राष्ट्रपति जी के भाषण की विस्तार से चर्चा हमारा उद्देश्य नहीं है. सीधी सी बात है कि वे कह क्या रहे हैं और जल शक्ति मंत्रालय कर क्या रहा है. बानगी देखिए – केंद्रीय जलशक्ति मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत ने अधिकारियों से कहा कि अगले तीन सालों में हर घर नल का जल पहुंचाना है, खास तौर पर यूपी और बिहार में.
कैसे?
किया यह जाएगा कि हर गांव में बोरिंग (ड्रिलिंग) की जाएगी, जमीन से पानी खींचा जाएगा और सिंटेक्स टंकी रखकर पाइप से पानी पहुंचा दिया जाएगा. अब इसके लिए हजारों – लाखों बोर करने पड़े तो कोई बात नहीं क्योंकि धरती पर इतने छेद तो पहले से ही हैं.
कैसे है सबसे बड़ा ‘संकट’ बन गया ‘जल’
भूमिगत जल को घर तक पहुंचाने की योजना के दूसरे पहलुओं पर नजर डालने से पहले जान लीजिए कि राष्ट्रपति जी ने पानी और नदियों को लेकर कहा क्या है. उन्होने कहा, ‘ 21वीं सदी की सबसे बड़ी चुनौतियों में से एक है- बढ़ता हुआ जल-संकट. हमारे देश में जल संरक्षण की परंपरागत और प्रभावी व्यवस्थाएं समय के साथ लुप्त होती जा रही हैं. तालाबों और झीलों पर घर बन गए और जल-स्रोतों के लुप्त होने से गरीबों के लिए पानी का संकट बढ़ता गया. क्लाइमेट चेंज और ग्लोबल वॉर्मिंग के बढ़ते प्रभावों के कारण आने वाले समय में, जलसंकट के और गहराने की आशंका है.
आज समय की मांग है कि जिस तरह देश ने ‘स्वच्छ भारत अभियान’ को लेकर गंभीरता दिखाई है, वैसी ही गंभीरता ‘जल संरक्षण एवं प्रबंधन’ के विषय में भी दिखानी होगी.’ उन्होने यह भी कहा कि हमें अपने बच्चों के लिए पानी बचाना है. और जलशक्ति मंत्रालय इस दिशा में निर्णायक कदम है.
गजेंद्र सिंह शेखावत राजस्थान के जोधपुर से आते हैं. यह वह इलाका है जिसने भारत को पानी सहेजना सिखाया है. राष्ट्रपति जिन परंपरागत व्यवस्थाओं की बात कर रहे हैं वे यहीं से उपजी हैं. उम्मीद तो यह की जानी चाहिए शेखावत पानी की कीमत को पहचानेगें और पीढ़ियों के लिए काम करेंगे जैसे राष्ट्रनेता करते हैं लेकिन वे तो सीमित नजर वाले राजनेता निकले. उन्हे पता है कि कूओं और तलाबों के प्रबंधन और रखरखाव में बजट भी ज्यादा लगेगा और इसके परिणाम भी काफी देर से नजर आएगें . तुरत-फुरत वाहवाही के लिए तो अच्छा है कि जमीन खोदो और पानी निकालों. जमीन के भीतर पानी कहां से आएगा यह अगली पीढ़ी की चिंता का विषय है.
कुआं पुनर्जीवित कर आर्सेनिक से लड़ा जा सकता है
इसके अलावा यूपी – बिहार में आर्सेनिक – फ्लोराइड के मुद्दे पर तो वे बात भी नहीं करना चाहते. जबकि नीति आयोग और जलशक्ति से जुड़े वरिष्ठ अधिकारी अच्छी तरह जानते है कि पूरे गंगा पथ पर आर्सेनिक भरा हुआ है. और वह भूमिगत जल से ही आता है. कूओं को पूनर्जीवित करके ही आर्सेनिक से लड़ा जा सकता है.
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बलिया और उसके आसपास के इलाकों में सौरभ सिंह और उनकी टीम लगातार गांव वालों को जागरूक कर कूंए के पानी के इस्तेमाल की सलाह देती है, वे कई सालों से चीख – चीख कर कह रहे हैं कि गंगा पथ का पानी जहर बनता जा रहा है लेकिन सरकार के कानों में जूं नहीं रेग रही. हां, उनका डाटा जरूर नीति आयोग के काम आता है, जिसे वे अपना बताकर उपयोग में लेते रहते है. मिर्जापुर से लेकर वाराणसी, गाजीपुर, बलिया, भोजपुर, से मालदा तक चले जाईए, आपको हजारों ड्रिंकिंग वाटर प्लांट मिलेगें.
यहां से बोतल बंद पानी का एक विशाल बाजार दिखाई देता है जिसके ग्राहक हर घर और हर दुकान है. एक बड़ी आबादी खुद को हैंडपंप के पानी से बचाने के लिए हर रोज की अपनी कमाई का एक हिस्सा पीने का पानी खरीदने में खर्च करती है. जो लोग मजबूरी में हैंडपंप का पानी पी रहे हैं वे वास्तव में बीमारी खरीद रहे हैं.
आर्सेनिक से बचाव का एकमात्र सफल और सरल तरीका है कि कुओं और बावड़ियों की ओर लौटा जाए. और कोई भी वैज्ञानिक तरीका आर्सेनिक से सौ फीसद बचाव की गारंटी नहीं देता.
बिहार सरकार ने पहले ही हर घर नल योजना पर काम शुरू कर दिया है. लेकिन शेखावत जिस पैमाने पर इसे ले जाना चाहते है, वह डराता है. उन्हे समझना होगा कि लोगों को पीने का साफ पानी चाहिए, पानी की तरह चमकता जहर नहीं. गंगा पथ पर हजारों- लाखों छेद करने का मतलब होगा लोगों को तय मौत परोसना. और उससे पैदा होने वाली बीमारियों के लिए कई आयुष्मान योजनाओं का बजट भी छोटा पड़ जाएगा. यह बीमारियां उन समस्याओं से अलग है जो हम नदी को प्रदूषित करके पैदा कर रहे हैं.
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बहुत से लोग यह मानने को तैयार नहीं कि सरकार बोरिंग करके पानी पिलाने की तैयारी कर रही है, वे ट्यूब वेल बोरिंग मशीन बनाने वाली कंपनियों का उत्साह देख लें. और मुद्रा योजना के लिए आने वाले आवेदनों पर भी एक नजर डालने की जरूरत है कि क्यों लोगों को बोरिंग मशीन खरीदने में फायदा नजर आ रहा है.
जमीन से पानी निकालना नया उभरता रोजगार है.
राष्ट्रपति जी ने गंगा की अविरलता और निर्मलता का सरकारी प्रण भी दोहराया. उन्होने कहा कि कई जगह गंगा में जलीय जीवन लौटने के प्रमाण मिले है. अच्छा होता वे उन जगहों के नाम भी बता पाते. उन्होने प्रयागराज के अर्धकुंभ को गंगा स्वच्छता की दिशा में बड़ा कदम बताया. काश वे अपनी सरकार से कहें कि कुंभ वाली गंगा मौसमी नहीं हो सकती उसका अविरल स्वरूप सिर्फ कुंभ के दौरान नहीं हर तीज-त्यौहार पर नजर आना चाहिए.
(अभय मिश्रा लेखक और पत्रकार हैं.यह लेख उनका निजी विचार है)