नई दिल्ली: बिहार में बुखार से सरकारी अस्पतालों में अब तक करीब 150 बच्चे मर चुके हैं. प्राइवेट अस्पतालों और घर पर ही बिना इलाज के मर चुके बच्चों का आंकड़ा इसमें नहीं जोड़ा गया है. अगर सारे आंकड़े पेश किए जाएं तो ये कहना ज्यादा नहीं होगा कि स्वास्थ्य सेवाओं को लेकर देश में भयावह स्थिति बनी हुई है. शुरुआत में इन बच्चों की जान जाने का मुख्य कारण लीची बताया जा रहा था लेकिन अब सामने आया है कि इन मौतों का असली जिम्मेदार कुपोषण है.
2016 में विश्व में बच्चों की स्थिति पर यूनीसेफ की एक रिपोर्ट के अनुसार, उप सहारा अफ्रीका में 5 साल से कम उम्र के 16% बच्चे अल्पवजनी थे. लेकिन स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय की एक रिपोर्ट के मुताबिक 2015-2016 में भारत के 5 साल से कम आयु के 35.7% बच्चे अल्पवजनी थे. भारत सरकार देश से कुपोषण दूर करने के लिए लगातार तरह-तरह की योजनाएं लाती रही है. जैसे महिला एवं बाल विकास मंत्रालय की अम्ब्रेला स्कीम, आंगनवाड़ी सेवा, किशोरियों के लिए स्कीम और प्रधानमंत्री मातृ वंदना योजनाएं. इसके अलावा स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय के अंतर्गत आने वाले खाद्य एवं पोषण बोर्ड छेत्रीय स्तर पर पोषण को लेकर कई कार्यक्रम आयोजित कराता है.
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इतनी सारी योजनाओं और कार्यक्रमों के बावजूद बिहार में हुई मौतों को लेकर 21 जून को लोकसभा के सदस्य श्री नारणभाई काछकियाा और श्री रामदास तडसा ने सदन में कुपोषण को लेकर तीन सवाल पूछे. उन्होंने पूछा-
1- सरकार द्वारा बच्चों में कुपोषण की समस्या से निपटने के लिए उठाए गए कदमों का ब्यौरा?
2- कुपोषण को लेकर सरकार द्वारा विगत तीन वषों के दौरान महाराष्ट्र, राजस्थान और छत्तीसगढ़ सहित हर राज्य को दी गई वित्तीय सहायता?
3- सरकार द्वारा अंतर्राष्ट्रीय मानकों के अनुसार बच्चों को पोषक आहार प्रदान करने के लिए विगत तीन सालों में क्या कदम उठाए गए हैं?
इसके जवाब में महिला एवं बाल विकास मंत्रालय ने बताया है कि सरकार ने 9046 करोड़ रुपए के समग्र बजट से 18 दिसंबर, 2017 को 2017-18 से शुरुआत के तीन सालों तक पोषण अभियान शुरू किया था. इस अभियान के अंतर्गत 36 राज्यों और संघ शाषित राज्यों व जिलों को कवर किया गया है.
इस अभियान का मुख्य उद्देश्य 0-6 साल तक के बच्चों, गर्भवती महिलाओं और बच्चों को दूध पिलाने वाली महिलाओं के पोषण की स्थिति में सुधार लाना है. इसके अलावा कम वजन के बच्चों की जन्मदर को घटाना व 6 से 59 महीने के बच्चों में खून की कमी को सुधारना भी शामिल है. कुल मिलाकर पोषण अभियान का मुख्य कार्य देश में कुपोषण चरणबद्ध तरीके के हटाना है.
किशोरी और मातृ वंदना योजना के बजट को लगातार किया कम
किशोरियों के लिए जारी किए गए फंड से केंद्र ने 2016-17 में 477 करोड़ रुपए के बजट में से बिहार को 26 करोड़ रुपए दिए. 2017-18 में 446 करोड़ रुपए के बजट से 40 करोड़ रुपए और 2018-19 में 204 करोड़ रुपए का बजट था जिसमें से बिहार को मात्र 25 लाख दिए.
गौरतलब है कि मुज्जफरपुर में इंसेफेलाइटिस से मरने वालों बच्चों में लड़कियों की संख्या ज्यादा है. कुपोषण से बचाने के लिए केंद्र ने बिहार के लिए महज 25 लाख की राशि जारी की.
प्रधानमंत्री मातृ वंदना योजना के अंतर्गत केंद्र सरकार ने 2017-18 में 2048 करोड़ रुपए के बजट से बिहार को 173 करोड़ रुपए दिए. जबकि 2018-19 में 1049 करोड़ रुपए के बजट से बिहार को केवल 12 करोड़ रुपए दिए गए.
बिहार को कितनी राशि भेजी गई
2016-17 के दौरान आंगनवाड़ी सेवा स्कीम के अंतर्गत में 6800 करोड़ के बजट से बिहार को 525 करोड़ रुपए दिए गए तो 2017-2018 में 7906 करोड़ के बजट से राज्य को 537 करोड़ रुपए जारी किए गए. 2018-2019 में 8475 करोड़ रुपए के केंद्रीय बजट से 769 करोड़ रुपए भेजे गए.
2018 में पोषण अभियान का बजट लगभग चार गुना बढ़ाया गया
पोषण अभियान के अंतर्गत 2017-2018 में केंद्र ने 584 करोड़ रुपए के कुल बजट में से बिहार को 67 करोड़ भेजे. 2018-2019 में केंद्र ने 2555 करोड़ रुपए के कुल बजट में से मात्र 150 करोड़ रुपए आवंटित किए गये.
पिछले दो साल का रिकॉर्ड देखने पर पता चलता है कि भले ही सरकार ने पोषण अभियान का बजट 2017 की तुलना में 2018 में चार गुना बढ़ाया लेकिन बिहार को जारी होने वाली राशि में खास इजाफा नहीं हुआ.
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स्वास्थ्य सेवाओं को लेकर बिहार सरकार कागजों पर चिंतित, जमीन पर कुछ नहीं
2019-2020 वित्तीय वर्ष के लिए बिहार सरकार ने 2,00,501.01 करोड़ रुपए का बजट विधानसभा में पेश किया था. 2018-2019 के बजट के मुकाबले इस बार 23,510.74 करोड़ रुपये की बढ़ोत्तरी देखी गई. इसमें 9 हजार 622.76 करोड़ रुपये के खर्च का प्रावधान स्वास्थय सेवाओं के लिए किया गया है जिसके अंतर्गत राज्य में 11 नए मेडिकल कॉलेजों को खोलने की बात कही है. आयुष्मान भारत योजना के लिए भी 335 करोड़ रुपए खर्च करने का प्रावधान है.
कॉलेज बनाने और स्वास्थ्य सेवाओं को लेकर सरकार के वादे जमीन पर खोखले नजर आ रहे हैं. जब बिहार के मुख्यमंत्री नीतिश कुमार चमकी बुखार से मरे बच्चों के परिवारजनों से मिलने मुज्जफरपुर अस्पताल पहुंचे तो वहां ‘नीतिश कुमार वापस’ जाओ के नारे लगाए गए. राज्य स्वास्थ्य मंत्री मंगल पाण्डेय भी लगातार सवालों के घेरे में हैं. केंद्रीय राज्य स्वास्थ्य मंत्री अश्विनी चौबे को भी घेरा जा रहा है. लेकिन राज्य सरकार और केंद्र सरकार, दोनों के ही पास बच्चों की मौत पर बोलने के लिए कुछ नहीं है.