉर्म्स और कमांड, कंट्रोल, संचार, और खुफिया व्यवस्था (सी3आइ) को साइबर के लिहाज से कठोर बनाने को ऑपरेशन की गुणवत्ता की जरूरतों का हिस्सा बनाना चाहिए.

रक्षा कूटनीति को बढ़ावा

एक-दूसरे से जुड़े देशों वाली दुनिया में रक्षा कूटनीति अंतरराष्ट्रीय संबंधों और सुरक्षा सहयोग को आकार देने में केंद्रीय भूमिका निभाती है. रक्षा मंत्रालय उन कदमों की पहल करे जो सहयोग को मजबूत करे, मैत्री बनाए, और टकरावों को संवाद तथा आपसी समझदारी से निबटारे को बढ़ावा दे. दुनिया भर में नियुक्त रक्षा अताशे की संख्या में हमारे बढ़ते अंतरराष्ट्रीय कद के हिसाब से बड़ी वृद्धि की जाए. अफ्रीकी महादेश में रक्षा अताशे की नियुक्तियां करके एक छोटा कदम बढ़ाया गया है लेकिन यह दूसरे देशों के साथ हमारे संबंधों की कीमत पर नहीं होना चाहिए, और कई देशों को समवर्ती मान्यता देना बंद किया जाना चाहिए.

मानव पूंजी में निवेश

किसी भी रक्षा तंत्र की रीढ़ उसके कर्मचारी होते हैं. रक्षाकर्मियों और असैनिक कर्मचारियों के विकास, प्रशिक्षण, और कल्याण में निवेश काफी महत्व रखता है. इसमें नियुक्ति प्रक्रिया का आधुनिकीकरण, विविधता और सबको साथ लेने की प्रक्रिया को बढ़ावा देना, और अनुभवी कर्मचारियों के लिए मजबूत सुरक्षा प्रदान करना शामिल है. मानव संसाधन नीतियां दीर्घकालिक नतीजों और सभी दावेदारों के विचारों को ध्यान में रखते हुए बनाई जाएं. इसके साथ, कल्याण पर बहुत ज्यादा ज़ोर देने से बचा जाए.

नागरिक-सेना संबंध

नागरिक निगरानी और सेना की स्वायत्तता के बीच उचित संतुलन लोकतांत्रिक शासन के लिए महत्वपूर्ण है. रक्षा नीति के मामले में नौकरशाही द्वारा नियंत्रण की जगह अर्द्धसैनिक बलों द्वारा नियंत्रण पर ज़ोर दिया जाना चाहिए. सेना की विशेषज्ञता और ऑपरेशन के मामलों में उसकी स्वतंत्रता का सम्मान परिभाषित संवैधानिक ढांचे के अंतर्गत किया जाना चाहिए.

पर्यावरण की मजबूती

रक्षा संबंधी गतिविधियों से पर्यावरण पर पड़ने वाले प्रभावों का महत्व बढ़ता जा रहा है. इसलिए सुधार के जो कदम उठाए जाएं वे रक्षा संबंधी ऑपरेशनों और ऊर्जा बचत, कचरे में कमी, और पर्यावरण को आगे बढ़ाने की ज़िम्मेदारी भरी पहल आदि से जुड़े हुए हों. पारिस्थितिकी के लिहाज से कमजोर सीमावर्ती इलाकों में इन्फ्रास्ट्रक्चर के विकास के कदम पारिस्थितिकी पर उनसे पड़ने वाले प्रभावों के उपयुक्त सर्वे और राष्ट्रीय सुरक्षा से कोई समझौता किए बिना संभावित विकल्पों पर विचार करने के बाद उठाए जाएं.

ये सुधार केवल इन्फ्रास्ट्रक्चर के आधुनिकीकरण के लिए नहीं हों बल्कि बदलते सुरक्षा परिदृश्य के अनुसार खुद को, राष्ट्रीय मूल्यों तथा हितों की रक्षा करते हुए ढालने के लिए हों. थलसेना, नौसेना, वायुसेना की संरचना रक्षा मंत्रालय के विभागों के रूप में हो, जो पहले से ही कई विभागों को संभाल रहा है. मंत्रालय के भीतर तालमेल को बढ़ावा देने के लिए गैर-वर्दीधारी कर्मचारियों को सभी विभागों में तैनात किया जाना चाहिए. इससे संगठन का कामकाज प्रभावी होगा, ऑपरेशनों की कार्यकुशलता बढ़ेगी, और फैसले रणनीति केंद्रित होंगे. निरंतर जटिल होती जा रही इस दुनिया में शांति, सुरक्षा, और खुशहाली बहाल करने के लिए रक्षा मंत्रालय सोचे-समझे सुधारों के जरिए देश को बेहतर सेवा प्रदान कर सकता है.

(इस खबर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.)

(जनरल मनोज मुकुंद नरवणे, पीवीएसएम, एवीएसएम, एसएम, वीएसएम, भारतीय थल सेना के सेवानिवृत्त अध्यक्ष हैं. वे 28वें चीफ ऑफ आर्मी स्टाफ थे. उनका एक्स हैंडल @ManojNaravane है. व्यक्त किए गए विचार निजी हैं.)


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