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Friday, 22 November, 2024
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उर्दू प्रेस ने उठाया पेपर लीक पर सवाल, कहा — ‘सिस्टम माफिया को बढ़ावा दे रहा है’

पेश है दिप्रिंट का राउंड-अप कि कैसे उर्दू मीडिया ने पिछले हफ्ते के दौरान विभिन्न समाचार संबंधी घटनाओं को कवर किया और उनमें से कुछ ने इसके बारे में किस तरह का संपादकीय रुख अपनाया.

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नई दिल्ली: परीक्षा में धोखाधड़ी की अंतहीन गाथा से लेकर ईवीएम में कथित छेड़छाड़ तक, कांग्रेस में “नई” स्टार प्रियंका गांधी के उदय से लेकर मणिपुर में राष्ट्रपति शासन की ज़रूरत तक और अंत में ईद-उल-अजहा पर सच्ची कुर्बानी का सार — इस हफ्ते उर्दू प्रेस की बड़ी खबरों और संपादकीय का सारांश.

‘कौन सा पेपर सुरक्षित है?’

NEET और NET पेपर लीक के संदर्भ में 21 जून को सियासत अखबार के संपादकीय में पूछा गया: “कौन सा पेपर सुरक्षित है?” इसमें कहा गया है कि कई जगहों पर पेपर लीक हो जाते हैं, परीक्षाएं रद्द हो जाती हैं और उम्मीदवारों को महीनों तक इंतज़ार करना पड़ता है.

इसकी वजह से कई लोगों को नुकसान उठाना पड़ा है. अखबार ने 2013 में सामने आए व्यापम घोटाले का ज़िक्र करते हुए कहा, “मध्य प्रदेश में जो हुआ, उससे पूरा देश स्तब्ध है, जहां कई लोगों की जान चली गई.” इसमें कहा गया, यहां तक ​​कि सरकारी एजेंसियों में भर्ती और नियुक्तियों के लिए परीक्षाएं भी निष्पक्ष नहीं थीं और धांधलियों के कारण उन्हें रद्द करना पड़ा.

संपादकीय में परीक्षा प्रणाली में भ्रष्टाचार के खतरे के बारे में भी चेतावनी दी गई है, जिसके कारण भ्रष्ट लोग डॉक्टर या सरकारी अधिकारी बन सकते हैं और समस्या को कायम रख सकते हैं.

19 जून को इंकलाब ने अपने संपादकीय में नीट परीक्षा का ज़िक्र करते हुए कहा कि “यह प्रणाली नीट के नतीजों में हेराफेरी और धांधलियों के लिए जिम्मेदार माफिया को बढ़ावा दे रही है, जिससे स्टूडेंट्स का भविष्य खतरे में पड़ रहा है.”

इसने आगे कहा, “अदालत के अलावा कोई भी इस मुद्दे को लेकर गंभीर और ईमानदार नहीं दिखता. हमारे युवाओं की सुरक्षा के लिए सामाजिक जागरूकता के माध्यम से शिक्षा प्रणाली में क्रांति लाने के लिए एक आंदोलन की ज़रूरत है.”

16 जून को इंकलाब ने अपने संपादकीय में लिखा कि इस साल 24 लाख छात्र नीट परीक्षा में शामिल हुए, जो अपने संचालन और परिणामों में कथित धांधलियों को लेकर विवाद में है.

इसने कहा, “किसी भी विभाग, प्राधिकरण या एजेंसी को इतनी बड़ी संख्या में छात्रों के भविष्य को खतरे में डालने की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए. कई लोगों ने अपना सब कुछ त्याग दिया, काफी मेहनत की और अपनी शिक्षा के लिए कर्ज़ लिया. 24 लाख छात्रों का मतलब है सपनों, आकांक्षाओं, योजनाओं और बलिदानों की 24 लाख कहानियां.”

‘ईवीएम से छेड़छाड़’

20-जून को सियासत के संपादकीय में इस साल के लोकसभा चुनावों के मद्देनज़र ईवीएम से छेड़छाड़ के आरोपों को संबोधित किया गया और विपक्षी दलों से इस मुद्दे को व्यापक और कानूनी तरीके से संभालने का आग्रह किया गया.

इसमें भारत के कानूनों और संविधान के भीतर मामले को तार्किक निष्कर्ष पर ले जाने के महत्व पर जोर दिया गया. इसमें भाजपा की चुनावी हार और विपक्ष के बढ़ते समर्थन के बारे में भी बात की गई.

सियासत ने कहा, “इस मुद्दे को व्यापक और व्यवस्थित तरीके से आगे बढ़ाना उनकी (विपक्षी दलों की) जिम्मेदारी है, जहां भी संभव हो, कानूनी सहायता मांगी जानी चाहिए. जो रास्ता अपनाया जाना चाहिए, वह देश के कानूनों और संविधान के दायरे में होना चाहिए.”

चुनावी परिदृश्य में प्रियंका गांधी का आगमन

20 जून को इंकलाब ने अपने संपादकीय में लिखा कि कांग्रेस नेता प्रियंका गांधी को केरल के वायनाड निर्वाचन क्षेत्र से जीतने में कोई बाधा नहीं है, जहां से वे उपचुनाव लड़ने वाली हैं. इसमें कहा गया कि लोकसभा में उनकी उपस्थिति विपक्ष को मजबूत करेगी और गांधी परिवार के भीतर उनका राजनीतिक कद भी बढ़ाएगी.

19 जून को सियासत के संपादकीय में कहा गया कि प्रियंका की जीत से केरल में कांग्रेस की सत्ता में वापसी की संभावना बढ़ जाएगी. संपादकीय में कहा गया, “प्रियंका की मौजूदगी कांग्रेस कार्यकर्ताओं का मनोबल बढ़ा सकती है और जनता को पार्टी के करीब ला सकती है.”

मणिपुर में राष्ट्रपति शासन

20 जून को रोज़नामा राष्ट्रीय सहारा ने मणिपुर में जातीय हिंसा से निपटने के लिए केंद्र सरकार की आलोचना करते हुए कहा कि एक साल से ज़्यादा समय बीत चुका है और राज्य में शांति बहाल करने के लिए कोई ठोस प्रयास नहीं किए गए हैं.

इसमें कहा गया कि राज्य सरकार की “अक्षमता” और केंद्र की “उदासीनता” ने जातीय पूर्वाग्रह को फैलने दिया है. इसमें कहा गया कि हिंसा रोज़ाना जारी है और सुरक्षा बल इसे नियंत्रित करने में असमर्थ हैं.

संपादकीय में संकट को प्रभावी ढंग से संबोधित करने के लिए मुख्यमंत्री एन. बीरेन सिंह को हटाने या राज्य में राष्ट्रपति शासन लगाने का सुझाव दिया गया. इसमें कार्रवाई की तत्काल ज़रूरत पर ज़ोर दिया गया और सवाल किया गया कि प्रधानमंत्री और केंद्रीय गृह मंत्री ने मणिपुर का दौरा करने को प्राथमिकता क्यों नहीं दी.

अखबार ने पूछा, “अशांति से जल रहे मणिपुर में राष्ट्रपति शासन लगाने से कौन सी मजबूरी रोक रही है?”

(संपादन: फाल्गुनी शर्मा)

(उर्दूस्कोप को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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